शनिवार, 18 नवंबर 2017

सीडी ,जैसे हो ब्रह्मास्त्र [व्यंग्य ]

सीडी ,जैसे हो ब्रह्मास्त्र     [व्यंग्य ]

                           सीडी की चर्चा सुनकर बिल्लू भिया कहने लगे कि  समय बड़ा  ही  बलवान है।  कलम ने  तलवार की ताकत कम की और सीडी ने दोनों को ही शक्तिहीन बना दिया l राजनीति में  साम ,दाम ,दण्ड और भेद   साथ अब सीडी  भी जुड़ने को उतावली है क्योकि डिजिटल युग में सीडी काण्ड चरम पर है l इण्डिया में सीडी  का महत्व इस कदर बढ़ गया है कि यह एक हथियार की तरह उपयोग की जाने लगी है चरित्र बनाने से बिगाड़ने तक में सीडियां अपना जौहर दिखा रही है l सीडी भी सांप सीढ़ी   खेल  की तरह हो गई है व्यक्ति के चरित्र के सेन्सेक्स को उप डाउन तथा ब्लेकमेल  करने का ब्रह्मास्त्र बनती जा रही है lराम रावण के युद्द में लंका कांड हुआ था।  तब से तरह -तरह के काण्ड  पर काण्ड होते जा रहे डिजिटल युग में  सीडी कांड के सहारे नेताओ के कर्म कांड वायरल हो रहे है वायरल शरीर का नाश करता है और सीडी वायरल चरित्र का नाश कर देता है और  राजनीति  में भूचाल आ जाता  है l किसी किसी का तो राजनीतिक जीवन भी बर्बाद कर  देती है ये सीडी ,पोलखोल या झोल का एक आधुनिक तरीका है  l यही सीडी किसी के लिए सीढ़ी की तरह ऊपर उठा देती है तो किसी को गर्त में l अर्श से फर्श और फर्श से अर्श तक  सीडियां अपना गुल खिलाती है l 

                            बिल्लू भिया परेशान होकर पूछने लगे कि-  ऐसी  वैसी  सीडी  का चुनाव  के समय   आना ,दाल में कुछ काला जरूर  है ?  या  दाल ही काली है ?चरित्र हनन  है या स्वार्थ पूर्ति के लिए  ?सीडी को  उजागर करने में मौके की तलाश क्यों ?अगर सच्चाई है तो देश और समाज हित में दबाकर क्यों रखी गई ?मैंने  कहा बिल्लू   भिया ऐसे सब काम प्लानिंग और गेम के तहत किये जाते है l चुनावी गेम जीतने का हथकण्डा भी हो सकता है ?मरता क्या न करता ?पक्ष हो विपक्ष सबकरते  सीडी  को ब्रह्मास्त्र की तरह प्रयोग l राजनीति के दलदल में कोई नहीं है दूध का धुला l किसी से सही ही कहा  है ---
                    सीडी नेता के लिए जैसे हो ब्रह्मास्त्र 
                   और सजाये आधुनिक राजनीति का शास्त्र

सीडी ने किसी को हंसाया तो किसी को रुलाया l  किसी ने सीडी को बनाया सीढ़ी और किसी को नीचे उतारा lऐसी सीडी  के वायरल होने गति कौन नाप सकता है?कोनसी  सीडी  कितना  कहर बरपायेगी कौन जाने ? यह तो वक्त बतायेगा  सीडी ,सीढ़ी बन पाई या नहीं l सीडी  बनाम  पोल खोल  या झोल  का खेल  है l 

संजय जोशी 'सजग "

मंगलवार, 7 नवंबर 2017

छा गयी खिचड़ी [व्यंग्य ]

छा गयी खिचड़ी [व्यंग्य ]
सोशल मीडिया पर रोज नई नई  खिचड़ी पकती  रहती है अब असल में ही खिचड़ी पकाकर  " राष्ट्रीय व्यंजन " बना  दिया गया l पिछले दिनों सोशल मीडिया पर चर्चा रही कि पारंपरिक डिश खिचड़ी को राष्ट्रीय व्यंजन घोषित कर दिया गया है। मामला इतना बढ़ गया कि केन्द्रीय खाद्य मंत्री  को खुद सफाई देनी पड़ी।  उन्होंने  कहा कि खिचड़ी को सिर्फ वर्ल्ड फूड इंडिया इवेंट के लिए सिलेक्ट किया गया है ताकि उसको और मशहूर किया जा सकें ।एक  खिचड़ी  प्रेमी  यह बात सुनकर आग बबूला होते   हुऐ  कहने लगे ,जो पहले से प्रसिद्ध है उसके लिए इतनी खिचड़ी पकाने  की क्या  जरूरत पड़ गई ,यह यूँ ही राष्ट्रीय व्यंजन है lछोटे बच्चोँ  के खाने की शुरुआत इसी से की जाती है ताकि जीवन भर  अपनी  खिचड़ी अलग पका सके और धीरे -धीरे वह  इसमें इतना पारंगत हो जाता है कि हर सामने वाले के  दिमाग में  खिचड़ी  पकती दिखाई देती है l वर्तमान के दौर में यह  मुहावरा सार्थक लगता है"अपनी खिचड़ी   अलग पकाना "l  
                       खाना बनाना  सिखाने की शुरुआत भी इसी ब्रम्हास्त्र से की  जाती है जो जीवन भर पग पग काम  आती है, खिचड़ी हर महिला का पसंदीदा व्यजन है राष्ट्रीय समस्या -क्या बनाऊ  का अंतिम हल  भी यही है जो शांति  और खुशी का पर्याय है  खिचड़ी पर आम सहमति बनने की बाद   यह बहुत बड़ी जंग जीतने जैसा लगता है  lदिन भर कितनी भी खिचड़ी पका लो   पर  परम् सत्य  यह    है कि खाने  में खिचड़ी    इसलिए सुकून देती है  प्राण प्रिये का चेहरा इस के बनाने से फूलता नहीं है और पारिवारिक शांति का घटक है इस लिए सब सहर्ष स्वीकार कर  लेते है ,क्यों  न बने यह अंतराष्ट्रीय  व्यंजन ? खिचड़ी की फरमाइश अब गर्व के साथ करने समय आ गया है चैनलों  पर तरह तरह की खिचड़ी पकाई जाएगी और साथ में हम  भी पकने को तैयार रहें l फास्ट और सुपर फ़ास्ट दोनों  में ही खिचड़ी खाने का चलन है
दही ,अचार ,पापड़ के साथ भाती है  खिचड़ी अब तो शादियों में भी कढ़ी  ,खिचड़ी के स्टॉल लगाए  जाते है l  पति के बाहर जाने पर खिचड़ी खाकर पत्नी  गॉसिपिंग में लग जाती है l पत्नी के मायके जाने पर  पति  के पेट पूजा का यहीं  सहारा  होती है l पत्नी की उपस्थिति में यहीं खिचड़ी बोरिंग लगने लगती है l 
  राजनीति  में भी यह बहुत प्रिय  है ,देश में खिचड़ी सरकार तक बन जाती  है l खिचड़ी स्वास्थ्य के  लिए तो लाभकारी है परन्तु राजनीति  की  खिचड़ी तो देश को रसातल में ले जाती है, तब लगता है खिचड़ी तू तो देश के लिए हानिकारक है l आम जनता बेरोज़गारी, महंगाई , दाल चावल , आटा , सब्ज़ी, तेल, पेट्रोल, रसोई गैस की बढ़ती कीमतों के बारे में सरकार को घेरे इससे बचने के लिए सरकार नयी-नयी खिचड़ी पका देती है l हमारा देश ही  खिचड़ी का बहुत बड़ा उदाहरण है ,खिचड़ी भाषा  का अपना अलग मजा है  उच्चारण से हम पहचान जाते है कि खिचड़ी का यह घटक कहां  का है ? खिचड़ी हमारे देश का सौंदर्य है l खिचड़ी  बाल से हर कोई परेशान है इसलिए तो डाई बनाने वाले मस्त है l
                             खिचड़ी कहीं सुकून तो कहीं तनाव देती है, खिचड़ी की अपनी अलग पहचान है पर सब अपनी   खिचड़ी अलग अलग पकाएंगे तो देश के उत्थान में कैसे सहभागी बनेंगे l बीरबल  खिचड़ी की बराबरी कौन  कर  सकता है ?अपने आप को  चतुर समझने वाले क्या पकाएंगे बीरबल की तरह खिचड़ी ? पकाएंगे तो सिर्फ स्वार्थ की खिचड़ी l  कुछ भी हो भl गई  खिचड़ी   और छा  गई   खिचड़ी l 

संजय जोशी "सजग