गुरुवार, 29 अगस्त 2013

व्यंग्य ---------- *चुगली की गुगली*






                                             *चुगली की गुगली*
युग कोई सा  भी हो .हर युग  में चुगली की अपनी अहम भूमिका रही है Iप्राचीन काल में राज दरबार  भी इससे अछूते नही थे ,राजा हो या  रंक , अफसर हो या चपरासी,नेता हो या कार्यकर्ता ,बालीवुड हो या हालीवुड  टीचर  हो या बच्चे ,घर और परिवार ,हर स्तर पर चुगली की अपनी तूती बोलती है I 
 
             चुगली क्रिकेट की गुगली  बाल  की तरह होती ,जेसे बेट्स मेंन को गुगली  बाल  समझ में नही आती और चकमा देकर  क्लीन बोल्ड कर देती है गुगली  बाल का खौफ हर बेट्स मेन को होता है वेसे ही चुगली किधर से होजाती ..और जिसकी होती है उसे क्लीन  बोल्ड  कर देती  है I,हर कोई चुगली के खौफ से त्रस्त रहता है I मनुष्य के  समय  को ऐसी गतिविधियां यूँही नष्ट करती रहती है और  तनाव को बढ़ाने में उत्प्रेरक का  काम करती  है I

 चुगली सुनना एक कला है और करना उससे  भी बड़ी कला I  चुगली  करने वाले की नस्ल कुछ हट के होती है ,ये स्वार्थ साधने में सिद्धहस्त होते है ,मौका मिलने पर ये किसी को नही छोड़ते ,वह इस कला में इतने माहिर हो जाते है की बड़ी चतुराई से इसे अंजाम दे देते .है .मनुष्य प्रजाति में  चाहे नर  हो या नारी " कान के कच्चे " की विशेष नस्ल होती है ,वे चुगली करने वाले पर  आँख मूँद कर भरोसा  करते है और बिना सोचे समझे कुछ भी कर  बैठते है अंजाम कुछ भी हो ,सही है  या गलत यह फैसला नही लेते ,चुगली की गुगली नही समझ  पाते Iचुगली करने वाला अपने आप को राजा हरीश चन्द्र जेसा
 मानता है  उसके जेसा सही ..कोई नही है ..,,और चुगली सुनने वाला अपने आप को धर्मराज युधिष्टर समझता है I
            
चुगली आजकल  अवसाद का रूप धारण कर रही है और पूर्वाग्रह से ग्रसित व्यक्ति द्वरा  चुगली की गुगली का मालिक तो भगवान है इस बीमारी ने कई को मौत के मुह में धकेलदिया है और यह काम बदस्तूर जारी है कर्म प्रधान को चुगली  प्रधान ने हर जगह मात दे रखी है ,कोई क्षेत्र इससे अछूता नही है, सतयुग मे एक ही नारद इस भूमिका का निर्वाह करते थे   आजकल  तो पूरी फौज खड़ी है जो चुगली की गुगली कब कर दे पता ही नही चलता ,कर्मशील प्राणी हमेशा भयभीत रहता है  यह चुनौती बन गई है ,जो स्वीकार कर , भोग  लेता है वह मन को मारकर जिन्दा है कहते है चुगली अबला का हथियार था और अभी भी है चुगली के नाम पर हर कोई अबला सा बन जाता है Iचुगली के चंगुल से
आज तक कोई नही बच पाया  भगवान भी इससे नही बच सके ,मनुष्य तो बेचारा है आज मंथरा नही है पर उसके आदर्श पर चलने वाले कई है जो संसार में भरे पड़े है I

    हर दल, हर आफिस हर घर ,हर रिश्ते की चुगली की गुगली को  झेलना शायद आदत
या मजबूरी बन चुकी है  घर इसके विद्यालय है ,ऑफिस .इसके महाविद्यालय है और राजनेतिक दल इसके  विश्व विद्यालय है I


नोट - यह मेरी मोलिक  एवम अप्रकाशित रचना है ...कृपया स्थान  देकर प्रोत्साहित
करे ..आभार और धन्यवाद



संजय जोशी "सजग
७८, गुलमोहर  कालोनी रतलाम

व्यंग्य


                             
     पोलीथिन का मोहपाश

 पोलीथिन  विज्ञानं का वरदान है  और उसका बेग हर मनुष्य के लिए वरदान  वहीं  मूक पशुओ के लिए अभिशाप बन गया है ,जहाँ  इसने उपयोग करो और फेक दो की संस्कृति को जन्म दिया है और  जेसे देश से भ्रष्टाचार न मिट रहा है उसी भांति यह भी नही मिटती दिन दूनी और रात चौगुनी बढ़ जाती है क्योकि हर कोई इसके मोहपाश में जकड़ा हुआ है .
    जब -जब  पोलीथिन पर प्रतिबन्ध की खबर आती है तो कई चेहरों पर मायूसी छा जाती है जेसे लोक पाल और सूचना का अधिकार लागू करने की खबर.से राजनीति में हडकम्प मच जाताहै कभी -कभी  तो लगता है भ्रष्टाचार के बिना देश और पोलीथिन के बिना संस्कृति का चलना  ना मुमकिन  है .जेसे नेता कुर्सी के बिना ,और हम  पोलीथिन बेग  के बिना I


     पोलीथिन ने अपने प्रभाव से दादा जी  कपड़े के  झोले को दुर्लभ और संग्राहलय की वस्तु बना दिया है कभी गलती से दिख जाय तो नई पीड़ी पूछ बेठे यह किस काम आता है तो आश्चर्य नही होगा क्या करे बेचारे . पोलीथिन संस्कृति में  जो जी रहे है ,पहले जमाने में सामान खरीदने के लिए  साथ में बेग ले जाना ग्राहक की मजबूरी थी ,परन्तु आजकल दुकान से लेकर माल वाले तक की मजबूरी हो गई की सामान  अच्छी सी रंगीन.पोलीथिन में रख कर सलीके से दे और .कोई कोई तो ..डबल भी मांग लेते है बेचारों  को देनी पड़तीहै इस प्रतियोगी युग का तकाजा है ..ग्राहक .भगवान का रूप होते है अत: कोई नाराज न हो
वापस जो बुलाना है
  हर सामान और हर हाथ की शोभा बन कर  इठलाती है ओर गलती से कपड़े का बेग दिख जाए तो उसे चिढाती  है और अपने आधुनिकता को प्रदर्शित करती है Iपोलीथिन
आलस्य ,बेफिक्री और गंदगी  की जन्म दात्री ...मानी जा सकती है

      छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी वस्तु इसकी गुलाम लगती है .दूध,सब्जी से लेकर सभी वस्तु का हरण कर लेती है ,मैंने एक सब्जी वाले काका को बोला कि आप पोलीथिन देना बंद क्यों नही करते ,वे बोले  मेरी रोजी रोटी पर लात मारने की सलाह
क्यों दे रहे हो लोग बाग़ इसके बिना सब्जी ही नही लेते कई मेंम साहब तो हर आयटम
की अलग -अलग मांगती  है .मेने पूछा क्यों ,? काका  बोले ..नोकरी में है .ऐसी-की ऐसी फ्रिज में रख दो छांटने  की फुरसत नही मिलती , पोलीथिन  बाद में  कई काम  आती है ....मल्टी परपस है , मेने कहा काका एक काम ..करो .सब्जी .बना कर ही बेचना चालू  क्यों नही कर देते और अच्छा रहेगा   ,हर किसी का ऐसा  ही  हाल है हर दुकानदर की यही व्यथा है यह बला से कम नही है .पोलीथिन बेग दुकानदार के व्यवहार का मापदण्ड है I

     धन्यवाद विज्ञानं पोलीथिन का वरदान दिया ,दुःख तब  होता है जब निरीह पशु की . इससे मौत होती है ,आजकल राष्ट्रीय ध्वज भी इससे अछुता नही वह भी पोलीथिन का बनने लगा .राष्ट्रीय पर्व पर  दिन को सलाम करो और शाम को नाली और सडक पर पड़े देख देश भक्तो का  मस्तक झुक जाना  चाहिए परन्तु..उपयोग करो और फेक दो की संकृति में इतने घुल गये कि..कुछ समझ में  नही आता I अति सर्वत्र वर्जयेत .I पोलीथिन ने संस्कृति को पोली ओर जनता को पंगु  बना दिया है केसे चलेगा जीवन,इसके  बिना  पूर्ण विराम सा महसूस होता है I

     पक्ष और विपक्ष उलझे है अपने स्वार्थ में , उन्हें  देश की ही चिंता नही वे पोलीथिन बेग के  दुष्प्रभाव .की  क्या चिंता करेगें. ..कल्पना से परे है .धृतराष्ट्र. जो है .I.  है भगवान सबको दे सदबुद्धि , मिलकर करे प्रार्थना


 पोलीथिन मुक्त हो सबको आये यह ज्ञान ,मागे भगवान से यही वरदान


 नोट---  यह रचना अप्रकाशित है और मेरी मोलिक है  निवेदन है कृपया स्थान देकर
            प्रोत्साहित करे ....आभार i अप्रकाशन की स्थिति  में  सूचित करे    




संजय जोशी "सजग
७८, गुलमोहर  कालोनी रतलाम
मोब .no ..09827079737

व्यंग्य



                                                 == अप्रैल फूल ==

मेरे मित्र जो पेशे से सरकारी स्कूल में हेड मास्टर के पद पर पदासीन है ,चर्चा ही चर्चा में अप्रैल फूल यानि मूर्ख दिवस 1 अप्रेल को ही क्यों मनाया जाता है इस विषय ने तगड़ी बहस को जन्म दे दिया और इस पर बहस चल पड़ी , मै सहजता से पूछ बेठा की मूर्ख की क्या परिभाषा है आपके दैनिक जीवन में इस शब्द का महत्व पूर्ण स्थान है ,मास्टर जी बगले झाकने लगे और कहने लगे की कभी गम्भीरता  से इस पर  चिन्तन नही किया, मैंने कहा यू भी चिन्तन का आपके पेशे से दूर-दूर तक वास्ता नही है सरकार के अधिकारी जो कहे वो ही तो करना है आपको I मास्टर जी को  यह पता नही बाकि का क्या हाल होगा ,बेचारे बच्चे क्या जाने ,रोज सुनते है सुनना उनकी नियति है I

आपना खुद का सामान्य ज्ञान भी कहाँ ज्यदा है सोचा थोडा बड़ा लिया जाय .,मेरे पास उपलब्ध पुस्तको को उल्टा-पलटा तो विदुर निति से सूक्ष्म ज्ञान प्राप्त हुआ ,आप जानते ही महाभारत काल का  हश्र।फिर भी मुझे तो मास्टर जी को अपना किताबी ज्ञान बाटना ही था सो उन्हें विदुर निति अनुसार मूर्ख किसे कहते है मास्टर जी ने  जिज्ञासा भरी नजरो से मुझे घुरा ...मेने  उन्हें कहा की विदुर निति में ...ऐसे लोगो को मूर्ख कहते है - जो शास्त्र शून्य होकर भी अति घमंडी है ,बिना कर्म के धन प्राप्त करता हो ,अपने कार्य को छोडकर शत्रु के पीछे दोड़ता हो ,मित्र के साथ कपट व्यवहार ,मित्र से द्वेष, विश्वास घात ,झूठ बोलने वाला ,गुरु ,माता ,पिता और महिला का अपमान करता हो,आलसी हो ,बिना किसी काम का  हो  वह मूर्ख की श्रेणी में आते है I स्वयं दूषित आचरण करता हो और दुसरो के दोष की निंदा करता हो वह महामूर्ख कहलाता है I मास्टर जी बोले इस प्रकार  धरा पर कोई भी इससे अछुता नही है, ,हम बेचारे छात्रों को अपमानित करते रहते है पढ़ा लिखा मूर्ख अनपढ़ मूर्ख से अधिक मूर्ख होता है , हमारा देश मूर्खो और महामूर्खो से भरा पड़ा है I

हमारे देश में एक जुमला प्रसिद्ध है की मूर्ख मकान बनाते है और बुद्धिमान उसमे रहते है एक बार मकान किराए पर लेकर जिन्दगी भर मकान मालिक को मूर्ख बनाते  रहते है  और कोर्ट तक चप्पले घिसवाते है Iचुनाव में वोट  के लिए चापलूसी कर फिर जनता को पांच साल तक जनता को मूर्ख बनाते है और हम सहते रहते है , मंदी की मार का खोप बताकर सरकर कीमते बड़ाकर जनता को आये दिन मूर्ख बनाती है  है इमानदार टेक्स चुकता है और मूर्ख उसका आनन्द लेते I मुर्खता की भांग देश में घुली पड़ी है हर एक दुसरे को मूर्ख बनाता है ओर समझता भी है I

मास्टर जी  को हताश होते देख कर उन्हें बतया की देश में कुछ बुद्धि जीवी है जो  अपने आप को  कालिदास के वशंज मानते है वे फिर अपने तेवर में आगये ,और देश के नेताओ और सरकारी तन्त्र के सरकारी अफसरों को कोसने लगे इन्ही सबने मिलकर देश का बंटा ढाल कर दिया ,मुर्खता पर नोबल पुरुस्कार यदि होता हो तो देश के किसी  नामी गिरामी भ्रष्ट को ही मिलता ,उनका आवेग देख कर उन्हें रोकने के लिए 'इडियट "फिल्म का उदाहरण देकर सामान्य करने की कोशिश करने प्रयास किया  की इस फिल्म ने यही धारणा को उजागर किया की मूर्ख महान होते है वे इश्वर की सर्वोतम कृति है देश में यह किस्म बड़ी तादाद पाई जाती है

मूर्खता करना हमारा  जन्म सिद्ध अधिकार है जब तक सूरज -चाँद रहेगे मूर्ख ओर मुर्खता जिन्दा रहेगी ,मास्टर जी गर्वित होकर बोले हम तो बचपन से ही एसी प्रतिभा को पहचान लेते है और मूर्ख कह देते है बनना तो निश्चित है हम  भावी पीडी के जनक ठहरे है इनकी नीव स्कूल ,कालेज ..से ही शुरू होती है हम जेसे बुद्धि जीवी इसके दाता है I मेने कहा धन्य है मास्टर जी मुझे आज पता चला है की आप मूर्ख प्रदाता है इस देश को I मुझे मुर्खता से इतनी तकलीफ नही होती ,जितनी इसे ही अपना गुण समझने वालो से ,केवल मृत व्यक्ति और मूर्ख अपनी राय नही बदलतेIमूर्खता  के आलावा कुछ  पाप नही होता है Iमुर्खता सब कर लेगी पर बुद्धि का आदर कभी नही करेगी ,अत: मास्टर जी सोचो हम कहाँ है I

मूर्ख और मूर्खता को  सहेज ने के लिए देश में कई मंचो ने  अनेक कार्यक्रम लांच कर रखे है जो मूर्ख और मूर्खता को स्वीकार करने में नही हिचकते और पूरी मुस्तेदी से वर्ष भर अंजाम देकर एक दिन उसको अभिव्यक्त करते नही थकते जेसे मूर्ख ,महामूर्ख .टेपा खांपा,कबाड़ा गुलाट आदि सम्मेलन है  इनका जन्म भी  इसी लिए  हुआ  जो आपने आप को मूर्ख मान कर उपहास करने उपक्रम करते है .मूर्खता का अंत सम्भव नही लगता है और हम १ को अप्रैल फूल यु  ही मनाते रहेगे I जो मूर्ख की श्रेणी में आते हो और अपने दिल से माने ..उन सभी को..अप्रैल  फूल की बधाई .....I

व्यंग्य

            
                                    रोंगटे खड़े होने का मौसम 



           
         हमारे देश में रोंगटे  खड़े होने का  समय चल रहा  है शीत लहर में जहाँ मुंह  खोलना
                
मुश्किल होता है फिर भी हर किसी के मुहं  से निकल जाता उफ़ .कितनी  कड़ाके
                
की ठण्ड है की  रोंगटे  खड़े हो रहे है।
                
दो  बच्चियां  स्कूल में प्रवेश करते हुए आपस में चर्चा  कर  रही थी की ठण्ड का मौसम
 
        कितना बेकार  होता है की स्कूल  जाने का मन ही नही होता कितनी ठण्ड लगती है ...
 
        की  रोंगटे  खड़े कर  देती है ...पापा मम्मी  और टीचर को समझ में  ही नही आती कितनी
 
        तकलीफ होती है तभी .मेरे  जेहन में ..कई  विचारो ..का  जन्म हुआ  बेचारे  बच्चों  के तो 
 
        रोंगटे केवल ठण्ड से ही खड़े होते .है .लेकिन   .पापा मम्मी  और टीचर के  तो   ठण्ड के अलावा
 
        और भी कारणों  से  रोंगटे  खड़े  हो जाते है ...बेचारे  बच्चे क्या जाने  वे .कितने मासूम और
 
        कोमल होते है
               
अभी  हाल में दिल्ली रेप कांड की वीभत्स  घटना   को सुनकर ..सबके  रोंगटे  खड़े
               
हो गये  और पूरे  देश को दहला दिया . हर महिला -पुरुष छात्र छात्राओ  के रोम -रोम को  झकझोर
 
        दिया फिर भी सरकार के कान पर जूं तक नही रेंगी  यह  देश  की भोली  जनता का द्दुर्भाग्य है
 
        और हमारे वोट  का सरेआम अपमान है
                        .
 
        गुजरात चुनाव  में मोदी की जीत  से  जहाँ तमाम विरोधी ,खुद की पार्टी के हो या दूसरे
                
छोटे मोटे दल के नेता हो उनके  रोंगटे   खड़े   होगये ..अब हमारा क्या होगा उनके मन में
               
यह द्वन्द  निरंतर प्रवाहित होता  रहेगा  जब तक ...चुनाव न हो जाये।देश की  राजनीति
 
        में कुछ तो वाचालता की हद पार कर  जाते और कुछ  अहम  मौके  पर  भी मौन रहकर  रोंगटे
 
        खड़े  कर देते है .

              
प्रलय की  भविष्य  वाणी   21-12-12  तारीख ने  जन -जन  के मन को भयभीत कर  दिया था
              
बिना सर पैर की भविष्यवाणीयां  चाहे जब  ...होती रहती ..है जो .. रोंगटे   खड़े करने
             
में महत्वपूर्ण भूमिका  अदा करती  है .और   न्यूज़ .चेनल और सनसनी फैला देते है और तथाकथित
             
भविष्य वक्ता आग में घी का काम करते है
                              
       सिलेंडर की संख्या सरकार ने क्या कम करने की घोषणा की , सुनते ही हर  गृहणी  के रोगटे
             
खड़े  होगये और अपने पति को चिड़ा कर जरुर  कहा  होगा की गजब है बाहर खाने के और मौके मिलेगे ,
             
वहीं  दूसरा वर्ग  है जो  घरेलू सिलेंडर का  दुरूपयोग  बड़े आराम से करता है  उनको भी
             
जोर का झटका धीरे से लगा और  रोंगटे  खड़े होगये  अब क्या होगा शान की  सवारी  का I
             
आये   दिन बढ़ते  पेट्रोल के मूल्य  और  अन्य  चीजो के दाम  सुनकर रोंगटे  खड़े होजाते और .वहीपत्नी
             
भी कम कसर नही छोडती ..और  अपना   मांग पत्र .देकर पति  के रोगटे  खड़े कर  देती .है I


               देश में मौसम  सर्द हो या  कैसा  भी हो बेचारे  आम आदमी .के  रोंगटे  खड़े  होने का क्रम निरंतर जरी रहता है
             
हमारे देश के तथाकथित  कर्णधार जो  वातानूकूलित का उपयोग  कर   है   वे क्या जाने ....इसकी अनुभूति
             
क्यों की उनकी सवेदना .को कब की मर चुकी है आमा आदमी के दर्द से क्या वास्ता जिसने महसूस किया .
             
वोही समझ सकता है ....वे तो केवल  घडियाली आंसू   बहाना जानते है जिससे   देश गर्त और गर्त में जा रहा है .

मालवी दिवस

                          
           मालवी दिवस

   दूसरी भाषा के प्रभाव ने  क्षेत्रीय भाषा और बोलियों को गौण  सा  कर दिया है ,ये भाषा और बोलियाँ हमारी संस्कृति का मुख्य आधार है ,धीरे-धीरे लुप्त होने की कगार पर है Iशासन और प्रशासन  इनके सवर्धन के लिए सिर्फ  ओपचरिकताही निभाते है , मालवा अंचल में बोले जाने वाली  सु-मधुर बोली .'मालवी "का भी यही हश्र हो  रहा है मालवा अंचल में गुडी पडवा को  मालवी दिवस के रूप में मनाने का पुनीत कार्य -पिछले २ वर्षो से चल रहा है ,जिससे मालवी को अपनी पहचान बनाने में  सफलता मिल रही है जिसमे प्रिंट मिडिया की महत्व पूर्ण भूमिका है

मालवी दिवस को गुडी पड़वाके दिन मनाने की शुरुआत , जन सामान्य के दिलो दिमाग पर यह प्रश्न उठाना स्वाभविक है इस दिन को क्यों चुना गया ?  , विक्रम संवत  के नये  साल का शुभारम्भ इसी दिन गुडी पड़वा से होता है ,विक्रम संवत की स्थपना  मालवा  से ही हुई अत: यह दिवस 'मालवी दिवस " के लिए उपयुक्त है इसके लिए प्रेरणा स्त्रोत  डॉ शेलेन्द्र  कुमार शर्मा उज्जैन है इस अभियान में झलक सास्कृतिक न्यास उज्जैन  और हल्ला -गुल्ला सहित्य मंच रतलाम का महत्वपूर्ण योगदान है i

मालवा  के भू-भाग  का म.प्र. ही नही पूरे विश्व में गौरवशाली स्थान है ,धार्मिक उदारता सामजिक समभाव ,आर्थिक निश्चितता, कलात्मक समृद्धि संपन्न, विक्रमादित्य भर्तहरी भोज जैसे महानायकों की यह भूमि जहाँ कालिदास, वराहमिहिर जैसे देदीप्यमान नक्षत्रो ने साधना की एवं भगवान की शिक्षा स्थली मालवा ही तो है विश्व का केंद्र स्थान महाकाल मालवा की पहचान है

मालवी का लोक साहित्य सम्रद्ध है परन्तु उचित सरक्षण प्रचार एवं प्रसार के आभाव मे मालवी साहित्य और संस्कृति का लोप होता जा रहा है अतः गुडी पडवा को मालवी दिवस के रूप मे मनाकर इस लोक संस्कृति को नव स्पन्दन प्रदान करेगा
.
इसी आशा के साथ
.
संजय जोशी "सजग"


व्यंग्य

                    भूख और भूख

भूख की व्यथा और कथा अनंता है , पेट की भूख से गरीब पीड़ित है I भूख की गति भूखा ही जान सकता है ,गरीबी का क्या मापदंड है वो सरकार ही जाने बेचारी जनता की समझ  से परे है I जिसने भूख एवं गरीबी देखी है  वो ही इस व्यथा को समझ सकता है , सरकार मे बैठे लोग ये क्या समझेगे , जिन्होंने हमेशा दूसरो का हक छीना और खाया है I पेट की भूख तो खाने के बाद ही शांत हो जाती है और कई तरह की भूख होती है जो कभी भी शांत नही होती है , सबको अशांत करती रहती है I
                          नेताओ को वोट की भूख , चुनाव जीतने के बाद पद की भूख और पद मिलने के बाद नोट की भूख , नोट की भूख इतना व्याकुल कर देती है की भ्रष्टाचार कर लूटते  है , सभी सीमाओ को लाँघ जाते है , फिर भी भूख शांत नही होती , शायद सात पीढ़ी की भूख को शांत करने के लिए ऐसा करते है I
                          बॉलीवुड मे शोहरत की भूख के कारण अभिनेत्रियों के कपड़े सिकुड़ते जा रहे है , अंग प्रदर्शन बढता जा रहा है , जो हमारी संस्कृति को विकृत करता जा रहा है I डॉक्टरो की धन की भूख से फीस , कमीशन और गिफ्ट से
डॉक्टरो की प्रतिष्ठा का पतन जारी  है और निरंतर जारी रहेगा I विद्या के मंदिर भी धन की भूख से अछूते नही है, शिक्षा पर धन किस तरह हावी है सब जानते है I शिक्षक की  ट्यूशन की भूख जग जाहिर है I कवियों को वाह...वाह...! की भूख के कारण स्तरहीन एवं द्विअर्थी संवादों का चलन बढता जा रहा है I महिलाओ को आभूषण की भूख , आसमान छू रहे चांदी-सोने की कीमतों से भी कम नही हो रही है , चाहे कितने भी भाव बढ जाये ,भूख बढती जाएगी I
                            किसी ने सही ही कहा है की संतुष्टि मृत्यु है अत: सभी सामाजिक प्राणियों ने किसी न किसी भूख को गले लगा रखा है , जैसे दृश्य मीडिया को ब्रेकिंग न्यूज़ की भूख , समाचार पत्रों को पहले पेज पर अच्छी खबर की भूख , प्रेमी-प्रेमिकाओ को प्यार की भूख , बस वालो को सवारी की भूख , चैनल वालो को टी.आर.पी . की भूख , धर्म गुरु को भक्तो की भूख, भक्त होंगे तो धन अपने आप आ जायेगा I विद्यार्थियो को अच्छे नंबर की भूख कभी शांत नही होती I
बेटे की चाहत की भूख से रोज़ हो रही भ्रूण हत्या I हर कही भूख ही भूख का माहोल है I  भूख ने सामाजिक परिवेश को छिन्न - भिन्न कर दिया है I जो जितना बड़ा आदमी है उसकी भूख उतनी बड़ी है तो बेचारे गरीब की भूख कौन सोचेगा और समझेगा I
                                 कोई नही भूख हरता I
                           भूख कथा है अनंता II

संजय जोशी "सजग"

व्यंग्य

                            
               व्यंग्य
                                      मोर्निंग वाक और मोबाईल 

 जब से  चलित दूरभाष [मोबाईल ] की क्रांति हुई है  तब से मोबाईल लेकर घूमने की  परम्परा अपने आप शुरू  हो     गई चलते हुए बात करना फैशन सा होगया और ऐसा  करने वाला अपने आप को आधुनिक  समझता हैसुबह और शाम  के भ्रमण  क बात ही कुछ और है पैदल घूमना स्वास्थ्य  के लिए बहुत लाभकारी है  डॉक्टर कहता है खूब घूमो  परन्तु बेचारा मोबाईल लेकर घूमता है जो  आजकल  सबका प्रिय सब   उसके  इतने  बड़े  दास हो गये  की उसके बिना पल पर भी नह रह सकते .....में भी जाता हूँ   मेरे साथ होता है मेरा भी परम प्रिय  ....उसके बिना जीवन अधूरा सा लगता है प्रात:भ्रमण में सीनियर सिटीजन घूमने  की पूरी आचार संहिता का पालन करते है ....वो  इसे आपने साथ नही रखते वे इसे  बीमारी  की जड़ कहते है .मुझे ..ऐसे ही सीनियर  सिटीजन .....शर्मा जी .....मिले .मैंने  उनसे पूछा कि  परम श्रद्धेय .शर्मा जी आप  मोबाईल ....साथ  नही रखते क्या ? वे सुनते ही आग बबूला  हो गये मैंने कहा मुझसे क्या गलती हो गई आप खामख्वाह नाराज हो गये उसके  बाद उन्होंने   प्रात भ्रमण  करने वालो के बारे  में कुछ इस तरह बंया किया कि हम तो  पुरे वर्ष  ...ही  प्रतिदिन  घूमते  है ...हमारी सेहत का यही राज है हम जैसे लोग बिरले  ही होते है वरना आजकल तो लोग  दिखावा ज्यदा करते है लगता है घूमने नहीं मोबाईल पर बात करने ही  निकले है हमारा तो केवल एक सूत्रीय कार्यक्रम है ..परन्तु दो और तीन सूत्रीय वाले भी मिलेंगे  ,.द्विसुत्रीय का  घूमने पर कम मोबाईल पर ज्यादा   ध्यान  होता है  किसी  को  टक्कर क्योकि  मारकर   गिरा दे वह  तो मोबाईल में  मशगूल  है और तीन  सूत्रीय  वाले का तो भगवान ही मालिक है एक हाथ में कुत्ता  और दूसरे  हाथ में मोबाईल इनकी स्थिति विचित्र होती है .दूसरो  को  अपना  ध्यान रखना पड़ता है कुत्ता  कहीं काट  न  खाए  पता ही नही खुद घूमने  निकला है, कुत्ते को घुमाने या मोबाईल पर बात करने .शर्माजी जी की  व्यथा  और कथा  निरंतर जारी  थी लग रहा  था कि बरस की  भड़ास निकाल  रहे थे .बारिश और ठण्ड में तो कोई नही आता गर्मी आते ही  घूमने  वालो की बाढ़  सी  आजाती  है बैचारे ट्रेक  सूट और स्पोर्टस  शू  की किस्मत के वे वारे न्यारे   हो जाते है ..जो  साल भर  में  तीन या चार महीने  ही हवा खा पाते  है ...फिर कैद कर  दिए जाते है वो भी अपनी किस्मत को कोसते है हमसे अच्छी ..तो ..मोबाईल की किस्मत है.जिसे  .सब अपनी  जान से भी ज्यादा  चाहते है .......I

                

व्यंग्य



                                     मानसून का आना ...........
  
    

            आजकल मानसून भी बिना बुलाये कहाँ  आता  है , कई मिन्नतो , प्रार्थना ,देवी ,देवताओ को मनाने के बाद आता है मानसून का आना समृधि का सूचक  और जीवनं में  आशा और उत्त्साह का संचार करता है ,किसानो के मायूस चेहरे पर चमक आजाती है धरती  हरियाली की चादर से  ढक जाती है सूखे  नदी नालो में भी ...जलप्रवाह होने लगता है नये प्रेमी  युगल मानसून की वर्षा में भीगने  का भरपूर आनंद लेते हुए .....पहली  बारिश तू और में ....   भीगकर आपनी हसरत पूरी करते है मानसून का आना तपन से मुक्ति देता है वही बिजली के बिल में कमी करता है ...बारिश प्रेमी कवि अपनी लेखनी सक्रिय कर देते है बारिश , सावन और श्रंगार पर लिख कर मादकता  बड़ाने में उत्प्रेरक का काम.... करते है

मानसून का आगमन .से ..वीरान पड़े ..पिकनिक  स्थलों पर रोनक आजाती है .....नदी .तालाबो ..में  भरा जल जोश भर देता है .....जेसा  ..इतना पानी ..कभी देखा ही नही ....और   कभी शायद देखने को न मिले ......और ..होश  खो देते है .........और  अनहोनी हो जाती है ....

     मानसून आते ही तथाकथित समाज सेवी ,वृक्ष प्रेमी ,वृक्षारोपण का अभियान हर वर्ष की तरह पूरे जोर शोर के साथ शुरू करते है ......पिछले वर्ष के कितने पोधे विकसित हुए ....उन्हें क्या करना ...हमारे देश की विडम्बना है ..बस वृक्षा रोपण करो ,समाचार पत्रों में फोटो .स्थानीय चेनलो में वीडियो क्लिप आना चहिये .....प्रसिद्धि पाने का यह भी एक नुस्खा है .
मानसून के बाद  धर्म गंगा  प्रवाह  होने लगता तीज और त्योहारों के देश में ....इसी मोसम में  ज्यादा आते है ...सावन तो शिव भक्तो के लिए  शिव बूटी  का वरदान  लेकर आता है .....सब भंग की पिन्नक से सरोबर रहते ....है ..बारिश का यह  मोसम में घर में रहकर .....बारिश का आनन्द लो ..गरमा-गरम  पकोड़े का खाओ .....इस मोसम में तेल बिक्री ....बड़ना..स्वभाविक ..है .....


मानसून का आना भ्रष्टो की नीद उड़ा देता है ...निर्माण कार्यो की परीक्षा जो अपने आप हो जाती है ....बांध ,स्टाप डेम का बहना ,सरकारी नव निर्मित  भवनों  का रिसना ,सडक उखड़ना ...सड़के ऐसी हो जाती है ...सडक में गड्डे या गड्डे में सडक है ..पता ही नही चलता ....घटिया निर्माण
की पोल खुल जाती है ..आरोप -प्रत्यारोप का दोर शुरू होजाता है ..........मानसून ..पूर्व ..की तेयारी का ढिढोरा ऐसा पिटते है की .....सब कुछ तेयारी ....है ....सब टायं-टायं ..फ़ीस हो जाता है ......वही ..ढ़ाक की तीन पात .........

   मानसून का कहर जहाँ निचली  बस्ती में तबाही मचाता है .......भ्रष्टचार का नया अध्याय ..शुरू हो जाता है ..बाड़ पीडितो के नाम पर मिलने वाली ...राहत किसे मिलती है .......भगवान ही जाने .....बाढ़ पीडितो के मासूम  चेहरों ,दया की भीख भ्रष्टाचार ..के सामने बोनी लगती है ...
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मानसून का आना कहीं.ख़ुशी कहीं गम लाता है .......

व्यंग्य



                                                       
चैन  से बेचैन

हर दिन सोने की चैन खीचने की घटनाएं  घट  रही है घटना की शिकार प्राय: महिलाए ही होती है स्वर्णप्रिय जो होती है चैन खीचने की घटना के समाचार पड़कर हर कोई बेचैन हो जाता है I सोने के भाव आसमान छु रहे है फिर भी सोने के प्रति मोह बरकरार  है I न्यूटन के नियमानुसार "प्रत्येक क्रिया की प्रतिक्रिया होती है" सोने के भावो में बडोतरी के और अधिक लगाव होता जारहा है और  न  ही मंदी का असर नजर नही आता हैI

जिसकी चैन खिचती है उसके धन की बर्बादी के साथ ही सुख और शांति को भी ग्रहण लग जाता है हमारी कालोनी मे भी  एक महिला भी चैन से बेचैन हो गई और उसके बाद उसको  बेचैन करने में कई लोगो ने अहम भूमिका निभाई यह हमारी शासकीय और समाजिक परम्परा का मुख्य आधार है Iहर कोई अपना  दायित्व पूरा करना अपना फर्ज समझता है ओर बेचैन को और बेचैन करने का पूर्ण प्रयास करता हैI

चैन से बेचैन होने की प्रथम मानसिक यन्त्रणा भोगने के बाद ,दुसरे चरण  में थाने में रिपोर्ट लिखाने के बाद शुरू होती है थानेदार यदि समझदार है तो घटना स्थल का मुआयना कर पूरा ब्यौरा लेता है.और नही तो .प्रश्नों की झड़ी लगा देता है और वो भी  उल्टे -सीधे प्रश्न पूछ  मानसिक  वेदना को और बड़ा देता है सब जानते है कुछ होना नही है सिर्फ ओपचारिकता मात्र है आजतक चैन सुपुर्दगी  के समचार पड़ने को नही मिलते ,ऐसे समाचारों के लिए आखें तरसती रहती है I रपट के बाद  हमेशा की तरह  रटा -रटाया बयान,अज्ञात अपराधी पर प्रकरण दर्ज  कर  जाँच जारी है  अँधेरे में तीर चलाने जेसा लगता है .पर क्या करे जाँच अनंत कल तक  चलती रहेगी ,परिणाम शून्य यह हम सब जानते है  इसलिए चिंता नही करते है I

मानसिक यन्त्रणा का तीसरा चरण हमारे अड़ोसी -पड़ोसी एवं मोहल्ले /कालोनी वाले होते है जो मन ही मन तो खुश  होते है पर समाजिक  जिम्मेदारी का ढोंग करते हुए पूरी घटना की तहकीकात बड़ी  मुस्तेदी से करते की कोई  पहलू  छुटे ना ,चेन से बेचैन को ओर बेचैन करने में कोई कसर  बाकि नही रखतेIचेन से बेचैन हुआ भगवान से प्रार्थना करता होगा की ,जो जाना था वह चला गया पर इन प्रश्न दर प्रश्न पूछने वालो से मुक्ति दे १५ -२० से अधिक बार घटना को  बयान कर चूका हु  अब और शक्ति नही ,भगवान भी कहते होगे  अभी तो रिश्तेदार बाकि है और भुगतने को तेयार हो जा I न्यूज चेनल की तरह दोहराते रहो I हर को कोई आपसे से ही  सुनना चाहता है चैन से बेचैन की जुबानी ,कोन किसकी परवाह करता है सवेंदना हीन  होते जारहे समाज में किसी दुःख से किसको फर्क पड़ता है बेचैन को और बेचैन करने मेंI



संजय जोशी "सजग"

व्यंग्य

                 मॉल का कमाल
आजकल
मॉल संस्कृति का अभिन्न अंग हो गया है , मॉल संस्कृति ने बदल दी है जीवन की आकृति और हर कोई मॉल के माल का आदि हो गया है
         
मॉल के माल की गुणगान करने वालो की कमी नही है और थकते भी नही है - मै अपने मित्र के घर किसी कार्य से मिलने गया , बातचीत के दोरान विदेशी किराना(मॉल) की चर्चा हो रही थी , जो अभी सबसे गरम मुद्दा चल रहा है , इसी बीच मित्र की पत्नी आ धमकी और विपक्ष की नेता की तरह चर्चा मै कूद पड़ी और मॉल पुराण का बखान शुरू कर दिया .......I
           अपने पति को कोसते जा रही थी, बिचारा पति निरीह प्राणी की तरह सब सहता जा रहा था , ये ऑफिस से आकार फेसबुक मय हो जाते ,घर -परिवार की चिंता करना सिर्फ मेरा ही काम बचा है ,अच्छा हुआ की .... मॉल खुल गए ,मॉल जाओ भरपूर सामान ले आओ...वाह !!! कितनी सुविधा होती है मॉल मै , बच्चो के लिए खेल ,सबके लिये मल्टीप्लेक्स सिनेमा , और देर हो जाये तो कहा-पी भी लो , सब तरह का सामान एक जगह और स्कीम का फायदा सो अलग I कैश की भी चिंता नही , क्रेडिट कार्ड की सुविधा भी होती है.......मॉल गजब का आविष्कार है ....शुक्र भगवान का..,खरीदो , खाओ , पिक्चर देख कर घर आ जाओ , कितना सुकून मिलता है I मुझे शौपिंग का बहुत शोक है , आजकल मॉल पर्यटन स्थल से काम नही है , वो अकेली बोली जा रही थी , मै और मेरा मित्र उसकी बातो को झेल रहे थे I मै तो उसकी मॉल के माल के प्रति उसकी दीवानगी को प्रणाम कर रहा था , वाही मेरा मित्र अन्दर ही अन्दर विचलित नजर आ रहा था I मैंने कहा आप भी कुछ बोलिए तो,उसने जबान खोली ,और कहा,मॉल जाने के बाद , घर गोदाम की तरह हो जाता है ,ये तोह कुछ समझती ही नही , एसे शौपिंग करती है जैसे दुबारा आने का मोका ही नही मिलेगा ......I मेरे मुताबिक , मॉल जिव के जंजाल हो गए है ,घायल की गति घायल ही जाने I मॉल का माल खरीदने मै महिलाये , सौदेबाजी करने का इश्वर प्राप्त वरदान समाप्त होता जा रहा है I स्वार्थ के वशीभूत स्कीम का पूरा लाभ उठाने के चक्कर मै पूरा बजट तहस नहस कर देती है......भारतीय अर्थव्यवस्था  की तरह...I उपयोगिता और सार्थकता मै लम्बी दुरी हो जाती है I
           दोनों के ही विचारो ने अपने तठस्थ विचारो ने मेरे मान - मस्तिक्ष को झंकृत कर दिया और मॉल संस्कृति के बारे मै ज्ञान का दीपक जला दिया है I जाओ मॉल जाओ , खूब जाओ , बाकी सब भूल जाओ ---मॉल हमारी क्रय शक्ति का आईना है I जो हमरी आर्थिक व्यवस्था को उजागर करती है जरुरत एक की होती है दूसरा स्कीम मै अपने आप आ जाता है .....जय हो मॉल के माल की....I


संजय जोशी "सजग"

मंगलवार, 27 अगस्त 2013

कृष्ण जेसा महानायक नही
कृष्ण जेसा उपदेशक नही
कलीयुग में है ये बड़ी व्यथा
कृष्ण जेसा आदर्श प्रेमी नही
--- संजय जोशी 'सजग "--    


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जन्माअष्टमी
धरा है कृष्ण मय
आनन्दभयो
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कृष्ण है दिव्य
प्रेम और माधुर्य
सर्वाकर्षक
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गीता का ज्ञान
कर्मानुसार फल
यही जीवन

शनिवार, 24 अगस्त 2013

पहाड़


तोडती हाड़
बढती महंगाई
जेसे पहाड़

वृक्ष ,पहाड़
प्रकृति के रक्षक
हम  भक्षक

राई प्रयास
असीम सफलता
पर्वत माला

प्रकृति रंग
पहाड़, वृक्ष संग
मिले उमंग

ऊँचा हो लक्ष्य
पहाड़ सा ह्रदय
विशाल मन


प्रकृति भक्ति
पहाड़ सी हो शक्ति
सहनशील

जय माता की
पहाड़ो में बसती
रौनक  लाती


करे तपस्या
ऊँची पवर्तमाला
ऋषि व मुनि


संजय जोशी "सजग '

रविवार, 18 अगस्त 2013

@@@@@@रक्षा बंधन @@@@@@@
मंगल अभिनिवेश का है यह त्यौहार
पवित्र ,हर्ष,उल्लास का है यह त्यौहार
रक्षा बंधन होता रक्षा का का पावन सूत्र
भाई बहन के असीम स्नेह का है यह त्यौहार

--------------- संजय जोशी "सजग "----------    

शुक्रवार, 16 अगस्त 2013

             मुक्तक

हर पल होता समय में बदलाव
हर क्षण जीवन में आता बदलाव
कल चक्र से न बचा राजा या रंक
हर परिस्थिती में आता है बदलाव

                                            संजय जोशी 'सजग "