सोमवार, 22 अक्तूबर 2018

गधे और गुलाब जामुन [व्यंग्य ]

गधे और गुलाब जामुन [व्यंग्य ]


                    बात भी अब सही लगने लगी है कि घोड़े को घास नहीं  और गधे गुलाब जामुन और च्यवनप्राश खा रहे है l घोड़ों  और गधों  की अपनी अपनी किस्मत है l घोड़े  के पिछाड़ी और बॉस के अगाड़ी नही आना चाहिए,गधे के बारे में ऐसा  नही कहा है जबकि दुल्लती तो गधा घोड़े से ज्यादा  ही मारता है फिर भी  घोड़ा  ही बदनाम है l जो है नाम वाला वही तो बदनाम है l शहरों में  असली गधे तो विलुप्त से हो गए है लेकिन फिर भी इसकी प्रजाति के लोग बहुतायत में पाए जाते है कालिदास के शहर  में गधा पुलिया है और  आज भी इस  नाम से जाना जाता  है यह पुल l कितनी ही ,नगर सरकार  आयी और चली गई पर किसी  ने इस नाम को बदलने की हिम्मत नही जुटाई और गधों  की याद में आज भी प्रसिद्ध है और तो और गधो का मेला भी लगता है जिसमे  नेता, अभिनेता के नाम के गधे  बिकने आते है ,उनकी फोटो शॉप  होती है और समाचारों और न्यूज़ चैनल की हेड लाइन बनती है l मनुष्य और  गधों  का गहरा  नाता है ,हर मनुष्य में गधे  का अंश हो सकता है पर  मनुष्य का अंश गधे में नही l 
  गधे हमारी प्राचीन  धरोहर है  होली में इसका  विशेष महत्व रहता है  बिना इसके होली खेलने वालों  को मजा नही आता हैl  होली में आदर्श की तरह  कोई अपने आप में   गधा  होने में संकोच नही करता है l ज्ञानवान का प्रतीक रावण भी गधे के मोह से  अछूता नही था उसके सर पर गधे का मुँह इठलाता रहता था l अपने आपको  शेर मानने में शर्म नहीं  आती है तो गधे  जैसे कर्मशील प्राणी से परहेज क्यों ? प्राइवेट  सेक्टर में काम करने वाले को, बेचारे को गधा  समझ लिया जाता है  बस काम और काम l राजनीति  में  भी कार्यकर्ता को यही प्राणी समझा  जाता है और जनतन्त्र में जनता को गधा माना  जाता है जो सिर्फ वोट दे बाकि हम है ना l 
  कभी -कभी लगता है कि काश गधे नही होते तो लोकोक्ति और मुहावरे की कमी हो जाती -
जैसे -काबुल में गधे नही होते,ज्ञान तो दिया नहीं लेकिन गधे का उपनाम देकर जीवन भर के लिए उपकृत भी  कर दिया। झगड़े में एक दूसरे को कहने में नही चूकते की गधा समझ रखा है मेरे दोस्त के पिताश्री हमेशा यह कहते पाए जाते है कि गधे   ही रह जाओगेl गायब होने लिए -जैसे गधे के सिर से सींग लोकोक्ति ठोक दी जाती हैl एक और नाइंसाफी देखिये- जरूरत के समय गधों को भी बाप कहना पड़ता है। एक  सीरियल में  गधाप्रसाद  भी हैl  शिक्षा ,संस्कार , मनोरंजन  और राजनीति  में भी यह अपनी गहरी  पैठ रखता है l गधा सबसे भारी  शब्द है शेर  से नही आजकल गधे से डर  लगने लगा है l  
 इस बार  गधा छा गया और भूचाल आ गया गधे की ताकत का अहसास हो गया सब मुद्दे धराशयी हो गए और चल पड़ी गधों  पर बहस मतदाता  टुकुर टुकुर देख रहा है  हो सकता है इस बार गधा न बने गधो की बहस ने आँखे खोल दी होगी ?
        गधे की महिमा अपरम्पार है इसके बिना जीवन अधूरा है माड़साब व मास्टरनियों का तकिया कलाम है बच्चे उन्हें गधे ही नजर आते है l गधा एक निरीह बोझ तले दबने वाला प्राणी  है  कदम कदम पर इस बिरादरी के गुण  वाले पाए जाते है स्त्रिलिग़ और पुर्लिग दोनों में ही  इसके गुणों का समावेश रहता हैl  यह प्रकुति प्रद्दत गुण है किसी में  बोझ सहने की अपार क्षमता होती है तो किसी में बोझ देखकर दुल्लती और  ढेंचू  ढेंचू  करने लगते है l बॉस को बोझ सहने वाले गधे ही पसन्द आते है ढेंचू  ढेंचू करने वाले नहीं l 

संजय जोशी 'सजग 

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