सोमवार, 22 अक्तूबर 2018

जो न तोके वो बेहाल [व्यंग्य ]

जो न तोके वो बेहाल [व्यंग्य ]

                 जो तोके सो  निहाल  और जो न तोके वह बेहाल  हो जाता है ये व्यथा एक कर्तव्यनिष्ठ श्री पदम जी  की है वे बताने लगे कि कुछ लोगों  ने  इस परम्परा को इतना  समृद्ध  कर  दिया कि  हर कोई इसका आदी  हो गया है lमक्खन बाजी और चमचागिरी एक ही परिवार के  सदस्य  है , काश वेटलिफ्टिंग की जगह तोकोलॉजी  ओलम्पिक में  खेल होता  तो  इसमें सवर्ण पदक आराम से  मिलने की  उम्मीद  की जा सकती है , क्योंकि  तोकोलॉजी  खेल क्रिकेट की तरह हर  कहीं खेला  जा सकता है यह खेल आम  हो गया है  तोको एक  विशेष प्रकार का  खेल है जिसमें हर  व्यक्ति जो  अपने  से  पद  , प्रतिष्ठा से   थोड़ा ऊपर हो ,उससे   थोड़े से श्रम  से ही फायदा उठा सके l यह  अपने  से ऊपर  के स्तर वालों  के साथ   अपने तरीको से   खेला  जाता  हैं  l महिला खिलाड़ी इसमें बहुत ही शॉर्प  होती है जो पुरुष खिलाड़ियों को पीछे छोड़ देती है l यह खेल कब तक परवान चढ़ता है जब तक  तोकने वाला तुकवाने  वाले की हाँ में हाँ करता रहे  या   खेल का बड़ा खिलाडी दूसरे खिलाड़ियों को  एक झटके में हरा दें  l तोकोलॉजी इनडोर  और ओपन दोनों जगह खेला  जाता  है यह खिलाडी के स्तर पर निर्भर करता है।जब नेताओं के  खुलासों से डरकर अब   तोकने  वाले यह  कहने में हिचकते है कि  आप तो ऐसे न थे l 

               वे करुणा भरी आवाज में बोले कि  तोकना एक आम बीमारी है कुछ की तो यह आदत  में ही शुमार हो गया है और कुछ बेचारे दूसरों  को  देखकर  मजबूरी में  तोकते हैं  जैसे -खरबूजे को देख  कर खरबूजा रंग बदलता है   l जो न तोकते वे हमेशा ही उपेक्षा के शिकार ,काम के  बोझ  तले ,एक निरीह प्राणी की  तरह, अपना जीवन जीते है l इतना काम करके वे काम के फोबिया के शिकार  हो जाते है और टोकने वाले गर्व से कहते है काम करेगा वो अगला ,जो है पगला l तोकने के परिणाम स्वरूप वे " मालिक मेहरबान तो गधा पहलवान की तर्ज पर सीना ताने इठलाते फिरते है और वे बेचारे अंदर -अंदर ही कुढ़ कर  डिप्रेशन में चले जाते है और  अपना सारा गुबार घरवालो पर उतारकर बोझ मुक्त होने का प्रयास करते  है और वह इस जाल में इतना उलझ जाता है कि  पूरी जिंदगी तबाह  कर  लेता है और तोकने वाला सुकून की जिंदगी जीता है l वह  इस कला में इतना माहिर होता है कोई  अधिकारी आ जाये   वह अपनी तोकोलाजी कला के आधार  पर उसे अपना बना ही लेता है l इतना तोकता है कि  उसे अपाहिज बनाकर रखता है ,उनकी आँखों  से दूर होना नही चाहता है और वह हर काम के  लिए उस पर आश्रित  हो जाता है l तोकोलॉजी  वाला जब सामने नही होता है तो परेशान होकर अपनी खीज निकाल कर  पूरा वातावरण तनावमय बना देता है और  अपने खुफिया तन्त्र के जरिये पूरा  विवरण सुना  अपनी कॉलर ऊँची के मन ही मन मुस्काता है ऐसे झटके दे -दे कर -अपनी  पैठ और गहरी करता है l 
               तोकू एक अविश्वनीय प्राणी  होता है सर्वदा स्वार्थ को प्राथमिकता  देता है जहां स्वार्थ वहां तोकालॉजी  की क्रिया की  दर  याने सेंसेक्स  में  अचानक उछाल आ जाता है l  श्वान जैसे पूंछ हिलाता है वैसे  ही  ये  दो पाये का प्राणी अपने लम्बे हाथ जोड़ना ,गलत बात पर भी मुस्कराना ,हर बात में मुंडी हिलाना जैसे क्रियाकलाप समयानुसार करता है l  जब कोई तुकवाने वाले की निंदा करता है ,तो तोकू उसका कवच बनकर  ,सभी निंदनीय बातों  को एक सिरे से ख़ारिज कर ,स्तुति गान करने लगता है l हे तोकु तेरी काया और माया दोनों ही निराली है l 

संजय जोशी 'सजग "[ व्यंग्यकार ]

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