सोमवार, 22 अक्तूबर 2018

" जल्दी " का वायरस ----[व्यंग्य ]

" जल्दी " का वायरस  ----[व्यंग्य ]
            एक प्रसिद्ध  लोकोक्ति है - जल्दी का काम शैतान का , फिर भी  शैतान और शैतानियां  पूरे  शबाब  पर है  ,कुछ को इसी में  मजा आता है और कुछ  इससे विचलित और दुखी होते है l शुभस्य शीघ्रम  की जगह  अशुभस्य शीघ्रम होने लगा हैl   समाज  की वर्तमान दशा पर अपने विचार व्यक्त करते हुए एक समाज सेवी जो पेशे  से भी समाज शास्त्र के  प्रोफेसर है कहने लगे कि " जल्दी " का वायरस समाज के अंदर ही अंदर तीव्र  गति से फैल  रहा है l वर्तमान युग ,जल्दी का युग है सब जल्दी में है चट मंगनी पट ब्याह को भी  पीछे छोड़ दिया है lसमाज किस मोड़  पर जा रहा है ,प्रकृति पर किसी का अधिकार नहीं  है ,नहीं  तो बच्चे पैदा करने में नौ  महीने नही लगते ,क्योकि सब  जल्दी में है lहर  न्यूज़ चैनल को सबसे पहले न्यूज़ दिखाने की जल्दी है l नेताओं  को बयान की जल्दी है इसी जल्दी में ऊटपटांग ,बेलगाम ,अविश्वसनीय बयान देकर ,जल्दी  में ही विवादित  होना चाहते है l छात्रों को रिजल्ट की जल्दी रहती है l पर महिला के मेकअप के सामने कोई जल्दी नही चलती है ,इस क्रियाकर्म में समय का कोई महत्व नहीं रहता है चाहे जल्दी के लिए पांव पटकते रहो ,कई बार तो शादी के रिसेप्शन  में खाओ पियो खिसको की जल्दी करने वाले , कभी दूल्हा ,दुल्हन के स्टेज पर प्रकट न होने पर बार-बार परिवार वालों  से पूछकर हैरान परेशान कर देते हैl बार बार उन्हें देरी  होने का  और अपनी जल्दी का अहसास  कराना आम घटना रहती है l 

              सबसे बड़ी त्रासदी तब  होती है जब परीक्षा की कापियां जल्दी में चेक कर  दी जाती है और कई छात्रों के अरमानों पर पानी  फिर जाता है  l बचपन से नसीहत दी जाती है कि  जल्दी का काम शैतान  का ,फिर भी करते है ,दिल है कि  मानता नहीं  और शैतानी पर शैतानी करते रहते है l ये जल्दी हमे खतरों का खिलाड़ी  बना देती है l गति से प्रथम सुरक्षा का  संकेत देखकर स्पीड और बढ़ा  देते है इसीलिए एक लाइन कई ट्रकों  पर लिखी देखी  जाती है " जिनको जल्दी  थी , वो  चले   गये "l पुलिस  की जल्दी हो तो हमेशा देर से आती है बहुत बड़ी विडंबना है पर  लोग जल्दी उठने ,जल्दी टेक्स  भरने में पीछे है l नियम तोड़ने की जल्दी है, ये जल्दी  का वायरस  ही भ्रष्टाचार की जननी है l हम रोड सिंग्नल पार  करने की जल्दी हमेशा रहते है l ट्रेन में में उतरने और चढ़ने की जल्दी सब को है l  न्याय जल्दी मिलना चाहिए  पर वहां वर्षो लग जाते है l 
            मैने  कहा सर जी ,  और आम जनता  न्याय  पाने के लिए  त्राहिमाम -त्राहिमाम करती है  l जब सबको जल्दी है  तो वे भी जल्दी में है l हर नेता बयान देने की जल्दी में है और इसी में उलूल -जुलूल  बोलना उसकी प्रवृति हो गई,  कांव -कांव  के शोर में ,जल्दी के दौर में ,वही  पीस रहा है  जिसे  वास्तव में जल्दी है l फ़ास्ट युग में सब  इतनी जल्दी में है तो पुराने  जमाने  वालो के क्या हाल होते होंगे ? दिन प्रतिदिन  जल्दी और जल्दी  करने की खोज में लगे है फिर भी भूख अधूरी है ?पहले घंटो लगते थे अब पल -पल का इंतजार भी नहीं होता है क्योकि जल्दी में है l  प्रोफेसर सा कहने लगे की जल्दी का वायरस समाज के लिए  घातक है इससे हीनता का भाव चरम पर है l जल्दी का   वायरस   हमेशा मूड  को खराब करता रहता है l इस वायरस से बचना बहुत जरूरी है इसकी गति की तीव्रता बहुत ही तेज है हम सब इसमें भस्म हो  रहे है l 

संजय जोशी 'सजग "[ व्यंग्यकार ]

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