सोमवार, 22 अक्तूबर 2018

वो मेरी नहीं सुनते ---[व्यंग्य ]

वो मेरी नहीं सुनते ---[व्यंग्य ]
                  हर पत्नी का ऐसा  कहना  है कि" वो मेरी नहीं सुनते "सुनते होते तो क्या बात थी , यह हर पत्नी का तकिया  कलाम  है l बेचारा पति सुन सुन के अनसुना करने में दक्ष हो जाता है और  इसी दक्षता के कारण आदमी से परिपूर्ण पति  बनता है l हर शादी -शुदा आदमी " अरे सुनो "सुनकर  चौकन्ना हो जाता है l पत्नी का यह ब्रह्म वाक्य उसे किसी गंभीर समस्या से रूबरू कराता है l जैसे सीता जी ने राम जी  को  "अरे सुनो " का ब्रह्म वाक्य बोलकर  सोने का हिरण लाने  का कहा हो  ऐसा हो सकता है  l कैकई ने राजा दशरथ से अपने वचन  पूरा करने को  कहा होगा l ठीक है यह शब्द पति पत्नी के वार्तालाप   का एक हिस्सा हो  सकता है l अरे सुनो बोल बोल कर  न जाने क्या क्या सुनाती है जब तक पति ,विचारहीन न हो जाए l यह  वाक्य इतना शक्ति शाली  है की कोई भी इससे अछूता नहीं रहा है क्या आदमी ,क्या भगवान l इसको इग्नोर करने की  हिम्मत नहीं कर  पाता , पति नाम का प्राणी l  पत्नी समाज , परिवार में बार बार यह संदेश देने में नहीं हिचकती  की " वो मेरी नहीं सुनते " तथा मेरी  नहीं चलती का लेबल लगाकर  पति  को  एक तरफा निर्णय का जिम्मेदार बना देती है  यह घर -घर की कहानी है पर अब यह घर से बाहर निकल कर आम होने लगा हैं l पति की तरह ,अधिकारियों पर आरोप लगने लगे है कि  वे हमारी  नहीं सुनते l यह बात ट्रेन में यात्रा करते वक्त हमारे मित्र चौबे जी ने  कही ,   आये दिन  यह समाचार पढ़ने  को मिलता है  कि   फंला  चुने हुए प्रतिनिधि   की  बात अधिकारी नहीं  सुनते ,फाइल  आगे नहीं बढ़ाते  ,उसकी उससे पटरी नहीं बैठती , खेल टीम के कप्तान  भी, "मेरी नहीं सुनते "इससे  परेशान है , यह  समाचार अब किस्से बनने लगे है l 

             चौबे जी बताने लगे जब कोई किसी की नहीं सुनता है तब मीडिया दोनों की सुनकर हेड लाइन  बनाकर दिखाता है और  सुनाता है कि  अधिकारी उस  जन सेवक की नहीं सुनते जनता सर ठोकती है जब अंदर की खबर मालूम पड़ती है कि  जन सेवक को ही नहीं मालूम  क्या करवाना चाहता है ? कायदे कानून तोड़कर तो हम भी कुछ कर  सकते है l एक युवा अधिकारी तेश में आकर कहने लगा कि नो नॉलेज विदाउट कॉलेज तो   हम  क्या करें  ?हम समझते है  उन्हें  कुछ समझ नहीं आता , वे समझते हैं  तो हमें  समझ नहीं आता ? और बात रबर की तरह खींचती चली जाती है आखिर कब  तक ? हम भी पगला गए है  न जाने कैसे कैसे चुनकर आ जाते  है और हमे बदनाम करते है "वो मेरी नहीं सुनते "l हमारा क्या दोष ?हम तो बैठे ही सुनने के लिये  हैं ,काम करें  तो भी सुने , न  करें  तो भी सुने l तलवार खरबूजे पर गिरे या खरबूजा तलवार पर कटना खरबूजे को ही है l काम हो या हो आरोप ,हमें  ही झेलना है सुनना हमारा फर्ज है सुनाना उनका  कर्ज है  जो जनता को चुकाना है l जनता तो बेचारी सेंडविच की तरह हो गई है उनकी तो दोनों ही  नहीं सुनते l कौन किसकी नहीं सुनता है ? कभी कभी लगता है कि यह भी साजिश है सांप भी  मर जाये और लाठी भी न टूटे ,सीधा मतलब है कि किसी का काम भी न हो  और  सामने वाला  नाराज  भी  न हो यही भी एक कूट नीति है l सुनने न सुनने की गुत्थी उलझी हुई है और इसमें सब को उलझा रखा है l सनम हम न तो सुनेगे और न सुनने देंगे  शोर  में आवाज  ही दबा देंगे l 
संजय जोशी "सजग " [ व्यंग्यकार ]

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