रविवार, 12 फ़रवरी 2017

डिजीटल युग के प्रेम में हिचकी भी डिजीटल हो गई [व्यंग्य ]

 

संजय जोशी सजग।
हर क्षेत्र में डिजिटल की घुसपैठ जारी है। डिजिटल युग है और सरकार भी डिजिटल इण्डिया के लिए जीजान से लगी है। ऐसे में प्रेम कैसे अछूता रह सकता है ,प्रेम भी डिजिटल होने लगा है ,स्मार्ट फोन से स्मार्ट लोग इसे अंजाम देते हैं चैट ,वॉइस कॉल और विडियो कॉलिंग और न जाने कितनी स्योशल एप्पस भी इसमें सहायक है। प्रेम पत्र का चलन समाप्त होने के कगार पर है। अब तो ऑन लाइन ,कहीं भी कभी भी दिल की बाते हो जाती है प्रेम के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण बदलाव की बयार है। हर प्रेमी की एक अदद जरूरत स्मार्ट फोन और नेट पैक। प्रेमी ,प्रेमिका की अपनी रिंग टोन ,मेसेज अलर्ट सब स्पेशल,जिसे वो ही समझे कि किसकी हिचकी आई ,आजकल हिचकी भी डिजिटल हो गई है। प्रेम में पहले बरसों इंतजार में गुजार दिए जाते थे, लेकिन अब कोई इंतजार में वक्त 'जाया' नहीं करता। अब प्रेम के स्वरूप, स्थायित्व और उसे अभिव्यक्त करने के माध्यमों में बदलाव आ रहा है।

कबीरदासजी बहुत पहले कह गये कि "ढाई अक्षर प्यार का पढ़े सो पंडित होये " हर प्रेमी अपने आप को प्रेम का पण्डित ही मानता है फिर भी अज्ञानी है प्रेम से कोई तृप्त हुआ है ? प्रेम की कोई थाह नही। सिर्फ चाह और चाह ,और चाह वहां राह ,कुछ भी करलो प्यार को कोई बाँध नही सकता ? प्यार को हताश करने के कई हथकण्डो से भी प्यार हताश नही होता है बल्कि और परवान चढ़ता है यहां न्यूटन का तीसरा नियम लागू होता है क़ि " क्रिया की प्रतिक्रिया होती है याने जितने अवरोध आएंगे, प्रेम और बढ़ता है। आये दिन समाचारो में प्रेमी युगल की हत्या और आत्महत्या की सुर्खियों के बावजूद प्रेम अपना कार्य निर्बाध गति से करता रहता है।
फरवरी तो यूँ भी प्यार का ही महीना है बसन्त ऋतु और वेलेंटाइन डे प्रेमी प्रेमियों के लिए सौगात लेकर आता है। प्यार करने वाले और रोकने वालो के बीच एक बड़ी बहस चालू हो जाती है और प्रेम के अंधे को तो प्रेम ही नजर आएगा। वाट्सअप पर दोनों तरह के मेसजो की बहार आ जाती हैं। इस मौसम मे तो बासी कड़ी में भी उबाल आने का खतरा बढ़ जाता है। इश्क में रिस्क ही रिस्क नजर आने लगती है।
ढाई अक्षर पढ़ कर प्रेम के पण्डित बनने वाले ,प्रेम की थ्योरी और प्रेक्टिकल में गहरे अंतर को भी लिख गए है पर ढाई अक्षर के बाद क्या कुछ पढ़ने की जरूरत नही है? डिजिटल प्रेम तो रोज अर्श से फर्श पर आता रहता है इसमें आभासी और काल्पनिक प्रेम का प्रतिशत तो बड़ा दिल ,दिमांग और मन भी डिजिटल हो गया है। मालवा में तो चतुर सुजान को ही डिजिटल कह देते हैं। किसी भी शास्त्र में 'प्रेम क्या है', ऐसी परिभाषा ही नहीं दी?
यह क्यों होता है? कैसे होता है? कब होता है? किससे होता है? इन प्रश्नों के सटीक जवाब आज तक कोई नहीं दे पाया है। कभी दुनिया प्रेम करने वालों को सर-आँखों पर बैठा लेती है तो कभी प्रेम में तलवारें खिंच...खिंच जाती हैं, गोलियाँ चल जाती हैं और खून की नदियाँ बह जाती हैं। यूँ तो प्रेम के सबके अपने-अपने मायने हैं। प्रेम को लेकर सबकी अपनी सोच है। माना जाता है कि प्रेम का संबंध आत्मा से होता है। प्रेम में समर्पण, विश्वास और वचनबद्धता की दरकार होती है, लेकिन आज समय बदल रहा। है।मौसमों के बदलने की तरह उसके 'ब्रेक अप' और 'पैच अप' होते हैं। वह मानता है कि बिना गर्ल फ्रेंड के कॉलेज लाइफ में मजा नहीं है,लेकिन शादी के लिए वह घरवालों से बैर लेने के 'मूड' में नहीं होता। प्रेम की परिभाषा तो कबीरदास जी ने ही दी है।
वह क्या कहते हैं ,सबसे 
सच्चा प्रेम घड़ी चढ़े, घड़ी उतरे, 
वह तो प्रेम न होय,
अघट प्रेम ही हृदय बसे, प्रेम कहिए सोय।'
घड़ी में चढ़े और घड़ी में उतरे वह प्रेम कहलाएगा? यह सच्चा प्रेम तो ऐसा है कि जिसके पीछे द्वेष ही नहीं हो। जहाँ प्रेम में, प्रेम के पीछे द्वेष है, उस प्रेम को प्रेम कहा ही कैसे जाए? एकसा प्रेम होना चाहिए। हम आज भी प्रेम में सरल रेखा नही मानते है प्यार में जिगजेग होना ही प्यार की निशानी है प्यार में सन्तुष्टि मतलब प्यार का अंत अत: प्यार करने वाले असन्तुष्ट ही पाए जाते है। और डिजिटल के जमाने में तो प्यार की दिशा और दशा ही समझ नही आती है l प्यार का अपना महत्व है। निश्छल प्रेम तो कृष्ण और गोपियो था। समय बदला प्यार के मायने बदले,औरप्रेम वह प्रेम नही रहा ये तो डिजिटल हो गया जी।