मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

नव वर्ष की शुभकामनाए

नव वर्ष की शुभकामनाए
     १
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सुख समृद्धि
मिले जग प्रसिद्धि
यही कामना
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     २
नूतन  वर्ष
उम्मीद और हर्ष
बड़े उत्कर्ष
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   ३
बदला साल
संकल्प हो विशाल
बने मिसाल
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      ४
अभिनन्दन
नव वर्ष वन्दन
शुभकामनाए
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        ५

बढे सम्मान
नव बर्ष मंगल
छाए खुशिया
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------------संजय जोशी "सजग "

शनिवार, 21 दिसंबर 2013

टेंशन का भूत

                             
                                                  
                                                               टेंशन का भूत
   
       मनुष्य प्राणी मात्र  के चारों ओर टेंशन के भूतो का डेरा लगा हुआ है सही  भी  है सभी टेंशन में मग्न रहते   है और एक दूसरे को टेंशन में देखकर सुख की अनुभूति करते है  अगर गलती से अपनी ख़ुशी का  इजहार कर भी दिया तो आपकी ख़ुशी को दमन करने का षड्यंत्र रच दिया जाता है वे अपने ही होते है जो  टेंशन के इतने आदि है कि न खुश रहेगे और न दूसरो को  रहने देगे  यह सब  आदत बन चुकी है दिल है की मानता ही नही ..बिना टेंशन के I

                         अपुन तो सामजिक प्राणी होने के नाते अपना फर्ज अदा कर मिलने वालो के हाल चाल   यदा-कदा पूछ लेते है हमेशा  की तरह यही सुनने को मिलता है बहुत टेंशन में हूँ क्या करे ,यह  सब राजनीतिक, सामजिक ,राष्ट्रीय .,अंतराष्ट्रीय समस्या की चिंता करने की मानसिकता जो बन गई  है  I

                            टेशन आजकल चर्चा का मुख्य विषय बनता जा रहा है इसके बिना
न कोई चर्चा शुरू होती है न खत्म I यह एक राष्ट्रीय समस्या बन गई है इसकी की न कोई सीमा ,न कोई आकार  बस टेंशन तो टेंशन है I कंप्यूटर , इंटरनेट .और मोबाईल के विस्तार ने जहाँ दुनिया को छोटा किया वहीं टेंशन को  बहुत  बड़ा कर दिया I
               हमारी कालोनी में तथाकथित बुद्दिजीवियो की भरमार है यहाँ सब टेंशन लेने और टेंशन देने  में पारंगत  है ,एक महाशय से मैंने पूछ लिया  की भाई सा क्या हाल चाल है वह तुनककर बोले बहुत टेंशन है और क्या होगा  कलियुग में , मेने सहज होकर कह कि क्यों टेंशन लेते हो क्या होगा इससे ,अपने स्वास्थ्य पर ध्यान दीजिये इस पर गम्भीर  होकर बोले की रोज यही सोच कर सोता हूँ कि कल से टेंशन बिलकुल  नही पालूंगा पर वह सुनहरा कल कब आएगा पता नही ..सुबह उठते ही कमबख्त न्यूज़ चेनल और अखबार फिर टेंशन में धकेल देते है ..उनका भी क्या दोष है देश में हत्या, अपहरण ,बलात्कार , भ्रष्टाचार,रिश्वत , दुर्घटना ,पेट्रोल व डीजल के भाव .महगाई,रूपये व शेयर का गिरना और आजकल यौन उत्पीडन के बढ़ते मामले जीवन को सुकून नही टेंशन  ही देते है समाज में उच्च स्थान रखने वाले ..नेता .संत और पत्रकार लोग ऐसा करेंगे तो आम जन  का टेंशन बढना लाजमी है I हमारे शरीर में कोई सेफ्टी वाल नही है ..जो ..प्रेशर कुकर की तरह ...ज्यादा प्रेशर होने पर अपना काम करता है और दुर्घटना नही होती . मनुष्य नाम के प्राणी  तो  इश्वर को प्यारे हो जाते है
 
    पहले के जमाने में बीमार होने के बाद अस्पताल जाया करते थे आजकल बीमारी के पहले ही प्री.मेडिकल चेकअप..कराना पड़ता है  अब रिवाज बन चुका है है जो न कराये वह   आधुनिक नही कहलाता ..यह सब टेंशन का कमाल है आधुनिक जीवन शैली में हम
चारो तरफ से मशीनों से घिरे है अपने हाथ -पाँव हिलना भी बंद होगये है और शरीर जाम सा हो गया है   जिसका आलम तनाव  Iफास्ट फ़ूड खाकर जीरो फिगर के लिए संघर्ष करना हमारी प्रवृति और इससे निवृति टेंशन देता  है
           आजकल राजनीति में कुछ ज्यदा ही टेंशन चल रहे है ...कोई "आप" की जीत से
विचलित है तो कोई काग्रेस की हार से तो कोई दिल्ली में सरकार न बनने से मिडिया वाले
का बस चलता तो ..शपथ  ..करा चुके होते क्या करे बेचारे ..चीख -चीख कर ही खुश है और कर भी क्या सकते है आप ने इतना टेंशन दे दिया है अच्छे -अच्छो की  नींद व होश उड़ा रखे है राजनीति के शुद्धिकरण का  प्रयास जारी   है कितना सफल होगा यह तो वक्त बतायेगा
             मानसिक शांति हेतु .ध्यान  योंग ,प्राणायम के कई बिजनेस चल रहे है
फिर भी ढाक के तीन पात Iटेंशन का यह भूत एक नयी  भावनात्मक  बीमारी को जन्म दिया वह  है  'मूड"खराब है  कोई टेंशन में है इसलिए मूड खराब है और कुछ मूड खराब है इसलिए टेंशन में है  यह माजरा रिसर्च  का  हो गया है और जिनको ये दोनों मे से कुछ भी  महसूस नही होता लोग उसे आगरा की याद दिला देते है तुम उसके लायक हो  आपको कुछ भी नही होता..याने मानसिक समस्या से ग्रसित लगते हो और उसे भी टेंशन देकर अपना पुनीत कर्तव्य करने से बाज नही आते टेशन युक्त समाज के निर्माण में अपनी अहम  भूमिका का निर्वाह करते है ऐसे  समाजिक प्राणी बहुतायत में पाये जाते है
उनका एक ही सपना सब पालो टेंशन अपना ..बिना टेंशन के जीने  में कोई जीना है


मानवता पर टेंशन या टेंशन पर मानवत हावी है I टेंशन .कहीं भी .कभी भी किसे भी अपनी गिरफ्त में ले लेता  है और भूत सवार हो जाता है I

बुधवार, 20 नवंबर 2013

वोटर देवो भव: [व्यंग्य ]

                            
                      
                                       वोटर देवो भव: [व्यंग्य ]

        चुनाव का मौसम आते ही वोटर सभी  दलों और नेताओ के लिए  मुख्य  हो जाता है वोटर लोकतंत्र की महत्वपूर्ण कड़ी है ,देश की सरकार बदलने वाले वोटर की दशा नही
बदलती है फिर भी वोट देकर अपना फर्ज निभाता है जिसको दिया वोट उसने ही किया हम सबको बोट ,यह राजनीति की परम्परा है जनता की सेवा और विकास के नाम पर
वोट मांग कर   बस अपने  कुनबे का विकास और खुद ही मेवा खाते है चुनाव के समय
वोटर  हर दल और हरेक उम्मीदवार को  भगवान  सा नजर आता है याने की वोटर देवो भव:

                  वोटर भी सोचता है की कभी तो पूछ परख होती है,चुनावी समर में हम
जेसे वोटर को मान सम्मान मिलता है झूठा  ही सही ..चार दिन की चादनी फिर अँधेरी रात या वोटर मन ही मन सोचता  है  की अब आया ऊँट पहाड़ के नीचे ......सभी उम्मीदवारों को  लाली पाप देता है ..और सभी को वोट देने का  भरोसा देता है राजनीतिक
दल और नेता वोटर का मूड समझने में माहिर हो गये है ..वोटर सेर तो.नेता सवा सेर हो गये है फिर भी वोटर में भगवान की मूरत देख कर एक वोट की मांग करता है उससे
न जाने कितने झूठे वादे करता है ..हर समस्या का समाधान करने का वादा करता है
वोटर को उम्मीदवार  अंदर से कुछ ओर बाहर से कुछ ओर नजर आता है ...वोटर तो उसका अंजाम जानता है ...वोट करना हर वोटर का मौलिक कर्तव्य है देश और समाज हित
में करना चाहिए ...तभी तो वोटर और शक्ति शाली होगा ....तभी  नेता कहेगा ,,,,है वोटर
 तेरी सूरत भगवान से अलग नही होती ...सिर्फ चुनाव तक ..उसके बाद तो हम सब बता देंगे  की कौन भगवान  है और  कौन नही ..सिर्फ चुनाव जीतने तक ही हम .अपने आप को मनुष्य माने हुऐ है वरना हम भी किसी से कम नही  है I....आजकल राइट टू रिजेक्ट वोटर को और  प्रभावशाली बनाएगा .

                   एक वोटर बोलता है ....झंडे ,प्रवचन .माइक का शोर .फ्लेक्स बेनर ,सभाए  वोटरों देवो भव: को खुश ..करने का  महा आयोजन  सभी दल और सभी उम्मीदवार जोर -शोर से करते है ..तभी  तो वोटर देवता प्रसन्न होते है जितना शोर .जितना दिखावा करेगे उतना वोटर खुश होगा यह राजनीति का फंडा है पर आजकल तो  स्टार प्रचारक भी भीड़ जुटाने में असफल  सिद्ध हो रहे है . पर क्या करे
 और दिखावा कैसे करे , आचार सहिंता .का पालन ...जो करना है .आचार सहिंता को भी पीछे छोड़ देने वाले नेता भी अभी  धरा पर विराजमान है जो कुछ नया रास्ता निकालकर  चतुराई से सबको धता बताने  का दमखम रखते है .पर पब्लिक है सब जानती है ......जैसे  को तैसा करना उसे आता है अच्छो -अच्छो को ठिकाने लगा देते है

       
    मैंने एक सीनियर सिटीजन से कहा की वोटर देवो भव तो आप तो बड़े वाले वोटर हो देवो के भी देव है .आपका क्या विचार ..वे बड़े चिन्तन की मुद्रा में कहने लगे ..आजकल
राजनीति में मानवता ही नही बची दानव  जैसी हो गई  है ..हमे अच्छे इन्सान ही रहने दो
देव बनकर जो हम यह नही देख सकते कम से कम मनुष्य बनकर  सह सकते है पर
सत्याग्रह  के गाने ने हम सब की नींद खोलदी है  की .है इश्वर ,,,इतनी शक्ति मत देना की सहते-सहते जाय .....मतलब सहने की हद भी पार हो चुकी है ..किसे चुने सभी एक ही
  थैली के चट्टे -बट्टे है वोटर देवो भव को सिरे से ख़ारिज कर रहे थे खूब मतदान करो
पर अपना मत -भ्रष्ट ,दागी .....को मत -दान करो क्योकि जो आपके सामने है उसमे से
सर्व श्रेष्ट चयन करो ...I सीनियर सिटीजन का कितने ही छोटे बड़े  चुनाव का कटु अनुभव रहा है ..और उनकी बातो से सहमत होकर वोटर देवो भव: का भ्रम दिमाग से निकल दिया I

  वोटर का एक -एक वोट कीमती होता है ...पर चार दिन   की चांदनी और फिर अँधेरी रात ......यह एसी रात होती है की ...सुबह होने मे पांच साल लगते है ..ऐसे में वोटर देवो भव:
कैसे  कह सकते है I वोटर सबकी सुनता है ..करता अपने मन की ....आजकल मतदान
भी   मशीन  से  होने लगा है मोहर की जगह बटन दबने लगा, हवा चलेगी अफवाहे फैलेंगी  फिर भी वोटर अपने आत्म चिन्तन और आत्म प्रेरणा से ही वोट
करेगा .आखिर उसका हक है अपने हक का सही उपयोग ही असली वोटर की पहचान है


संजय जोशी 'सजग "

मंगलवार, 12 नवंबर 2013

सजग-शूलिका

सजग-शूलिका

इतिहास
भूगोल के
बदलने की
बहुत हो
चुकी बहस
वर्तमान और
भविष्य की
बात करो
उसे न करो
तहस -नहस

---- संजय जोशी 'सजग "

गुरुवार, 7 नवंबर 2013

बागी और दागी



                          बागी और दागी


   बागी और दागी राजनीति की शब्दावली में महत्वपूर्ण शब्द है दोनों ने राजनीति को अभिशप्त कर रखा है यूँ तो दोनों शब्द बहुत छोटे है पर बड़े खोटे है राजनीति को दागी से मुक्त करना नामुमकिन लगता था पर  जागृति आई और दागियो वाले  अध्यादेश पर भूचाल आया था  तब, सबने अपनी -अपनी रोटियां सेकी..कुछ की जली कुछ की कच्ची रही सबने खाई ..कुछ को हजम हुई और कुछ को अजीर्ण हुआ ये तो वो ही जाने ..दृश्य मिडिया ने खूब झिलाया और पकाया ,तिल का ताड बनया .....इससे लगता है की दागियो से मुक्त होने का समय आ गया पर इतने दागी है कि ...क्या इससे मुक्ति सही अर्थो में सम्भव है ...? राजनीति का चेहरा धवल होगा ?ऐसे कई प्रश्न है जिनका उतर मिलेगा या नही .संदिग्ध लगता है ...पर ठीक है देर से सही पर दुरूस्त हो ...Iबागी भी एक बहुत बड़ी राजनितिक समस्या है जिसने अपने पैर मजबूती से जमा लिए है ..बागी होना नैतिक अधिकार है  इससे कौन  रोक सकता है ...दागी जैसी  जागृति ....बागी तक आने में २१ वी सदी भी बीत जाये ...तो आश्चर्य नही होगा .......I


                  बागी हर दल और हर उम्मीदवार के लिए खतरे की घंटी बन जाता है और उसका खौफ अंतिम दिन तक राजनीति  में मंडराता  रहता है अपने दल से बगावत कर बागी होना याने  न घर का न घाट का रहना है .फिर भी बागी ..बनते है यह उनके लिए जरूरी  भी है या  समर्थक भी बागी बनने को मजबूर कर देते है और .चने के झाड पर चढ़ाने वाले समाज में बहुतायत  पाये जाते येवो ही लोग होते है जो  एक बार चढाने.के बाद .गिरने  का .मजा  लेते है .यह उनकी आदत  में  शुमार है ..I....

एक बागी लाल जी से आमना सामना हो गया मैंने कहा की आपने क्यों बगावत कर दी ..आपका नाम  .पद और रुतबा भी बहुत था ..अचानक ..मोह भंग क्यों हो गया ...वह द्रवित होकर बोले .पूरी जिन्दगी खपा दी ....मेने पार्टी के लिए क्या नही किया सब धरारह गया ..सारे अरमानो पर पानी फेर दिया ..अब हमारे दल में अच्छे और समर्पित लोगो केलिए कोई सोचने वाला बचा ही नही , किसने क्या किया .किसकी छवि केसी है
पार्टी ..के  लिए सीट बाँटने वालो को क्या मालूम ,भाई भतीजावाद .ही ..चलता रहेगा तो बगावत का सिलसिला यूँही चलता रहेगा ...अब मेरे सब्र की सीमा नही बची और "सत्याग्रह "पिक्चर के गाने को आदर्श मानते हुए ...सहते -जाओ -सहते जाओ ..इतना भी धीरज मत देना   भगवान और यह ...कदम उठाकर ..पार्टी के उम्मीदवार के विरुद्ध पर्चा भरा और ताकि हम ..हमारी ..ताकत का अहसास करा सके .हम भी किसी से कम नही ....सामने वाले में दम नही ....हमारे बचपन का भूत जाग गया ....जब छोटे थे ...खेलते समय अक्सर हम एक दूसरे को बोला करते थे की ..खेलेगें नही तो खेल बिगाड़ेगे..वोही दिन अब देखना  पड़ रहे है आत्म विश्वास के साथ उनकी बात निरंतर जारी थी  , हम   ही  जीतने वाले है ..देखो कैसे पसीना लाते है जनता की नब्ज तो मैं जानता हूँ क्योकि जमीन से जुड़ा हूँ मैंने कहा भाई आजकल ..तो हवा में उड़ने वालो का जमाना है .मेरी बात काटते बोले मेरे केस में उल्टा  होगा .जमीनी..हकीकत जानने में उन्हें छटी का दूध याद आ जायेगा .जनता और कार्यकर्ता  में पकड़  तो मेरी है .अभी तक पार्टी में था अब नही हूँ...सब मेरे साथ है .मेने कहा दादा लोग पार्टी का साथ देते है व्यक्तिगत  का नही तेष में आकर कहने लगे ..मेरे साथ जो धोखा करेगे एक -एक से निपट लूगाँ...मेने मन ही मन सोचा बहुत मुगालते में है क्या करे मुगालते में रहना हर मनुष्य की छुपी हुई ताकत है इसी के सहारे ..अपने सपने बुनता है .जेसे सोने की खोज की लिए  सपने देखे कोई ओर और उसे पूरा करने की लिए उकसाने वालो की कमी नही है ...सपने .लालसा ..अहम आत्मस्वाभिमान ,बदले की भावना ...ऐसे कई कारक है बागी बनाने के लिए जब तक समाज और व्यक्ति में ये गुण मौजूद रहेगे ..भगवान भी ...बागी होने से  नही रोक सकते तो  बेचारी..पार्टी .की  क्या ताकत हर चुनाव में ऐसा होता है ..ऐसा हो रहा है और होता रहेगा .बागी .एक ऐसा समझदार किन्तु खूंखार  जन्तु है जो दीमक की तरह काम करता है .लोकतंत्र और  राजनीति दोनों कोही खोखला करता है यह ऊँचे आदर्श और आत्म सम्मान का पक्ष धर होता है .यह गिरगिट की तरह ..रंग बदलने में माहिर होता है I

                   बागी ....किसी भी पार्टी का बाग़ उजाड़ने की क्षमता से परिपूर्ण होता
हर दल में एसा ही दलदल ...बागी ही बाग़ लगाने वाला भी होता है .उस बाग़ को सीचता  है उसकी सुरक्षा करता है ...जब फल लगने का समय आता है ..तो उसे फल नही मिलता ...उसी प्रकार राजनीति में बागी ....एक समस्या नही ..पर दबी आवाज को मुखर करने की कोशिश और बगावत .उसके लिए बागी का  सेहरा  बाँध देती है समय करवट लेता है ..बागियों की संख्या में इजाफा हो  रहा है अगर बागी ..अपना दल बनाये तो बागी  पार्टी ..[अ]...[आ.]...[.ई.]...तो भी ..कम पड़ेगी .बागी की संख्या में निरंतर वृद्धि बड़ते असंतोष के ग्राफ़ को रेखाकित करता है राजनीति में यह गम्भीर घाव बन गया है  I.
.

  बागी होना राजनीतिक महत्वकांक्षा को दर्शाता है बागी के तेवर धीरे-धीरे ..बोगी होने लगते है फिरभी घर का भेदु लंका ढहाने की क्षमता रखता है  मतलब आने पर .."गरल सुधा रिपु करही मीताई"याने रजनीति में दो विरोधी स्वभाव वालो का मिलन भी हो जाता है और बागी क भूत  का डर चुनाव के परिणाम तक पीछा नही छोड़ता.एक बागी एक राजनीतक समस्या है जिसका समाधान .कठिन है .I...

      बागी बनकर कोई अपना प्रभाव बचाता है या खोता है  या अपना अस्तित्व मिटाता है  समय लिखेगा इसकी गाथा ,कथा  और व्यथा   लेकिन .बिन बागी राजनीति  सूनी-सूनी  लगती है I

                  
      बन बागी दिखाता या  खोता अपना प्रभाव ..बचता /मिटता अस्तित्व .....यह तो
समय.लिखेगा  उसकी गाथा ...कथा और व्यथा..I..बिन बागी राजनीति सुनी लगती है I
        
नोट - यह मेरी मोलिक  एवम अप्रकाशित रचना है ...कृपया स्थान  देकर प्रोत्साहित
करे ..आभार और धन्यवाद

संजय जोशी 'सजग "
७८,गुलमोहर कालोनी रतलाम [म.प्र]
   ०९८२७०७९७३७

बुधवार, 30 अक्तूबर 2013

लक्ष्मी माता से विनती



शूलिका ----50

जय हो लक्ष्मी माता
सर्व सुख की हो प्रदाता
हमारी विनती है सुनो
इमानदार को ही चुनो
धन भ्रष्टो के पास जाता
हमे यह समझ नही आता
मेहनतकश को है सताता
कोई उपाय नही है पाता
शरण में आपकी आता .
हमारी भी सुन लो माता


संजय जोशी ""सजग ""

मंगलवार, 29 अक्तूबर 2013

शूलिका ---------

 ----  १---


हर दल करता
करता भ्रष्टाचार
मिटाने का
शिष्टाचार
मिलते ही मोका
भरपूर करता
भ्रष्टाचार ......

----------२-------

कोई नही
दुध का धुला
किसी ने नही
किया देश का भला
पद मिलते ही
सब को है छला
देश की प्रगति
का सूरज यूही ढला

---------३--------
गठबंधन
याने .जुगाड़
कभी भी हो
सकता दोफाड़
है सत्ता की होड़
देश की राजनीति में
आयगा नया मोड़
अब न और भाती
गठबंधन की निति
जनता हो गई बोर
दीखता नही कोई छोर

---------------- ४--------


जाग कर
रुक जाना
ही जागरूकता
का है नमूना
इस लिए देश को
लगते है चुना
वे जिनको
हमने ही चुना


------------५--------


लोकतंत्र
बनाम
जुगाड़ तंत्र
भीड़ तंत्र
भ्रष्ट तन्त्र
___________________________________
---- संजय जोशी "सजग "


७८ गुलमोहर कालोनी  रतलाम [म.प्र.]

मोब.  09827079737

रविवार, 27 अक्तूबर 2013

खिले प्रकाश

 
              खिले प्रकाश

मिटे अंधकार और चहु और खिले प्रकाश
जले ज्ञान की जोत सब और खिले प्रकाश
आया दीपो का अनूठा मंगलमय त्यौहार
सदभाव का जले दीप हर और खिले प्रकाश

बुधवार, 23 अक्तूबर 2013

बांस और बॉस


                बांस  और बॉस
               _____________


   एक  विभागीय  परीक्षा में  एक प्रश्न था   "बॉस  और बांस "पर तुलनात्मक अध्ययन पर प्रकाश  डालिए ....I
.
  पहले बिजली का विस्तार नहीं  था, अब बिजली नहीं  है बात तो एक ही है अत: प्रकाश डालना जरूरी है बॉस पर प्रकाश डालना मतलब उसे अंधकार  से उजाले की और ले जाना ,चमचों को छोडकर यह काम दूसरा करने की  कल्पना भी नहीं करता,  यह  विषय विभागीय परीक्षा  के लिए अत्यंत कठिन , गम्भीर और  महत्वपूर्ण था   इससे परीक्षार्थी की योग्यता और बॉस के प्रति अवधारणा  को ज्ञात करना था I.एक अति समझदार परीक्षार्थी  ने बांस और बॉस के बारे .में  कुछ  यूँ लिखा .....  ..

 ."बॉस  और बांस " में काफी समानताएं होती है आजकल  गेंग के मुखिया  को भी  बॉस कहा जाता है कितना पतन हो गया है बॉस   शब्द का ,  शायद आप सहमत न हो ये मेरे
व्यक्तिगत विचार  है केवल परीक्षा तक ही सीमित रखे .क्योकि  लिखना  जरूरी और मजबूरी  दोनों  है इसे अन्यथा न लेकर  जमीनी  हकीकत समझे .हर  देश और हर आफिस  का बॉस ऐसा ही होता है  और  बांस  विश्व  में लगभग   समान होता है  ."बॉस  और बांस ".के बारे में .मेरी ...अल्प जानकारी निम्नानुसार है .....


                           
      समानताएं
1.बांस जितना लम्बा /बड़ा होता है उतना ही  टेड़ा होता है ",बॉस "भी ओहदे में जितना
बड़ा होता है उतना ही टेड़ा होता है ..यह शाश्वत सत्य है I
२.बांस अंदर से खोखला होता है I",बॉस".भी अंदर से खोखला ही होता है उसका ज्ञान
सिमट जाता है और राजनीति के सहारे चलता है
३.",बॉस" ऊपर से कठोर होता है I",बॉस" भी ऊपर से कठोर दिखने का अभिनय करता है .वस्तुतः कठोर होता नहीं बल्कि .माहौल बनाता है यह उसकी मजबूरी है ..",बॉस" का होना I
४.बांस जब फट जाता है ,फटा  बांस  खूब आवाज करता है यह भीड़ को नियंत्रित करने में
   अहम भूमिका निभाता है .",बॉस" का मन जब फट जाता है तो वह भी जोर -जोर
   से चिल्लाता  है अपनी दहशत फ़ैलाने के लिए आफिस में .
५. बांस में छोटी -छोटी दूरी पर गठानें होती है जो प्रकृतिक होती है ,.",बॉस" छोटी -छोटी
    बात पर गठान बना लेता है और समय आने पर उन्हें और कसता है
६.   बांस से फल ओर छाया दोनों नही मिलते  ",बॉस" से भी नही

                                 असमानताएं
१-  बांस जीवन के अंतिम पड़ाव तक साथ निभाता है ",बॉस"  नही
२.बांस कागज बनाने के काम आता है ,ओर ",बॉस"उसी कागज पर कई लोगों से      बदला लेता है
३ बांस   की टहनियां ..बासुरी  बनती है जो सुमधुर ध्वनी देती  है ",बॉस"  के चमचे [टहनी ]कई की  जिन्दगी में जहर घोलते है ",बॉस" को  बरगलाकर अपना उल्लू सीधा  करते है


४ . बांस अपने दम पर इठलाता है,  बॉस चमचों  के बल पर  इतराता है

५. बांस  बहु उपयोगी होता है ",बॉस" केवल तनाव व बीमारी प्रदाता है
 ६. बांस निर्जीव और बॉस  सजीव होता है फिर भी ..निर्जीव जेसा व्यवहार करने से बाज नही आता ,बॉस हो यदि बिग बॉस होतो ..छुट्टे सांड की तरह ......और  खतरनाक होता है सीरियल के बिग बोस से इस  प्रश्न पत्र का कोई सम्बन्ध नही है  वह समाज और संस्कृति में विकार पैदा करने का बिग  डोस है
  
 और अंत में ....
   बांस का जीवन सरल होता है ",बॉस" का जीवन  कुंठित ,भयग्रस्त ,रहता है तनाव
लेना और सबको बाँटना  उसका मुख्य धर्म होता है 


   सेवा निवृति के पश्चातमानसिक रोगी बनकर ,अंदर अंदर ही कूड  कर आपनी आत्मा से साक्षात्कार  करता है  कि,बॉस" के रूप में मैंने  अनगिनत अत्याचार किये इससे अच्छा तो बांस कम से कम अच्छा शुद्ध वातावरण तो  देता है मेने नही दिया .....नही तो आज  मे भी मजे में जीता चिड़िया चुग गई  खेत अब क्या हो

    बांस और ",बॉस"........जीवन की सीख है ....सीख सको  तो सीख  ताकि  अंत  में न पछताना पड़े शायद  इसीलिए यह प्रश्न दिया गया है ..ताकि भविष्य में......कुछ
संस्कारवान बॉस ....की उत्पप्ति हो सके ...




नोट:-अभी तक अप्रकाशित रचना 
 



संजय जोशी " सजग "
७८ गुलमोहर कालोनी  रतलाम [ म.प्र]
०९८२७०७९७३७

मुक्तक ---

मानसिक शांति में आती जब कमी
एकाग्रता सृजनात्मकता में आती कमी
जीवन के हर में पल लगती है अशांति
लोभ ,भय और वहम की करो कमी
------संजय जोशी "सजग"----------

मंगलवार, 22 अक्तूबर 2013

टांय -टांय फिस्स[ व्यंग्य ]

           टांय -टांय फिस्स [ व्यंग्य ]
                          _________________


    चुनाव का रण तैयार हो चुका है रण में उतरने के लिए जद्दोजहद ,वादों ,आश्वासनों ,आरोप, प्रत्यारोप की झड़ी लगी हुई है ,ऊंट किस करवट पर बैठेगा किसी को  पता नहीं ,पर कोई भी जीते कोई भी हारे उससे आमजन को क्या ? .उन्हें सब पता है  अभी तक का कटु अनुभव जो है  की उनके  अरमानों का टांय -टांय फिस्स होना  तय है ,  तलवार तरबूजे पर गिरे या तरबूज तलवार पर गिरे अंततः कटना तरबूजे को ही है वही दशा आम  जन की है I

    देश की राजनीति  का दारोमदार पलटू नेताओ के भरोसे है दागी ओर बागी आजकल की राजनीति पर हावी है  ओर पुरानी प्रसिद्ध उक्ति के अनुसार  "भरोसे  की भेस पाढा ही देती है "  एक पलटूचन्द को मैंने कहा भाई चुनाव आरहे है  बहुत चहक रहे हो ..बाद में टांय -टांय फिस्स हो जावोगे ..यह सुनने के बाद मुझे इतना लम्बा  चौडा  प्रवचन नहीं कुवचन का काढ़ा पिला डाला  उससे उबरने  के लिए  पेन किलर भी काम नही आई ..आप भी झेलिये ..उसकी हाई लाइट्स....I
            
               देखो भाई हमेशा  हम लोगो पर  ही दोष मढ़ दिया जाता है की क्षेत्र के विकास में रूचि नहीं लेते हम भी क्या करे ,अपनी पूरी जिन्दगी पार्टी के लिए न्योछावर
कर देते है और किसी भी चुनाव के लिए सीट की दावेदारी जताते है तो हमारे ख्वाब टांय -टांय फिस्स कर दिए  जाते है अभिनेता ,और बड़े नेताओ के बेटे -बेटियो को आगे कर दिया जाता है हर पार्टी में ऐसा ही हो रहा है कार्यकर्ता केवल काम और घिसने के लिए ही बचा है मलाई तो दूसरे ही खा ही जाते है सब टांय -टांय फिस्स हो जाता है तो बेचारे  आम आदमी की क्या बिसात, पलटूचन्द बड़े द्रवित होकर बोले .यह राजनीति ही  बुरी चीज है झूठ और फरेब का कुनबा है इसमें  किसी  का  किसी को आगे बड़ना फूटी आँख नही सुहाता  है  ऐसे में जनता  के अरमानो का टांय -टांय फिस्स होना  कौन टाल सकता है वे नान स्टॉप  बोलते ही जारहे थे कार्यकर्ता की  कद्र केवल चुनाव के समय करते है येही समय होता है जीतना चाहो उतना झुकालो .जीतने के बाद फिर ग्रिप में आना मुश्किल हो जाता है ,जीतने वाले का हम क्या  उखाड लेगे ,वेसे ही ईद  के चाँद  की तरह  हो जाते है राजनीति में कोई किसीका नही सगा ,हर कोई देता दगा . ये राजनीति सत्यनाशी   से कम नही है इस बार अच्छी सख्ती है ..आचार संहिता ने सबकी नीद उडा रखी है अब आयेगा मजा ..I
  पलटूचन्द   की राजनीति के बारे  ठोस सोच के प्रति में मन ही सोच रहा था .की कितना उपेक्षित ये है बेचारा ऐसे पलटूचन्द   कई   होगें और सब दलों के दल-दल में फंसे  हुए होंगे ,उसका  भूत पुन: जागृत हो गया  और कहने लगा  हमारा देश अंतहीन और अकाल्पनिक ,   समस्याओ से भरपूर है कब क्या घट जाए ,कब किसे क्या सपना आ जाये ,कौनबेतुका  बयान दे दे .और सब नेता और  न्यूज़ चैनल उसी में लग जाए I अब देखो भाई प्याज ने चुनाव के समय ही सिर उठाया और अपने गुणानूरूप सरकारों और नेताओ को आंसू  बहाने को मजबूर कर  दिया ..क्योकि इसकी शक्ति इतनी है की यह सरकार भी गिरवा दे और चुनाव में सत्तारूढ़ को सडक पर ला दे यह ..प्याज भी बम से कम नही है ..अरमानो को यूँ ही उडा दे और चकनाचूर कर दे .ये सब समस्याओ पर भारी है इस पर जंग जारी है  रुपये का गिरना .महंगाई का बढना .मंदी  का  माहौल ,भ्रष्टाचार ,जातिवाद ,धर्मवाद ..ये सब कारक है ..नेताओ के ख्वाब   टांय-टांय फीस .होने के .विचार दमदार थे .मुझे भी झकझोर रहे थे I
  
        पलटूचन्द   निरन्तर बात  ठोके जा रहे थे  की  देश की राजनीति में फाड़ना , झाड़ना [झाड़ू] ,फेकना के सहारे कब तक टिक पायगे टांय -टांय फिस्स  हो जायेंगे चायना के  माल की तरह देश की राजनीति का कोई भरोसा नही है ...देश के विकास के लिए कसमें खाना आसान और निभाना बहुत दुरुह  है ..दूसरों  की गलती का फायदा कब तक उठायेंगे   तो सब एक ही  थेली के चट्टे  -बट्टे है I

यह पलटूचंद जी की व्यथा जन -जन की व्यथा है देश की राजनीति की यही गाथा है हर -दल की यही प्रथा है  यही  टांय -टांय फिस्स  की  करुण कथा है I


संजय जोशी "सजग "
७८ गुलमोहर कालोनी  रतलाम [म.प्र.]
मोब.  09827079737
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रविवार, 20 अक्तूबर 2013

गन्जिका

_____________गन्जिका_____
धर्म स्थल से भी  ज्यादा भीड़ पाते
जात पात का भेद नही वहाँ पाते
हर लब पर रहता बाटल या प्याला
जीवन में छाया रहता बादल काला
जो -जो जाते निकलता  है दिवाला
परिवार का छिनते वे  है  निवाला
पडे रहते पीकर  जीजा संग साला
जाते मजदूर और अफसर आला
हर शहर ,चौराहे पर सजी गन्जिका
पीने के बाद बदल जाता है सलीका
----------संजय जोशी "सजग "------

शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2013


                 हाय   मंत्री जी ... का .चिन्तन ...
             
                    वाह मंत्री जी आपने भी कमाल किया मंदिर ओर शौचालय का भेद  बताया Iलगता है मंत्री जी ने  अपने पांच सितारा शौचालय  में इस  विचार को अंजाम
 दिया होगा I
                    शुद्ध  हिन्दी  भाषा में शौचालय को " आत्म चिन्तन केद्र कहा जाता है ऐसे विचारो  उत्पत्ति उसी केंद्र का परिणाम हो सकता है I हमारे देश में राजनेताओ की विचारो की उत्पति का प्रमुख केंद्र है लगता है अपने आप को ज्यदा तनाव मुक्त वही पाते होगे I  देश की हर समस्या का चिन्तन  उसी आत्म चिन्तन केद्र में करते है और विवादित बयानोंकी बौछार  करते है Iलगता है  हमारे देश और संस्कृति के पतन के कारण  ये पांच सितारा 'आत्म चिन्तन केंद्र " ही है मंदिर और शौचालय के बारे जो चिन्तन हुआ वह उनके लिये पवित्र स्थान होसकता है जिससे
                   उनकी राजनीति  चलती है और नित नये चिन्तन को जन्म देते है यह चिन्तन केद्र  आजकल बहुतायत में पाए जाते है पर सबका स्वरूप भिन्न -भिन्न  होता है जेसे वी . आई .पी ..लोगो .का पांच सितारा 'आत्म चिन्तन केंद्र .जन सामान्य का  साधारण .गरीबो का सार्वजनिक ., ग्राम वासियों ....जंगल में खुला स्थान  ...आदि I  अत: चितन का दायरा भी अलग अलग होता है  एक .मंत्री .नेता ...कवि .लेखक व्यापारी सबका अपना चिन्तन का विषय अपने  कार्यानुसार होताहै I बेचारा गरीब आदमी ...तो अपनी रोजी -रोटी और बढती  महंगाई का चिन्तन कर दुखी होता है और चारा ही क्या है .
                   जिनके के पास 'आत्म चिन्तन केंद्र " है ही नही ...वे खुले   में और जंगल का उपयोग करते है वह चिन्तन की प्रक्रिया से वंचित रहते है ....प्रकृति दर्शन उनकी चिन्तन को विचलित कर देता है और वो  चिन्तन मुक्त जीवन जीते है बचारे इस  प्राणी को ...ठेठ .गंवार कह दिया जाता है .ये आत्म चिन्तन केद्र
                    अगर हमारे देश वासियों के पास १०० प्रतिशत शौचालय  होतो   सब चिन्तन शील हो जायेंगे  और सरकार क  हर कदम  का  चिन्तन करेगे ओर पांच साल बाद सरकार को  सडक पर ला देगे अत: सरकार भी नही चाहती ऐसा होपर सिर् इसकेप्रति चिंता दर्शाती है और अपने कर्तव्य की इति श्री कर लेती है  बुद्धि  जीवियो को हमेशा यह  खलता है की हमारे देश में सामजिक .संस्कृति ,नेतिक मूल्यों में गिरावट का क्या कारण
 है ..इन सब का मुख्य कारण पांच सितारा ;आत्म चिन्तन केद्र है .जिसका  ...बखान हाल ही ..में मंत्री जी  इन्हें मंदिर ..से ज्यदा पवित्र बताकर कर दिया .आजकल   घरो ...में  भी .धर्म स्थान की निर्माण पर कम खर्च होता  आत्म चिन्तन केद्र पर बहुत ज्यदा खर्च कियाजाता है ......जो ऐसी मानसिकता  को दर्शाता है ...जो भी .हो धनुष से छोड़ा गया तीर ओर मुख से निकले  शब्द ....से ...शरीर ओर दिल ...छलनी होता है .मंत्री जी  तो ..अपनी  बात कह गये कितनो की   धार्मिक ..भावना पर कुठाराघात कर गये ......अब क्या आप  बयान पर बहस और चितन .. करते रहो .........लगता है ...चुना.में  सरकार ..देश ..में आधुनिक शोचालय की निर्माण  को मुख्य प्राथमिकत  दे.नवचिनतं  की  ओर अग्रसर हो ......वाह इस मुद्दे पर नयी बहस छिड़ी है ...गलत बयानों  से मचाते बबाल देश की प्रगति होती है हलाल   ,सदियों से हम यही सुनते आये है ....मंदिर होते है पावन  औरपवित्र ..ऐसा करके विकृत करते है संस्कृति .का चित्र सोचो हमारे देश के कर्ण धार  ऐसे वक्तव देकर क्या दिखाना चाहते है .जन सामान्य की समझ से परे  .....हमारी प्राचीन मंदिर  संस्कृति का खुला मजाक है ........
      नीलामी शब्द बचपन से हमारे जेहन में ठूसा हुआ है  किसी की पेंटिग ,महापुरुष की दुर्लभ वस्तु  और सब्जी मण्डी में सब्जी की रोडवेज की खटारा बस की नीलामी और सरकार द्वरा राजसात की सम्पति नीलम होती है दिलो दिमाग में  यही छाप पड़ी है की यह  शब्द निम्न कोटि का हैहमारे मोहल्ले में एक पहलवान रहते थे उनके कई पठ्ठे थे वह हमेशा कहा करते  थे सब कुछ करना पर इज्जत नीलाम मत रन बस यही समझ में करन बस यही समझ में आता था की आपने आप को बेचना  या नीलाम करना याने आपना सब  वजूद खो देना होता है I

मुझे जब बड़ा आश्चर्य होता है की धार्मिक आयोजन में भी नीलामी  का अपना महत्वपूर्ण स्थान है जो जितनी अधिक बोली  लगाता उसे भगवान की सेवा मिलती और श्रद्धा का हनन होता है भगवानका दरबार भी इससे अछुता नही है तो हमारे देश में  क्रिकेट खेल इससे अछुता केसे रह सकता  है और नीलामी का दोर चल पड़ा

क्रिकेट खिलाडियों करोड़ों  में नीलाम होने  का प्रयोजन  होता रहता है  इसमे देशी और विदेशी  दोनों ही है जो जितने में अधिक बिक रहा है वह उतना महान है रुपयों की लिए बिकने वाले  ये खिलाडी क्या देश कि लिये  अपने को और अपने खेल को .समर्पित कर पायगे इसमे हर किसी को  संदेह नजर आता है I कभी - कभी सोचना मुश्किल ही नही ना मुमकिन लगता है की धन के लिए खलेने वाले ये खिलाडी अपने देश के लिए न्याय  कर पायगे अपार धन की भूख ने क्रिकेट को किस मुकाम पर खड़ा कर दिया की २० -२० ही भाता है टेस्ट और  एक दिवसीय .मेच में तू चल में आया की तर्ज पर  लगातार विकेट  गिरना ओर मेच को हार की कगार पर ले जाते है ओर  देश की भोली -भाली जनता गम के साये में हो जाती है Iदेश के खिलाडी धन की पिपासा में ....नीलामी को सलामी करते रहेगे ओर क्रिकेट  की हालत बद -से बदतर होती जायगी  I देश की इज्जत नीलाम को  करने मेंकोंई कसर नही छोड़ेगे I देश के मेचो में मिलती असफलता को  बुद्धि जीवी  हमेशा यह कह कर आसनी से पचा लेते है .की खेलो में हार जित तो चलती रहती है  कोई एक तो  हारेगा पर यह हार का सिलसिला यु ही चलता रहेगा जब  तक खिलाडी नीलाम  होते रहेगे I

                          


शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2013

पोलीथिन मोह छुटे नाही

     पोलीथिन मोह छुटे नाही
************************

 पोलीथिन  विज्ञानं का वरदान है  और उसका बेग हर मनुष्य के लिए वरदान  वहीं  मूक पशुओ के लिए अभिशाप बन गया है ,जहाँ  इसने उपयोग करो और फेक दो की संस्कृति को जन्म दिया है और  जेसे देश से भ्रष्टाचार न मिट रहा है उसी भांति यह भी नही मिटती दिन दूनी और रात चौगुनी बढ़ जाती है क्योकि हर कोई इसके मोहपाश में जकड़ा हुआ है .
    जब -जब  पोलीथिन पर प्रतिबन्ध की खबर आती है तो कई चेहरों पर मायूसी छा जाती है जेसे लोक पाल और सूचना का अधिकार लागू करने की खबर.से राजनीति में हडकम्प मच जाताहै कभी -कभी  तो लगता है भ्रष्टाचार के बिना देश और पोलीथिन के बिना संस्कृति का चलना  ना मुमकिन  है .जेसे नेता कुर्सी के बिना ,और हम  पोलीथिन बेग  के बिना I


     पोलीथिन ने अपने प्रभाव से दादा जी  कपड़े के  झोले को दुर्लभ और संग्राहलय की वस्तु बना दिया है कभी गलती से दिख जाय तो नई पीड़ी पूछ बेठे यह किस काम आता है तो आश्चर्य नही होगा क्या करे बेचारे . पोलीथिन संस्कृति में  जो जी रहे है ,पहले जमाने में सामान खरीदने के लिए  साथ में बेग ले जाना ग्राहक की मजबूरी थी ,परन्तु आजकल दुकान से लेकर माल वाले तक की मजबूरी हो गई की सामान  अच्छी सी रंगीन.पोलीथिन में रख कर सलीके से दे और .कोई कोई तो ..डबल भी मांग लेते है बेचारों  को देनी पड़तीहै इस प्रतियोगी युग का तकाजा है ..ग्राहक .भगवान का रूप होते है अत: कोई नाराज न हो
वापस जो बुलाना है
  हर सामान और हर हाथ की शोभा बन कर  इठलाती है ओर गलती से कपड़े का बेग दिख जाए तो उसे चिढाती  है और अपने आधुनिकता को प्रदर्शित करती है Iपोलीथिन
आलस्य ,बेफिक्री और गंदगी  की जन्म दात्री ...मानी जा सकती है

      छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी वस्तु इसकी गुलाम लगती है .दूध,सब्जी से लेकर सभी वस्तु का हरण कर लेती है ,मैंने एक सब्जी वाले काका को बोला कि आप पोलीथिन देना बंद क्यों नही करते ,वे बोले  मेरी रोजी रोटी पर लात मारने की सलाह
क्यों दे रहे हो लोग बाग़ इसके बिना सब्जी ही नही लेते कई मेंम साहब तो हर आयटम
की अलग -अलग मांगती  है .मेने पूछा क्यों ,? काका  बोले ..नोकरी में है .ऐसी-की ऐसी फ्रिज में रख दो छांटने  की फुरसत नही मिलती , पोलीथिन  बाद में  कई काम  आती है ....मल्टी परपस है , मेने कहा काका एक काम ..करो .सब्जी .बना कर ही बेचना चालू  क्यों नही कर देते और अच्छा रहेगा   ,हर किसी का ऐसा  ही  हाल है हर दुकानदर की यही व्यथा है यह बला से कम नही है .पोलीथिन बेग दुकानदार के व्यवहार का मापदण्ड है I

     धन्यवाद विज्ञानं पोलीथिन का वरदान दिया ,दुःख तब  होता है जब निरीह पशु की . इससे मौत होती है ,आजकल राष्ट्रीय ध्वज भी इससे अछुता नही वह भी पोलीथिन का बनने लगा .राष्ट्रीय पर्व पर  दिन को सलाम करो और शाम को नाली और सडक पर पड़े देख देश भक्तो का  मस्तक झुक जाना  चाहिए परन्तु..उपयोग करो और फेक दो की संकृति में इतने घुल गये कि..कुछ समझ में  नही आता Iदेश के चुनावो में भी सभी दलों द्वरा ..पोलीथिन से निर्मित झंडो का उपयोग बेखोप किया जाता है , अति सर्वत्र वर्जयेत .I पोलीथिन ने संस्कृति को पोली ओर जनता को पंगु  बना दिया है केसे चलेगा जीवन,इसके  बिना  पूर्ण विराम सा महसूस होता है I

     पक्ष और विपक्ष उलझे है अपने स्वार्थ में , उन्हें  देश की ही चिंता नही वे पोलीथिन बेग के  दुष्प्रभाव .की  क्या चिंता करेगें. ..कल्पना से परे है .धृतराष्ट्र. जो है .I.  है भगवान सबको दे सदबुद्धि , मिलकर करे प्रार्थना


 पोलीथिन मुक्त हो सबको आये यह ज्ञान ,मागे भगवान से यही वरदान

मंगलवार, 8 अक्तूबर 2013

मिश्रित ...रचनाये

शूलिका ---१३२

==पोल ==

विकिलीक्स खोल रहा पोल
राजनीति हो रही डांवाडोल
देश का बिगड़ रहा माहौल
बेलगाम हो रहे बोल
इससे घटता देश का मान
लोकतंत्र का होता है अपमान
जनता के गुट रहे अरमान
करो ऐसे काम बढ़े देश का सम्मान
नेताओ तोल-मोल के बोलो
आग में घी मत डालो
देश के विकास का द्वार खोलो
गंदी राजनीति कुचल डालो

=== संजय जोशी "सजग "

हर फेस बुक मित्रो की व्यथा ------जब तक आपस में न मिले .......!!!!!

जब तक हर मित्र पर शक करू
तब तक मिलु न मित्रो से रु बरु
फेसबुक जरुर मिटाती शहरो की दुरी
पर अनजान मित्रता लगती रहती अधूरी
जब मिल जाते आपस में मित्र अनजान
मिल जाती फेसबुक मित्रता को नई जान

====== संजय जोशी "सजग "

शूलिका --१३३

कितना हो गया
नेतिक पतन
केसा होगया
हमारा वतन

=== संजय जोशी "सजग "===

गुमराह करते

टी.वी. सीरियल

नेतिकता का

नही रखते ख्याल

टी.आर .पी की रेस

में सब करते हलाल

-------------------------

उदास 
के न
बनो दास
हमेशा
रहो खुश
और बिंदास

संजय जोशी "सजग "


मजबूत रिश्तो की डोर
थामे उसे दोनों छोर
स्वार्थ का न हो काम
अहम का न हो नाम
समझो सबकी भावना
तभी रहेगी सदभावना

=====संजय जोशी "सजग "=====



हर दल करता
करता भ्रष्टाचार
मिटाने का
शिष्टाचार
मिलते ही मोका
भरपूर करता
भ्रष्टाचार ......



संजय जोशी "सजग "


रखो समय का बंधन
होगा समय प्रबन्धन .
जीवन को देता आकार
आती क्षमता शक्ति अपार
==== संजय जोशी 'सजग "

प्रशंसा
=====
प्रथम रूप ---

प्रशंसा होती प्यारी
शक्ति देती न्यारी
सकारत्मक हो सच्ची
लगती है खूब अच्छी .
--------------------------------
द्वितीय रूप ...

प्रशंसा खूब खलती
जब चाटुकारिता चलती
नकारात्मकता हो जारी
समज के लिए बहुँत भारी
-----------------------------

संजय जोशी "सजग "

मेहनत कर
आय- कर
फिर आय
कर भर
मजा लेते
कोई और

संजय जोशी "सजग "

न रुक सकता सट्टा
न रुक सकता लगता बट्टा
न रुक सकता भ्रष्टाचार
न रुक सकता अनाचार
हम कितने हो गए लाचार
कब रुकेगा अत्याचार

संजय जोशी "सजग '

CBSE ...12 th ..me fir chhai .......

बेटियों ने बाजी मारी
हर क्षेत्र में हे भारी
बेटियां होती प्यारी
खुशियाँ लाती ढेर सारी
चाहे नर हो या नारी
अन्धविश्वास हे भारी
कन्या भ्रूण हत्या हे जारी
कब मिटेगी यह महामारी

संजय जोशी " सजग "


आज विश्व तम्बाकू निषेध दिवस ...है ......

सिगरेट का हर कश
और गुटखा खाना
के आदि
ये करते अपने
स्वाथ्य की नित
बर्बादी
परिवार और समाज
और स्वयम के लिए
है भी घातक
छोड़ो यह चाहत

संजय जोशी "सजग "


 शूलिका ---१२६

जब खुलते राज
छिनते उनके राज
वे न आते बाज
न शर्म और लाज
== संजय जोशी "

 शूलिका --१२७

कोई नही
दुध का धुला
किसी ने नही
किया देश का भला
पद मिलते ही
सब को है छला
देश की प्रगति
का सूरज यूही ढला
---- संजय जोशी "सजग '

 




शूलिका १२८

राजनीति
की रणनिति
स्वार्थ की परिणिति
नेताओ की यही गति
क्यों मारी जाती मति

== संजय जोशी "सजग "

शूलिका --१२९
जब होता अभिमान
बड़ा देता वहअज्ञान
रिश्ते हो जाते बेजान
नही मिलता सम्मान
=== संजय जोशी "सजग "



गठबंधन
याने .जुगाड़
कभी भी हो
सकता दोफाड़
है सत्ता की होड़
देश की राजनीति में
आयगा नया मोड़
अब न और भाती
गठबंधन की निति
जनता हो गई बोर
दीखता नही कोई छोर

=== संजय जोशी "सजग "

शूलिका --१३०
============
अहंकार
है विकार
लेता आकर
सब बेकार
=== संजय जोशी "सजग "


 शूलिका -१३१

जाग कर
रुक जाना
ही जागरूकता
का है नमूना
इस लिए देश को
लगता है चुना
वे जिनको
हमने ही चुना
=== संजय जोशी "सजग "


पद पाने की लगी है होड़
स्वयं को श्रेष्ठ दिखाने की होड़
सब लगे करने में जोड़ -तोड़
हर तरफ मच रही है होड़
== संजय जोशी "सजग "


 शूलिका --१३३

प्रकृति का देखो यह खेल
आपदा प्रबंधन भी हुआ फेल
राहत कर्ता में न आपसी मेल
फंसे लोग भीषण कष्ट रहे झेल

==== संजय जोशी "सजग "


वापस न आता गुजरा वक्त
हंसी ख़ुशी से बिताओ वक्त
समय नही किसी का मोहताज
मित्रो पहचानो कीमती है वक्त
== संजय जोशी "सजग "==



 घडियाली आंसू से दिखाते भाव
सब कुछ सच कह देते हाव भाव
झूठी भावना से मन होता आहत
संवेदनाओ के लिए भी नकली भाव

=== संजय जोशी "सजग "===

 दिखाते है गहन शोक
पुरे करते अपना शौक
नही पाते अपने को रोक
लोगो का ये केसा शौक
=== संजय जोशी "सजग " ===


shulika --134

रुपये की साख का घटना
कीमतों का बेलगाम बड़ना
हमेशा मंदी का छाये रहना
विदेशो से कर्ज मागते रहना
एसी अर्थव्यवस्था का क्या कहना
यह सब बेचारी जनता को ही सहना

===संजय जोशी "सजग" ===

मालवी बोली ..एक ..रचना ..एक प्रयास ...

स्कूली शिक्षा ने मजबूत वणाओ
अणि वाते पेला अच्छा स्कुल वणाओ
अच्छा भन्या लिख्या माडसाब लाओ
वणा ने दूसरा काम में मत लगाओ
मध्यान भोजन से भ्रष्टाचार मिटाओ
सरकारी योजना रो सही लाभ दिलाओ
शिक्षा ती राजनीति घणी दूर भगाओ
स्कूल चले हम को सफल बनाओ
==== संजय जोशी "सजग "

शूलिका -१३५

देश में भाई चारा
नही बचा है बेचारा
आम आदमी है हारा
नही कोई है सहारा
संजय जोशी "सजग "

 एक दाग बहुत है हस्ती मिटाने की लिए
एक दीप बहुत है अंधकार मिटाने की लिए
एक मुस्कान बहुत है अपना बनाने के लिए
एक कदम काफी है आगे बढ़ जाने के लिए
==== संजय जोशी "सजग "


सत्य का पराजित न होना
असत्य से पेरशान न होना
आज नही , कल खुलेगा राज
समय उसका नियत जब होना
==== संजय जोशी "सजग "


 शूलिका १३८
++++++++++
कानून तो
कई रखे है सजा
पर मिलती
नही उचित सजा
वो ही ले रहे
देश के धन का मजा
और बिगाड़
रहे देश की फिजा
+++++++++++++
=== संजय जोशी "सजग "===


 छाए काले काले बदरा
घन घन बरसे बदरा
छाई चहूँ ओर हरियाली
छटा निराली तेरी बदरा
++ संजय जोशी "सजग "+++++


शूलिका -१४०

=वोटर की आत्मा =
की आवाज

वोट लिया था जब
किया था सेवा का वादा
अब सेवा करते कम
अहसान दिखाते ज्यादा
हमारी आत्मा अब रही तड़प
झूठ बोलकर वोट लिया हड़प
=== संजय जोशी "सजग "

शिक्षा और भोजन
एक साथ का प्रयोजन
सार्थक यह हुआ नही
दोनों में गुणवत्ता नही
असफल हुआ संयोजन
शिक्षा मिलीं न भोजन

संजय जोशी "सजग "


शूलिका --१४०

प्यार
में धोके
दोनों की
बर्बादी

== संजय जोशी 'सजग "

शूलिका ----

^^^^^^^^^^^^^^^^
रजनीति में बड रही केसी खोट
हर दल एक दुसरे को देते चोट
निम्नतर हो रही सबकी सोच
चलते शब्द मेढक ओर काक्रोच
^^^^^^^^^^^^^^^^^^
---- संजय जोशी "सजग " -----

 शूलिका-
आग वहीं लगती है
जहाँ चिंगारी होती है
आरोप वहीं पनपते है
जहाँ दाल में काला है

-- संजय जोशी 'सजग "




 शूलिका -

देश में स्थापित हैं कई आयोग
उनमे हमेशा हो जाता नया योंग
नित -नये करते वे केवल प्रयोग
आम जन को न मिलता कोई सहयोग
------- संजय जोशी "सजग "--------


धर्म
और अधर्म
की जंग
में
सिसक रहा
कर्म

संजय जोशी 'सजग "


 राम से
मर्यादा
सीखो
बिना उसके
कोई अपना
नाम
राम न रखो



संजय जोशी 'सजग "



 शूलिका ------
-----------------
बंद मुट्ठी
लाख की
खुल जाये तो
खाक की
हवा खाये
हवालात की
नेता हो या संत
ऐसे ही होता अंत
------------------

------- संजय जोशी "सजग "---------





























 






 शूलिका

मौन
और
वाचालता
के अपने अपने
सुख व दुःख

----संजय जोशी 'सजग '

 


 शूलिका

साहस
का होता
जब उपहास
और परिहास
टूटता
विश्वास

--- संजय जोशी 'सजग "---


 शूलिका ---

लोकतंत्र
बनाम
जुगाड़ तंत्र
भीड़ तंत्र
भ्रष्ट तंत्र

---- संजय जोशी "सजग "


 ---------
एक मध्यम वर्गीय अपनी ने व्यथा को इस तरह बयाँ किया -------

अमीर अपने में मस्त है
गरीब अपने में व्यस्त है
जो बीच का है वही पस्त है
और सहने का अभ्यस्त है
---------संजय जोशी "सजग '------


 -----श्राद्ध का यह भाव------
जीवत मात पिता से दंगम दंगा
मरे मात पिता को पहुचावे गंगा
इनके साथ रखो श्रद्धा का सु-भाव
तभी सफल होगा श्राद्ध का यह भाव

----- संजय जोशी "सजग "-------








 आज फिर दिल्ली और मुंबई में रेप की घटनाएँ घट गई है .....

फांसी से
न डरे
वह इंसान
नही
जानवर है ....
कितनी
मानसिकता
विकृत हो गई ...


-------------
कलम
का
कमाल
हलाहल
या
मालामाल

--- संजय जोशी "सजग '


 फ़ुटबाल
हांकी
के खिलाड़ीयो
को सम्मान
और पैसा
दोनों से है अछूते
कब तक अपने बूते
देश के लिए
खेलेगे

-----------------
राजनीति
में
पात्र
ओर कुपात्र
दोनों चलते है

और जन जन 
को   छलते  है  
----------------- 
























 



























 










 










 






































 















 
 































मंगलवार, 1 अक्तूबर 2013

आज तो मुस्कराइए ......

आज विश्व मुस्कान  दिवस के अवसर पर मुस्कुराना हमारी मजबूरी है औपचारिकता का तकाजा है आज जो हंसने का अभिनय नही करेगा उसे आधुनिक नही माना जायगा .आज सभी इलेक्ट्रानिक संचार माध्यम मुस्कान को बिखेरेंगे ,विश्व मुस्कान  दिवस में अपनी भागीदारी  दर्ज करने में व्यस्त रहेंगे

       सच में हम ईश्वर  प्रदत्त मुस्कान भूल  गये है ऐसे में  दिवस  याद दिलाते रहेंगे कि मुस्कान भी जीवन के लिये  जरूरी है क्योंकि आजकल  नेचरल मुस्कान की  जगह  सांकेतिक मुस्कान का दौर चल रहा है .इंटरनेट ओर मोबाईल .....से  आभास ..होता रहता है ...दिल से हँसना अब बचा कहाँ है 

  कोई जबरन  बनावटी मुस्कुराहट  बिखेरता है  तो कुटिलता की श्रेणी में माना  जाता है मुस्कुराहट जीवन से ऐसे गायब  है जैसे गधे के सिर से सींग योंग ध्यान के महायोगी भी  शरीर के अंदर से मुस्कुराहट खींचने में सफल नही हो पाये है क्योकि तनाव सब पर भारी है उन्मुक्त हंसी  तो अब  सिर्फ . ...टूथ पेस्ट के विज्ञापन में ही नजर आती है

हँसना और मुस्कुराना सामाजिक परिवेश पर भी निर्भर करता है  ,वर्तमान प्राकृतिक राजनीतिक .सामजिक ..व्यथा इसकी अनुमति नहीं देती ..और रही सही कसर हमारे न्यूज़ चैनल्स किसी भी मुद्दे  के चिंता  करने की ठेकेदारी ...इनकी ही तो है ये मुस्कान को  उभरने ही नहीं देते

  बच्चे शिक्षा के बोझ तले उन्मुक्त और सहज हंसी से वंचित है मजे तो हमने खूब किये हमारे जमाने में.ये बेचारे  मुस्कराना ही नही जानते तो ..खिलखिलाहट ....की क्या बात करें हंसने मुस्कराने की क्षमता  भगवान ने केवल मनुष्य  को ही दी अन्य प्राणियों को नही मनुष्य फिर भी न हँसता है न हसंने देता  हैं, इसका मतलब  शायद .हम ..पशुता की और अग्रसर है मुस्कराना भी एक कला है और जो दूसरों को मुस्कराने को मजबूर कर दे वह महा कला है .मुस्कान भी कोटि -कोटि की होती है जो इसे सही पहचाने वह महामानव होता है
     मुस्कान स्वास्थ्य को अच्छा और रक्त संचार नियंत्रित रखती है यह डाँक्टर का काम करती है अत:डाँक्टर मुस्कान कह सकते है मुस्कान एक  अस्त्र का काम भी करती है जो कई को  घायल और कायल बना देती है एक मुस्कान बदले आपकी जिन्दगी ...मुस्कुराते रहिये


मेरे मित्र हंसमुख भाई ..मिले मैंने उनसे कहा . एक बार मुस्कुरा दो वह बोल उठे क्यों मैंने कहा ..भाई ..आज विश्व मुस्कान दिवस है . वे सड़ा सा मुँह बना के बोले कैसे हंसू देश और समाज का सत्यानाश हो गया है दर्द इतने बढ गये की मुस्कान आती नही बाय चांस भी नही आती क्योकि बचपन में दोस्त कहते थे हंसा की फंसा   उसे आज तक मान रहा हूँ मैंने छेड़ते हुए कहा कि  आपका नाम  हंसमुख  किसने रखदिया वह बोले ..नाम में क्या धरा है हंसमुख की व्यथा सही थी कदम -कदम पर जीवन की राह कठिन ,बढती महंगाई, बढ़ते अत्याचार, बलात्कार ,भ्रष्टाचार ,झूठ ,फरेब ऊपर से घोर मंदी गिरते रुपये   के चलते मुस्कराहट न आना लाजमी है
      अपराधी चुस्त ,सरकार सुस्त ..हम कैसे रहे तंदरुस्त  ..ने आम आदमी ..की ख़ुशी और मुस्कान को  ग्रहण लगा दिया है .मुस्कान मांगने पर भी नही मिलती ....फिर भी आज तो मुस्कराइए ......

संजय जोशी 'सजग '

रविवार, 29 सितंबर 2013

प्रयास-

                    ---प्रयास-----
शुद्ध पर्यावरण का हो हमेशा हमारा प्रयास
नदियों में बहे निर्मल जल  हो हमारा प्रयास
जन -जन के स्वाथ्य और जीवन का आधार
 प्रकृती खिलखिलाती रहे हमेशा हो हमारा प्रयास
---------संजय जोशी "सजग "-----------------

शुक्रवार, 27 सितंबर 2013

बापू का देश



बापू का  देश 


बापू हमारे देश में
नेता हे खादी के वेश में
प्रजातंत्र के रखवाले हे
देश इनके हवाले हे
किसान आत्म हत्या करता हे
शिक्षक काम के बोझ से मरता हे
जनता भूख से बदहाल हे
बापू देश का यह हाल हे
न्याय बहरा गुंगा हे
जनसेवको ने जनता को ठगा हे
जनतंत्र में भ्रष्टाचार हे
हर पत्र में यही समाचार हे
देश में संप्रादाएवाद एवं जातिवाद हे
क्षेत्रवाद एवं भाषावाद हे
आतंकवाद एवं नक्सलवाद हे
परिवारवाद एवं अवसरवाद हे
देश में कए बेईमान हे
फिर भी हमारा भारत महान हे
सड़को पर लगता जाम हे
यह समस्या आम हे
नाम के लिये हर कोई मरता हे
काम कोई नहीं करता हे
बापू आजाद भारत की यह कहानी हे
यह हिंदुस्तान जनता की जुबानी हे

संजय जोशी "सजग"

रविवार, 22 सितंबर 2013

करसाण रो दुःख [मेरी मालवी कविता ]

करसाण रो दुःख [मेरी मालवी कविता ]


धरती माता रोवे
धरती पुत्र भूखो सोवे
ऊ करजा में जन्मे है
ने कर्जा मेंज मरे है

लेण रांदे है घणी
कस्तर दे खेत में पाणी
टेम पे मिले नि बिज
टेम पे मिले नि खाद
फसला वई जाये बरबाद

जदे मोसम की मार पड़े रे
करसाण कई करे
फसल अई जावे तो
हाउ भाव नि मले रे

सरकार असो कारज करे .
अन्नदाता कदी बेमोत नि मरे

------ संजय जोशी "सजग "


*करसाण...किसान

बुधवार, 18 सितंबर 2013

सोशल नेटवर्क साईटस प्रदूषण की शिकार


रविवार, 15 सितंबर 2013

सम्बोधन


सम्बोधन [मुक्तक]
स्वार्थ की नियत से बदल जाते सम्बोधन
रोज -रोज गिरते राजनीति में सम्बोधन
समझना कठिन रोज बदलती मानसिकता
संस्कृति के लिए घातक घटिया सम्बोधन
--------संजय जोशी "सजग "---------------

शनिवार, 14 सितंबर 2013

***** भाग्य **************

 
 ***** भाग्य **************
अच्छे संस्कार से निर्मित होता भाग्य
चरित्र और विचार से ही बनता भाग्य
अच्छे कर्म में हमेशा साथ देगा विधाता
सफल जीवन का निर्माता हमारा भाग्य

-----संजय जोशी "सजग "--------------

शुक्रवार, 13 सितंबर 2013

राष्ट्र भाषा की व्यथा

 ** राष्ट्र भाषा की व्यथा**


राष्ट्र भाषा की व्यथा
 दु:ख भरी इसकी गाथा
 क्षेत्रियता से ग्रस्त हे
 राजनीति से त्रस्त   हे      
 हिन्दी का होता अपमान
 घटता हे भारत का मान
 हिन्दी दिवस पर्व हे
 इस पर हमें गर्व हे
 सम्मानित हो राष्ट्रभाषा
 सबकी यही अभिलाषा
 सदा मने हिन्दी दिवस
 शपथ लें  मनें पूरे बरस
 स्वार्थ को छोड़ना होगा
 हिन्दी  से नाता जोड़ना होगा                                                      
  हिन्दी का करे कोइ अपमान
 कड़ी सजा का हो प्रावधान
 हम सब  की  यह   पुकार 
 सजग हो हिन्दी के लिए  सरकार  
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संजय जोशी "सजग "

         

------- हिंदी ---------



--------  हिंदी ---------
भाषा जब सहज बहती
संस्कृति,प्रकृति संग चलती
भाषा सभ्यता की सम्पदा
सरल रहती अभिव्यक्ति सर्वदा
कंप्यूटर के युग के दोर में
थोपी जा रही अंग्रेजी शौर में
      आधुनिकता की कहते इसे जान
      छीन रहे है हिंदी का रोज मान 
      हम सब मिलकर दे सम्मान 
      निज भाषा पर करे अभिमान 
      हिदुस्तान के मस्तक की बिंदी
      जन जन की आत्मा बने हिंदी
      हिंदी के प्रति होगे हम सजग
      राष्ट्र भाषा को मानेगा सारा जग

      -------संजय जोशी सजग ----

हिन्दी का अंग्रेजीकरण



हिन्दी का अंग्रेजीकरण

    वर्तमान में हमारी राष्ट्र भाषा हिंदी उसके अंग्रेजीकरण से अपने मूल स्वरूप को खोती जा रही है हिंदी में कई ऐसे शब्द है जो अंग्रेजी से सरल और सहज है फिर भी अंग्रेजी मानसिकता के कारण हिंदी के साथ मिश्रित कर बोलने व लिखने  का दौर चल रहा है अंग्रेजी आजकल आधुनिकता का पर्याय बन गयी है
हिंदी पर अंग्रेजी के अतिक्रमण के कारण कई हिंदी शब्द लुप्त हो रहे या लुप्त होने की कगार पर है समय रहते हमने हमारी राष्ट्र  भाषा हिंदी  को सहेजने के और प्रयास
नहीं किये तो भाषा की अस्मिता को खतरा उत्पन्न हो जायेगा

सूचना प्रोद्योगिकी के दोर में कई राष्ट्रों की राष्ट्र  भाषा संकट के दोर से गुजर रही है लेकिन जिस तरह से अंग्रेजी हमारी भाषाओँ पर हावी होती जारही है या हावी किया जा रहा है यह सिर्फ चौकाने का  ही नहीं चिंता का विषय है अंग्रेजी का आक्रमण हमारी  की प्रकृति भाषाओँ और प्रवृति दोनों पर पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है वेश्वीकरण और कम्प्यूटरकरण की दुहाई देकर हमारी भाषाओँ पर  अंग्रेजी थोपी जारही है ,लेकिन सच्चाई  यह भी है की कहीं न कहीं यह अहसास भी कराया जा रहा है की अंग्रेजी आधुनिकता  का प्रतीक है ओर अंग्रेजी उच्चता का प्रमाण पत्र है

अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा नई पीढ़ी को राष्ट्र  भाषा से दूर कर दिया , अपनी समझ और अभिव्यक्ति जितनी आसानी से अपनी मातृभाषा में होती है वह अन्य भाषा में नही ,कई राष्ट्र है जो अपनी राष्ट्र भाषा का पूर्ण सम्मान करते  तथा उसका अधिकतम उपयोग कर उसे अन्य भाषा से सर्वोपरी मानते है हमारे देश की दुखद: स्थिति है हिंदी को अंग्रेजी की तुलना में कम आँका जाता है और हिंदी के उपयोग करने वालो को निम्न कोटि का समझा जाता है

 राष्ट्र भाषा हिंदी पर  अंग्रेजी के प्रहार  के साथ साथ क्षेत्रीय बोली , जातियता  व राजनैतिक आघातो को निरंतर सहना उसके पतन का  कारण है

हिंदी  इतनी सम्रद्ध भाषा होने के बावजूद  हमारी  सर्वोच्च संस्थाओ का पूर्ण मनोयोग
से इसके प्रति गंभीर न होना दुःख का कारण है

भाषा संस्कृति का वाहक होती है ,अपनी राष्ट्र भाषा के प्रति उपेक्षा पूर्ण दृष्टीकोण के बारे में समग्र चिन्तन की आवश्यकता है नही तो भाषा अपनी मान्यता के साथ प्राणवत्ता भी  खो देती है

   हिंदी दिवस वर्ष में एक बार मनाकर हम राष्ट्र भाषा के प्रति अपनी  श्रद्धा का प्रचार
प्रसार तो कर देते है पर इसकी  दुर्दशा से  टीस तो होती है हर राष्ट्र भक्त के मन में
 टीस को टीस न रहने और कुछ कर दिखाने का संकल्प ले .
         

संजय जोशी सजग