सोमवार, 29 अप्रैल 2013

शूलिका -५४

शूलिका -५४

बाजार
है गुलजार
बुलाते बार-बार
जेब को करते
जार-जार
है नही इसका पार
चाहत है अपार
शांपिग का हों
जाता शौक तो
जीवन लगता भार

संजय जोशी ""सजग ""

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