सोमवार, 22 अक्तूबर 2018

कदम का दम [व्यंग्य ]

कदम का  दम [व्यंग्य ]
                              
                        फूँक फूँक कर कदम ' रखने  के बाद भी  कदमो को पीछे करना कदमो की तोहीन है  ? ,जिसके कदम में दम  है  उसका क्या ? कदम का ही दम  निकल जाए तो कदम बढ़ाने वाले  दोष क्या ?,जरूरी ही नहीं की हर कदम  ठोस हो जो  टस से मस ही न  हो ,कड़े  और ठोस कदम कभी आगे पीछे नहीं होते l इसलिए  कड़े कदम उठाने की रिस्क  बिरले लोग ही उठाते है l आगे कुआं  और पीछे खाई हो  , तो कदम सहम जाते है l दोनो  हाथो में लड्डू हो तो कदम लचर हो जाते है l ये तो अच्छा है  कि  हमारे कदमो  में ट्यूब लेस टायर ईश्वर की देंन है नहीं तो उनके कदमो  की हवा  तो रोज निकलती है वैसे ही  हमारी  भी निकलती रहती l हमारे कदम  मार्निगवाक्  लायक भी नहीं रहते l जहां कदमो और मुकदमो की भरमार हो वहां कदम  ठहर जाते या बहक  जाते है l बढ़ते  कदम " कदम चूमना " की और अग्रसर हो जाते है l   खर्राटे   लेने वालो की  नीद उड़ा  देती है,  कुछ कदमों की  आहट l 

                              अब प्रश्न ये उठता है  कि कदम किसके इशारे से चलते  है ?मन की शक्ति कदमो को आगे और भय पीछे हटाता है l सीधे  सरल कदम मंजिल तक आसानी से पहुंचते है l शराबी के कदम लड़खड़ाते है उसे गटर में धकेल  देते है l  कदमो के प्रति ईमानदारी कदमो को  थकने नहीं देती है l चोपाये और दो पाये के कदमो का उदेश्य अलग अलग होता है  स्वार्थ अपना - अपना l चोपाये के कदम जब दौड़ लगाते है तो हमला और बचाव दोनों समाहित होता है l दोपाये  के कदमो  की दौड़ सिर्फ होड़ के लिए होती है l कुछ तो सिर्फ दुबला बने रहने के लिए अपने कदम बढ़ाते है l राजनीति में अपने  कदमो  की अपनी अपनी व्यख्या दी जाती है चाहे वे  उलट -पलट दिखे l इनके कदम कभी थकते भी नहीं है और मंजिल पर भी  पहुंचते  नहीं है l मुक्ति बोध के शब्दों में --
मुझे कदम-कदम पर
चौराहे मिलते हैं
बाँहे फैलाए !! 


 इसी तरह   कदम कदम पर  मुँह  फाड़े  खड़ी है समस्याएं  ,को दूर करने के लिए समय  समय पर कई तरह के कदम उठाये जाते है एक साथ   उठाये गए कदमो की ताल में  वे बेताल हो जाते है l  बेताल कितना उलझाता  है विक्रम को चक्रम  बना देता है ,तो जन सामान्य  का  क्या ?वह  पहले ही उलझा हुआ है l  कदमो की ताल के  शोर जनहित के मुद्दे  यूँ ही  दब जाते है l किस्म किस्म के कदम है जैसे -कड़े कदम,  बड़े कदम ,तेज कदम ,भरी कदम ,ठोस कदम ,पहला  कदम ,आखरी  कदम ,असरदार कदम ,सोचा समझा कदम  और साहसिक कदम आदि , छोटे कदम आदि ,ऐसे कदमो का कोई अंत नहीं  है  कदम दर -कदम चलते रहते और कब उनका  दम निकल बेदम हो कर  ये निरीह हो जाते है और हम ठगे  से रह जाते है l 
              एक कविता के बोल है कदम कदम बढ़ाये जा, खुशी के गीत गाये जा यही उसूल होना चाहिए ,जीवन में बढ़ते कदम का बहुत महत्व है l निरशा या  डर में ही आदमी  अपने कदम पीछे करना मजबूरी  हो सकता है  या कोई  नई  खुरा  पात   ही हो  l कदमो का   चलना जगागरूकता का  संदेश देता है l जाग  कर  रुक जाना ही  जागरूकता है क्या ?

संजय जोशी 'सजग 

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