बुधवार, 30 मार्च 2016

मालवी बोली " की एक कविता ---मूरख और इडियट

"मालवी बोली " की एक कविता  

१ अप्रैल रा दन मूर्ख दिवस है .........

मूरख और  इडियट
मालवो म्हारो
है घणो प्यारो I
डग -डग नीर
पग-पग रोटी I
या वात वइगी
अब खोटी I
यां नी है मुरखां को टोटो I
यां को खांपो भी है
मगज  में मोटो I
थ्री -इडियट  सनिमो आयो
यां का खांपा,
मूरख अणे टेपा के भायो  I
कदी कालिदास जिन्दो वेतो ,
तो ऊ घणो खुस वेतो I
जो मगज से काम नी करे ,
वुज मनक नयो कमाल करे I
अणि ती खंपाओ को
मान जागेगा,
खांपा, मुरख और टेपा
मालवा का नाम रोशन करेगा I
.
संजय जोशी "सजग"

शुक्रवार, 25 मार्च 2016

फ्लेक्स पोस्टर का जादू [ व्यंग्य ]

फ्लेक्स पोस्टर  का जादू [  व्यंग्य ]

                 फ्लेक्स पोस्टर  का जादू  इस कदर सर चढ़  कर का बोल रहा है कि हर कोई इसका दीवाना है  शहर तो क्या गाँव भी इससे अछूते नहीं  है l  आजकल शुभकामनायें  और बधाई  दिल से देने की बजाय फ्लेक्स पोस्टर से  दी जाती  है  सीधे देने पर , न लेने वाले और देने वाले को मजा आता है l अपनी   भावना और समर्पण को प्रदर्शित करने का  एक मात्र साधन यहीं  तो है l फ्लेक्स पोस्टर की खोज ने फोटोछाप शौकिनों के वारे न्यारे कर दिए  है कुछ तो इसी गुनतारे  में रहते है   या मौकौं  की तलाश में रहते है कि कब मिले और कब उनका फोटो छपे l ऐसा करके शौकिनों को आत्मिक सुकून तो मिलता होगा ,जब तो इतना जतन करते हैl  एक फ्लेक्स में जगह पाने का सुख तो वहीं   जाने जो आये दिन छपते  रहते  है l चुनाव कैसा भी हो इनकी बाढ़  सी आ जाती है और पोस्टर प्रतियोगिता का आगाज हो जाता है l 
                                     मेरे एक मित्र सुबोध जी कहते है कि  फ्लेक्स के इस  अवसर को भुनाने के लिए पैनी  नजर रखी जाती है  उस पर छपने वाली फोटो का संग्रह पहले से रखा जाता है ,ज्यादा से ज्यादा फोटो छपवायी  जाती है ,फ्लेक्स खुद ही बनवाते है और मित्र मंडल का नाम देकर सभी छपने वाले मित्रों  को उपकृत करते है ,वो तो छपने से ही गदगद हो जाते है ,अपनी बधाई और शुभकामनाओं  के इज़हार  का सबसे बढ़िया तरीका  हैl फ्लेक्स एक  शक्ति प्रदर्शन का साधन हो गया है शहर में प्रवेश करते ही इनका जाल दिखना चालू हो जाता है l  लगता है की जागरूक शहर में प्रवेश कर रहे है और  यहां के लोग अपने नेता को कितना चाहते है फ्लेक्स की मूक भाषा सब बयान करती है l फ्लेक्स यह दिखाता  है कि कौन -कौन  तोकने  तुकाने में लगा हुआ है l 
                                       
             वे आगे कहने लगे कि  इस संस्कृति  ने पोस्टर युद्ध को जन्म  दे दिया है आये दिन ऐसे पोस्टर युद्ध की दास्ताने पढ़ने  और सुनने को मिलती है l एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिये  फर्जी पोस्टर भीअपना  रंग दिखाने  लगते है किसने लगाया  और क्यों पता ही नही पड़ता है सब अपना -अपना कयास लगाते  है और फिर पोस्टर  की फाड़ा ,फाड़ी और गायब तक होने लगते है l झुग्गी वाले मौका देखते ही  इसे पाने की होड़ में लग जाते है ,वे अपने हिसाब से इसका उपयोग करने को तैयार रहते है l  
                                 सुबोध जी कहने लगे कि  आजकल किसी भी कार्यक्रम की रूप रेखा में  यह सबसे पहले स्थान पाता है, वाह रे फ्लेक्स तेरी  महिमा ,सब को बना दिया दीवाना l कभी -कभी  लगता है कि जो लगते है और जिनका फोटो होता है वही ज्यादा ध्यान से देखते है , इनके दिल में मेरे लिए कितनी जगह है कौन से नबर पर लिया है  ,मेरे फोटो कि साइज छोटी क्यों है ,मेरा नाम तो नहीं  बदल दिया  ऐसी  शंकाओ और कुंशकाओ की बीच झूलना मानसिकता बन चुकी है l फ्लेक्स के लिए अच्छे -अच्छे फोटोचयन   करना ,हर फ्लेक्स पर छपने वाले  की मजबूरी हो गई l अगले फ्लेक्स के लिए फिर वहीं  तलाश, ये दिल भी  कुछ लोगो का अजीब होता है ,बिना फ्लैक्स पर छपे मानता ही नहीं  है l 

                              तेरा फ्लेक्स पोस्टर मेरे से अच्छा क्यों है साइज भी बड़ा है लोग भी ज्यादा  है ऐसे  विचार हमेशा  दिल को कचोटते है l पोस्टर तेरा और मेरा साथ हमेशा यूँ हीं  बना रहे ,धूप  हो या छाया ,दिन हो या रात ,हम  साथ रहे l ऐ पोस्टर तेरा जादू चल गया और मैं  फिर छप गया l 

जलो मगर -----[व्यंग्य ]

                      जलो मगर -----[व्यंग्य ]

          हमारे देश में ट्रकों पर सुधारवादी वाक्यों  की भरमार पायी  जाती है जिसे पढ़ते सब है पर सब अपने आप को उससे ज्यादा ज्ञानवान मानकर देख कर भी अनदेखा कर देते है l ऐसा ही ब्रम्हवाक्य    मैंने  हमारी गाड़ी के आगे चलने  वाले  ट्रक पर लिखा देखा  , इससे पहले कई बार पढ़ने में आया मैंने  भी उसे ऐसे ही समझ कर छोड़ दिया ,पर इस बार तो वह मेरे दिमांग के हेलोजन को वार्मअप कर गया कि  जलना एक आम बीमारी है हर कोई हर किसी से जलता है पर जल कर भी क्या बिगाड़  लेता है फिर भी जलता है जीवन भर जलता है उनके लिए लिखा था की जलो मगर प्रकाश दो ,धुऑं देकर जलने में क्या मिलता है ?  जलना अंतिम सत्य है तो रोज -रोज जलकर क्या उखाड़ लेंगे, सब जानते  हुए भी जलना कौन सी मजबूरी है ,और यह एक मानसिक विकार बन चुका है ,पराई थाली में कुछ ज्यादा ही नजर आता है l विज्ञापन भी जलने की भावना में उत्प्रेरक का काम करते है और जलने की भावना को प्रबल बनाते है जैसे -तेरी साड़ी की सफेदी ,मेरी साड़ी से ज्यादा क्यों ?कुछ तो डींग हाँक  कर जलाने की आदत में निपुण पाये जाते है l 

          जलने की आदत हर किसी में स्वत: आ जाती है और जीवन भर साथ निभाती   है l इससे कोई क्षेत्र अछूता नहीं हैं  l हर दो पाये में इसका  किसी न किसी स्तर जरूर पाया जाना  ,इसे ईश्वरीय देंन भी कह सकते है l राजनीति , हॉलीवुड से बॉलीवुड ,साहित्य ,समाज सेवा ,सरकारी व  निजी आफिस ,कल कारखाने ,खेल  व शिक्षा भी इस जलन की बीमारी से अच्छे खासे पीड़ित है और इनके  बिगड़ते माहौल के लिए जलन की  प्रबल भावना ही मुख्य रोल निभाती है l स्वहित में जलन की भावना ने राजनीति को किस मोड़ पर ला कर छोड़ दिया है जहां सिर्फ धुँआ -धुँआ नजर आ रहा है lजलन की भावना के लिए सिर्फ महिलाओं  को बदनाम किया जाता है पर अब तो नेताओं  ने इसमें बाजी  मार ली है जलन के साइड इफेक्ट हम रोज देख ही रहे है ,पक्ष हो विपक्ष दोनों ही  इस इफेक्ट से अपनी राजनीति को अंजाम देते रहे है इसके कुपरिणाम हम रोज ही भोग रहे है ,स्वहित में देश हित गौण सा लगने लगा है l एक दूसरे के प्रति कड़वे  से कड़वे बोल जलन का चरम है l
                          एक  दूसरा विचार भी एक ट्रक पर लिखा था की जल मत बराबरी कर ,सही है कि  जलने से क्या होगा उस तक पहुँचने का  प्रयास करें l  बॉलीवुड में आये दिन इस जलन के कारण ही एक दूसरे को नीचा दिखाने के कई हथकंडों  को आजमाया जाता है l टीवी न्यूज़ चैनलों ने तो जलन की  भावना को भुनाने में कोई कसर  नही  छोड़ी ,जो वो चाहेंगे उसके लिए किसी भी  तक हद चले जाते है आम आदमी अपना सर खुजाने के अलावा कर भी क्या सकता है l ऑफिस और कम्पनियां  भी जलन की भावना से ग्रसित है जिससे लाभ कम नुकसान ही नुकसान है जो दिखाई नहीं  देता है l 

      मुझे गीता  में लिखा याद  आया कि  - बुद्धि  का नाश होने से महापाप जाग उठता हैl उसी तरह जलन की भावना बुद्धि  का नाश कर देती है l मैं  जलन के चिंतन में था और वह ट्रक फिर अचानक सामने आया मैंने  उसे रोककर पूछा भाई आपने  लिखा जलो मगर प्रकाश दो इसका क्या मतलब है वह गंभीर हो कर कहने लगा कि  हमारे पेशे में जलन की भावना अधिक पाई जाती है इस लिए हम कुछ  न कुछ ऐसा लिखते है कि लोग पढ़ें  और सोचे ,सोचो तो अच्छा सोचो ,जलने से क्या खाक मिलता है इस लिए यह वाक्य लिखा l उसकी सकारात्मक  सोच का मैं  कायल हो गया और मन ही मन सोचने लगा कि  काश सब ऐसा सोचने लग जाये तो देश का परिदृश्य  ही बदल जायेगा l मैंने  उसे धन्यवाद दिया और आगे बढ़ गया l 

लोन की शान [व्यंग्य ]

    लोन  की शान [व्यंग्य ]

           लोन आधुनिकता की निशानी और शान समझा जाने लगा है , पुराने समय में लोन बनाम ऋण को  घृणा की दृष्टि  से देखा जाता था ,लोन लेना आन और शान के विपरीत माना  जाता था पर उस जमाने में एक लोकोक्ति ऋण लेने वालों  के लिए प्रयुक्त की जाती थी कि  ,कर्ज लेकर घी पी  रहा है  याने कि  सिर पर ऋण का बोझ होने के बावजूद  मौज मस्ती  चल रही हैlअब तो दिवालिये  भी दीवाली शान से मनाते  है,  कर्ज लेकर  l कालचक्र का उलट  फेर ऐसा आया कि  हर कोई लोन की गिरफ्त में है अपवाद ही होगा जो लोन से वंचित होगा l लोन लेना इतना  आसान हो गया है कि लोन लेने के प्रति आपकी जरा सी सोच ,लोन देने वाले तक पहुंच जाये तो आपकी हैसियत से अधिक लोन दिलाकर ही रहेगा l लोन के वायरस ने सबको प्रभावित कर रखा है आम आदमी क्या सरकारें  भी लोन  लेकर प्रगति का आईना दिखा रही हैं  l 

                     पैसा बचाओ और उपयोग  करो का फंडा अब लुप्त सा हो गया है अब तो लोन लो उपयोग करो चुकें तो चुकाओ नहीं तो भुगतेंगें  देने वाले l देश में क्रय शक्ति का बढ़ना अर्थशास्त्र  का कमाल नहीं  है यह तो  लोन और क्रेडिट कार्ड का चमत्कार है l इसकी टोपी उसके सिर ,मतलब लोन और क्रेडिट  का भरपूर उपयोग ,जीवन में चकाचौंध  लाने का यह एक मात्र उपाय है जिसने इसमें समन्वय सीख  लिया तो सारे ख़्वाब पूरे  करने का माद्दा आ गया l अपनी शान शौकत लोन के भरोसे चलाने वाले बिना डिग्री के अर्थशास्त्री ,दूसरों  को भी इसकी लत लगाने में सफल हो रहे है , हर कोई लोनधारक है उनके जीवन का यही कारक  है l 
                               पहले किसानों  के लिए कहा जाता था कि किसान का बेटा ऋण में जन्म लेता है और ऋण में  ही मर जाता है अब यह बात व्यापक हो गई है और सब के लिए समान रूप  से लागू  होने लगी  क्या राजा और क्या रंक ,सब लोन के बोझ से दबे हुए है l   जीवन अब लोन और क़िस्त के आसपास मंडराने  लगा है ,क़िस्त की चिंता में सोता है और क़िस्त चिंता में ही जागता है l  लोन और क्रेडिट कार्ड के सहारे की शान शौकत अब सोने नही देती है हर कोई नींद न आने की बीमारी से ग्रसित है जिस कमरे में  और जिस बेड पर सोता है वह भी लोन का ही है तो आसानी से कोई  कैसे सो सकता है है l जो मोबाइल  हाथ में होता वह भी लोन पर और तो और टाक टाइम का भी लोन ,लेने वाले अपनी शान  समझते हैl  
                     हर चीज लोन पर उपलब्ध है  वह  भी बिना ब्याज के l देने वाले की हिम्मत को दाद देते हुए लेने वाला ले ही लेता है l शिक्षा ऋण भी त्रासदी बनता जा रहा है रोजगार के अवसर बढ़ाये बिना 
धड़ल्ले से लोन बांटा जा रहा है शिक्षा के बाद  लोन चुकाने का इंतजाम कँहा  से करें कि  कई युवा बेचारे अपनी डिग्री  ताक पर रखकर मजदूरी को मजबूर है l लोन लेते समय सब शर्ते आसान लगती है या यूँ  कहे कि जब लोन लेना होता है तो कोई कुछ नहीं  देखता  ,केवल  हस्ताक्षर की जगह देखता है कि  लोन जल्दी मिल जाये l लोन लेना बहुत आसान लगता है लेकिन चुकाने में दिन में तारे नजर आने लगते है l 
                             
     लोन लेना  शौक  बन गया है लोन देने वाली संस्थाए  घर पहुंच कर लोन देने की सेवा को तत्पर  है और लेने वाले  भी मासूम बनकर येनकेन प्रकारेण लोन ले ही लेते  है जब दोनों ही उतावले हो बात तो बननी है l कुछ निजी संस्थान आसान तरीके से लोन देते है और नही चुकाने पर  साम ,दाम ,दंड का उपयोग कर वसूल करने का तरीका अपनाते है l जितनी बड़ी चादर हो उतने ही पांव पसारना चाहिए अब तो बिना चादर के पाँव पसारने का समय चल रहा है एक मालवी लोकोक्ति है कि  
घर भाड़े ,घटती भाड़े और छोरा -छोरी  जलेबी  झाड़े ,इसका प्रचलन बढ़ता हुआ नजर आता है l और फिर  सुबह उठकर टीवी वाले बाबा की सलाह पर ऋणमोचक मंगल स्तोत्र का पाठ करने को मजबूर हो जाते है l 
             
         लोन संस्कृति अपनी जड़े मजबूत करती जा रही हैं  और शाखायें  दिन दूनी रात चौगुनी बड़ रही है  लोन के इस जहांन में हर कोई अपने आप को महान समझने का यत्न करने लगा है और मध्यम वर्ग हमेशा की तरह अपनी स्थिति  उच्चतम बनाये  रखने के लिए लोन पर लोन  लेता रहता है  लोन का मर्ज बढ़ता जा रहा है और इस मर्ज के इलाज के लिए भी लोन की खोज जारी रहती है l 
लोन तेरी महिमा है न्यारी पर क़िस्त की रहती है मारा मारी ,जेब पर रहती   है यह हमेशा   भारी  l बाप बड़ा न भैया सबसे बड़ा रुपैया  जब तक  यह रहेगा ,लोन तेरा नाम रहेगा l लोन से अलोन होना बड़ा कठिन है l 

भंग की तरंग में लठ्ठमार के बजाय लाईकमार होली [ व्यंग्य ]

मल्हार मिडिया में मेरा व्यंग्य ---जरूर पड़े मित्रो और लाइक मार होली खेले -----
भंग की तरंग में लठ्ठमार के बजाय लाईकमार होली [ व्यंग्य ]
=============संजय जोशी ‘सजग।’==================
होली पर चंदा लेने आये मोहल्ले के कुछ भिया लोग ,टीवी पर जड़ी बूटी का विज्ञापन देख कर कहने लगे कि इतनी जड़ी बूटियों की दवाई से तो अपनी शिव बूटी ही अच्छी। मैंने उन्हें घूरती नजर से देखा कि भिया क्या कह हे हो तो ,विकास भिया कहने लगे कि भांग को शिव बूटी ,शिव प्रिया ,और कुछ ने तो इसे अमृत बूटी कहना चालू कर दिया अब वे शिव बूटी पर अपना ज्ञान बघारने लगे और कहने लगे कि -भंग की तरंग में होली का अपना मजा कुछ और है एक फिलम के बोल हैं ‘ भंग का रंग जमा हो चकाचक़ ” सही है। सब कुछ भूलकर इसकी तरंग में चकाचक हो जाते हैं किसी ने सही ही तो कहा है कि होली और रंगपंचमी के दिन भांग न खाने और इसकी तरंग के बिना झूमने से जीवन की गति मंद हो जाती है। इसलिए अपने मोहल्ले में इसकी व्यापक व्यवस्था की गई है और भांग मांगती है भोजन, अत: नाश्ते और खाने की भरपूर व्यवस्था रखी है।बेचारी महिलायें खेलने के बाद किचन में घुसें यह एक अन्याय ही है। अभी तक की चर्चा चुपचाप सुन रही मेरी पत्नी विपक्ष की नेता की तरह बहस में कूद पड़ी और कहने लगी भिया इतनी भूमिका क्यों बना रहे हो? ज्यादा चंदा नहीं मिलेगा ,महंगाई का नशा ही इतना चढ़ गया है कि भांग की कोई जरूरत नहीं है यूँ ही दिन में तारे नजर आ रहे हैं और भांग की तरंग में वाट्सएप और फेसबुक का क्या होगा हम तो डिजिटल होली खेलेंगे। वे कहने लगे कि रंग से होली खेलना अपनी परम्परा है कैसे छोड़ दें , भाभी आप सब जानती हो ,चने के झाड़ पर चढ़ाने का प्रयास सफल हुआ और श्रीमती जी मुस्करा दी।
परकास भिया मेरी पत्नी की हाँ में हाँ इसलिए मिला रहे थे कि भाभीजी खुश होकर पिछली बार से ज्यादा दिलवा दें तो अच्छा रहेगा और वो ही हुआ जिसका मुझे अंदेशा था। वह मुझे कहने लगीं कि साल भर में एक बार तो आती है होली दे दो ये भी क्या याद रखेंगें। उनकी मुराद पूरी हुई और वे विजयी मुस्कान लिए मुझसे ज्यादा,मेरी श्रीमती को धन्यवाद दे रहे थे और मैं मूक दर्शक बन देख रहा था। हद तो तब हो गई वे होली खेलने और भांग के प्रसाद के लिए श्रीमती जी को विशेष तौर पर निमंत्रित कर गए। उनको लगा कि पंगा नहीं लेने का, अगले बरस फिर चंदा जो चाहिए।
भिया लोग समझते हैं कि अर्थ बिना सब व्यर्थ है ,चंदा करना भी हर किसी के बस की बात नहीं है यह राजनीति की नर्सरी है। बांकेलाल जी का आगमन हुआ, वे तो दिन भर ही भंग की तरंग में रहते हैं उन्हें भंगेड़ी कह देता हूँ वे उसे गर्व से स्वीकार करते हैं। भंग की पिन्नक में कुछ आन—भान नहीं रहता है। उनका कहना है कि भंग की तरंग में छोटा ,बड़ा ,अमीर , गरीब का भेद भूलकर फुल मस्ती में होली का मजा लेता है और थकान भी महसूस नहीं करता।
अपने आप को राजा मानकर होली का मजा लेता है कई फिल्मों के होली गानों में भी भंग की तरंग छायी रहती है। मैंने बांकेलाल जी से कहा कि मैंने भी पिछले साल शिव बूटी का रसपान कर लिया था मै तो संपट ही भूल गया ,बिल्डिंगे उलटी दिखने लगी ,धरती घूम रही है या ख़ुद घूम रहा हूँ दिशा भूल होकर ढोल थाप पर इतना डांस कर डाला कि पूरे जीवन में भी नहीं किया वह भी रंग बरसे भीगे चुनर वाली गाने पर। तरंग में जो लत लग जाये वही करने लगता है तरंग में सब समस्या को भूलकर टेशन मुक्त होजता है। ए
क भांग की गोली दिखा देती होली के कई रंग और मस्ती के बेढंग। होली और भंग की गोली जब खाती भोली भाली तरंग में कहती है दिल तो होली है जी ,और दिल वालों की होली है। एक मशहूर गीत है ‘तन रंग लो जी, सन रंग लो’ पर आजकल तो सोशल मीडिया को तंन,मन से रंगने में लगे हुए है ,यानी की अपरोक्ष होली में मस्ती ले रहे हैं। लट्ठ मार होली की जगह लाईक मार ली चल रही है वह भी भांग की तरंग के ।
बिन भंग होली लगती सून
तरंग में ,उसकी हो ली सुन
=====मुर्ख दिवस ---अप्रैल फूल ====

हल्ला-गुल्ला साहित्य मंच रतलाम -   हर वर्ष मूर्ख दिवस  के उपलक्ष्य में खांपा [मूर्ख ] सम्मेलन का आयोजन करता है इसकी  तिथि फिक्स  नहीं रखना भी खांपा पन  की निशानी है l  मूर्ख को मालवी बोली में --खांपा ,टेपा ,रांपा ,  और गक्खड़ के नाम से जाना जाता है l खांपा  मालवी बोली का शब्द है  जिसका अर्थ -जड़ ,बुद्धि ,निरा ठेठ ,बिना किसी काम का , ना  समझ आदि l मंच के संस्थापक -संजय जोशी "सजग" और संयोजक -अलक्षेंद्र व्यास [गीतकार ] है इस मंच की स्थापना -१ अप्रैल २००५ में की गई थी l जब से खांपा [मूर्ख ] सम्मेलन का आयोजन  निरंतर जारी है l