प्यारे लगे बंगला --- (व्यंग्य)
सरकारी महकमे में उच्च पद पर आसीन थे शिखर जी l उन्हें सरकारी क्वाटर मिला हुआ था , उससे असंतुष्ट थे , वे बंगले के शौकीन थे l वे एक अदद सरकारी बंगले की जुगाड़ में लगे रहते थे l अपने कर्तव्य से ज्यादा समय बंगले को हतिया कर बीबी के सपने को पूरा करने के लिए जी जान से जुटे रहते थे l जिस पर उनकी निगाह होती थी ,उस बंगले पर उनके साहब डेरा डाल देते थे ,l वे बेचारे ठन ठन गोपाल बने रहते l बीबी बच्चो के ताने सुन सुन कर हताश और निराश रहते थे ,l इस टेशन में कार्य में गलती की अधिकता से वे बड़े साहब को अप्रिय और खलने लगे थे ,इसी कारण वे बंगले से दूर होते गये l जब भी मौका आता बड़े सर अपने परम् प्रिय को अलाट करवा देते l शिखर जी को मिलता बाबाजी का ठुल्लू l सरकारी बंगला क्यों लगता है इतना प्यारा ? तो वे कहते बिजली पानी और भी सुविधा फ्री और झांकी दिखती सो अलग , मैंने कहा वाह रे झांकी बाबू सलाम l
देर है पर अंधेर नहीं आखिर उनका सपना पूरा होता है उन्हें नए साब की कृपा के पात्र हो जाते है , एक बंगला मिल जाता है l उसकी हालत देख कर उनका मन मसोस जाता है l अब वे उसे दुरुस्त और रंग रोगन के लिए सरकारी जुगाड़ में लग जाते है l येन केन प्रकारेण सफलता पा ही लेते है l शुभ मुहर्त में "बंगला प्रवेश "कर जाते है l परिवार में हंसी ख़ुशी का माहौल रहने लगता है l उनके ऑफिस के छोटे बड़े अधिकारी जब उस बंगले में आते है तो जी भर के तारीफ करते है , वे ऊपर से फुले नहीं समाते और अन्दर ही अन्दर भय भीत होते रहे कि राजनीती चाल चल कर कोई इसे हतिया न ले l सरकारी तंत्र ऐसे ही दाँव चलते रहते है एक बंगले के लिए l नौकर शाही और लोक शाही सरकारी बंगले का विशिष्ट स्थान है l सबकी चाहत सरकारी बंगला मुझे पर्मनेन्ट मिल जाये l इतना प्यारा लगता सरकारी बंगला मोह छूटे नाही l
राजनीति में चुने हुए और हारे हुए प्रतिनिधियों में बगंला दवंद एक रूटीन प्रक्रिया है तू हटे तो में फंसू l पद मुक्त होने वाले नेता भी बंगले पर कुण्डली मार कर अंगद के पांव जैसे डटे रहते है जब तक को सख्त आदेश न हो l सरकारी बंगले से इतना प्रेम क्यों ? नियम कानून है तो पालन क्यों नहीं करते ?बाद किरकिरी जरूरी लगती है ? केंद्र से लेकर राज्यों तक ऐसे ही हालत क्यों है ? सरकार और जनप्रतिनधि दोनों ही जिम्मेदार है ?नैतिकता को ताक में क्यों रखते है ?उत्तर प्रदेश के बंगले रोज सुर्खियों में है l इसका सीधा साधा कारण यह है जनता और सबको फ्री फोकट का जो मिलता है उसी में सुकून मिलता है l आप का घर/बंगला कितना भी अच्छा हो पर सरकारी बंगले का सुख तुम क्या जानो रमेश बाबू ? इस लिए सबको अच्छा लगता है सरकारी बांगला l इसीलिए तो सब कहते है सरकारी बंगला ही मोहे प्यारा लगे l
संजय जोशी 'सजग
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