"एटीएम " का सूखना [व्यंग्य ]
भाग्यवादी सुख ना मिलने पर किस्मत को कोसते है और भोगवादी को समय पर पैसा न मिले तो " एटीएम "को, बैंक और सरकार को कोसते है l आज न्यूज़ चैनल पर एटीएम सूखने की खबर से दिमाग चकरा गया कि इनका सूखना भी कोई सू खना है इतना हाहाकार क्यों ? हर चैनल पर इनके सूखने की ब्रेकिंग न्यूज़ चल रही है l सब अपने -अपने पक्ष दे रहे है l देश में भयंकर सूखे से ज्यादा इनके सूखने की खबर है l इनका भी दोहन इतना हो रहा है सूखना तो है ही lप्रकृति के अतिदोहन के दुष्परिणाम हम देख ही रहे है क्योंकि स्वार्थ में अँधा होकर अपना मतलब निकल ही रहा है वैसे ही स्वार्थी लोग " एटीएम "को सूखा रहे है इसको सूखने में अफवाह भी अपना योगदान दे रही है जिसे जरूरत नहीं है वह भी निकालने में भिड़ा हुआ है की केश की किल्लत है और न्यूज़ चैनल इसे और हवा दे रहे है l यह कहना है बैंक बाबू चंद्रेश जी का l
बैंक बाबू कहने लगे कि देश बदल रहा है बचत की आदत तो लुप्त हो रही है पुराने समय में बचत करो और उपयोग करो अब लोन लो और चुकाओ नहीं तो दिवालिये हो जाओ l खाना ,पीना ,मकान व गाड़ी का जुगाड़ सब तो लोन पर है l और फिर कहते है जिंदगी में सुख ना है रातों की नींद हराम है या यूँ कहे कि नींद भी सूख चकी है lनदी -नाले कुछ समय के लिए सूखते है मानसून आते है ही सब कुछ हरा हो जाता है l पर यह सूखने की बीमारी विकराल है क्या क्या न सूखा है ? आपसी रिश्ते, संवेदना, मानवता ,भाई चारा और सहानुभूति ये सब सूख चुके है इसलिए तो दिलो और दिमाग पर हावी है इन सब का सूखना मिटाने लिए कोई मानसून नहीं आता है l मान हानि आती है जो समाज को और सू खने की और धकेलती है l खाली जेब और खाली पेट दुनिया की हकीकत से अवगत करा देता है कि व्यवहार भी सूख गया है l काल करें सो आज कर, आज करे सो अब,. कवि कबीर जी ने कहा तो कुछ लोग पालन भी कर रहे है और एटीएम खाली हो जायेगा , जेब भरेगा कब? वैसे एक कहावत है सावन के अंधो को सब हरा हरा ही दिखता है अब इसमें हम भी क्या करें ?
मैने कहा आप सही कह रहे है कुछ स्वार्थी लोगों ने एटीएम सूखा दिए एक तरफ जल स्त्रोत सूखने का का दर्द और कमी थी तो ये भी सूख गए दुःख दुगना हो गया अब नोट देकर पानी खरीदना भी मुश्किल हो गया है जब देश में सभी सूख रहा हैं तो हम खुश कैसे रह सकते है l सूखा कोई भी हो इसका प्रबंधन जरूरी है l जैसे बिन पानी सब सून लगता है l सूखना कोई भी हो बुरा ही लगता है l उम्मीदों के सागर भी सूखने लगे है l सुख की चाह में सुख ही सूख रहा है तो एटीएम का सूखना कोन सी बड़ी बात है l आँखों का पानी भी अब सूख रहा है l हर और सूखा ही सूखा होतो सूखने का दर्द ज्यादा ही होता है l जितनी राजनीति एटीएम सूखने की हो रही है l सकारात्मक भी कुछ हो जाए तो जीवन और देश में हरियाली आएगी l
संजय जोशी 'सजग "
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