बुधवार, 24 मई 2017

जश्न पर प्रश्न [व्यंग्य ]

                           जश्न  पर प्रश्न [व्यंग्य  ]

                         
               एक बार एक शिष्य ने अपने गुरु से पूछा कि  जश्न किसे कहते हैं ? गुरूजी बोले -अपने  वादे और सपने पूरे होने  के उपरांत ख़ुशी मनाने के लिए आयोजित  कार्यक्रम  को जश्न   कहा  जाता है   शिष्य ने  फिर प्रश्न  दागा कि  अगर राजा खुश है और प्रजा दुखी,  ऐसे  में जश्न मनाया जाता है उसे क्या कहेंगे  ?गुरूजी बोले  इसे तो ख़ुशी का ढिंढोरा पीटकर प्रजा के दुःख से मुंह मोड़ना कहेंगे ऐसे में प्रजा पर दुखों  का बोझ और बड़ जाता है ,असंतोष  की भावना का विकास होता है ,गुरूजी कहने लगे जश्न तो युगों युगों   से मनाते आ रहे है राजा ,प्रजा का धन पानी  की तरह  बहाते  है ,चमचो और चापलूसों  को उपहार और सम्मान  मिलता है और प्रजा यह सब नौटंकी मूक दर्शक बनकर देखती रहती है,  जश्न अपने परवान पर चढ़ता रहता है  l
   गुरूजी ने जश्न को कुछ इस तरह बताया  कि सामाजिक व पारिवारिक  जश्न  हमें  सुकून देते है वहीँ  राजनीतिक  जश्न   का मतलब ,सजीवता का अहसास है समस्याओं का उपहास है अपने वादों का परिहास है l जश्न से जलवा बिखरता है और झूठ और निखरता है जश्न को नाकामियों का सौंदर्य शास्त्र  कहें , तो भी अतिश्योक्ति नहीं होगी l 
                         शिष्य ने पूछा कि  गुरूजी ऐसे जश्न का क्या लाभ ?गुरूजी कहने लगे बेटा राजा अपनी खोती  चमक  को इससे पॉलिश करने की कोशिश करता है  l शिष्य बोला देश में पानी की त्राहि -त्राहि मची हो ,कर्ज से पीड़ित किसान अपनी जीवन लीला समाप्त  कर  रहे हो  ,गुणवत्ता शिक्षा के अभाव में  छात्र अपनी जान  दे रहे है ,  महिलाये  कदम कदम असुरक्षित महसूस करती है ,खेती  चौपट,छोटे उद्योग आक्सीजन पर ,बड़े उद्योगों को भारी  छूट ,   बेरोजगारी , बड़ते अपराध ,पिटते पत्रकार ,नैतिक मूल्यों की गिरावट का जोर यह सब होते हुए भी जश्न जरूरी  होता है क्या   ?
           गुरूजी भी शिष्य की प्यास नहीं बुझा  पा रहे थे  कहने लगे वत्स राजतन्त्र से प्रजातंत्र हुआ पर 
बाकि कुछ नहीं बदला ,राजा रजवाड़े भी अपनी इच्छा पूर्ति हेतु सब कुछ करते थे ,और प्रजातंत्र में भी वहीं  सब कुछ हो रहा है , और होता रहेगा ,जश्न पहले भी होते थे अब भी हो रहे है और होते रहेंगे जश्न ही तो हमारे विकास का आईना होता है ,अगर जश्न नहीं होगे तो प्रजा में सुखानुभूति का संचार कैसे होगा ?अत ; जश्न  हमे  संदेश देते है कि  जश्न ही तरक्की है ,जश्न ही सेवा , जश्न ही हमारा  फर्ज है l 

           शिष्य गुरु जी को आँखे फ़ाड़ कर  देख रहता ,गुरु जी उसकी जिज्ञासा को शांत न कर पाने से विचलित थे कहने लगे वत्स समय का प्रवाह तुम्हे सब कुछ सिखा  देगा कि  जश्न का कितना महत्व है जब तुम पैदा हुए  थे  तुम्हारे   माता -पिता ने भी जश्न मनाया होगा ,सब मनाते है और बाद में कई पुत्र तो पिता के लिए दुःख का कारण बन जाते है l जश्न अपनी   जगह है ,जश्न और विकास में कोई संबंध नहीं है  l   जश्न हमे वर्तमान में अत्यंत प्रसन्नता देता है , भविष्य में क्या होगा कोई नहीं जानता है l एक लोकोक्ति  के अनुसार  पूत के पांव पालने में ही दिख जाते है l 
 
            गुरूजी कहने लगे कि -राज और जश्न एक दूसरे के पूरक है जहां राजा है वहां जश्न है और जहां प्रजा है वहां प्रश्न हीं प्रश्न है l इन सब के उत्तर  काल  के गर्त में  समाये हुए है  l  हमारा देश जश्न प्रधान देश बनता जा  रहा है ,हम छोटी -छोटी ख़ुशी में जश्न मनाकर यह सिद्ध करना चाहते है कि  हम बहुत खुश है और इसी  में कई गमों  को छुपाने का एक असफल प्रयास करते है ,सुना हुआ सच प्रतीत होता  है --सच्चाई छुप  नहीं सकती बनावट के उसूलों  से और खुशबु आ नहीं सकती कागज के फूलों से l जश्न  पर कई प्रश्न खड़े होते है और यक्ष प्रश्न की भांति रह जाते है l किसी ने कहा  है कि --

 चलिए जिंदगी का जश्न
कुछ इस तरह मनाये
अच्छा-अच्छा सब याद रखे
बुरा जो है सब भूल जाये !!    

आओ अच्छे के लिए नहीं  बुरा  भुलाने का  ही जश्न मनाए l                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                         संजय संजय जोशी "सजग " 

कुतरने वाले बनाम गटकने वाले [व्यंग्य ]


 

                 
 हमारे देश में  एक प्रान्त ऐसा है जहां  मनुष्य चारा  खा जाता है और  चूहें  लाखो  लीटर शराब गटक जाते है यह बात  हजम तो नहीं हुई  है ,पर ऐसे प्रदेश की है  जहां कुछ भी सम्भव है l  गणित के हिसाब से माना कि चूहों  ने शराब गटकी होगी पर   चूहा तो शरीर के हिसाब ५-१०  मिलीलीटर   में ही   टुन्न  हो जाता  होगा  और टुन्न होकर सभ्य मनुष्य की तरह   चूहें कहीं  दुबक गये   होंगे,  तभी  तो  किसी को उनकी हरकत के बारे कुछ  पता नहीं चला ? जब  शराब खत्म होने को आई  होगी  तो  देश में  बवाल   मच  गया और यह खबर  सुर्खियों में  आ गयी l बेवड़े  और ,कलाली वाले और सतर्क हो गए और अपनी  देशी विदेशी  शराब  की हिफाजत में लग गए  कि कहीं ये खबर सुन उनके यहाँ के चूहे भी गटकना शुरू न कर दें ?  
  इस खबर से पियक्क्ड़ इतने दुखी हो गए कि बिना पिये  ही   उनके दिमाग की बत्ती जल गई l बेवड़े धुन के पक्के होते है और  पी पी कर  जिसको कोसना होता है उसे कोसते रहते है ,उन्हें रोकना मुश्किल होता है कहने लगे कि इतने लीटर हमको मिल जाती  तो  वारे न्यारे   हो जाते और कई महीने  यूँ ही पीते पीते  कट जाते ,और वहाँ  की सरकार को कोस रहे थे कि  कैसी सरकार  है  यदि शराब की रखवाली  हम  पीने वाले को ही सौंप देते तो  भी इतनी नहीं पी  पाते l कलाली में यह चर्चा का मुख्य विषय बन गया  , बेवड़े इतने खिन्न थे कि वे चूहों  को पिला  कर  यह जानना चाहते थे कि  चूहा पीता है या  नहीं  और अगर पीता है  तो ,पीने के बाद क्या करता है? बेवड़ो  ने इसके लिए  चूहों को   पिलाकर उन्हें    अंडर  ऑब्जर्वेशन में  रख  कर उनकी   हर गतिविधि  पर नजर  रखने  का प्लान   बनाया  ताकि  इस खबर  की सत्यता की जाँच  की जा सके l चार पांच  बेवड़ो  ने  दो तीन  काले   चूहों पर  प्रयोग किया उन्हें सफलता नहीं मिली शायद वे बुध्दिजीवी  चूहे होंगे l अगले दिन  सफेद चूहों पर  लेकिन  उन्हें भी रास नहीं आयी फिर  एक  जंगली चूहे ने थोड़ी पीकर  ऐसी दौड़ लगाई कि  बेवड़े उसे पकड़  ही नहीं पाए ,एक बेवड़ा बोलने लगा कि  ये तो  नेता निकला , पी कर सरपट भाग गया lबेवड़ा विमर्श  चालू हुआ कि काला  चूहा तो एक भगवान की सवारी है इसलिए पीकर कैसे चलता ? यूँ भी  शराब पीकर  कोई भी वाहन चलाना अपराध की  श्रेणी  में आता है l दूसरा बेवड़ा बोला कि  भैरव जी पर क्या गुजरी होगी ,यह खबर सुनकर l तीसरा बोलता है  अमित दा  की एक पिक्चर में चूहा पी गया  था सारी व्हिस्की इसका  मतलब आरोप सही  होगा  ? चौथा बोलता है कि  सही हो या गलत चूहे कौन से मानहानि का केस  लगाएंगे ?एक बात  से खोपड़ी गर्म होरी है कि  जहां शराब पर  पूर्ण रोक है  वहां आदमी त्रस्त है l घोड़ो को घांस नहीं मिल रही है और चूहे शराब पी  रहे है lलीपा पोती हो जायगी और कौन  पी गया असली बात  दब जायगी l उन्हें मलाल था की वे इस पर किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचे कि  चूहा  पीने और नहीं पीने के बाद क्या करता  है उसमे  एक खोजी   टाइप बेवड़ा बोला  मेरा मगज  क़े  रिया है  कि   चूहों पर यह झूठा  आरोप है उसे  कुछ सयाने आदमी  ही पी  गए होगें lरक्षक से भक्षक   हो जाने की परम्परा का  जरूर किसी  निर्वाह किया होगा ? खबर तो यह  भी है कि   दो  पुलिस  अधिकारी रंगे  हाथ पकड़े गए लगता है कि   चूहों पर तो केवल शक है  l  कुतरने वाले को  गटकने  वाले बना दिया ये इस  प्रजाति पर घोर अन्याय लगता है दूसरा बेवड़ा अटक अटक कर   कहने  लगा  कि उस प्रदेश में कुछ  भी हो सकता है अब चारों बेवड़े आपस में भिड़ गए और खबर सच या गलत  जानने के लिए कितनी पी  गये पता ही नहीं चला l कलाली वाले ने अस्पताल में भर्ती करा दिया  l सुबह उनकी ही खबर बन गई कि  चूहों के शराब पीने के गम में चार शराबी अस्पताल में भर्ती l जब उनसे पूछा कि  इतनी क्यों पी  तो कहने लगे कि  गम भुलाने के लिए पी, पर चूहों ने क्यों पी  अभी तक समझ नहीं आया ? यह  बात  हजम नहीं हुई और दिमाग का हाजमा  बिगड़ गया सो अलग l 


संजय जोशी " सजग "

आप का जनमत तो गया [व्यंग्य ]

आप  का जनमत तो गया [व्यंग्य ]


             चुनाव के परिणाम आते ही बड़कू  भिया अपना ज्ञान पेलने में लग गए  और कहने लगे  कि यह पब्लिक है सब  जानती है l वादे नहीं विकास चाहिये l दिखावा नहीं हकीकत चाहिए l गिरगिट की तरह रंग बदलने वाले ,चींटी की   तरह काम करने वाले ,डॉगी की तरह भौकने  वाले को  जनता अब बर्दाश्त   नहीं करती  l अर्श और फर्श दोनों दिखाने की शक्ति से लबरेज जनता हमेशा रही  है  और रहेगी l जनमत के साथ जमानत भी चली जाये  तो उसे क्या कहेंगे ? आप तो ऐसे न थे ? आप का हश्र ऐसा क्यों हुआ ? कौआ हंस की चाल  कैसे चल सकता है ?पहले वोट और फिर  चोंट क्यों ? वोटर सौ  सुनार की एक लुहार की तर्ज पर चोंट करता है ,करेगा   क्यों नहीं ? वोटर की शक्ति तो वोट है  ना , चाहे  ऐवीएम   हो या बैलेट ,दबाना या  ठोकना तो उसे अच्छे से आता है l वोटर आजकल इसी  मौके  की तलाश करता है और मौका देखकर चौका क्या, छक्का मारता है l आप का था बस यही सपना  सभी वोटर  अपना ,सपना टूट गया जनाधार खिसक गया l आप का  यही सिद्धांत है कि  हम तो डूबेंगे सनम आप को भी ले डूबेंगे l 

        बड़कू भिया जो भी कहते  सच कहते है किसी भी विषय पर अपनी राय  रखने में  जरा भी देर नहीं करते और हिचकते भी नहीं है l झाड़ू ने दिल्ली में सबका सफाया किया था और  उसके बाद और गंदगी और बढ़ती गई   l इस ने बाहरी  सफाई अभियान  चलाया पर अंदर की गंदगी  से बाहर और  गदगी बढ़ गई और जनता परेशान होने लगी और जोर का झटका  धीरे से दे दिया l खिचड़ी पकी या नहीं ,  एक चावल  देख कर पता लगाया  जा सकता है उसी  प्रकार आप की खिचड़ी कच्ची निकली l कच्ची या अधपकी का स्वाद तो आप और हम ही जानते है l आम जन को टेंशन  का  डर दिखा -दिखा  कर चुनाव तो जीत लिया पर आप को "अपनों ने ही  लूटा और खूब  लूटा l जनता  जनार्दन है जब जब होता मान मर्दन तो वोट  ही शक्ति बन जाता है l 
  बड़कू भिया रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे और कहने लगे कि  पल्टूराम  नेता जनता   के अरमानो को टॉय -टॉय  फिस्स  कर देते है l ऐड़ा बनकर पेड़ा खाकर फिर चले आते है वोट की गुहार लेकर l आम ने आम की तरह जनता को  रस चूसकर गुठली की तरह फेंक  दिया l आम के आम और गुठली के  दाम  ,आम जनता ने  फिर अपना दम  दिखा दिया है ,और सूचक की तरह   सूचित  भी  कि  दिया मुगालते पालना बंद करो ,कुछ काम करो ,दूसरों  पर कीचड़ उछालना अब बंद भी करो l मुंगेरी लाल के हसीन सपनो से बाहर आओ l आम जनता ने जिसके लिये  चुना है वही  काम करो ,देश को चूना  लगाना बंद करो l जनता शिव की तरह  ही भोली है  विष  भी  पीती है और समय आने पर तांडव भी करती है l 
                       बड़कू भिया तैश  में आकर कहने लगे कि पांच साल  बहुत  ज्यादा होते है परखने के लिए l तीन साल होना चाहिए  ताकि  आम जनता को  कथनी और करनी में  अंतर करने वाले  नेताओ  और दलों से  से जल्दी मुक्ति मिले सके l नहीं तो जनमत और जमानत जब्त होने के बाद भी झेलते रहना लोकतंत्र की मजबूरी  हो गई है lआप के  बखेड़ों से जनता   आखिर कब तक न ऊबेगी  ?आप का भानुमति का पिटारा ऐसे  ढहेगा किसे पता था ?जनता सर आँखों पे जितनी जल्दी बैठाती है  उतनी जल्दी उतारती  भी है इसलिये जनमत तो गया और  कभी -कभी जमानत भी चली जाती है  देखते रहो कि  अब  जनता  काम देखेगी  चाहे  कोई भी  दल  हो ,दलदल  स्वीकार नहीं ये  नसीहत देकर भिया ने अपनी वाणी को विराम दिया l 

 संजय जोशी " सजग "

आत्ममुग्धता का दीवानापन [व्यंग्य ]

आत्ममुग्धता  का दीवानापन [व्यंग्य ]       

                        आत्मुग्धता मनुष्य  की प्रजाति के एक  प्रमुख गुण  के साथ वरदान भी हैं  l  यह गुण सभी में पाया जाता है,मात्रा कम या ज्यादा हो सकती है ,पर इससे अछूता  कोई नही हैl  राजा, महाराजा भी इसके कायल थे और आज के नेता भी है l राजकवि इस गुण को बढ़ाने में उत्प्रेरक थे , आज भी है  l रावण और दुर्योधन इस अतिरेक के प्रमुख पात्र  रहे है समय के साथ तरीके बदलते गए और यह गुण कब एक शौक में तब्दील हो गया ? सोशल मीडिया बनाम आत्ममुग्धता प्रदर्शित करने की साइट्स हो गई है l अपना गुण ज्ञान स्वयं करो और आत्ममुग्ध होकर  फूल क्र कुप्पा हो जाओ lमालवी बोली  में इसे कहते है खूब" पोमई " रियो है l  इस प्रक्रिया  में खड़ूस का चेहरा भी खिल जाता है ,इस थेरेपी से यही लाभ दिखता है l ईश्वर भी धन्यवाद देता होगा कि  अच्छा किया एक खड़ूस को खुश कर  नेक काम किया l 
                                 हम बहुआयामी संस्कृती के धनी है l  हम हर वस्तु और साधन  के  गहन दोहन करने में विश्वास करते है ,और जहां दिमाग लगाना चाहिये  वहां नही लगाते l क्योकि हम जुगाड़ में विश्वास करते है l  सीधे सच्चे काम में भी जुगाड ढूंढ कर पोमाने का अवसर तलाशते है और चाहते है कि  हमारी  हर कोई  हमारी तारीफ करे ,चाहे झूठी  ही सही l इस क्रिया से सीने  का नाप थोड़ी देर के लिये तो बढ़ ही जाता है और गर्दन भी  कड़क हो ही जाती है l 
         आत्ममुग्धता  का  दीवानापन  कहे  या इसे  रोग  कहें   समझ नहीं आता है  हमारे मोहल्ले  के बड़कू भिया   बहुत त्रस्त  है कि  फेसबुक और वाट्सअप  के आपरेटर ऐसे ऐसे चित्रों को  चेपते है की पहले उन विषयो पर चर्चा करने से जी चुराते थे  अब उन्हें  इस क्रिया में ही रस आता है और मन ही मन पोमाता  है और   आभासी मित्रों से ढेरो लाइक पाने की जुगत लगाता है l बच्चे युवा के अलावा महिला और  सीनियर सिटीजन भी इस प्रयोजन में आहुति बराबर दे रहे है l आज सीनियर सिटीजन ने अपनी फोटो उपलोड की जिसमे वे सारे घर के चप्पल पर जूते पालिश करते  मद मस्त हो रहे थे और सैंकड़ो लाइक पाकर गद -गद होकर  कमेन्ट पर कमेन्ट कर  रहे थे l तब लगा की इस क्रिया में एक पन्थ दो काज हो जाते है  आत्ममुग्धता के साथ  समय भी कट  ही  जाता है l  टीटीपीयों - का यह प्रमुख केंद्र है l टीटीपी [ttp]  याने  टोटल टाइम पास बनाम  सोशल मीडिया हो गए है अपवाद स्वरूप इनमें  कुछ कभी कभी रचनात्मकता का अहसास  भी कराते रहते है l 

                बड़कू  भिया  का कहना  है कि  फोटो चेपने के बाद का आनन्द कुछ और ही होता है कुछ सकारात्मक और नकारात्मक  सोचकर अपने विचार रखते है कुछ  तो सिर्फ  लाइक करने के नशे में ही चूर होते है और फेसबुक के अंधे की तरह केवल लाइक ही दि खता है और इतनी जल्दी में रहते है की बिना पढ़े लाइक ठोंकना उनकी आदत सी बन गई है  मौत  और गम  को भी लाइक कर अपने सोश्यल होने का धर्म निभाते है l पालतू पशु -पक्षी भी सोश्यल मिडिया की शान हो गए है l दो पाये के साथ  चौपायेभी इठलाने लगे है l सेल्फी  की खुमारी ने तो हद ही कर  दी है शवयात्रा में अर्थी के  साथ सेल्फी लेना और सोशल मिडिया पर अपलोड कर सामाजिकता का भोड़ा प्रदर्शन जोरो पर है l जो  कई प्रश्नों जन्म देता है -कि ऐसे फोटो डालने  की क्या मजबूरी है ?क्या  यह एक मानसिक रोग है ? संवेदन -हीनता  है या मजाक ?दिखावा  है या पोस्ट चेपने की  लत ?  दर्शन  
 करते समय ईश्वर की और  ध्यान कम ओर फोटो सेल्फी  लेने मे ज़्यादा l कुछ लोगो का  सृजन सिर्फ फोटो चेपना  ही एक मेव ध्येय  है उनको लगता  यह है यह इसी लिए है l फोटो चेपने वाले शाणपत  में कभी - कंभी  .हंसी के पात्र भी बन जाते है l पर करे तो क्या करे पोमाने   के लिए कुछ तो चाहिए l चितन और मंथन इसी में लगा रहता है कई बेरोजगारों की फ़ौज सोश्यल  मिडिया पर  अपनी आत्मुग्धता पर मुग्ध हैl बॉस  और नेता  को इसकी लत ज्यादा ही होती  है इसलिुए  उनके  गुणों का बखान कर  काम निकलवाने  के लिए इसे  ब्रह्मास्त्र की तरह प्रयोग किया  जाता है l कुछ बॉस इतने  पोमा जाते है कि ध्रतराष्ट्र  की तरह  अंधे हो जाते है , सम्पट भूल जाते है  बॉस को चने के झाड़ पर  चढ़ाने वाले अधीनस्थ  लम्बी छुट्टी आसानी से  ले लेते है वे  चमचे स्वरूपा  होते है l  भिया कहने लगे यह कथा अनंता हैl और जोर से बोलने लगे जब  तक सूरज चाँद रहेगा  और  मनुष्य  का जीवन  रहेगा  आत्ममुग्धता तेरा कमाल  चलता रहेगा l परन्तु यक्ष प्रश्न है कि पोमाना एक प्रवृति है या मानसिक बीमारी ?आओ  इसका पता लगायें l 

संजय जोशी " सजग "

रविवार, 21 मई 2017