सोमवार, 22 अक्तूबर 2018

विधानसभा में भूत [व्यंग्य ]

विधानसभा में भूत  [व्यंग्य ]
.                        विधानसभा  में भूत की चर्चा  जोरों  पर है l   भूत  पर एक संत  का चिंतन  पढ़ने  में आया।  संत ने अनुसार  भूत वो है जो भूतकाल का शोक करे। सत्ता से हटने के बाद नेता भी भूत का चाव नहीं छोड़ते और अपने नाम के साथ भूतपूर्व प्रधान, भूतपूर्व विधायक लिखते हैं। उन्होंने संदेश दिया कि भूत को भूलो और आज का आनंद करो। लोग मसान के भूतों से डरते हैं। जीवित व्यक्ति से डरो। जो मर गया वो तो देवता बन गया। तुम भूत, मैं महाभूत और हमारा नाथ भूतनाथ शिव। मैने भी मंथन किया इस बात पर भूतनाथ तो भोले भी है सब पर कृपा करते है फिर भी लोगो को भूत से डर  क्यों लगता है ? बेताल बर्षों से राजा विक्रमादित्य को अपनी चतुराई से मात देता आ रहा था  और उसकी बुद्धि को धता  बताकर मज़े में पेड़ पर उल्टा लटका रहता था. पर राजा विक्रम ने एक बार विजय पा ही ली l वैसे ही जनता के कंधो पर लटके सफेद पोश बेतालों से मुक्ति पाने का समय चुनाव के समय ही आता है और तब जो  कर्महीन हो  भूतपूर्व हो जाता है यही  भय का भूत इस सोच की और ले जाता है कहते है विधानसभा में भूत का साया है l  

         " खाली दिमाग भूत  का घर "   लगता है कि शायद  भूतपूर्व होने का डर सता  रहा होगा ?या पुराने  भूतपूर्वो   का खौफ  नजर आ रहा होगा ? ये तो वो ही जाने कि  भूत का मुद्दा  उठाकर  खुद  डर  रहा है  या दूसरों  को  डराने का कोई अभियान  है l भूत  से डरे वो   नेता ही क्या  ? अंतिम सत्य तो भूतपूर्व ही है कभी न कभी होना है न पद ,न कुर्सी अमर है, अमर  तो  सिर्फ कर्म है जैसा कर्म वैसा फल l अच्छे कर्म करने वाले भूतपूर्व ही अभूतपूर्व  होते है l 

हमारी शिक्षा में " मैकाले का भूत’" विद्यमान  है l   शिक्षा  को   आज भी   इस भूत  की  जकड़न से मुक्त नहीं पाये  पर विधानसभा  के काल्पनिक  भूत   की चर्चा में  पक्ष और विपक्ष दोनों ही लगे हुए है l एक वास्तु के भूत  ने तो विधानसभा  और पार्टियों के   कार्यालय ,नेताओं   की कुर्सी की दिशा और दशा  ही बदलवा दी l भूत  कहीं  है  तो मनुष्य के  मन और मस्तिक में रचा बसा है l भूत और भूतकाल से डरना  मानव की प्रवृति है पर नेता तो अपने आप को मानव नहीं  महामानव मानते  है l 
                  जो भगवान से नहीं डरते वे भूतो से क्या  डरेंगे यह  सिर्फ चर्चा में रहने और जनसमस्याओं  का रुख बदलने की एक कला भर है l जिन्दादिलों  की भावनाओं  पर ताण्डव करने वाले भूतो से डरते नहीं ,डराने का  माहौल बनाते है l विधानसभा में भूत  होते तो ,दिन में भूतपूर्व होने वाले नेता और रात में भूत की विधानसभा चलती होती l भूत भरम  है भूत वहम है l भूतनाथ भोले ही " न भूतों  न भविष्यति " है अत :भूत को भूलो ,जो काम भूले उनको  याद करो और  उन्हें करो  तो भूत  कभी याद  नहीं  आएगा ,और हाँ कभी सतायेगा  भी नहीं   l 
  
संजय जोशी " सजग "

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