मंगलवार, 13 जून 2017

टच से टच में रहना [व्यंग्य ]

टच से टच में रहना [व्यंग्य ]



           टच स्क्रीन मोबाइल का अविष्कार क्या हुआ ,अब समाजिक ताना बाना  टच पर निर्भर हो गया है या हम यह कहे कि मेलजोल की संस्कृति बनाम टच संस्कृति हो गई है हालांकि कुछ गांव  इससे आंशिक रूप से अछूते है l दुनिया  मुठ्ठी में की जगह अब टच स्क्रीन पर सिमट गयी lसामाजिक  संबंध इसी पर निभाए जाने लगे है l जन्म ,.मरण और अन्य किसी भी प्रकार की सूचना पोस्ट करो और भार  मुक्त हो जाओ l  टच से टच में रहने के आदि हो गए हैं l बधाई संदेश और श्रद्धांजलि का कार्यक्रम यहीं निपट जाते है l दोनों और से सूचना का आदान प्रदान टच से हो जाता है l आजकल तो मोबाइल ही सब कुछ है जो हमारे साथ सदैव बने रहते हैं मोबाइल महाराज कब संजय की तरह उवाचने (बोलने) लगे कोई नहीं बता सकता। हमारे महाकवियो  ने ईश्वर के  इतने रूपो का वर्णन नहीं किया होगा तथा उनकी लीलाओं का उदगान नहीं किया होगा, उनसे ज्यादा तो आज के बहुरूपिये  मोबाइल को नये-नये रंगो, डिजाइनो में पेश किया है।नारद जी  के जमाने  में यह सुविधा होती तो उन्हें सब लोको में भटकने से मुक्ति मिलती l 
 इससे पहले हम सब ईश्वर का  ध्यान कर  सोते थे और उठने के बाद भी ईश्वर का ध्यान करते थे अब सोने से पहले  टच के दर्शन करते है और उठते ही पहला काम टच का दर्शन करना  हमारी नियती हो गई है l कब कोनसा मैसेज टपक जाये  यही चिंता सताये रहती है और इसी गुन्तारे  में  थोड़ी -थोड़ी देर में मैसेज देखने की आदत पढ़ गई और हम धन्य हो गये कि  हमारा  चित हमेशा  चैतन्य रहने लगा l कहीं सक्रिय हो या न हो पर टच स्क्रीन पर कई गुना सक्रिय रहने लगे है l वरिष्ठ नागरिक पूर्णतया अपनी आचार संहिता का पालन करते है बाकी की  तो वही जाने l हमारी व्यक्तिगत स्वतंत्रता को छीन लिया है। यानि के जीवन का क्वालिटी टाइम या प्राइम टाइम जिसे हमें अपने परिवार, बच्चों व समाज में बिताना चाहिए वह मोबाइल पर व्यर्थ किया जाता है। नेट डाटा फ्री बांटकर कम्पनियाँ और ज्यादा असामाजिकता का विस्तार कर रही  है इसी में उलझे रहो l  ऐंटी रोमियो स्क्वाड  जब  से सक्रिय  हुआ  ने  टच  से टच में  रहने का चलन और फल फूल रहा होगा l 
                      टच का स्क्रीन  ज्ञान के आदान प्रदान याने  की इधर का उधर चस्पा करने  की होड़ लगी रहती है कुछ तो बिना देखे ही फारवर्ड कर  देते है  lग्रुप में  ऐसी फजीहत आये दिन होती रहती है माफ़ी मांग मांग कर अपने को मिस्टर क्लीन बताने की मशक्त करते रहे है क्या करे  टच से टच  में रहने की आदत जो पड  गई l दिल से नहीं  तकनीकि रूप से जुड़ाव हुआ है l  झूठ के प्रतिशत में बढ़ोतरी इसी से हुई है lटच से टच  में रहना एक कर्मशील  व्यक्तित्व की निशानी बन चुका है ,अपनी -अपनी   हैसियत  के आधार  पर कोई एक तो कोई एक से अधिक  से यह  सामाजिकता  निभा रहा है तथाअपना स्टेटस   मेंटेन करहा है  क्योकि  यह आजकल   स्टेटस सिम्बॉल हो गया है l दिल है कि  मानता ही नहीं  और दिल करता है  टच से टच में रहूं l

शनिवार, 3 जून 2017

है ! वोटरों ,अवगुण चित न धरो [व्यंग्य ]


है ! वोटरों ,अवगुण चित न धरो [व्यंग्य ]

बेताल ने विक्रम से प्रश्न किया कि हैं  राजन ,गुण और अवगुण में कौन श्रेष्ठ है? राजन बोले  हर युग में गुणों  का स्थान सर्वोपरि है।  यह सुनकर बेताल रावण की हंसी की तरह जोर से  हंसा  कहने लगा कि कलयुग में तो  अवगुण  ही गुण  पर हावी है गए जमाने  गुण के  आज में आपको  कलयुग में  गुण -अवगुण के हाल बताऊंगा ,है राजन आप चुपचाप सुनते जाइये --राजतंत्र से लोकतंत्र स्थापित हुआ जबसे  राजनीति अपने चरम पर है  बुद्धिजीवीयों  ने  अपनी आंखें बंद कर रखी है और मनुष्यों में  एक विशेष  तरह की  नस्ल नेताओं  की होती है l इनमें  अवगुणो की खान होती है कलयुगी राजनीति इसके बिना अधूरी है l  गुणों से लेस नेता  भी  अपवाद स्वरूप पाए जाते है इनकी संख्या नगण्य है और दिनों दिन  इनकी संख्या घटती जा रही है lजो लोकतंत्र के लिए  घातक है l  नेताओं के खौफ से हर कोई कुपित  है l इन सबका जिम्मेवार कौन है? और सबसे बड़ी बात यह कि सबसे बड़ा दोषी कौन है? जनता  जो इनको झेलती है वो ,या वोटर ?

                          राजा  विक्रम  चुपचाप  बेताल की  सत्य कथा सुनते जा रहे थे और मन ही मन  कुपित हो रहे थे ये सब क्या हो रिया है ? कब तक चलता रहेगा ?फिर भी बिना ताल के बात सुनना राजन को भारी  लग लग रहा था l भारत वर्ष   में दिल्ली शासन का  एक मुखिया है l जो आदर्श राजनीति  करने के लिए अवतरित हुए थे उनके साथी भी ऐसे ही मिले  ,कहते है ना  अवगुणों  वालो की दोस्ती जल्दी होती है l  चुनाव लड़े , जनता ने भरपूर जनसमर्थन दिया पर समय के साथ उनका समूह विवादो के घेरो  में आ गया  , आपस में लड़ने लगे उन  पर  कई तरह  के आरोप  लगा रखे  है आरोपों के जनक  ही आरोपों के घेरे में आ गये ? उनका पूर्व मंत्री रोज -रोज नए खुलासे  करता है l जिससे वे बड़े खिन्न है  और  अभी तक कोई   प्रति उत्तर नहीं दिया है  प्रजा भी उनके  मुखारविंद से सच  जानने को उत्सुक है ? पर उनके  मुख पर ताले  पड़े   है   l जनता ने ही चाव से उन्हें चुना था अब वे चूना लगा रहे है, जनता ऐसा मानने लगी है जब गलत  नहीं तो डरना क्यों ? सबसे  ज्यादा  आरोप  लगाने ,सब को  गुणहीन, भ्रष्टाचारी समझने  वाला ,सबसे अधिक ट्वीट और प्रेस कांफ्रेंस करने वाला जब अचानक मौन  हो जाता है तो दाल में काला नजर आयेगा   ?जनता भी अवगुणो से परिचित होने लगी है और ठगी सी महसूस करने लगी है l  और वे मन  ही मन अपने पोल खुलने से ,अपने सिद्धांतों की  बलि चढ़ने से अपनी साख को बचाने के गुन्तारे   में होंगे  पर क्या करे ?
बेताल  लगातार राजन को बताये जा रहा था कि वे राजनीति बदलने आये थे  खुद बदलकर उसमे समा  गये ,जनता के  अरमानो पर पानी फेर दिया l धरना दे  दे कर खुद भी धर,ना सिख  गये ,राजनीति  काजल की कोठरी है जो  जाता है काला हो ही जाता है l रेन कोट भी शर्माने लगे है, मुखौटे हटने लगे है ,ऊँची गर्दन करने वाले नीची करने को मजबूर है ,अपनों ने  ही लूटा l  है राजन आप तो न्याय और सत्य के संरक्षक हो , आप ही बताये -ऐसा करना कहाँ  तक उचित है ? वोटरों का विश्वास तोडना ,  चुनावी वादे तोडना ,झूठे सपने दिखाना।एक अच्छे शासक में अवगुण नहीं गुण होना चाहिए l अगले चुनाव में  वोटर के सामने  कहेंगे -है ,वोटरों !अवगुण चित न धरो l वोट हमको ही करो l  राजन कहने लगे  कि जनता तो जनता है सबको सबक सिखाना जानती है l अवगुणों पर ही चित धरती है l 

संजय जोशी " सजग "

मालवी हायकू

मालवी हायकू 
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१ 
झूठो सामान 
हांच री दुकान में 
बिकतो गयो 
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2
 
वादरो  रोयो 
म्हारी आँखा में आलो 
पाणी आयो 
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गोधूलि सांज 
चंदन जैसो धुरो 
माटी री गन्ध 
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तालाब सुख्या 
चिड़ी हाफडे ,पिये 
कटोरी पाणी 
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हाँच कड़वो 
रूपारो लागे झूठ 
बाजी  में जीत 
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 तपी धरती 
लाल अंगार बणी 
झाड़का छाँव 
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भूल्या तेवार 
आपसी व्यवहार 
करे व्यापार 
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८ 
तीखो  तड़को  
घणा याद आवेरे 
हरा झाड़का 
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 म्हारी मालवी 
अस्तर लागे  मीठी
 गोल री ढेली 
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10 
सबसे न्यारो 
जगत  में रुपारो 
म्हारो मालवो 
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संजय जोशी "सजग "