बुधवार, 7 मई 2014

मॉर्निंग वाक और मोबाइल [व्यंग्य ]


          मॉर्निंग
वाक और मोबाइल
  [व्यंग्य ]

     जब से चलित दूरभाष [मोबाइ ] की क्रांति हुई है  तब से मोबाइ लेकर घूमने की  परम्परा अपने आप शुरू हो गई चलते हुए बात करना फैशन हो गया और ऐसा  करने वाला मानो अपने आप को आधुनिक दर्शाने का उपक्रम करता है सुबह और शाम  के भ्रमण  करने की बात ही कुछ ओर है पैदल घूमना स्वास्थ्य  के लिए लाभकारी है  ऐसा डॉक्टर कहते है खूब घूमो इसलिए घूमता है पर  आदत  से लाचार है इसलिए  बेचारा मोबाइ लेकर घूमता है आजकल  सबका  परम प्रिय जो बन गया है सब उसके बड़े  दास हो गये है कि लगता है उसके बिना पल पर भी नहीं रह सकते क्योंकि  वह उसे यह अहसास कराता है कि  दुनिया मेरी  मुट्ठी में है मुझे भी मोबाइफोबिया हो गया है और हमेशा वह मेरे साथ होता है यह  मेरी .जान से भी  प्यारा   है और सामाजिक  संबधो का पिटारा .इसके बिना जीवन अधूरा सा लगता है l
  
   मैंने एक अनुभव किया कि प्रात:भ्रमण के दौरान सीनियर सीटिजन घूमने
  की पूरी आचार संहिता का पालन करते है वह इस पिटारे को अपने साथ नही रखते वे इसे  बीमारी  की जड़ मानते हैl मुझे .ऐसे ही सीनियर  सीटिजन श्री शर्मा जी .....मिले .मैंने  उनसे पूछा कि  परम श्रद्धेय .शर्मा जी आप  मोबाइल साथ  क्यों  नही रखते वे सुनते ही आग बबूला हो गये में सहम गया मैंने   विनम्रता  से कहा मुझसे क्या गलती हो गई आप खामख्वाह नाराज हो गये ,इसके बाद उन्होंने   प्रात: भ्रमण करने वालो के बारे  में सब कुछ बयां कर  डाला , कुछ इस तरह कि हम तो पूरे वर्ष  ही  प्रतिदिन घूमते  है और यह दिनचर्या का अहम हिस्सा है  हमारी सेहत का भी यही राज है हम जैसे लोग बिरले ही होते है इसी  मॉर्निंग वाक कि वजह से हम आपके सामने है वरना आजकल तो जीवन रेखा छोटी होती जा रही है लोग  दिखावा ज्यादा करते है l

    उनका शाब्दिक प्रवाह  निरंतर जारी था उनके अनुसार कुछ लोग घूमने
 नहीं मोबाइ पर बात करने ही  निकलते है हमारा तो केवल एक सूत्रीय कार्यक्रम है घूमो  और सेहत को चूमो ,जब से मोबाइल क्या आया मॉर्निंग वाक.के उद्देश्य का सत्यानाश कर  दिया मेरे  अनुभव व सूक्ष्म ज्ञान के मुताबिक अब इसका स्वरूप इस कदर बिगड गया .अब आपको मॉर्निंग वाक पर दो और तीन सूत्रीय वाले ही मिलेंगे एक सूत्रीय वाले  हम जैसे बड़ी मुश्किल से मिलेंगे ,द्विसूत्रीय वालों  का  घूमने पर कम मोबाइ पर  ध्यान ज्यादा  होता है वे  किसी से भी टकरा जाते है क्योकि  इस श्रेणी वाला तो मोबाइल से बातचीत में  मशगूल रहता  है और  विशेष टाइप के तीन  सूत्रीय  वाले   होते है उनका तो भगवान ही मालिक है एक हाथ में कुत्ता  और दूसरे  हाथ में मोबाइल इनकी स्थिति विचित्र होती है .दूसरो  को उनसे बचते हुए अपना  ध्यान रखना पड़ता है वह मोबाइल  में मस्त और व्यस्त है  उनका कुत्ता  कहीं काट न  खाए का डर हमेशा बना रहता है पता ही नही खुद घूमने  निकला है, कुत्ते को घुमाने या मोबाइल पर बात करने  .I दिसूत्रीय और त्रिसूत्रीय  एक सूत्रीय वाले के लिए परेशानी का कारण बन इठलाते हैl और कमबख्त चुनाव के समय तो और भी खराब हो जाता है शुद्ध हवा में चुनावी बयार घुलने से एक विचित्र बेचैनी होने लगती है और घूमने का मजा किरकिरा हो जाता है l  
    शर्माजी जी की
  व्यथा की  कथा  निरंतर जारी थी लग रहा  था कि बरसों  की  भड़ास निकाल  रहे हैं .उनकी   व्यथा  बिलकुल सही थी l बारिश और ठण्ड में तो कोई नही आता गर्मी आते ही घूमने  वालो की बाढ़  सी आ जाती है ,बैचारे ट्रेक  सूट और स्पोर्टस  शू  की किस्मत के वे वारे न्यारे   हो जाते है जो साल भर  में दो या तीन महीने ही हवा खा पाते  है फिर कैद कर  दिए जाते है वो भी अपनी किस्मत को कोसते होंगे काश हमारी भी किस्मत ऐसी  होती कि हमेंशा साथ  रहें ..मोबाइल की तरह .जिसे सब अपनी  जान से भी ज्यादा  चाहते है और हमेशा अपने से चिपकाये रहते है l


रविवार, 4 मई 2014

आज विश्व हास्य दिवस है ....आज तो मुस्कराइए ......[व्यंग्य ]








आज तो मुस्कराइए ......[व्यंग्य ]

आज विश्व मुस्कान  दिवस के अवसर पर मुस्कुराना हमारी मजबूरी है औपचारिकता का तकाजा है आज जो हंसने का अभिनय नही करेगा उसे आधुनिक नही माना जायगा .आज सभी इलेक्ट्रानिक संचार माध्यम मुस्कान को बिखेरेंगे ,विश्व मुस्कान  दिवस में अपनी भागीदारी  दर्ज करने में व्यस्त रहेंगे

       सच में हम ईश्वर  प्रदत्त मुस्कान भूल  गये है ऐसे में  दिवस  याद दिलाते रहेंगे कि मुस्कान भी जीवन के लिये  जरूरी है क्योंकि आजकल  नेचरल मुस्कान की  जगह  सांकेतिक मुस्कान का दौर चल रहा है .इंटरनेट ओर मोबाईल .....से  आभास ..होता रहता है ...दिल से हँसना अब बचा कहाँ है 

  कोई जबरन  बनावटी मुस्कुराहट  बिखेरता है  तो कुटिलता की श्रेणी में माना  जाता है मुस्कुराहट जीवन से ऐसे गायब  है जैसे गधे के सिर से सींग योंग ध्यान के महायोगी भी  शरीर के अंदर से मुस्कुराहट खींचने में सफल नही हो पाये है क्योकि तनाव सब पर भारी है उन्मुक्त हंसी  तो अब  सिर्फ . ...टूथ पेस्ट के विज्ञापन में ही नजर आती है

हँसना और मुस्कुराना सामाजिक परिवेश पर भी निर्भर करता है  ,वर्तमान प्राकृतिक राजनीतिक .सामजिक ..व्यथा इसकी अनुमति नहीं देती ..और रही सही कसर हमारे न्यूज़ चैनल्स किसी भी मुद्दे  के चिंता  करने की ठेकेदारी ...इनकी ही तो है ये मुस्कान को  उभरने ही नहीं देते

  बच्चे शिक्षा के बोझ तले उन्मुक्त और सहज हंसी से वंचित है मजे तो हमने खूब किये हमारे जमाने में.ये बेचारे  मुस्कराना ही नही जानते तो ..खिलखिलाहट ....की क्या बात करें हंसने मुस्कराने की क्षमता  भगवान ने केवल मनुष्य  को ही दी अन्य प्राणियों को नही मनुष्य फिर भी न हँसता है न हसंने देता  हैं, इसका मतलब  शायद .हम ..पशुता की और अग्रसर है मुस्कराना भी एक कला है और जो दूसरों को मुस्कराने को मजबूर कर दे वह महा कला है .मुस्कान भी कोटि -कोटि की होती है जो इसे सही पहचाने वह महामानव होता है
     मुस्कान स्वास्थ्य को अच्छा और रक्त संचार नियंत्रित रखती है यह डाँक्टर का काम करती है अत:डाँक्टर मुस्कान कह सकते है मुस्कान एक  अस्त्र का काम भी करती है जो कई को  घायल और कायल बना देती है एक मुस्कान बदले आपकी जिन्दगी ...मुस्कुराते रहिये


मेरे मित्र हंसमुख भाई ..मिले मैंने उनसे कहा . एक बार मुस्कुरा दो वह बोल उठे क्यों मैंने कहा ..भाई ..आज विश्व मुस्कान दिवस है . वे सड़ा सा मुँह बना के बोले कैसे हंसू देश और समाज का सत्यानाश हो गया है दर्द इतने बढ गये की मुस्कान आती नही बाय चांस भी नही आती क्योकि बचपन में दोस्त कहते थे हंसा की फंसा   उसे आज तक मान रहा हूँ मैंने छेड़ते हुए कहा कि  आपका नाम  हंसमुख  किसने रखदिया वह बोले ..नाम में क्या धरा है हंसमुख की व्यथा सही थी कदम -कदम पर जीवन की राह कठिन ,बढती महंगाई, बढ़ते अत्याचार, बलात्कार ,भ्रष्टाचार ,झूठ ,फरेब ऊपर से घोर मंदी गिरते रुपये   के चलते मुस्कराहट न आना लाजमी है
      अपराधी चुस्त ,सरकार सुस्त ..हम कैसे रहे तंदरुस्त  ..ने आम आदमी ..की ख़ुशी और मुस्कान को  ग्रहण लगा दिया है .मुस्कान मांगने पर भी नही मिलती ....फिर भी आज तो मुस्कराइए ......

संजय जोशी 'सजग '