सोमवार, 22 अक्तूबर 2018

अधजल गगरी छलकत जाय [व्यंग्य ]

अधजल गगरी छलकत जाय  [व्यंग्य ] 

                                     
       आखिर कब तक चलेगा ये सिलसिला   ? बिना सिर पैर के कुछ भी बको  ?  लल्लन जी आये दिन  नेताओ के उल्टे पुल्टे बयानों से  परेशान होकर कहने लगे कि  गीता मे भी कहा गया है ।" न हि ज्ञानेन संदृशं पवित्र मिह विद्यते " अर्थात् - ज्ञान से अधिक पवित्र संसार में कुछ भी नही है ।कलयुगी गीता में  अज्ञानी  और ज्ञानी के बिच में  तथाकथित महाज्ञानी का पाया  जाता है l वह  कबाब में हड्डी और प्यार में सेंडविच की तरह खटकता है l वो सब कुछ  जानता है पर आधा  अधूरा  ज्ञान बात का बतंगड़ बना देता है अपने अज्ञान को मनोरंजन और  की धकेल देता है  जिससे न्यूज़ चैनल तो अपनी  टीआरपी बढ़ा लेता है और  सोशल मीडिया पर टाइम पास का एक नया  विषय मिलजाता है l अच्छे -अच्छे की किरकिरी करने में सोशल मिडिया पर मोजूद   तथाकथित ज्ञानवान कोई कसर नही छोड़ते lजिस स्थान पर नदी गहरी है, वहां का जल शांत होगा। इसके विपरीत जहाँ पानी कम होता  है हमेशा शोर करने वाला होगा।  यह  शाश्वत  सत्य है !   ज्ञानशील  मनुष्य हमेशा  शान्ति लिए रहता है  औए  अज्ञानी  शोर करता है  l
                    उनकी बात बिच में  काटकर वर्मा जी कहने लगे   "अधजल गगरी छलकत जाय  "पूरा भरा घड़ा कभी छलकता नही है परन्तु घड़ा जब आधा भरा हो तो वह छलकने लगता है । यही  हाल आजकल हमारे नेताओ का है l किसी भी विषय पर अध कचरे  ज्ञान से उलूल जुलूल बोलना राजनीति में फैशन सा हो गया है जनता भी चटखारे लेती है l बची कुछी कसर  डिजिटल  युग में विडियो से छेड़छाड़ कर उसे अगल ही दिशा में मोड़ दिया जाता है पूरा ही अज्ञानी बना दिया जाता है l  जो बोल दिया वो ही सही है उससे  टस में मस नही होते है अपनी बात पर अडिग रह कर यह  यह शोआफ़ करना चाहते है में सही सही हूँ l तर्क नही कुतर्क करता है  और सामने वाला सतर्क हो जाता है l अज्ञानी  से ज्यादा  खतरनाक होते - जबरन के  ज्ञानी बनने वाले l जबरन के ज्ञानी एक विशेष प्रकार के प्राणी अधिकतर  स्थान पाए जाते है जो  ज्ञानियों के स्पीड ब्रेकर का काम करते है l
यह इनका एक विशेष प्रकार का जूनून होता है --जबरन ज्ञान  बघारने का मोह छुटे नाही  इनसे l
                                     मैंने   कहा आप दोनों सही कह रहे है बड़बोले समझते है की उनके ज्ञान के आगे सब कुछ गलत है और इर्द- गिर्द मंडराने वाले  चमचे उनके झूटे ज्ञान पर वाह वाह करके चने के झाड़ पर चढाते और उसके मुगालते में और  वृद्धी करके उसे कहीं का नहीं छोड़ते है l जोश खरोश से वह अपने स्वयम अपने ज्ञान का कायल हो जाता है और उसमे महारथी हो जाता है l वह इतिहास बदलने से लेकर देश में विज्ञान के चमत्कार की तरह  कई चमत्कारिक  ज्ञान देता  फिरता है l वह ज्ञान बाटना  अपना अधिकार  समझता है  और  कोई ग्रहण करे या  न करे , हंसी का पात्र बनकर भी बेशर्म की तरह खीसे निपोरता है और अपने ज्ञान के  अहम में अँधा  होकर जीता है lरावण   , दुर्योधन  को भी को अपने ज्ञान का  घमंड था  पर   हश्र  क्या  हुआ ? सबको पता है  घमण्ड कांच के बर्तन की तरह होता है कभी चटक सकता है l  एक लोकोक्ति है कि बिना सोच विचार के जो बोलता है  वह अन्त में  दुखी होता है  पर इधर कुछ ऐसा नही है  l बोलना है तो  बोल दिया , हम तो बोलेंगे lइनका   कर भी क्या सकते हो  ?-जब अधजल गगरी छलकत जाय l

संजय जोशी "सजग "

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 20 जुलाई 2019 को लिंक की जाएगी ....
    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही प्रासंगिक औत ज्वलंत विषय , गरिमा खोते समाज और लोगों की पोल खोलता | आभार सार्थक लेख के लिए आदरणीय संजय जी |

    जवाब देंहटाएं