रविवार, 26 अक्तूबर 2014

जहां दिखा फायदा वहां छोड़ा कायदा [व्यंग्य ]

जहां दिखा फायदा वहां  छोड़ा  कायदा [व्यंग्य ]
      


      सिंद्धांत ओर नैतिकता पर स्वार्थ किस तरह हावी हो गया है इसे हिंदी साहित्य के महान लेखक प्रेमचंद जी इस तरह  लिख गए है  कि  - विचार और व्यवहार में सामंजस्य का न होना ही धूर्तता है ,मक्कारी  हैं l जहां दिखा फायदा वहां छोड़ा कायदा यह हर काल  में नासूर बनकर अपना प्रभाव दिखाता  आ रहा है वर्तमान काल  भी इससे अछूता नहीं  है और रंग बदलने के लिए सिर्फ गिरगिट का उदाहरण देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री करना फैशन सा हो गया है रंग बदलने  की अति से  तो गिरगिट भी शर्मिंदा होने लगे है उन्हें  भी गुस्सा आने लगा है पर नेताओं  को  इसका  कुछ  भी मलाल नहीं  है l  एक प्रेस कांफ्रेंस में गिरगिट समिति  के प्रवक्ता ने  जानकारी देते हुए बताया कि  सिर्फ  रंग बदलने  के गुण  के कारण  हमारी तुलना  पल-पल रंग बदलने  वाले नेताओं  से होने लगी है जो की  गिरगिट   जाति  का  घोर अपमान है और  इसे बहुत सह  लिया है अब और बर्दाश्त  नही करेंगे l यह हमारी प्रजाति की मान हानि है l किसी प्राणी  की भांति जब नेता अपना गुण धर्म बदल सकते है  तो हम क्यों नहीं   ? आगे बताया कि शीघ्र और अतिशीघ्र  एक महा सम्मेलन का आयोजन कर  जो अपने स्वार्थ के खातिर रंग बदल कर हमारी प्रजाति को  रोज -रोज   प्रताड़ित  और  बदनाम कर रहे है   अत: इसके लिए रंग बदलने के संबंध में एक प्रस्ताव पारित कर कड़ाई से पालन करने की शपथ दिलाई जाएगी  और एक उप समिति का गठन  कर सभी पर कड़ी नजर रखी जाएगी कि  गिरगिट प्रजाति रंग न बदल  कर एकता का परिचय देकर नेताऑ को अपनी गलती का अहसास कराये l
   
   यह खबर सुनते ही राजनीति  में हड़कम्प मच गया कि  गिरगिट प्रजाति अगर ऐसा करेगी  तो नेताओं  का अपमान होगा और लोग कहेंगे नेता की तरह रंग बदलता है l पर नेताओं  में एक से एक बुद्धिजीवी   भरे पड़े है  उनमें  एक जो  कि इस कला के सूक्ष्म जानकार थे और जिन्हें  गैंग के  मुखिया की तरह बॉस कहा  जाता था कहने लगे कि यह उनका कॉपी राइट थोड़े ही है ,हम ऐसा  नहीं  करेंगे  तो क्या करेंगे अरे समझो राजनीति  का  यह सिद्धांत है कि जिधर हवा  का रुख हो उसी तरफ चलना तो  ही जल्दी मंजिल तक पहुंचने में आसानी होगी , यही तो  समझदारी है ओर समय का तकाजा भी है l वे कहने लगे जिनको शर्म करना है वो करें  ,हम तो जिस उदेश्य के लिए राजनीति  में आये है उसे  पूरा करेंगे ,हमे लोग क्या कहेंगे का  तनिक  भी अफ़सोस नहीं  होता है ,हम तो  वो है जो जानते है कि "जिसने की  शरम उसके फूटे करम " के ब्रह्म वाक्य का पालन   मजबूती से करना  इस क्षेत्र में जरूरी है और  जहां मिले फायदा वहां छोड़ो क़ायदा तब ही तो टिक पायेंगे  इस प्रतिस्पर्धा के दौर में, अपना उल्लू  सीधा करने में l अपने मुँह मिंया  मिट्ठू बनने में महारथ होना जरूरी है तभी उनके मोबाइल की  घंटी बजी  वे अपना रुतबा दिखाने  के लिए  जोश में आकर कहने लगे ये महाशय अपने आप को राजा हरिश्चंद्र का वंशज  मानते है राजनीति  में सुपर फ्लॉप साबित हुए है ये  राजनीति में बहुत पुराना  पर  बहुत लाचार है दुम हिलाना ,चमचा गिरी से कोसों  दूर है सोचो भला ये  आदमी कैसे आगे बढ़ेगा ? आखिर उनका फोन रिसीव  न करके यह जताने  की  भरपूर कोशिश  की ऐसे लोगों  की  हमें  कोई परवाह नहीं  है l काम होगा तो दस बार लगाएगा l ऐसे तो कई पट्ठे  पाल रखे है l
             मै  यह सब बड़े ही बेबस होकर सुनता रहा मुझे लग रहा था कि पूरा  वातावरण
ही इसकी गिरफ्त  में  है  दिन दूनी रात चौगुनी की गति से बेईमान फल फूल रहे हैं  जहां दिखा फायदा वहां  छोड़ा  कायदा के अनुयायियों   की बड़ी जमात है और वे फूले नहीं  समाते  और ईमानदार बेचारा खडूस की उपाधि पाकर मन मसोस कर अपनी व्यथा के कड़वे घूंट पीने  को मजबूर है l सिद्धांतहीनता की लहर जब चलती है तो सिद्धांत को मानने  वाले भी लहर से प्रभावित तो होते ही है l एक दूसरे की शक्ल से घृणा करने वाले जब एक थाली में खाने लगे एक दूसरे को गले लगाने लगे तो  दिल  और दिमाग एक साथ सक्रिय  होकर कह  उठता है कि  जहां दिखा फायदा वहां छोड़ा कायदाl

वाह रे काला धन [व्यंग्य ]

वाह रे काला धन [व्यंग्य ]


                    
                  रोज -रोज सनसनी फैलाई जाती है कोई कहता है काला धन आयेगा  कोई कहता है  नहीं  आएगा और आम जनता इसके गहन अंधकार से प्रकाश की ओर कब लौटेगी या यूँ ही उल्लू  बनाविंग चलता रहेगा ,सब अपनी -अपनी रोटी सेंकने में व्यस्त है और गरीब तो बेचारा रोटी का इंतजार ही करता रह जाता है एक अर्थशास्त्री इसे मायाजाल बनाम भ्रम जाल कहते है और अपनी पीड़ा को कुछ इस तरह व्यक्त करते  है -धन की अपनी चमक होती है और उसी चमक से प्रभावित इसकी चाहत में लोग धृतराष्ट्र की तरह अंधे हो गए और कुछ ने गांधारी की तरह आँखो पर पट्टी बांध ली है l
                      काले धन के कारण आये दिन राजनीति  में हुद -हुद  आता है और  काले धन का कमाल रोज होता है ये  मीडिया  में छाया  रहता है और बयान वीर अपने आरोप -प्रत्यारोप का दौर चलाते रहते है झेलने की क्षमता ही खत्म हो गई है और जनता अब कहने लगी है कि  विदेश से काला धन वापस आना मुश्किल ही नहीं  नामुमकिन लगने लगा है l
                          अर्थशास्त्री कहने लगे अरे भाई काले धन की चिंता है तो देश में ही
काले धन की अपार सम्भावनायें  छिपी है उस पर दांव लगाने में क्या बुराई है अभी केवल तमिलनाडु की  नेता ही धराई  है ऐसे  लाखों  होंगे l काले धन  के स्वामी में इतनी ताकत है कि इनकी   तरफ देखने की क्या सोचने की  हिम्मत कोई नहीं करता है अपने काले धन  की शक्ति से सब को अपना बना लेता है l वे कहने लगे सपने में आकर काला  धन कहने लगा कि  काला है तो क्या हुआ दिल वाला है जो दिल लगाता है  उसका दिल नहीं  तोड़ता हूँ ,अच्छे -अच्छे के इमान डिगा देता हूँ ,हर क्षेत्र में मेरा ही बोल -बाला है सभी राजनीतिक पार्टियों  और नेताओं  को जान से प्यार हूँ जो जैसा चाहे  उपयोग कर रहा है और मैं मौन होकर  सब  सह  रहा हूँ मेरे भाई सफेद धन के अपमान से मै  आहत होता हूँ क्योकि ज्यादा तर दीवाली पर मेरी  ही पूजा होती  है lमाता के वाहन  उलूक को अंधकार से प्रेम होने से वह  मेरी और ही आकर्षित होता है और अँधेरे  का लाभ  उठाकर मैं  फलता फूलता रहता हूँ l

   मेरा रंग तो हर किसी के साथ बदल जाता है फिर भी काला  ही कहलाता हूँ ,जब जब मेरे चर्चे होते है , मैं भी कैद से बाहर निकल कर दीन दुखियों  के काम आना चाहता हूँ l पर मुझ पर इतने पहरेदार रहते है कि मैं  कुछ नहीं  कर सकता lसंत्री से मंत्री तक ने मुझे जकड़ रखा है l भ्र्ष्टा आचरण से मुक्ति ही मेरी मुक्ति का मार्ग है ,यदि  मुझे ईमानदारी से मुक्त कर दिया जाये तो देश की दशा और दिशा दोनों बदल जाएगी और फिर से  मेरा यह देश सोने की चिड़िया कहलाने लग जाएगा l
               जब नींद खुली तो उनका   सपना टूटा   कहने लगे काले  धन की मन की और बातें   अधूरी  रह गईl  काले धन की महिमा तो अपरम्पार है सुबह फिर से  अख़बार  में वही फिर काले अक्षर में काले धन की  खबर मुख्य खबर बनीं ,यही  काले धन का कमाल है l सिर्फ और सिर्फ खबर ही बनता है वाह रे काले धन--l

हाथ की धुलाई [व्यंग्य ]

हाथ  की धुलाई  [व्यंग्य ]

      मुझसे मेरे पड़ोसी  कहने लगे कि    विश्व हाथ धुलाई   दिवस मनाया गया और  हाथ की सफाई का महत्व समझाया गया l ,इस अभियान के बहाने हाथ  साफ़ करने के लिए कौन सी कम्पनी का हैंडवॉश अच्छा है इसका प्रचार कंपनियों द्वारा किया गया और कौनसा हाथ में छिपे  अदृश्य कीटाणु धो डालने के लिए उपयुक्त है ,कीटाणुओं का   खौफ  बताकर और  इमोशनल ब्लेक मेल कर  हैंड वाश बनाने वाली कंपनियों  ने बहती गंगा में हाथ धोने  की लोकोक्ति को चरितार्थ कर अपने -अपने हैंड वाश से  हाथ धोने के महत्व  को प्रतिपादित किया l बच्चों ने  जोश और खरोश से हाथ  धोये   और सोचा कि  अच्छे से हाथ धो लिए जाए फिर  अगले  ही साल मौका आएगा ,अभियान में  फोकट  के हैंडवाश से हाथों को धोने का   मजा कुछ ही  और है  ऐसा उनके हाव -भाव देख कर माना जा सकता था , सरकारी स्कूलों में कई की हालत तो ऐसी है पानी ही नसीब नहीं  है हाथ धोना तो दूर की बात है l  टीवी पर न्यूज़ देख कर  तो ऐसा लग रहा था कि  , जैसे बेचारे बच्चे  हाथ धोना  ही नहीं  जानते है पड़ोसी  हसंते  हुए कहने लगे कि  बहती गंगा में हाथ धोना और हाथ साफ़ करने में ज्यादा ही माहिर है वर्तमान पीढ़ी l

        वे  कहने लगे कि  जिनके हाथ गंदे कारनामों  से सने पड़े है क्या उनके लिए भी  कोई अभियान चलाया जायेगा  ,उनके हाथ और मन का मैल  कब धुलेगा ,ऐसे ही लोगों  ने बहती गंगा में हाथ धोकर गंगा के साथ ही राजनीतिक ,समाज और संस्कृति को इस कदर गंदा कर रखा है कि  कोई भी वाशिंग पावडर काम नहीं  आ रहा है और उलटे केमिकल युक्त होने के कारण प्रदूषण बढ़ाने में सहायक हो रहा है l और ये ही  हैं कि   हर क्षेत्र में हाथ  की सफाई से  हाथ साफ़  कर जाते है हम हाथ मलते ही रह जाते है l
                             मैंने  कहा आप खामख्वाह  क्यों अपनी आत्मा को कष्ट देते रहते है,ऐसा करने वालों  को तो  जरा भी आत्म ग्लानि  नहीं  है   और वे  तो गंदगी से अपने हाथ धोते रहेंगे, और अपने आप को हाथ की सफाई का सरताज मानते रहेंगे जब तक बुद्धिजीवी हाथ पर  हाथ धरे बैठे रहेंगे l जैसे सावन के अंधे को हरा -हरा ही नजर आता है ,सफाई के अंधों  को सब साफ ही नजर आता है l
     हम लोग   साल में एक बार हाथ धुलाई अभियान मनाकर बच्चों  के संस्कारवान बनाने का भरसक प्रयास करते रहेगें और हम मन के सच्चे बच्चों   के हाथ धुलवाते रहेगें ,किसी भी अभियान  की जान और शान होते है बच्चें  और रस्म भी ईमानदारी से निभाते है l लेकिन    यह यक्ष प्रश्न हमारे सबके सामने हमेशा खड़ा रहेगा कि  जिनके हाथ गंदे कारनामों से   गंदे है उनके हाथ धुलने का एक अभियान कब चलेगा ?

दोस्त दोस्त ना रहा ....[व्यंग्य ]

        दोस्त दोस्त ना रहा ....[व्यंग्य ]
                                                लद गए वो जमाने जब यह  गाना  हिट हुआ करता था कि  ये दोस्ती हम नहीं  तोडेंगे ,तोडेंगे दम मगर तेरा साथ न छोड़ेगे l स्वार्थ  है जहां दोस्ती  नहीं  वहां l स्वार्थ हमारा जन्म सिद्ध अधिकार हो गया हैl स्वहित की भावना  के सर्वोपरि चलते  दोस्ती कभी -कभी बेमानी सी लगने लगती है l न काहू से दोस्ती न काहू से बैर भी एक लोकोक्ति है पर राजनीति के धरात्तल पर सटीक नही बैठती  रोज नए समीकरणों से रोज नए दोस्त को पकड़ना और छोड़ना आदत सी हो गई है कई बार मजबूरी में बेमेल दोस्ती का बोझ ढोना पड़ता है l
      मेरा एक  दोस्त  कहने  लगा  कि  'मेरे दोस्त पिक्चर अभी बाकी है'.. आने वाली है लेकिन आज के दुश्मन कल के दोस्त और आज के दोस्त कल के दुश्मन बनने में वक्त कहाँ लगता है मेरा एक लगोंटिया दोस्त  है , गहरे  मित्र के लिए एक कहावत  प्रचलित है" एक दाँत से रोटी तोड़ने वाले " हम थे  पर जब से मैं मोहल्ले की एक सामाजिक और धार्मिक संस्था का सचिव क्या बन गया वह मेरा क़टटर दुश्मन हो गया हर बात काटना और मेरे बारे में लोगों  को उल्टा -सीधा बकने लगा ,जबकि उस संस्था से मुझे आर्थिक लाभ क्या  बल्कि जेब हल्की करनी पड़ती थी, मौके -मौके पर l और  हंसकर  बोला   फोकट में ये  हाल   है अगर  गलती से लाल बत्ती  मिल जाती  तो क्या करता मेरा परम मित्र l   ऐसा दोस्त कहां किसी के पास होता है…कुछ दोस्त पल भर में भुला दिये जाते हैं कुछ दोस्त पल पल याद आते हैंl
     अजीब दाँस्ता है दोस्ती की  अब वह  कहने  लगा पर कलमुंही राजनीति  ने ऐसा प्रभाव छोड़ा  की दोस्ती भी इससे प्रभावित हुए बिना नहीं  रही l कभी -कभी विज्ञान का  सिद्धांत भी फेल हो जाता है और  समान ध्रुवों  में आकषर्ण और असमान ध्रुव  में विकर्षण पैदा हो जाता है यह  केवल राजनीति  मे ही सम्भव है देखो बिहार और महाराष्ट्र में यहीं तो हुआ lमैंने उसे समझाया कि राजनीति तो अपने ऊपर  से जाती है ये सब राजनीति  की बातें  छोड़ो अपने काम से काम रखोऔर उसी में मस्त रहो l
 फिर से  अपना राजनीतिक   ज्ञान बघारते हुए बोला कि  दिन भर न्यूज़ पर राजनीति की चर्चा सुनकर दिमाग तो खराब हो ही जाता है अब यह रोज सहने के आदि हो गए हैं फिर   चिंतित होकर कहने लगा कि क्या होगा  मैंने कहा  वो तो फिर  मिल जायेंगे अपने   स्वार्थ  अनुरूप l अपुन ने तो रेडियो  का रुख किया जबसे तबसे बहुत सुकून में हूँ l इसके दो फायदे  हैं एक तो रिमोट की भीख नहीं मांगनी  पड़ती और दूसरे आँखों और दिमाग दोनों  पर जोर नहीं  पड़ता l वो  कहने लगा कि  निःस्वार्थ दोस्ती तो सुदामा और कृष्ण की थी l वह एक  दोस्ती की मिसाल है l आज के आधुनिकता भरें युग में सच्ची दोस्ती के गुणों को लोग भूल ही गये हैं।दोस्त शब्द दो तत्वों से बना  है, एक सच्चाई और दूसरा कोमलता।पर आजकल दोनों ही गायब है जैसे घोड़े के सर से  सींग  l जैसे किसी ने सही ही तो  कहा  है सबसे कमज़ोर आदमी वह है जो अपने लिए दोस्त न खोज पाए और उससे भी कमज़ोर आदमी वह है जो अपने दोस्तों को खो दे। फिर इस गाने के बोल सच लगते है ---दोस्त दोस्त ना रहा .. ज़िंदगी हमें तेरा  ऐतबार ना रहा l
   मैने  कहा कि  आप जैसे मित्र  ही हमारे जीवन में बने रहें  और समय -समय पर दोस्ती का रसपान कराते  रहे l .

चायना का चटका [व्यंग्य ]

    चायना का चटका   [व्यंग्य ]



      हमारे मल्टीकलर कल्चर में चायना ने मारी एंट्री और   सबके दिल में बजने लगी चायनीज खाने की घंटिया l बच्चों  से लेकर बड़े  सभी दीवाने चायनीज फ़ूड के l इसकी  बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए मैंने इसकी तह  तक जाने का  मन बनाया आखिर इसमें ऐसा क्या है ?यह तो मानना पड़ेगा की चायना बेसिक सिंद्धांत पर काम करता है उसने पहले चायनीज फ़ूड के माध्यम से पेट पर कब्जा कर लिया ,कहते है कि  प्यार का रिश्ता तो पेट से होकर  ही जाता है l चायना प्रेम का आलम यह  है कि खिलौनों  से लेकर हर प्रकार के  सामान से बाजार  पटा पड़ा है सस्ता तो है पर टिकाऊ नहीं  है सब चलता है क्योंकि  हम यूज एन थ्रो की संस्कृति के इतने मुरीद हो गए है तथा इसका प्रभाव मानवीय रिश्तों  को भी तार -तार कर रहा है रिश्ते भी चायना के सामान की तरह कब तक चले कोई ग्यारंटी नहीं  l सस्ता रोये बार बार महंगा रोये एक बार को इस तरह परिवर्तित कर दिया कि सस्ता लाओ उपयोग करो और फेंक  दो और खुश रहो l

                              
      मैंने  चायनीज फ़ूड की प्रेमी एक आधुनिका से पूछा कि  चायनीज  फ़ूड खाने वालों  की संख्या निरंतर बढ़  रही है और और पूरे भारत में इसको चटकारे लेकर  लोगबाग सूत रहे हैं  और भारतीय व्यंजन को चिढ़ा रहे है l आपका क्या कहना है इस बारे में तो  वे कहने लगी देखिये  चायनीज फूड की कुछ विशेषता है जैसे
 ऑइली , स्पाइसी कम होते  है जिससे हेल्थ कॉन्शियस  लोग खाने लगे है ,बनाने में आसान ,खाने में हाथ गंदे नही होते ,बच्चे भी आसानी से खा लेते है और भारतीय खाने
के मुकाबले  में कम समय  ,कम लागत और कम मेहनत लगती है  तो क्यों न खाए
चायनीज फ़ूड l मैंने कहा  मेडम जी आप जैसे लोगों  के चोचलों  के कारण ही यह सब हो रहा है l तो वे कहने लगी मैं  समझी नहीं  l मैंने  कहा मुझे जो समझ में आया वह यह है कि सिर्फ आलस्य की अधिकता और समय की मार ने हमें  इसका आदी  बना दिया है l
        हेल्थ कॉन्शियस शब्द ने मेरे दिमाग को इतना  झकझोर  दिया कि  चायनीज खाने के गुण और अवगुण का पता लगाने निकल पड़ा स्वास्थ्य की दृष्टि  से मैंने  एक आहार विशेषज्ञ  से सम्पर्क किया ये ढेरों  मिलते है l अपनी समस्या बताकर उनका पक्ष जाना उनके अनुसार अगर सही तरीके से  इसे बनाया जाय तो ठीक है अन्यथा  आवश्यक अवयवों  के असमान मिश्रण से ये चायनीज फ़ूड कई बीमारियों  को जन्म देते है  कुछ होटल वाले स्वाद  बढ़ाने  के चक्कर में  जरूरत से अधिक तत्व  मिक्स  कर देते है  खाने वाले को संपट  नही पड़ती ,ऊँची दुकान और फीके पकवान   होते है परिणाम दिमाग में  डैमेज  ,हार्ड डीसिस ,मोटापे और  शारीरिक  असंतुलन का खतरा भी  रहता है l पर  ये दिल है कि  मानता ही नहीं  है l कहते है न कि  आधा अधूरा  ज्ञान ही विनाश का कारण बनता है परिणाम आने में समय तो लगता है देर सबेर कभी  तो नींद खुलेगी l मैंने कहा कि  नकल में भी अकल  लगानी पड़ती है l
            हमारे भारतीय व्यंजनों की क्या  कोई कमी है ?फिर भी चायना  का चटका जोरों  पर है l यह हमारी विडंबना  है कि  इडली डोसा ,खम्मन ढोकला ,छोला पूरी ,बडा पाव  ,दाल बाटी कुछ विशेष क्षेत्र तक ही इनकी सीमायें  है l देशी खाना देख कर नाक भौं  सिकोड़ने वालों  को चायनीज फ़ूड  देख कर  मुहं में पानी आने  लगता है l नूडल्स,हाका नूडल्स,चाउमिन ,मंचूरियन और मोमोज़ का नशा   चायना से चलकर पूरे  देश के लोगों  के दिलों और दिमाग पर चढ़कर बोलने लगा  है जैसे घर की खांड किरकिरी  लगे और बाहर  का गुड़ मीठा l
          हम विदेशी संस्कृति पर इस कदर फ़िदा है कि  खान पान ,रहन सहन को अपनाने  की प्रति इतनी शीघ्रता  दिखाते है कि  बाकि सब  गौण कर देते है lविदेशी शासन से मुक्त होने के बाद भी हम आज भी मानसिक गुलामी से मुक्त नही हुए है l आँखों पर पड़ा पर्दा  हटाना बहुत जरूरी है पूरी दाल ही काली हो गई है l

                    चायना का चटका यह सब सोचने को मजबूर करता है कि   हमारे बाजार में चायना सामान की , दावतों में चायनीज  फ़ूड के साथ ही सीमा पर  भी घुसपैठ
करने की कला में  चायना सिद्ध हस्त है l मुझे विचलित देखकर मेरी पत्नी ने गीता का ज्ञान झाड़ते हुए कहा कि   " क्यों व्यर्थ चिंता  करते हो  "हम किसी से कम नहीं  ,हमारे  व्यंजनों और हमारी संस्कृति को मिटा दें  , ऐसा किसी में दम  नहीं l

हौले -हौले से झाड़ू चलती है ...... [व्यंग्य ]

हौले   -हौले से  झाड़ू चलती है ...... [व्यंग्य ]
      
                  जब  किसी सफाई अभियान में झाड़ू लगायी  जाती है  तो  झाड़ू हौले -हौले  से  चलती  दिखती है .झाड़ू लगाने वाले के चेहरे पर विजयी  मुस्कान के साथ ही उनके हाथ में विशेष प्रकार की झाड़ू होती है लगाने वालों का पूरा ध्यान कैमरों की और होता है l घर की सफाई तो बिना नहाये व पुराने कपड़े पहन  कर की जाने की परम्परा है लेकिन अभियान तो  प्रेस किये कपड़े ,पॉलिश किये हुए जूते विशेष प्रकार की खुशबू वाले  .परफ्यूम. से महकता रहता है क्योकि यह तो सांकेतिक अभियान है सफाई तो वो ही करेंगे जिन्हे करना है l इस अभियान से देश और जनता में जागरूकता आयी लेकिन  जिन्होंने अपनी नौकरी के अंतिम पड़ाव तक कभी अपनी टेबल पर भी कपड़ा न  मारा हो उनके हाथो में झाड़ू देखकर अधिनस्थ  कर्मचारी  मन ही मन सोचते होंगे कि  अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे l
   कुछ दृश्य ऐसे भी थे जिनमें  एक झाड़ू पकड़े हुए को चार पांच लोग घेरे हुए थे यह सीन ऐसा लग रहा था जैसे  मानो बेट्समेन को चार - पांच फील्डर घेरे हुए है l कुछ  सीन तो साफ करे हुए को साफ़ करने का अभिनय कर रहे थे l  ऐसा लग रहा था कि  केवल औपचारिकतावश मजबूरी में निभा रहे है
               सफाई करने वाले  साहबों के हाथ में  झाड़ू देख कर हर कोई अभिभूत थे ऐसे में एक महाशय कहने लगे चलो कुछ तो समझ आयेगा कि  खाली पिली सफाई -सफाई का खौफ पैदा करने से कुछ नहीं  होता है  बंद अक्ल का  ताला भी खुलेगा ऐसे ही कदम -कदम मिलाकर  सफाई करने से ही कुछ होगा खाली चिंता से कुछ नही l आज मेरा अरमान पूरा हुआ साहब के हाथों  में झाड़ू देखकर  ,कुछ हो या न हो सफाई  करने पर यह तो समझेंगे की गंदगी नही करना है तो भी आधी  समस्या हल  हो जाएगी l
                       एक नेताजी कहने लगे कि  हमने शपथ ली है की न गंदगी करूंगा
और न करने दूंगा ,मैंने  कहा शपथ लेना तो आसान है पर पालन करना कठिन है सविंधान की शपथ खाकर भी तोड़ने वालों  की कमी नही है   तो इस शपथ का क्या होगा?
नेताजी कहने लगे  देखते हैं  क्या होता है हर क्षेत्र तो गंदगी से पटा पड़ा है लोगों  के दिमाग के जालों  की सफाई की भी जरूरत है केवल शपथ और अभियान से कुछ नहीं होना है जब तक हर आदमी  न सुधरें  l
                         मेडिकल  शॉप वाला कहने लगा कि  बाम की  खपत बड़ गयी जब से ऐसे लोगों ने झाड़ू उठा ली  कुछ की तो  कमर ही  लचक  गई और कुछ को तो शर्म व भय के मारे सरदर्द होने लगा कि कल से क्या होगा कहीं हमें   कमरे और टेबल की सफाई  भी न करना पड़े l
                            कई साहबजादों  की पत्नियां  इस अभियान से अति प्रसन्न  थी
की चलो गुरुर तो टूटा जब ऑफिस और रोड की सफाई की तो घर की  तो आराम से  करवा सकते  है मैंने कहा  कि  पहले न्यूज़ चैनल से बात कर लीजियेगा  सफाई तो तभी कर पायेंगे  क्योकि कैमरा देख कर अच्छे -अच्छों को जोश आ जाता है l वह कहने लगी घर की मुर्गी दाल बराबर होती है अब हमें   रास्ता  तो मिल ही गया है हौले -हौले सब करवा लेंगे l जब बाहर   हौले -हौले झाड़ू चला सकते है तो  घर  पर क्यों नही ?  घर पर हम भी चलवा लेंगे  l हमारे अच्छे दिन की शुरुआत हो गई है इस अभियान से  ऐसा मान सकते है l अभी तक पद का रूतबा दिखा कर कन्नी काटते थे , अब थोड़ी जागृति आयेगी हमें  भी थोड़ी  राहत तो  मिलेगी l  प्राथमिकता  से  घर में भी   सफाई होगी तब ही तो बाहर की कर पाएंगे …। l हौले -हौले झाड़ू चलती रहेगी ...अब न थमेगी अब केवल घिसेगी  और  झाड़ू पर झाड़ू बिकती रहेगी l

ऑन लाइन मजा या सजा [व्यंग्य ]

  ऑन लाइन मजा या सजा [व्यंग्य ]
        
      लाइन ,लकीर और कतार  यूं तो इनका  अर्थ एक ही है  लेकिन जीवन में अलग  -अलग तरह से अपना प्रभाव दिखाती है मनुष्य नाम के प्राणी का  इनसे गहरा सम्बन्ध हैl लाइन तोड़ने और  लाइन मारने का  वरदान तो लगभग सभी को गॉड गिफ्ट होता है भले ही प्रतिशत भिन्न -भिन्न  हो सकता है lनामी -गिरामी ,विख्यात ,प्रख्यात और कुख्यात तो लाइन मारने में  महारथी पर लाइन में लगने को अपनी  तौहीन  समझते है और इससे बचने के लिए  जुगाड़ तंत्र का सहारा लेते हैं  l हाथ की लाइन के सहारे सपने देखने की मानसिकता रखने वाले भरे पड़े है लकीर के फकीर  जो ठहरे l सीता जी के लिए लक्ष्मण द्वारा खींची लाइन तो लांघने का हश्र राम -रावण का युद्ध हुआ l लकीर को पीटना राजनीति का प्रमुख अंग है l आजकल  ऑन लाइन रहना आधुनिकता की निशानी है जो जाल का जंजाल बनता जा रहा है l
           मुझ से लाइन में रहना रे  , यह वाक्य  अक्सर  बचपन  से आज तक  कानों  में गूँजता  है जब भी किसी की किसी से लड़ाई होती है तो  हमेशा  दोनों पक्षों की और से चेतावनी स्वरूप इन शब्दों का प्रयोग दोनों  ही ओर से किया जाता है आज भी बड़े बूढ़े प्रेम के अभिभूत होकर  लाइन में रहने की नसीहत देते रहते है l समय बदला और  जमाना ही ऑन लाइन रहने का  हो गया l ,छोटे से लेकर बड़े तक  सब के सब  ऑन  लाइन रहने लगे है ऑन लाइन  रहने का नशा इस कदर छा  गया है कि  लगने लगा है  इसके  बिना जीवन अधूरा  है नेट के बिना जिंदगी भी नेट लगने लगी है l लाइन  [ब्राड बेंड ] और बे-लाइन दोनों पर ही ऑन लाइन रहने लगे है l
                          ऑन लाइन में मजा और सजा दोनों ही है सुबह सबसे पहले उठकर ईश्वर का ध्यान किया जाना  परम्परा थी कुछ आज भी करते है जो नहीं  करते है वे ऑन लाइन होकर नई परम्परा का निर्वाह करते है l आज हर चीज  ऑन  लाइन उपलब्ध है l पुरानी चीजे भी ऑन लाइन बिकने लगी है नया हो या पुराना ,खाने का हो या पीने का ,ओढ़ने का हो या पहनने  का ओर  तो ओर भगवान से लेकर चन्द्र दर्शन भी ऑन  लाइन होने लगे है l ऑन लाइन शॉपिंग ने तो महिलाओ के प्रिय गुण बार्गेनिंग की बाट ही लगा दी  पर इसका कहर सब्जी वालों  पर बरपने  लगा है l ऑन लाइन इश्क  रिस्क  ही तो है जब रिस्क लेकर   इश्क परवान चढ़ता है बिन मंगनी ब्याह  रचा लेता है तब  हकीकत में  ऑन लाइन रिश्ते की  लाइन गड़बड़ा जाती है l
       ऑन लाइन से परेशान एक समाज सेवी कहने लगे कि भाई लाइन मारने और
फ्लर्ट दोनों ही ऑन लाइन  होने लगा है l यह  तो गनीमत है कि गुरु दक्षिणा  एकलव्य की तरह अंगूठा देने की परम्परा होती तो क्या होता आज ? अंगूठा तो ऑन लाइन पर रहने की जान है l वे चिंतित और विचलित होकर कहने लगे मुझे डर लगता है की कहीं अंतिम संस्कार की प्रक्रिया  भी ऑन लाइन न हो जाए क्योकि समय किसके पास है दुनिया के किसी भी कोने से सम्पन्न किया जा सकेगा lऔर १३ दिन का  काम १३ मिनिट में हो जाया  करेगा l
      वे आगे कहने लगे कि  इस ऑन  लाइन रहने की बीमारी ने कई कम्पनियों  और आफिसों में  आउट पुट को कम किया है इससे कई संस्थानों में इन पर पूर्णतया प्रतिबंध लगाने को मजबूर होना पड़ा l ऑन  लाइन की मनोवृति मनोविकार में बदल गई है फेसबुक ,ट्विटर और वाट्स एप पर लगातार ऑन  लाइन रहने वाले को जब नेटवर्क  नहीं  मिलता है तो यह  बैचेनी ,परेशानी  हताशा का सबब बन जाता  है l जीवन  में उतार चढाव बहुत ज़रूरी हैं l चिकित्सा विज्ञानं में  ईसीजी  के अनुसार एक सीधी  लाइन  मौत की निशानी होती है तो  क्यों न हम लाइन तोड़ने और लाइन मारने वाली  जैसी ज़िग -ज़ैग भरी जिंदगी जिए और जीने दें  l
                                 
    होड़ लगी है ऑन लाइन की कोई ले रहा मजा तो कोई पा  रहा है सजा l सरकारी  साइट्स की  लाइन का हमेशा व्यस्त रहना सर्वर नाट  फाउंड का  ऑप्शन भी ऑन लाइन रहता है घंटो की मशक्क़त  के बाद भी जीरो बटे सन्नाटा ही नजर आता है lएक प्रसिद्ध लोकोक्ति है नादान की दोस्ती ने  जीव का जंजाल यह पूरी तरह ऑन लाइन
रहने वाले नादानों के लिए सटीक बैठती है l

गुरुवार, 2 अक्तूबर 2014

बहस रावण दहन पर [व्यंग्य ]

बहस रावण दहन पर [व्यंग्य ]---हैदराबाद से प्रकाशित डेली हिंदी मिलाप में प्रकाशित मेरा व्यंग्य [02/10/14]