मंगलवार, 25 फ़रवरी 2014

    कलयुगी अमृत [चाय ]…

    प्राचीनकल में अमृत कि प्राप्ति हेतु अमृत मंथन हुआ था कलयुग में वोट कि जुगाड़ में कलयुगी अमृत  के  माध्यम से मंथन का दौर चल रहा है ,इसका हर कोई क्रेजी है,कश्मीर से कन्या कुमारी और विदेशो में यह अमृत लोकप्रिय है पानी के बाद इसे ही ज्यादा पिया जाता है इसे इसकि महत्ता इतनी अधिक है कि सुबह उठते ही ईश्वर के पहले इसकी याद आती है उन्हें जो इसके आदी  हैl  कईयों  को  तो इसके पीने  के बाद ही सम्पट पढ़ती है यह सुबह के लिए प्रेशर क्रिएटर का काम भी करता है नही तो कई लोगों के दिन खराब हो जाते है l

                           राम राज्य में घी ,कृष्ण राज में दूध और कलियुग को  चाय के लिए जाना जाता है, इसे कलयुग का अमृत भी कहते है ,यह सबंधो को जोड़ने में फेविकोल की भूमिका का निर्वाह भी बखूबी करता है यह कर्मचारी ,नेता ,व्यापारी ,किसान, लेखक ,पत्रकार  सभी  का पसंदीदा पेय है लेखक और पत्रकार के विचारों  कि उत्पत्ति  का कारक है और सरकारी विभागों  में यह भ्रष्टाचार कि प्रथम सीढ़ी  है l

                   यह स्टेटस सिम्बल भी माना जाता है पुराने लोग आज भी यह जुमला कहते है कि  एक प्याले में  और उसके पिलाने के अंदाज से सामने वाले के  स्टेटस  का भान हो जाता है याने कि उड़ती चिड़िया के पंख गिनने जैसा है हमारे गावों  में तो आज भी अतिथि को चाय पिलाने का खूब रिवाज है कम से कम १०-१२ प्याले का  डोस तो हो ही जाता है मानमनुहार के सामने हर कोई हार जाता है फिर साइड  इफेक्ट एसिडिटी की  परवाह भी नही करता अतिथि बेचारा नही पिए तो घमंडी कि छाप लग जाती है l
                         कलयुगी अमृत की  किस्मत   चमकी  और यह अब राष्ट्रीय  स्तर पर खूब चर्चित हो रहा है इससे इसके उत्पादक ,वितरक ,बनाने वाले ,बेचने वाले , पिलाने वाले और पीनेवाले सब  अलग अंदाज में  खुश  हो रहे है तो कुछ हताश ,निराश हो रहे है  सब जानते है यह सम्मान ,चार दिन कि चांदनी  फिर अँधेरी रात के समान है फिर भी मंथन ,चिंतन ,और चर्चा का यह दौर चलता रहेगा यह तो वक्त बतायेगा ऊंट किस
करवट पर बैठेगा यह सवाल तो भविष्य के गर्त में छुपा हुआ है यह  कलयुगी अमृत प्रमुख व अन्य मुद्दे गौण  से हो गये हर कोई चाय पिलाने को आतुर है।

   अमृत का पान करो और खसक लो चर्चा की  किसे फुरसत है चाय पीने  का शोक फ्री  में पूरा करो और खर्चा बचाओ यह भी सही है खूब जी भर के प्याले -पियेंगे  और दूसरों  को डायलाग मारने से बाज भी नही आयेंगे  कि एक प्याले चाय का अहसान भी नही है l
     चाय  के माध्यम  से  कई  रिश्ते  जुड जाते है तो  वोट भी जुड़ सकते है   मिल ही जायेंगे  तुम पिलाते रहो हम पीते  रहे ,पीते -पीते  ही प्यार उमड़ जाए,चुनाव में वोट कि बहार हो जाए l
          यह अमृत  का प्याला पीने  -पिलाने का दौर यूँही   चलता रहेगा इससे कहीं पर तीर तो कही पर  निशाना  है वरना कौन  पूछता है घोर कलियुग में इस कलयुगी अमृत के लिये ,  पर यह तो  समय का फेर है सब के दिन आते है वैसे  इसके भी आये है पर आम जनता तो यूहीं छलती रही है और छलाती रहेगी और ख़ुश  होकर कलयुगी अमृत का पान  करती रहेगी और उठती टीस  को इसके माध्यम से शांत करती रहेगी कोई  भी हारे कोई भी जीते पर हम अमृत का  पान इसी तरह करते रहेगे और सबको सहते जायेंगे। .... जय हो  कलयुगी अमृत  की..l

शनिवार, 22 फ़रवरी 2014

अंत भला तो सब भला [व्यंग्य ]



                                       


                             
               अंत भला तो सब भला [व्यंग्य ]

                              गुड  खाये और गुलगुलों से परहेज कि उक्ति जब चरितार्थ होती है
तो सबको  आश्चर्य होता  है पर राजनीति में तो यह आम बात है मुख में राम बगल में छुरी रहती है फिर भी कोई  आकस्मिक घटना  अच्छी हो या बुरी ये मानव मात्र कि स्वाभाविक प्रक्रिया है कि सोचने को मजबूर तो कर ही देती है l


               हम कुछ मित्र एक चौराहे  पर नुक्कड़  कि दुकांन में चाय कि चुस्कियों  के साथ गपशप में मशगूल थे कि आज का  सूरज उलटी दिशा से निकला क्यों कि आज सदन में हल्ला -गुल्ला के बजाय शांत वातावरण में एक दूसरे कि तारीफ में कसीदे पड़े जा रहे थे जिसने समाचार सुना और देखा वह ख़ुशी से झूम रहा था कि सकारात्म सोच व आत्मप्रेरण मजबूत हो तो कुछ भी सम्भव हो सकता है अगर ऐसा हो जाये तो क्या कहना ,सुंदर सुखद घटना पर तर्क वितर्क  का दौर  चल रहा था कि एक समाज सेवी जिन्हें  हम सब प्यार से काका कहतेहैं  वहाँ आ गये ।हमने उन से अनुरोध किया कि इस घटना पर अपनी टार्च से प्रकाश डालिये और हमारी बहस को सही मुकाम दीजिये।

                       काका ने टार्च जलाकर प्रकाश डालना आरम्भ करते हुए कहा  सुनो बच्चों  आज इस संसद का अंतिम सत्र  का अंतिम दिन था मतलब पूरे पांच साल में जो बुरा घटा उस पर खेद जताने का समय फिर कब मिलता ,जो  अच्छा होता है उसे भूलने कि बीमारी हम सब को है जो मुझे खराब या गलत लगता है जरूरी नही सबको लगे, जिस
प्रकार अंतिम समय में हर कोई अच्छा करना चाहता है हर कोई सोचता है कि 'अंत भला तो सब भला "कि तर्ज पर यह सम्पन्न  हुआ.. l इस समय  अपने मतभेद ,मनभेद भुलाकर सब अच्छाई कि खोज लगे हुए थे कुछ भावुक कुछ व्याकुल होगये। किसी को प्रशंसा से संतोष तो किसी को असंतोष हुआ होगा ,कुछ कायल तो कुछ घायल हुए होंगेl
            काका उतेजित हो कर  बोले पुरे पाँच  साल के कार्यकाल में सब एक दूसरे को
नीचा दिखने कि घिनौनी हरकत करते रहे और कोई कसर नही छोड़ी आखरी समय में तो
घटिया हरकतों  का सूचकांक चरम शिखर पर था  देश में और विदेशो में हमारी लोकतंत्र  कि गरिमा व  परम्परा का ह्वास  हुआ lवे कहने लगे किसे कोसे सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे है l
            काका कि बैटरी डिस्चार्ज होती नजर नहीं आ रही थी कहने लगे कहने को तो बहुत  है पर क्या करे आओ सब मिलकर भगवान से प्रार्थना करते  है सबको सदबुद्धि  दे कि उस दिन के सीन को चिर स्थायी बनाये रखे यानि सुखद वातावरण हो ,नेता जी गिरगिटों की तरह रंग बदलते है न बदले, क्योकि अब तो  गिरगिट भी शर्माने लगे है  ,सब  नेताओ के मन में जनता के प्रति सदभावना  का वास हो ,नये आनेवाले  लोग इस दिन का अनुसरण करे मैं ने सोचा कि यह टार्च  को बंद किया जाय  तरकीब सूझी , मैंने   काका से पूछ लिया कि एक चाय और चलेगी  वे बोले नही ज्यादा  चाय पी ने से एसिडिटी होती   है वे  बोले अच्छा में चलता हूँ .मुझे महसूस हुआ कि .लोगबाग चायसे  भी डरने  लगे है
   हम सब मित्र आपस में बाय करके अपने -अपने घरों  कि और चल दिए यह सोचते हुए कि काश ऐसा ही माहौल बना रहे जैसा आज था "अंत भला तो सब भला  कि जगह
भला ही भला हो जाय l
 

संजय जोशी " सजग "
७८ गुलमोहर कालोनी  रतलाम [ म.प्र]

मंगलवार, 18 फ़रवरी 2014

बजट आया ......

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बजट आया
लुभाया व  मनाया
होगा असर
------२-----
आम बेहाल
आंकड़ो का जाल
कहे  बजट
------३------
नर्म  बजट
वोट पर फोकस
आम चुनाव
------४----
किसे फायदा
अंतरिम बजट
केवल दावा
--------५------
रखी नजर
महिलाये व युवा
सिर्फ दिखावा

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------संजय जोशी "सजग "

शनिवार, 15 फ़रवरी 2014

हाय मिर्ची आह मिर्ची [व्यंग्य ]

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                    हाय मिर्ची आह मिर्ची [व्यंग्य ]



     हमरा देश घटना प्रधान देश है हर समय कुछ -कुछ घटता ही रहता है I आजकल टी.वी देखो और  टेंशन लो ,  मे भी इसका शिकार हुआ और  चैनल के माध्यम से जैसे ही  समाचार देखा कि देश की  सबसे ऊँची सभा  में मिर्ची  स्प्रे का उपयोग  किया गया , दिल और दिमाग  सन्न रह गया और उसी समय मेरी गुडिया स्कूल से घर आई ....उसने  अचानक पूछ लिया क्या हो गया मैंने पूरा विवरण बताया तो कहने लगी अभी कुछ ही दिन पहले मेडम ने हमे समझाया था कि आँखों में धूल झोंकने का मतलब  किसी को धोखा देना पर आजकल ,लुटेरे ,गुंडे और बदमाश लोग . इसका उपयोग   करने लगे  वे मिर्ची की सहायता से अपने लक्ष्य को प्राप्त करते है यह उनका हथियार बनगया है गुडिया कहने लगी  पर पापा ये तो बहुत अच्छे लोग होते है जो अपने लिए काम करते है वे ऐसे कैसे कर सकते है मेने उसको समझाते हुए कहा यह  सब स्वार्थ के कारण होता है सब अपनी -अपनी ..सोचते है देश और आम जन से उनको क्या लेना देना वोट लेने के बाद तो उनका मकसद ,स्वार्थ हमारा जन्म  सिद्ध अधिकार है हो जाता है I

    बच्चे की जिज्ञासा को शांत करना ..कभी -कभी बहुत कठिन हो जाता है बाल हठ
के सामने कोई टिक पाता है? वह लगातार उस घटना के बारे में कई अजीब गरीब प्रश्नों को  दागे जा रही थी कौनसी   मिर्ची थी मैंने टालते हुए कहा की घर में  जो यूस करते है वो ..नही टीवी वाले अंकल तो बोल्र रहे है काली मिर्ची का स्प्रे  था .यह क्या होता है इससे क्या होता है आँख की रौशनी चली जाती है क्या ?आखिर में  मुझे बोलना ही पड़ा  मुझे नही मालूम  ज्यादा इसके बारे में ,आपके कोर्से में नही था क्या ?..हाँ नही था .वह डरी  और सहमी सी .बोल रही थी .हाय मिर्ची ,ओह मिर्ची ,.शेम .शेम  हे ना पापा मेने कहा ...शेम -शेम  तो है पर अपन क्या कर सकते दुखी होने के अलावा Iपापा ये सब  जानकर किया ना .फिर तो गाना भी गाया  होगा तुझे मिर्ची लगी तो में क्या करूI,I

           जैसे तैसे उसको खेलने भेजा और विचार मग्न हो गया कि विश्व प्रसिद्ध
लोकतंत्र  पर  आज कालिख पुत गई   ,विदेशो में हमारे देश की छवि एक आदर्श ससंद व सांसद  की थी  जो  संविधान के प्रति पूर्ण निष्ठां के साथ अपना कर्तव्य निभाते  है  I विचारो में मतभेद तो हो सकते  है पर  मनभेद  की पराकाष्ठा ऐसे घृणित काम को अंजाम देगी इसकी  कभी कल्पना भी नही की होगी किसीने I ऐसी घटनाऐ चुने हुए प्रतिनिधियो
के चरित्र का आयना बन जाती है जिस प्रकार एक मछली तालाब को गंदा कर देती है उसी  तरह  ये संस्था और सदस्य शक के दायरे में आजाते है  देश में राजनीतिक हडकम्प करते रहे है और जनता मूक दर्शक बन के देखती रहती है समय की डगर के साथ भूलती जाती है I

                   जब रक्षक ही भक्षक बन जाये तो इससे और अधिक दयनीय स्थिति  और क्या हो सकती है ,आप  हम  हाय,ओह ,उफ़. करते रहत है और करते रहेगे ,उनके कानो पर  जूं भी नही रेगती  है I


 

संजय जोशी 'सजग '

गुरुवार, 13 फ़रवरी 2014

नीलामी को सलामी [व्यंग्य ]

        

             नीलामी को सलामी
                
        आईपीएल के नये सेशन हेतु देशी और विदेशी  खिलाडी  उपलब्ध है  खिलाड़ियों को खरीदने  का समय चल रहा है अपने आप को ऊँची से ऊँची राशि  में नीलाम  करना शुरू हो गया है  इतनी राशि की आप सोच भी नही सकते लाखो से लेकर करोड़ो में लगा रहे है अपनी कीमत I पहले भी इसी तरह की नीलामी होती रही है इतनी-इतनी राशि में नीलाम होने के बाद भी रुपयों की भूख खत्म नही होती और आये दिन मेच में सट्टे और फिक्सिंग का बाजार गर्म रहता है मुख में राम और बगल में छुरी की तरह I

      नीलामी शब्द बचपन से हमारे जेहन में ठूंसा हुआ है
और समाचार पत्रों में नीलामी की विज्ञप्ति ,...जो  ,रोडवेज की खटारा बस की या सरकार व बेंक द्वारा राजसात की  गई संपत्ति नीलामी  की सूचना होती थी बडो से सुनते थे कि जो उपयोग लायक नही होती है  उनकी नीलामी होती है  जिससे दिलो दिमाग में  यही छाप पड़ी है I किसी की पेंटिग ,महापुरुष की दुर्लभ वस्तु की  नीलामी का समाचार  सम्मान दायक महसूस होता था   सब्जी मण्डी में सब्जी की ,पशु हाट में पशु की  इनकी शैली कुछ हट के होती थी ..दलाल जोर -जोर से कीमत लगाते थे यह  शब्द कुछ हल्का लगता था पर आईपीएल में इसे सम्मानजनक स्तर प्राप्त है छोटा काम अगर बड़ा करे तो बड़ा और अच्छा हो जाता है I हर तरफ उसके जलवे दिखते है

   हमारे मोहल्ले में एक पहलवान रहते थे उनके कई पठ्ठे थे
वह हमेशा कहा करते  थे सब कुछ करना पर इज्जत नीलाम मत करना  बस यही सुनते आये इस कारण यह समझ  आता था की अपने आप को बेचना  या नीलाम करना याने आपना पूरा   वजूद खो देना होता है ,यह इज्जत का  पैमाना है

      मुझे तब बड़ा आश्चर्य होता है कि धार्मिक आयोजन में भी नीलामी  का अपना महत्वपूर्ण स्थान है जो जितनी अधिक बोली  लगाता  है उसे भगवान की सेवा का उतना अधिक सौभाग्य मिलता है  धन के सामने  श्रद्धा का हनन होता है भगवान का दरबार भी इससे अछूता नही है तो हमारे देश में  क्रिकेट खेल इससे अछूता कैसे रह सकता  है और नीलामी का दौर चल पड़ा है बिकने वाले और खरीदार दोनों खुश I

       अगर ऐसा ही चलता रहा तो कही सरकार को सरकारी समर्थन मूल्य की घोषणा  न करनी पड़े या सरकार खरीद कर  फिर इन नीलामी वालो को दे जिससे राष्ट्रीय स्तर पर गुणवत्ता के आधार पर खरीदा  जा सके I

 
आईपीएल में खिलाडियों  के करोड़ों  के भाव चल रहे है  जो जितने अधिक  में बिक रहा है वह उतना महान है रुपयों की लिए बिकने वाले  ये खिलाडी क्या देश कि लिये  अपने को और अपने खेल को .समर्पित कर पाएंगे इसमे हर किसी को  संदेह नजर आता है कभी - कभी सोचना मुश्किल ही नही नामुमकिन लगता है कि धन के लिए खलेने वाले ये खिलाडी क्या अपने देश के लिए न्याय  कर पाएंगे ? अपार धन की भूख ने क्रिकेट को किस मुकाम पर खड़ा कर दिया की २० -२०  ओवर का मेच ही भाता है टेस्ट और  एक दिवसीय मैच में तू चल में आया की तर्ज पर  लगातार विकेट  गिरना ओर मैच को हार की कगार पर ले जाते है, ओर  देश की भोली -भाली भावुक जनता गम के साये में रहती है Iये खिलाडी धन की और अधिक पिपासा में .नीलामी को सलामी करते रहेगे ओर देश की इज्जत नीलाम को  करने में कोंई कसर नही छोड़ेगे I क्रिकेट में धन की चकाचौंध  ने दूसरे खेलो को   तो पहले ही  चौपट  कर दिया जो हमारे महत्वपूर्ण खेल हुआ करते थे उनमे हम फिस्सडी हो गये I


   देश की व विदेशी धरती पर मैचों में मिलती असफलता
को बुद्धि जीवी और खेल प्रेमी  हमेशा यह कह कर आसनी से पचा लेते है कि खेलों में हार जीत तो चलती रहती है  कोई एक तो  हारेगा पर यह हार का सिलसिला यूँ ही चलता
रहेगा जब
  तक खिलाडी नीलाम  होते रहेगे,तब तक आईपीएल तेरा नाम रहेगा नीलामी को सलामी चलती रहेगी I

 
  संजय जोशी " सजग "

रविवार, 9 फ़रवरी 2014

" दिन" बनाम ".डे"

              व्यंग्य

                    " दिन"  बनाम  ".डे
"

बात -बात में अचानक पत्नी सेपूछ लिया अब क्या आएगा .कड़े तेवर के अंदाज में बोली जो प्यार दिल से  करते है उनके लिए वेलेन्टाईन डे आने वाला है इस दिन को युवा अपने प्यार का इजहार करते है मैंने कहा जी हम तो केवल  दिन  ही समझते है क्यों की दिन गिन -गिन कर काटना ही जिन्दगी हो गई है I
            
       दिन और डे....पर हमारी बहस चल  ही रही थी की इसी बिच  समाज सेवी वर्मा जी आ टपके और और अपना सामजिक ज्ञान का पिटारा खोल दिया और बहस को को एक नया मोड़ दे दिया और कहने लगे आजकल हर  तारीख एक स्पेशल डेहोती है दिन और तिथि का  भान किसे रहता है वह तो केवल पंडित,पुजारी व ज्योतिषी की मोनो पाली हो गई है इसी लिए उन्होंने इसे बचाए रखा है वरना आजकल डे का चलन जोरों पर है I

               वर्माजी व्यथित होकर कहने लगे की पश्चमी सभ्यता की उपसना और रंगमें इतने रंगीन हो गये की  हमारी संस्कृति व  परम्परा रंगहीन नजर आने लगी है बसंत पंचमी का प्रेमोत्सव छोड़ कर वेलेन्टाईन डे मनाने को  इस कदर लालायित है शब्दों में   बखान करना ना  मुमकिन है और इनको हवा देने में तथाकथित  सोशल मीडिया की मुख्य भूमिका निभा कर एंटी सोशल बन गये है

              वर्मा उवाच निरंतर जारी था की किसी ने  सही कहा  है पश्चिम में ढला तो अस्त हो गया उसी तर्ज पर हमारी युवा पीढ़ी पश्चिम में  ढलने की अधकचरी मानसिकता लिए आतुर है हमारी आदत  रही है जिस  डाल बेठो वही काटो ,एसा ही हश्र हो रहा है कहते है की दूर के ढोल सुहावने लगते है  और हर चीज इम्पोर्टेड ही अच्छी लगती है I
  
   अब देखो भाई वेलेन्टाईन डे की शुरुआत सात दिन पहले शुरू होजाती है और बाद में सात दिन तक चलती है हम तो हमारा  विरोध केवल एक ही दिन प्रकट कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते है पेपर और न्यूज़ चैनल की खबर बन जाती है ओर जनता में यह संदेश चला जाता है की इसे नापसंद करने वाले बहुत है ,हम करे तो क्या करे लुका छिपी के इस  वेलेन्टाईन डे  को पूर्णतया केसे रोके समझ ही नही आता ,प्रेम की  अपार शक्ति भारी पढ़ जाती है रोके नही रुकता है प्रेम के वशीभूत होकर तो डाई,विग और नकली बत्तीसी वाले भी अपने आप को रोक नही पाते  फिर युवा तो युवा  ही ठहरे  जैसे तैसे यह डे मना ही लेते है दिल है की मानता ही नही ,प्रेम तो असीम  होता है उसकी कोई पराकाष्ठ नही होती I कबीर दास  ने जी लिखा है  -
                      "प्रेम न बाड़ी उपजी ,प्रेम न हाट बिकाय ,
                         राजा, परजा जेंहि रुचे सीस देई ले जाय I
प्रेम का उदय तो मनुष्य के दिल और दिमाग में होता  है और उसका सोदागर कोई भी  हो भले ही वह राजा हो ,प्रजा हो  शाह हो या तानाशाह या फकीर हो Iऔर चोरी छिपे अपना प्रेम इजाहर करने में कोई पीछे रहना नही चाहता. कभी -कभी बासी कड़ी मेभी उबाल आजाता है तो युवा पीडी का क्या दोष ......?प्रेम एक अजूबा है उसमे कोई नियम नही होता है I

        वर्तमान  की दुनिया में जहाँ चारो और घृणा और हिंसा की बयार चल रही है
ऐसे में ये डे कम से कम प्यार के बारे में  कुछ तो माहौल बना देता है और युवा जवाँ दिल जब मर्यादा व सीमा तोडकर प्यार के उत्सव को शक के दायरे में लाकर अभिशप्त कर देते है तो हम जैसे सामजिक लोगो का प्रयास रहता है कि ऐसे डे मनाने से तो  अपने दिन ही अच्छे  जो हमारी संस्कृति की जड़े और मजबूत करते है कितना भद्दा  लगता है जब प्यार इजहार करना भी हम पश्चिम से सीखेगे, सोचने को मजबूर हो जाते है की  हम क्या से क्या हो गये दिन को भूलकर डे मनाने व्यस्त और मस्त हो गये,हमने शांत चित्त से उनका दिन बनाम डे पर प्रभावी विचार के लिए आभार व्यक्त किया और उन्हें वचन दिया की हम दिन ही मनाएंगे  तब कही जाकर  उनके प्रवचन पर विराम  लगा  I

नोट:-



संजय जोशी " सजग "

रविवार, 2 फ़रवरी 2014

सभी  . लेखक .कवि .पत्रकार और छात्र मित्रो को बसंत पंचमी की हार्दिक बधाई और शुभकामनाए ----

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बसंत ऋतु
छाई नई चेतना
भरा उल्लास

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ज्ञान व कला
माँ शारदे वर दे
है जन्म दिन

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विणा वादिनी
है बसंत पंचमी
दे आशीर्वाद
---४-----
वाणी की देवी
दोनों हाथ पुस्तक
शुभ आशीष
------५----
माँ सरस्वती
बुद्धि की संरक्षिका
दे वरदान
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---संजय जोशी 'सजग "---