शनिवार, 18 नवंबर 2017

सीडी ,जैसे हो ब्रह्मास्त्र [व्यंग्य ]

सीडी ,जैसे हो ब्रह्मास्त्र     [व्यंग्य ]

                           सीडी की चर्चा सुनकर बिल्लू भिया कहने लगे कि  समय बड़ा  ही  बलवान है।  कलम ने  तलवार की ताकत कम की और सीडी ने दोनों को ही शक्तिहीन बना दिया l राजनीति में  साम ,दाम ,दण्ड और भेद   साथ अब सीडी  भी जुड़ने को उतावली है क्योकि डिजिटल युग में सीडी काण्ड चरम पर है l इण्डिया में सीडी  का महत्व इस कदर बढ़ गया है कि यह एक हथियार की तरह उपयोग की जाने लगी है चरित्र बनाने से बिगाड़ने तक में सीडियां अपना जौहर दिखा रही है l सीडी भी सांप सीढ़ी   खेल  की तरह हो गई है व्यक्ति के चरित्र के सेन्सेक्स को उप डाउन तथा ब्लेकमेल  करने का ब्रह्मास्त्र बनती जा रही है lराम रावण के युद्द में लंका कांड हुआ था।  तब से तरह -तरह के काण्ड  पर काण्ड होते जा रहे डिजिटल युग में  सीडी कांड के सहारे नेताओ के कर्म कांड वायरल हो रहे है वायरल शरीर का नाश करता है और सीडी वायरल चरित्र का नाश कर देता है और  राजनीति  में भूचाल आ जाता  है l किसी किसी का तो राजनीतिक जीवन भी बर्बाद कर  देती है ये सीडी ,पोलखोल या झोल का एक आधुनिक तरीका है  l यही सीडी किसी के लिए सीढ़ी की तरह ऊपर उठा देती है तो किसी को गर्त में l अर्श से फर्श और फर्श से अर्श तक  सीडियां अपना गुल खिलाती है l 

                            बिल्लू भिया परेशान होकर पूछने लगे कि-  ऐसी  वैसी  सीडी  का चुनाव  के समय   आना ,दाल में कुछ काला जरूर  है ?  या  दाल ही काली है ?चरित्र हनन  है या स्वार्थ पूर्ति के लिए  ?सीडी को  उजागर करने में मौके की तलाश क्यों ?अगर सच्चाई है तो देश और समाज हित में दबाकर क्यों रखी गई ?मैंने  कहा बिल्लू   भिया ऐसे सब काम प्लानिंग और गेम के तहत किये जाते है l चुनावी गेम जीतने का हथकण्डा भी हो सकता है ?मरता क्या न करता ?पक्ष हो विपक्ष सबकरते  सीडी  को ब्रह्मास्त्र की तरह प्रयोग l राजनीति के दलदल में कोई नहीं है दूध का धुला l किसी से सही ही कहा  है ---
                    सीडी नेता के लिए जैसे हो ब्रह्मास्त्र 
                   और सजाये आधुनिक राजनीति का शास्त्र

सीडी ने किसी को हंसाया तो किसी को रुलाया l  किसी ने सीडी को बनाया सीढ़ी और किसी को नीचे उतारा lऐसी सीडी  के वायरल होने गति कौन नाप सकता है?कोनसी  सीडी  कितना  कहर बरपायेगी कौन जाने ? यह तो वक्त बतायेगा  सीडी ,सीढ़ी बन पाई या नहीं l सीडी  बनाम  पोल खोल  या झोल  का खेल  है l 

संजय जोशी 'सजग "

मंगलवार, 7 नवंबर 2017

छा गयी खिचड़ी [व्यंग्य ]

छा गयी खिचड़ी [व्यंग्य ]
सोशल मीडिया पर रोज नई नई  खिचड़ी पकती  रहती है अब असल में ही खिचड़ी पकाकर  " राष्ट्रीय व्यंजन " बना  दिया गया l पिछले दिनों सोशल मीडिया पर चर्चा रही कि पारंपरिक डिश खिचड़ी को राष्ट्रीय व्यंजन घोषित कर दिया गया है। मामला इतना बढ़ गया कि केन्द्रीय खाद्य मंत्री  को खुद सफाई देनी पड़ी।  उन्होंने  कहा कि खिचड़ी को सिर्फ वर्ल्ड फूड इंडिया इवेंट के लिए सिलेक्ट किया गया है ताकि उसको और मशहूर किया जा सकें ।एक  खिचड़ी  प्रेमी  यह बात सुनकर आग बबूला होते   हुऐ  कहने लगे ,जो पहले से प्रसिद्ध है उसके लिए इतनी खिचड़ी पकाने  की क्या  जरूरत पड़ गई ,यह यूँ ही राष्ट्रीय व्यंजन है lछोटे बच्चोँ  के खाने की शुरुआत इसी से की जाती है ताकि जीवन भर  अपनी  खिचड़ी अलग पका सके और धीरे -धीरे वह  इसमें इतना पारंगत हो जाता है कि हर सामने वाले के  दिमाग में  खिचड़ी  पकती दिखाई देती है l वर्तमान के दौर में यह  मुहावरा सार्थक लगता है"अपनी खिचड़ी   अलग पकाना "l  
                       खाना बनाना  सिखाने की शुरुआत भी इसी ब्रम्हास्त्र से की  जाती है जो जीवन भर पग पग काम  आती है, खिचड़ी हर महिला का पसंदीदा व्यजन है राष्ट्रीय समस्या -क्या बनाऊ  का अंतिम हल  भी यही है जो शांति  और खुशी का पर्याय है  खिचड़ी पर आम सहमति बनने की बाद   यह बहुत बड़ी जंग जीतने जैसा लगता है  lदिन भर कितनी भी खिचड़ी पका लो   पर  परम् सत्य  यह    है कि खाने  में खिचड़ी    इसलिए सुकून देती है  प्राण प्रिये का चेहरा इस के बनाने से फूलता नहीं है और पारिवारिक शांति का घटक है इस लिए सब सहर्ष स्वीकार कर  लेते है ,क्यों  न बने यह अंतराष्ट्रीय  व्यंजन ? खिचड़ी की फरमाइश अब गर्व के साथ करने समय आ गया है चैनलों  पर तरह तरह की खिचड़ी पकाई जाएगी और साथ में हम  भी पकने को तैयार रहें l फास्ट और सुपर फ़ास्ट दोनों  में ही खिचड़ी खाने का चलन है
दही ,अचार ,पापड़ के साथ भाती है  खिचड़ी अब तो शादियों में भी कढ़ी  ,खिचड़ी के स्टॉल लगाए  जाते है l  पति के बाहर जाने पर खिचड़ी खाकर पत्नी  गॉसिपिंग में लग जाती है l पत्नी के मायके जाने पर  पति  के पेट पूजा का यहीं  सहारा  होती है l पत्नी की उपस्थिति में यहीं खिचड़ी बोरिंग लगने लगती है l 
  राजनीति  में भी यह बहुत प्रिय  है ,देश में खिचड़ी सरकार तक बन जाती  है l खिचड़ी स्वास्थ्य के  लिए तो लाभकारी है परन्तु राजनीति  की  खिचड़ी तो देश को रसातल में ले जाती है, तब लगता है खिचड़ी तू तो देश के लिए हानिकारक है l आम जनता बेरोज़गारी, महंगाई , दाल चावल , आटा , सब्ज़ी, तेल, पेट्रोल, रसोई गैस की बढ़ती कीमतों के बारे में सरकार को घेरे इससे बचने के लिए सरकार नयी-नयी खिचड़ी पका देती है l हमारा देश ही  खिचड़ी का बहुत बड़ा उदाहरण है ,खिचड़ी भाषा  का अपना अलग मजा है  उच्चारण से हम पहचान जाते है कि खिचड़ी का यह घटक कहां  का है ? खिचड़ी हमारे देश का सौंदर्य है l खिचड़ी  बाल से हर कोई परेशान है इसलिए तो डाई बनाने वाले मस्त है l
                             खिचड़ी कहीं सुकून तो कहीं तनाव देती है, खिचड़ी की अपनी अलग पहचान है पर सब अपनी   खिचड़ी अलग अलग पकाएंगे तो देश के उत्थान में कैसे सहभागी बनेंगे l बीरबल  खिचड़ी की बराबरी कौन  कर  सकता है ?अपने आप को  चतुर समझने वाले क्या पकाएंगे बीरबल की तरह खिचड़ी ? पकाएंगे तो सिर्फ स्वार्थ की खिचड़ी l  कुछ भी हो भl गई  खिचड़ी   और छा  गई   खिचड़ी l 

संजय जोशी "सजग 

रविवार, 1 अक्तूबर 2017

हौले -हौले चलती ये झाड़ू [व्यंग्य ]

 हौले -हौले चलती  ये झाड़ू  [व्यंग्य ]
       
               हर साल की तरह २ अक्टूम्बर को  जब -जब आता है सफाई अभियान की याद आ  ही  जती है और हम अपने आपको इसके तैयार करना आरम्भ कर  देते है l  जब  किसी सफाई अभियान में झाड़ू लगायी  जाती है  तो  झाड़ू हौले -हौले  से  चलती  दिखती है .झाड़ू लगाने वाले के चेहरे पर विजयी  मुस्कान के साथ ही उनके हाथ में विशेष प्रकार की झाड़ू होती है लगाने वालों का पूरा ध्यान कैमरों की और होता है l घर की सफाई तो बिना नहाये व पुराने कपड़े पहन  कर की जाने की परम्परा है लेकिन अभियान तो  प्रेस किये कपड़े ,पॉलिश किये हुए जूते विशेष प्रकार की खुशबू वाले  .परफ्यूम. से महकता रहता है क्योकि यह तो सांकेतिक अभियान है सफाई तो वो ही करेंगे जिन्हे करना है l इस अभियान से देश और जनता में जागरूकता आयी लेकिन  जिन्होंने अपनी नौकरी के अंतिम पड़ाव तक कभी अपनी टेबल पर भी कपड़ा न  मारा हो उनके हाथो में झाड़ू देखकर अधिनस्थ  कर्मचारी  मन ही मन सोचते होंगे कि  अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे l 
   कुछ दृश्य ऐसे भी थे जिनमें  एक झाड़ू पकड़े हुए को चार पांच लोग घेरे हुए थे यह सीन ऐसा लग रहा था जैसे  मानो बेट्समेन को चार - पांच फील्डर घेरे हुए है l कुछ  सीन तो साफ करे हुए को साफ़ करने का अभिनय कर रहे थे l  ऐसा लग रहा था कि  केवल औपचारिकतावश मजबूरी में निभा रहे है 
               सफाई करने वाले  साहबों के हाथ में  झाड़ू देख कर हर कोई अभिभूत थे ऐसे में एक महाशय कहने लगे चलो कुछ तो समझ आयेगा कि  खाली पिली सफाई -सफाई का खौफ पैदा करने से कुछ नहीं  होता है  बंद अक्ल का  ताला भी खुलेगा ऐसे ही कदम -कदम मिलाकर  सफाई करने से ही कुछ होगा खाली चिंता से कुछ नही l आज मेरा अरमान पूरा हुआ साहब के हाथों  में झाड़ू देखकर  ,कुछ हो या न हो सफाई  करने पर यह तो समझेंगे की गंदगी नही करना है तो भी आधी  समस्या हल  हो जाएगी l 
                       एक नेताजी कहने लगे कि  हमने शपथ ली है की न गंदगी करूंगा 
और न करने दूंगा ,मैंने  कहा शपथ लेना तो आसान है पर पालन करना कठिन है सविंधान की शपथ खाकर भी तोड़ने वालों  की कमी नही है   तो इस शपथ का क्या होगा?
नेताजी कहने लगे  देखते हैं  क्या होता है हर क्षेत्र तो गंदगी से पटा पड़ा है लोगों  के दिमाग के जालों  की सफाई की भी जरूरत है केवल शपथ और अभियान से कुछ नहीं होना है जब तक हर आदमी  न सुधरें  l 
                         मेडिकल  शॉप वाला कहने लगा कि  बाम की  खपत बड़ गयी जब से ऐसे लोगों ने झाड़ू उठा ली  कुछ की तो  कमर ही  लचक  गई और कुछ को तो शर्म व भय के मारे सरदर्द होने लगा कि कल से क्या होगा कहीं हमें   कमरे और टेबल की सफाई  भी न करना पड़े l 
                            कई साहबजादों  की पत्नियां  इस अभियान से अति प्रसन्न  थी 
की चलो गुरुर तो टूटा जब ऑफिस और रोड की सफाई की तो घर की  तो आराम से  करवा सकते  है मैंने कहा  कि  पहले न्यूज़ चैनल से बात कर लीजियेगा  सफाई तो तभी कर पायेंगे  क्योकि कैमरा देख कर अच्छे -अच्छों को जोश आ जाता है l वह कहने लगी घर की मुर्गी दाल बराबर होती है अब हमें   रास्ता  तो मिल ही गया है हौले -हौले सब करवा लेंगे l जब बाहर   हौले -हौले झाड़ू चला सकते है तो  घर  पर क्यों नही ?  घर पर हम भी चलवा लेंगे  l हमारे अच्छे दिन की शुरुआत हो गई है इस अभियान से  ऐसा मान सकते है l अभी तक पद का रूतबा दिखा कर कन्नी काटते थे , अब थोड़ी जागृति आयेगी हमें  भी थोड़ी  राहत तो  मिलेगी l  प्राथमिकता  से  घर में भी   सफाई होगी तब ही तो बाहर की कर पाएंगे …। l हौले -हौले   ये झाड़ू चलती रहेगी ...अब न थमेगी अब केवल घिसेगी  और  झाड़ू पर झाड़ू बिकती रहेगी l

संजय जोशी 'सजग "[ व्यंग्यकार ]

मंगलवार, 1 अगस्त 2017

राष्ट्रीय कविश्री नटवरलाल स्नेही -जन्मशताब्दी [ जन्म ४ जुलाई १९१७ ]

मालवमाटी के




राष्ट्रीय कविश्री नटवरलाल स्नेही -जन्मशताब्दी [ जन्म ४ जुलाई १९१७ ]
समारोह जाने का अवसर मिला - एक राष्ट्र कवि के बारे जाना और यह पाया हमारे देश में साहित्य कारो की उपेक्षा सरकारे हमेशा करती आई है l तिकड़मों से दूर रहने वाले गुमनाम हो जाते है l राष्ट्रीय कविश्री को हार्दिक नमन

मंगलवार, 13 जून 2017

टच से टच में रहना [व्यंग्य ]

टच से टच में रहना [व्यंग्य ]



           टच स्क्रीन मोबाइल का अविष्कार क्या हुआ ,अब समाजिक ताना बाना  टच पर निर्भर हो गया है या हम यह कहे कि मेलजोल की संस्कृति बनाम टच संस्कृति हो गई है हालांकि कुछ गांव  इससे आंशिक रूप से अछूते है l दुनिया  मुठ्ठी में की जगह अब टच स्क्रीन पर सिमट गयी lसामाजिक  संबंध इसी पर निभाए जाने लगे है l जन्म ,.मरण और अन्य किसी भी प्रकार की सूचना पोस्ट करो और भार  मुक्त हो जाओ l  टच से टच में रहने के आदि हो गए हैं l बधाई संदेश और श्रद्धांजलि का कार्यक्रम यहीं निपट जाते है l दोनों और से सूचना का आदान प्रदान टच से हो जाता है l आजकल तो मोबाइल ही सब कुछ है जो हमारे साथ सदैव बने रहते हैं मोबाइल महाराज कब संजय की तरह उवाचने (बोलने) लगे कोई नहीं बता सकता। हमारे महाकवियो  ने ईश्वर के  इतने रूपो का वर्णन नहीं किया होगा तथा उनकी लीलाओं का उदगान नहीं किया होगा, उनसे ज्यादा तो आज के बहुरूपिये  मोबाइल को नये-नये रंगो, डिजाइनो में पेश किया है।नारद जी  के जमाने  में यह सुविधा होती तो उन्हें सब लोको में भटकने से मुक्ति मिलती l 
 इससे पहले हम सब ईश्वर का  ध्यान कर  सोते थे और उठने के बाद भी ईश्वर का ध्यान करते थे अब सोने से पहले  टच के दर्शन करते है और उठते ही पहला काम टच का दर्शन करना  हमारी नियती हो गई है l कब कोनसा मैसेज टपक जाये  यही चिंता सताये रहती है और इसी गुन्तारे  में  थोड़ी -थोड़ी देर में मैसेज देखने की आदत पढ़ गई और हम धन्य हो गये कि  हमारा  चित हमेशा  चैतन्य रहने लगा l कहीं सक्रिय हो या न हो पर टच स्क्रीन पर कई गुना सक्रिय रहने लगे है l वरिष्ठ नागरिक पूर्णतया अपनी आचार संहिता का पालन करते है बाकी की  तो वही जाने l हमारी व्यक्तिगत स्वतंत्रता को छीन लिया है। यानि के जीवन का क्वालिटी टाइम या प्राइम टाइम जिसे हमें अपने परिवार, बच्चों व समाज में बिताना चाहिए वह मोबाइल पर व्यर्थ किया जाता है। नेट डाटा फ्री बांटकर कम्पनियाँ और ज्यादा असामाजिकता का विस्तार कर रही  है इसी में उलझे रहो l  ऐंटी रोमियो स्क्वाड  जब  से सक्रिय  हुआ  ने  टच  से टच में  रहने का चलन और फल फूल रहा होगा l 
                      टच का स्क्रीन  ज्ञान के आदान प्रदान याने  की इधर का उधर चस्पा करने  की होड़ लगी रहती है कुछ तो बिना देखे ही फारवर्ड कर  देते है  lग्रुप में  ऐसी फजीहत आये दिन होती रहती है माफ़ी मांग मांग कर अपने को मिस्टर क्लीन बताने की मशक्त करते रहे है क्या करे  टच से टच  में रहने की आदत जो पड  गई l दिल से नहीं  तकनीकि रूप से जुड़ाव हुआ है l  झूठ के प्रतिशत में बढ़ोतरी इसी से हुई है lटच से टच  में रहना एक कर्मशील  व्यक्तित्व की निशानी बन चुका है ,अपनी -अपनी   हैसियत  के आधार  पर कोई एक तो कोई एक से अधिक  से यह  सामाजिकता  निभा रहा है तथाअपना स्टेटस   मेंटेन करहा है  क्योकि  यह आजकल   स्टेटस सिम्बॉल हो गया है l दिल है कि  मानता ही नहीं  और दिल करता है  टच से टच में रहूं l

शनिवार, 3 जून 2017

है ! वोटरों ,अवगुण चित न धरो [व्यंग्य ]


है ! वोटरों ,अवगुण चित न धरो [व्यंग्य ]

बेताल ने विक्रम से प्रश्न किया कि हैं  राजन ,गुण और अवगुण में कौन श्रेष्ठ है? राजन बोले  हर युग में गुणों  का स्थान सर्वोपरि है।  यह सुनकर बेताल रावण की हंसी की तरह जोर से  हंसा  कहने लगा कि कलयुग में तो  अवगुण  ही गुण  पर हावी है गए जमाने  गुण के  आज में आपको  कलयुग में  गुण -अवगुण के हाल बताऊंगा ,है राजन आप चुपचाप सुनते जाइये --राजतंत्र से लोकतंत्र स्थापित हुआ जबसे  राजनीति अपने चरम पर है  बुद्धिजीवीयों  ने  अपनी आंखें बंद कर रखी है और मनुष्यों में  एक विशेष  तरह की  नस्ल नेताओं  की होती है l इनमें  अवगुणो की खान होती है कलयुगी राजनीति इसके बिना अधूरी है l  गुणों से लेस नेता  भी  अपवाद स्वरूप पाए जाते है इनकी संख्या नगण्य है और दिनों दिन  इनकी संख्या घटती जा रही है lजो लोकतंत्र के लिए  घातक है l  नेताओं के खौफ से हर कोई कुपित  है l इन सबका जिम्मेवार कौन है? और सबसे बड़ी बात यह कि सबसे बड़ा दोषी कौन है? जनता  जो इनको झेलती है वो ,या वोटर ?

                          राजा  विक्रम  चुपचाप  बेताल की  सत्य कथा सुनते जा रहे थे और मन ही मन  कुपित हो रहे थे ये सब क्या हो रिया है ? कब तक चलता रहेगा ?फिर भी बिना ताल के बात सुनना राजन को भारी  लग लग रहा था l भारत वर्ष   में दिल्ली शासन का  एक मुखिया है l जो आदर्श राजनीति  करने के लिए अवतरित हुए थे उनके साथी भी ऐसे ही मिले  ,कहते है ना  अवगुणों  वालो की दोस्ती जल्दी होती है l  चुनाव लड़े , जनता ने भरपूर जनसमर्थन दिया पर समय के साथ उनका समूह विवादो के घेरो  में आ गया  , आपस में लड़ने लगे उन  पर  कई तरह  के आरोप  लगा रखे  है आरोपों के जनक  ही आरोपों के घेरे में आ गये ? उनका पूर्व मंत्री रोज -रोज नए खुलासे  करता है l जिससे वे बड़े खिन्न है  और  अभी तक कोई   प्रति उत्तर नहीं दिया है  प्रजा भी उनके  मुखारविंद से सच  जानने को उत्सुक है ? पर उनके  मुख पर ताले  पड़े   है   l जनता ने ही चाव से उन्हें चुना था अब वे चूना लगा रहे है, जनता ऐसा मानने लगी है जब गलत  नहीं तो डरना क्यों ? सबसे  ज्यादा  आरोप  लगाने ,सब को  गुणहीन, भ्रष्टाचारी समझने  वाला ,सबसे अधिक ट्वीट और प्रेस कांफ्रेंस करने वाला जब अचानक मौन  हो जाता है तो दाल में काला नजर आयेगा   ?जनता भी अवगुणो से परिचित होने लगी है और ठगी सी महसूस करने लगी है l  और वे मन  ही मन अपने पोल खुलने से ,अपने सिद्धांतों की  बलि चढ़ने से अपनी साख को बचाने के गुन्तारे   में होंगे  पर क्या करे ?
बेताल  लगातार राजन को बताये जा रहा था कि वे राजनीति बदलने आये थे  खुद बदलकर उसमे समा  गये ,जनता के  अरमानो पर पानी फेर दिया l धरना दे  दे कर खुद भी धर,ना सिख  गये ,राजनीति  काजल की कोठरी है जो  जाता है काला हो ही जाता है l रेन कोट भी शर्माने लगे है, मुखौटे हटने लगे है ,ऊँची गर्दन करने वाले नीची करने को मजबूर है ,अपनों ने  ही लूटा l  है राजन आप तो न्याय और सत्य के संरक्षक हो , आप ही बताये -ऐसा करना कहाँ  तक उचित है ? वोटरों का विश्वास तोडना ,  चुनावी वादे तोडना ,झूठे सपने दिखाना।एक अच्छे शासक में अवगुण नहीं गुण होना चाहिए l अगले चुनाव में  वोटर के सामने  कहेंगे -है ,वोटरों !अवगुण चित न धरो l वोट हमको ही करो l  राजन कहने लगे  कि जनता तो जनता है सबको सबक सिखाना जानती है l अवगुणों पर ही चित धरती है l 

संजय जोशी " सजग "

मालवी हायकू

मालवी हायकू 
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१ 
झूठो सामान 
हांच री दुकान में 
बिकतो गयो 
==============
2
 
वादरो  रोयो 
म्हारी आँखा में आलो 
पाणी आयो 
===============
गोधूलि सांज 
चंदन जैसो धुरो 
माटी री गन्ध 
============

तालाब सुख्या 
चिड़ी हाफडे ,पिये 
कटोरी पाणी 
==============
हाँच कड़वो 
रूपारो लागे झूठ 
बाजी  में जीत 
==============

 तपी धरती 
लाल अंगार बणी 
झाड़का छाँव 
===============
भूल्या तेवार 
आपसी व्यवहार 
करे व्यापार 
================
८ 
तीखो  तड़को  
घणा याद आवेरे 
हरा झाड़का 
=================
 म्हारी मालवी 
अस्तर लागे  मीठी
 गोल री ढेली 
=============
10 
सबसे न्यारो 
जगत  में रुपारो 
म्हारो मालवो 
======================

संजय जोशी "सजग "

बुधवार, 24 मई 2017

जश्न पर प्रश्न [व्यंग्य ]

                           जश्न  पर प्रश्न [व्यंग्य  ]

                         
               एक बार एक शिष्य ने अपने गुरु से पूछा कि  जश्न किसे कहते हैं ? गुरूजी बोले -अपने  वादे और सपने पूरे होने  के उपरांत ख़ुशी मनाने के लिए आयोजित  कार्यक्रम  को जश्न   कहा  जाता है   शिष्य ने  फिर प्रश्न  दागा कि  अगर राजा खुश है और प्रजा दुखी,  ऐसे  में जश्न मनाया जाता है उसे क्या कहेंगे  ?गुरूजी बोले  इसे तो ख़ुशी का ढिंढोरा पीटकर प्रजा के दुःख से मुंह मोड़ना कहेंगे ऐसे में प्रजा पर दुखों  का बोझ और बड़ जाता है ,असंतोष  की भावना का विकास होता है ,गुरूजी कहने लगे जश्न तो युगों युगों   से मनाते आ रहे है राजा ,प्रजा का धन पानी  की तरह  बहाते  है ,चमचो और चापलूसों  को उपहार और सम्मान  मिलता है और प्रजा यह सब नौटंकी मूक दर्शक बनकर देखती रहती है,  जश्न अपने परवान पर चढ़ता रहता है  l
   गुरूजी ने जश्न को कुछ इस तरह बताया  कि सामाजिक व पारिवारिक  जश्न  हमें  सुकून देते है वहीँ  राजनीतिक  जश्न   का मतलब ,सजीवता का अहसास है समस्याओं का उपहास है अपने वादों का परिहास है l जश्न से जलवा बिखरता है और झूठ और निखरता है जश्न को नाकामियों का सौंदर्य शास्त्र  कहें , तो भी अतिश्योक्ति नहीं होगी l 
                         शिष्य ने पूछा कि  गुरूजी ऐसे जश्न का क्या लाभ ?गुरूजी कहने लगे बेटा राजा अपनी खोती  चमक  को इससे पॉलिश करने की कोशिश करता है  l शिष्य बोला देश में पानी की त्राहि -त्राहि मची हो ,कर्ज से पीड़ित किसान अपनी जीवन लीला समाप्त  कर  रहे हो  ,गुणवत्ता शिक्षा के अभाव में  छात्र अपनी जान  दे रहे है ,  महिलाये  कदम कदम असुरक्षित महसूस करती है ,खेती  चौपट,छोटे उद्योग आक्सीजन पर ,बड़े उद्योगों को भारी  छूट ,   बेरोजगारी , बड़ते अपराध ,पिटते पत्रकार ,नैतिक मूल्यों की गिरावट का जोर यह सब होते हुए भी जश्न जरूरी  होता है क्या   ?
           गुरूजी भी शिष्य की प्यास नहीं बुझा  पा रहे थे  कहने लगे वत्स राजतन्त्र से प्रजातंत्र हुआ पर 
बाकि कुछ नहीं बदला ,राजा रजवाड़े भी अपनी इच्छा पूर्ति हेतु सब कुछ करते थे ,और प्रजातंत्र में भी वहीं  सब कुछ हो रहा है , और होता रहेगा ,जश्न पहले भी होते थे अब भी हो रहे है और होते रहेंगे जश्न ही तो हमारे विकास का आईना होता है ,अगर जश्न नहीं होगे तो प्रजा में सुखानुभूति का संचार कैसे होगा ?अत ; जश्न  हमे  संदेश देते है कि  जश्न ही तरक्की है ,जश्न ही सेवा , जश्न ही हमारा  फर्ज है l 

           शिष्य गुरु जी को आँखे फ़ाड़ कर  देख रहता ,गुरु जी उसकी जिज्ञासा को शांत न कर पाने से विचलित थे कहने लगे वत्स समय का प्रवाह तुम्हे सब कुछ सिखा  देगा कि  जश्न का कितना महत्व है जब तुम पैदा हुए  थे  तुम्हारे   माता -पिता ने भी जश्न मनाया होगा ,सब मनाते है और बाद में कई पुत्र तो पिता के लिए दुःख का कारण बन जाते है l जश्न अपनी   जगह है ,जश्न और विकास में कोई संबंध नहीं है  l   जश्न हमे वर्तमान में अत्यंत प्रसन्नता देता है , भविष्य में क्या होगा कोई नहीं जानता है l एक लोकोक्ति  के अनुसार  पूत के पांव पालने में ही दिख जाते है l 
 
            गुरूजी कहने लगे कि -राज और जश्न एक दूसरे के पूरक है जहां राजा है वहां जश्न है और जहां प्रजा है वहां प्रश्न हीं प्रश्न है l इन सब के उत्तर  काल  के गर्त में  समाये हुए है  l  हमारा देश जश्न प्रधान देश बनता जा  रहा है ,हम छोटी -छोटी ख़ुशी में जश्न मनाकर यह सिद्ध करना चाहते है कि  हम बहुत खुश है और इसी  में कई गमों  को छुपाने का एक असफल प्रयास करते है ,सुना हुआ सच प्रतीत होता  है --सच्चाई छुप  नहीं सकती बनावट के उसूलों  से और खुशबु आ नहीं सकती कागज के फूलों से l जश्न  पर कई प्रश्न खड़े होते है और यक्ष प्रश्न की भांति रह जाते है l किसी ने कहा  है कि --

 चलिए जिंदगी का जश्न
कुछ इस तरह मनाये
अच्छा-अच्छा सब याद रखे
बुरा जो है सब भूल जाये !!    

आओ अच्छे के लिए नहीं  बुरा  भुलाने का  ही जश्न मनाए l                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                         संजय संजय जोशी "सजग " 

कुतरने वाले बनाम गटकने वाले [व्यंग्य ]


 

                 
 हमारे देश में  एक प्रान्त ऐसा है जहां  मनुष्य चारा  खा जाता है और  चूहें  लाखो  लीटर शराब गटक जाते है यह बात  हजम तो नहीं हुई  है ,पर ऐसे प्रदेश की है  जहां कुछ भी सम्भव है l  गणित के हिसाब से माना कि चूहों  ने शराब गटकी होगी पर   चूहा तो शरीर के हिसाब ५-१०  मिलीलीटर   में ही   टुन्न  हो जाता  होगा  और टुन्न होकर सभ्य मनुष्य की तरह   चूहें कहीं  दुबक गये   होंगे,  तभी  तो  किसी को उनकी हरकत के बारे कुछ  पता नहीं चला ? जब  शराब खत्म होने को आई  होगी  तो  देश में  बवाल   मच  गया और यह खबर  सुर्खियों में  आ गयी l बेवड़े  और ,कलाली वाले और सतर्क हो गए और अपनी  देशी विदेशी  शराब  की हिफाजत में लग गए  कि कहीं ये खबर सुन उनके यहाँ के चूहे भी गटकना शुरू न कर दें ?  
  इस खबर से पियक्क्ड़ इतने दुखी हो गए कि बिना पिये  ही   उनके दिमाग की बत्ती जल गई l बेवड़े धुन के पक्के होते है और  पी पी कर  जिसको कोसना होता है उसे कोसते रहते है ,उन्हें रोकना मुश्किल होता है कहने लगे कि इतने लीटर हमको मिल जाती  तो  वारे न्यारे   हो जाते और कई महीने  यूँ ही पीते पीते  कट जाते ,और वहाँ  की सरकार को कोस रहे थे कि  कैसी सरकार  है  यदि शराब की रखवाली  हम  पीने वाले को ही सौंप देते तो  भी इतनी नहीं पी  पाते l कलाली में यह चर्चा का मुख्य विषय बन गया  , बेवड़े इतने खिन्न थे कि वे चूहों  को पिला  कर  यह जानना चाहते थे कि  चूहा पीता है या  नहीं  और अगर पीता है  तो ,पीने के बाद क्या करता है? बेवड़ो  ने इसके लिए  चूहों को   पिलाकर उन्हें    अंडर  ऑब्जर्वेशन में  रख  कर उनकी   हर गतिविधि  पर नजर  रखने  का प्लान   बनाया  ताकि  इस खबर  की सत्यता की जाँच  की जा सके l चार पांच  बेवड़ो  ने  दो तीन  काले   चूहों पर  प्रयोग किया उन्हें सफलता नहीं मिली शायद वे बुध्दिजीवी  चूहे होंगे l अगले दिन  सफेद चूहों पर  लेकिन  उन्हें भी रास नहीं आयी फिर  एक  जंगली चूहे ने थोड़ी पीकर  ऐसी दौड़ लगाई कि  बेवड़े उसे पकड़  ही नहीं पाए ,एक बेवड़ा बोलने लगा कि  ये तो  नेता निकला , पी कर सरपट भाग गया lबेवड़ा विमर्श  चालू हुआ कि काला  चूहा तो एक भगवान की सवारी है इसलिए पीकर कैसे चलता ? यूँ भी  शराब पीकर  कोई भी वाहन चलाना अपराध की  श्रेणी  में आता है l दूसरा बेवड़ा बोला कि  भैरव जी पर क्या गुजरी होगी ,यह खबर सुनकर l तीसरा बोलता है  अमित दा  की एक पिक्चर में चूहा पी गया  था सारी व्हिस्की इसका  मतलब आरोप सही  होगा  ? चौथा बोलता है कि  सही हो या गलत चूहे कौन से मानहानि का केस  लगाएंगे ?एक बात  से खोपड़ी गर्म होरी है कि  जहां शराब पर  पूर्ण रोक है  वहां आदमी त्रस्त है l घोड़ो को घांस नहीं मिल रही है और चूहे शराब पी  रहे है lलीपा पोती हो जायगी और कौन  पी गया असली बात  दब जायगी l उन्हें मलाल था की वे इस पर किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचे कि  चूहा  पीने और नहीं पीने के बाद क्या करता  है उसमे  एक खोजी   टाइप बेवड़ा बोला  मेरा मगज  क़े  रिया है  कि   चूहों पर यह झूठा  आरोप है उसे  कुछ सयाने आदमी  ही पी  गए होगें lरक्षक से भक्षक   हो जाने की परम्परा का  जरूर किसी  निर्वाह किया होगा ? खबर तो यह  भी है कि   दो  पुलिस  अधिकारी रंगे  हाथ पकड़े गए लगता है कि   चूहों पर तो केवल शक है  l  कुतरने वाले को  गटकने  वाले बना दिया ये इस  प्रजाति पर घोर अन्याय लगता है दूसरा बेवड़ा अटक अटक कर   कहने  लगा  कि उस प्रदेश में कुछ  भी हो सकता है अब चारों बेवड़े आपस में भिड़ गए और खबर सच या गलत  जानने के लिए कितनी पी  गये पता ही नहीं चला l कलाली वाले ने अस्पताल में भर्ती करा दिया  l सुबह उनकी ही खबर बन गई कि  चूहों के शराब पीने के गम में चार शराबी अस्पताल में भर्ती l जब उनसे पूछा कि  इतनी क्यों पी  तो कहने लगे कि  गम भुलाने के लिए पी, पर चूहों ने क्यों पी  अभी तक समझ नहीं आया ? यह  बात  हजम नहीं हुई और दिमाग का हाजमा  बिगड़ गया सो अलग l 


संजय जोशी " सजग "

आप का जनमत तो गया [व्यंग्य ]

आप  का जनमत तो गया [व्यंग्य ]


             चुनाव के परिणाम आते ही बड़कू  भिया अपना ज्ञान पेलने में लग गए  और कहने लगे  कि यह पब्लिक है सब  जानती है l वादे नहीं विकास चाहिये l दिखावा नहीं हकीकत चाहिए l गिरगिट की तरह रंग बदलने वाले ,चींटी की   तरह काम करने वाले ,डॉगी की तरह भौकने  वाले को  जनता अब बर्दाश्त   नहीं करती  l अर्श और फर्श दोनों दिखाने की शक्ति से लबरेज जनता हमेशा रही  है  और रहेगी l जनमत के साथ जमानत भी चली जाये  तो उसे क्या कहेंगे ? आप तो ऐसे न थे ? आप का हश्र ऐसा क्यों हुआ ? कौआ हंस की चाल  कैसे चल सकता है ?पहले वोट और फिर  चोंट क्यों ? वोटर सौ  सुनार की एक लुहार की तर्ज पर चोंट करता है ,करेगा   क्यों नहीं ? वोटर की शक्ति तो वोट है  ना , चाहे  ऐवीएम   हो या बैलेट ,दबाना या  ठोकना तो उसे अच्छे से आता है l वोटर आजकल इसी  मौके  की तलाश करता है और मौका देखकर चौका क्या, छक्का मारता है l आप का था बस यही सपना  सभी वोटर  अपना ,सपना टूट गया जनाधार खिसक गया l आप का  यही सिद्धांत है कि  हम तो डूबेंगे सनम आप को भी ले डूबेंगे l 

        बड़कू भिया जो भी कहते  सच कहते है किसी भी विषय पर अपनी राय  रखने में  जरा भी देर नहीं करते और हिचकते भी नहीं है l झाड़ू ने दिल्ली में सबका सफाया किया था और  उसके बाद और गंदगी और बढ़ती गई   l इस ने बाहरी  सफाई अभियान  चलाया पर अंदर की गंदगी  से बाहर और  गदगी बढ़ गई और जनता परेशान होने लगी और जोर का झटका  धीरे से दे दिया l खिचड़ी पकी या नहीं ,  एक चावल  देख कर पता लगाया  जा सकता है उसी  प्रकार आप की खिचड़ी कच्ची निकली l कच्ची या अधपकी का स्वाद तो आप और हम ही जानते है l आम जन को टेंशन  का  डर दिखा -दिखा  कर चुनाव तो जीत लिया पर आप को "अपनों ने ही  लूटा और खूब  लूटा l जनता  जनार्दन है जब जब होता मान मर्दन तो वोट  ही शक्ति बन जाता है l 
  बड़कू भिया रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे और कहने लगे कि  पल्टूराम  नेता जनता   के अरमानो को टॉय -टॉय  फिस्स  कर देते है l ऐड़ा बनकर पेड़ा खाकर फिर चले आते है वोट की गुहार लेकर l आम ने आम की तरह जनता को  रस चूसकर गुठली की तरह फेंक  दिया l आम के आम और गुठली के  दाम  ,आम जनता ने  फिर अपना दम  दिखा दिया है ,और सूचक की तरह   सूचित  भी  कि  दिया मुगालते पालना बंद करो ,कुछ काम करो ,दूसरों  पर कीचड़ उछालना अब बंद भी करो l मुंगेरी लाल के हसीन सपनो से बाहर आओ l आम जनता ने जिसके लिये  चुना है वही  काम करो ,देश को चूना  लगाना बंद करो l जनता शिव की तरह  ही भोली है  विष  भी  पीती है और समय आने पर तांडव भी करती है l 
                       बड़कू भिया तैश  में आकर कहने लगे कि पांच साल  बहुत  ज्यादा होते है परखने के लिए l तीन साल होना चाहिए  ताकि  आम जनता को  कथनी और करनी में  अंतर करने वाले  नेताओ  और दलों से  से जल्दी मुक्ति मिले सके l नहीं तो जनमत और जमानत जब्त होने के बाद भी झेलते रहना लोकतंत्र की मजबूरी  हो गई है lआप के  बखेड़ों से जनता   आखिर कब तक न ऊबेगी  ?आप का भानुमति का पिटारा ऐसे  ढहेगा किसे पता था ?जनता सर आँखों पे जितनी जल्दी बैठाती है  उतनी जल्दी उतारती  भी है इसलिये जनमत तो गया और  कभी -कभी जमानत भी चली जाती है  देखते रहो कि  अब  जनता  काम देखेगी  चाहे  कोई भी  दल  हो ,दलदल  स्वीकार नहीं ये  नसीहत देकर भिया ने अपनी वाणी को विराम दिया l 

 संजय जोशी " सजग "

आत्ममुग्धता का दीवानापन [व्यंग्य ]

आत्ममुग्धता  का दीवानापन [व्यंग्य ]       

                        आत्मुग्धता मनुष्य  की प्रजाति के एक  प्रमुख गुण  के साथ वरदान भी हैं  l  यह गुण सभी में पाया जाता है,मात्रा कम या ज्यादा हो सकती है ,पर इससे अछूता  कोई नही हैl  राजा, महाराजा भी इसके कायल थे और आज के नेता भी है l राजकवि इस गुण को बढ़ाने में उत्प्रेरक थे , आज भी है  l रावण और दुर्योधन इस अतिरेक के प्रमुख पात्र  रहे है समय के साथ तरीके बदलते गए और यह गुण कब एक शौक में तब्दील हो गया ? सोशल मीडिया बनाम आत्ममुग्धता प्रदर्शित करने की साइट्स हो गई है l अपना गुण ज्ञान स्वयं करो और आत्ममुग्ध होकर  फूल क्र कुप्पा हो जाओ lमालवी बोली  में इसे कहते है खूब" पोमई " रियो है l  इस प्रक्रिया  में खड़ूस का चेहरा भी खिल जाता है ,इस थेरेपी से यही लाभ दिखता है l ईश्वर भी धन्यवाद देता होगा कि  अच्छा किया एक खड़ूस को खुश कर  नेक काम किया l 
                                 हम बहुआयामी संस्कृती के धनी है l  हम हर वस्तु और साधन  के  गहन दोहन करने में विश्वास करते है ,और जहां दिमाग लगाना चाहिये  वहां नही लगाते l क्योकि हम जुगाड़ में विश्वास करते है l  सीधे सच्चे काम में भी जुगाड ढूंढ कर पोमाने का अवसर तलाशते है और चाहते है कि  हमारी  हर कोई  हमारी तारीफ करे ,चाहे झूठी  ही सही l इस क्रिया से सीने  का नाप थोड़ी देर के लिये तो बढ़ ही जाता है और गर्दन भी  कड़क हो ही जाती है l 
         आत्ममुग्धता  का  दीवानापन  कहे  या इसे  रोग  कहें   समझ नहीं आता है  हमारे मोहल्ले  के बड़कू भिया   बहुत त्रस्त  है कि  फेसबुक और वाट्सअप  के आपरेटर ऐसे ऐसे चित्रों को  चेपते है की पहले उन विषयो पर चर्चा करने से जी चुराते थे  अब उन्हें  इस क्रिया में ही रस आता है और मन ही मन पोमाता  है और   आभासी मित्रों से ढेरो लाइक पाने की जुगत लगाता है l बच्चे युवा के अलावा महिला और  सीनियर सिटीजन भी इस प्रयोजन में आहुति बराबर दे रहे है l आज सीनियर सिटीजन ने अपनी फोटो उपलोड की जिसमे वे सारे घर के चप्पल पर जूते पालिश करते  मद मस्त हो रहे थे और सैंकड़ो लाइक पाकर गद -गद होकर  कमेन्ट पर कमेन्ट कर  रहे थे l तब लगा की इस क्रिया में एक पन्थ दो काज हो जाते है  आत्ममुग्धता के साथ  समय भी कट  ही  जाता है l  टीटीपीयों - का यह प्रमुख केंद्र है l टीटीपी [ttp]  याने  टोटल टाइम पास बनाम  सोशल मीडिया हो गए है अपवाद स्वरूप इनमें  कुछ कभी कभी रचनात्मकता का अहसास  भी कराते रहते है l 

                बड़कू  भिया  का कहना  है कि  फोटो चेपने के बाद का आनन्द कुछ और ही होता है कुछ सकारात्मक और नकारात्मक  सोचकर अपने विचार रखते है कुछ  तो सिर्फ  लाइक करने के नशे में ही चूर होते है और फेसबुक के अंधे की तरह केवल लाइक ही दि खता है और इतनी जल्दी में रहते है की बिना पढ़े लाइक ठोंकना उनकी आदत सी बन गई है  मौत  और गम  को भी लाइक कर अपने सोश्यल होने का धर्म निभाते है l पालतू पशु -पक्षी भी सोश्यल मिडिया की शान हो गए है l दो पाये के साथ  चौपायेभी इठलाने लगे है l सेल्फी  की खुमारी ने तो हद ही कर  दी है शवयात्रा में अर्थी के  साथ सेल्फी लेना और सोशल मिडिया पर अपलोड कर सामाजिकता का भोड़ा प्रदर्शन जोरो पर है l जो  कई प्रश्नों जन्म देता है -कि ऐसे फोटो डालने  की क्या मजबूरी है ?क्या  यह एक मानसिक रोग है ? संवेदन -हीनता  है या मजाक ?दिखावा  है या पोस्ट चेपने की  लत ?  दर्शन  
 करते समय ईश्वर की और  ध्यान कम ओर फोटो सेल्फी  लेने मे ज़्यादा l कुछ लोगो का  सृजन सिर्फ फोटो चेपना  ही एक मेव ध्येय  है उनको लगता  यह है यह इसी लिए है l फोटो चेपने वाले शाणपत  में कभी - कंभी  .हंसी के पात्र भी बन जाते है l पर करे तो क्या करे पोमाने   के लिए कुछ तो चाहिए l चितन और मंथन इसी में लगा रहता है कई बेरोजगारों की फ़ौज सोश्यल  मिडिया पर  अपनी आत्मुग्धता पर मुग्ध हैl बॉस  और नेता  को इसकी लत ज्यादा ही होती  है इसलिुए  उनके  गुणों का बखान कर  काम निकलवाने  के लिए इसे  ब्रह्मास्त्र की तरह प्रयोग किया  जाता है l कुछ बॉस इतने  पोमा जाते है कि ध्रतराष्ट्र  की तरह  अंधे हो जाते है , सम्पट भूल जाते है  बॉस को चने के झाड़ पर  चढ़ाने वाले अधीनस्थ  लम्बी छुट्टी आसानी से  ले लेते है वे  चमचे स्वरूपा  होते है l  भिया कहने लगे यह कथा अनंता हैl और जोर से बोलने लगे जब  तक सूरज चाँद रहेगा  और  मनुष्य  का जीवन  रहेगा  आत्ममुग्धता तेरा कमाल  चलता रहेगा l परन्तु यक्ष प्रश्न है कि पोमाना एक प्रवृति है या मानसिक बीमारी ?आओ  इसका पता लगायें l 

संजय जोशी " सजग "

रविवार, 21 मई 2017

रविवार, 12 फ़रवरी 2017

डिजीटल युग के प्रेम में हिचकी भी डिजीटल हो गई [व्यंग्य ]

 

संजय जोशी सजग।
हर क्षेत्र में डिजिटल की घुसपैठ जारी है। डिजिटल युग है और सरकार भी डिजिटल इण्डिया के लिए जीजान से लगी है। ऐसे में प्रेम कैसे अछूता रह सकता है ,प्रेम भी डिजिटल होने लगा है ,स्मार्ट फोन से स्मार्ट लोग इसे अंजाम देते हैं चैट ,वॉइस कॉल और विडियो कॉलिंग और न जाने कितनी स्योशल एप्पस भी इसमें सहायक है। प्रेम पत्र का चलन समाप्त होने के कगार पर है। अब तो ऑन लाइन ,कहीं भी कभी भी दिल की बाते हो जाती है प्रेम के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण बदलाव की बयार है। हर प्रेमी की एक अदद जरूरत स्मार्ट फोन और नेट पैक। प्रेमी ,प्रेमिका की अपनी रिंग टोन ,मेसेज अलर्ट सब स्पेशल,जिसे वो ही समझे कि किसकी हिचकी आई ,आजकल हिचकी भी डिजिटल हो गई है। प्रेम में पहले बरसों इंतजार में गुजार दिए जाते थे, लेकिन अब कोई इंतजार में वक्त 'जाया' नहीं करता। अब प्रेम के स्वरूप, स्थायित्व और उसे अभिव्यक्त करने के माध्यमों में बदलाव आ रहा है।

कबीरदासजी बहुत पहले कह गये कि "ढाई अक्षर प्यार का पढ़े सो पंडित होये " हर प्रेमी अपने आप को प्रेम का पण्डित ही मानता है फिर भी अज्ञानी है प्रेम से कोई तृप्त हुआ है ? प्रेम की कोई थाह नही। सिर्फ चाह और चाह ,और चाह वहां राह ,कुछ भी करलो प्यार को कोई बाँध नही सकता ? प्यार को हताश करने के कई हथकण्डो से भी प्यार हताश नही होता है बल्कि और परवान चढ़ता है यहां न्यूटन का तीसरा नियम लागू होता है क़ि " क्रिया की प्रतिक्रिया होती है याने जितने अवरोध आएंगे, प्रेम और बढ़ता है। आये दिन समाचारो में प्रेमी युगल की हत्या और आत्महत्या की सुर्खियों के बावजूद प्रेम अपना कार्य निर्बाध गति से करता रहता है।
फरवरी तो यूँ भी प्यार का ही महीना है बसन्त ऋतु और वेलेंटाइन डे प्रेमी प्रेमियों के लिए सौगात लेकर आता है। प्यार करने वाले और रोकने वालो के बीच एक बड़ी बहस चालू हो जाती है और प्रेम के अंधे को तो प्रेम ही नजर आएगा। वाट्सअप पर दोनों तरह के मेसजो की बहार आ जाती हैं। इस मौसम मे तो बासी कड़ी में भी उबाल आने का खतरा बढ़ जाता है। इश्क में रिस्क ही रिस्क नजर आने लगती है।
ढाई अक्षर पढ़ कर प्रेम के पण्डित बनने वाले ,प्रेम की थ्योरी और प्रेक्टिकल में गहरे अंतर को भी लिख गए है पर ढाई अक्षर के बाद क्या कुछ पढ़ने की जरूरत नही है? डिजिटल प्रेम तो रोज अर्श से फर्श पर आता रहता है इसमें आभासी और काल्पनिक प्रेम का प्रतिशत तो बड़ा दिल ,दिमांग और मन भी डिजिटल हो गया है। मालवा में तो चतुर सुजान को ही डिजिटल कह देते हैं। किसी भी शास्त्र में 'प्रेम क्या है', ऐसी परिभाषा ही नहीं दी?
यह क्यों होता है? कैसे होता है? कब होता है? किससे होता है? इन प्रश्नों के सटीक जवाब आज तक कोई नहीं दे पाया है। कभी दुनिया प्रेम करने वालों को सर-आँखों पर बैठा लेती है तो कभी प्रेम में तलवारें खिंच...खिंच जाती हैं, गोलियाँ चल जाती हैं और खून की नदियाँ बह जाती हैं। यूँ तो प्रेम के सबके अपने-अपने मायने हैं। प्रेम को लेकर सबकी अपनी सोच है। माना जाता है कि प्रेम का संबंध आत्मा से होता है। प्रेम में समर्पण, विश्वास और वचनबद्धता की दरकार होती है, लेकिन आज समय बदल रहा। है।मौसमों के बदलने की तरह उसके 'ब्रेक अप' और 'पैच अप' होते हैं। वह मानता है कि बिना गर्ल फ्रेंड के कॉलेज लाइफ में मजा नहीं है,लेकिन शादी के लिए वह घरवालों से बैर लेने के 'मूड' में नहीं होता। प्रेम की परिभाषा तो कबीरदास जी ने ही दी है।
वह क्या कहते हैं ,सबसे 
सच्चा प्रेम घड़ी चढ़े, घड़ी उतरे, 
वह तो प्रेम न होय,
अघट प्रेम ही हृदय बसे, प्रेम कहिए सोय।'
घड़ी में चढ़े और घड़ी में उतरे वह प्रेम कहलाएगा? यह सच्चा प्रेम तो ऐसा है कि जिसके पीछे द्वेष ही नहीं हो। जहाँ प्रेम में, प्रेम के पीछे द्वेष है, उस प्रेम को प्रेम कहा ही कैसे जाए? एकसा प्रेम होना चाहिए। हम आज भी प्रेम में सरल रेखा नही मानते है प्यार में जिगजेग होना ही प्यार की निशानी है प्यार में सन्तुष्टि मतलब प्यार का अंत अत: प्यार करने वाले असन्तुष्ट ही पाए जाते है। और डिजिटल के जमाने में तो प्यार की दिशा और दशा ही समझ नही आती है l प्यार का अपना महत्व है। निश्छल प्रेम तो कृष्ण और गोपियो था। समय बदला प्यार के मायने बदले,औरप्रेम वह प्रेम नही रहा ये तो डिजिटल हो गया जी।