बुधवार, 24 मई 2017

आत्ममुग्धता का दीवानापन [व्यंग्य ]

आत्ममुग्धता  का दीवानापन [व्यंग्य ]       

                        आत्मुग्धता मनुष्य  की प्रजाति के एक  प्रमुख गुण  के साथ वरदान भी हैं  l  यह गुण सभी में पाया जाता है,मात्रा कम या ज्यादा हो सकती है ,पर इससे अछूता  कोई नही हैl  राजा, महाराजा भी इसके कायल थे और आज के नेता भी है l राजकवि इस गुण को बढ़ाने में उत्प्रेरक थे , आज भी है  l रावण और दुर्योधन इस अतिरेक के प्रमुख पात्र  रहे है समय के साथ तरीके बदलते गए और यह गुण कब एक शौक में तब्दील हो गया ? सोशल मीडिया बनाम आत्ममुग्धता प्रदर्शित करने की साइट्स हो गई है l अपना गुण ज्ञान स्वयं करो और आत्ममुग्ध होकर  फूल क्र कुप्पा हो जाओ lमालवी बोली  में इसे कहते है खूब" पोमई " रियो है l  इस प्रक्रिया  में खड़ूस का चेहरा भी खिल जाता है ,इस थेरेपी से यही लाभ दिखता है l ईश्वर भी धन्यवाद देता होगा कि  अच्छा किया एक खड़ूस को खुश कर  नेक काम किया l 
                                 हम बहुआयामी संस्कृती के धनी है l  हम हर वस्तु और साधन  के  गहन दोहन करने में विश्वास करते है ,और जहां दिमाग लगाना चाहिये  वहां नही लगाते l क्योकि हम जुगाड़ में विश्वास करते है l  सीधे सच्चे काम में भी जुगाड ढूंढ कर पोमाने का अवसर तलाशते है और चाहते है कि  हमारी  हर कोई  हमारी तारीफ करे ,चाहे झूठी  ही सही l इस क्रिया से सीने  का नाप थोड़ी देर के लिये तो बढ़ ही जाता है और गर्दन भी  कड़क हो ही जाती है l 
         आत्ममुग्धता  का  दीवानापन  कहे  या इसे  रोग  कहें   समझ नहीं आता है  हमारे मोहल्ले  के बड़कू भिया   बहुत त्रस्त  है कि  फेसबुक और वाट्सअप  के आपरेटर ऐसे ऐसे चित्रों को  चेपते है की पहले उन विषयो पर चर्चा करने से जी चुराते थे  अब उन्हें  इस क्रिया में ही रस आता है और मन ही मन पोमाता  है और   आभासी मित्रों से ढेरो लाइक पाने की जुगत लगाता है l बच्चे युवा के अलावा महिला और  सीनियर सिटीजन भी इस प्रयोजन में आहुति बराबर दे रहे है l आज सीनियर सिटीजन ने अपनी फोटो उपलोड की जिसमे वे सारे घर के चप्पल पर जूते पालिश करते  मद मस्त हो रहे थे और सैंकड़ो लाइक पाकर गद -गद होकर  कमेन्ट पर कमेन्ट कर  रहे थे l तब लगा की इस क्रिया में एक पन्थ दो काज हो जाते है  आत्ममुग्धता के साथ  समय भी कट  ही  जाता है l  टीटीपीयों - का यह प्रमुख केंद्र है l टीटीपी [ttp]  याने  टोटल टाइम पास बनाम  सोशल मीडिया हो गए है अपवाद स्वरूप इनमें  कुछ कभी कभी रचनात्मकता का अहसास  भी कराते रहते है l 

                बड़कू  भिया  का कहना  है कि  फोटो चेपने के बाद का आनन्द कुछ और ही होता है कुछ सकारात्मक और नकारात्मक  सोचकर अपने विचार रखते है कुछ  तो सिर्फ  लाइक करने के नशे में ही चूर होते है और फेसबुक के अंधे की तरह केवल लाइक ही दि खता है और इतनी जल्दी में रहते है की बिना पढ़े लाइक ठोंकना उनकी आदत सी बन गई है  मौत  और गम  को भी लाइक कर अपने सोश्यल होने का धर्म निभाते है l पालतू पशु -पक्षी भी सोश्यल मिडिया की शान हो गए है l दो पाये के साथ  चौपायेभी इठलाने लगे है l सेल्फी  की खुमारी ने तो हद ही कर  दी है शवयात्रा में अर्थी के  साथ सेल्फी लेना और सोशल मिडिया पर अपलोड कर सामाजिकता का भोड़ा प्रदर्शन जोरो पर है l जो  कई प्रश्नों जन्म देता है -कि ऐसे फोटो डालने  की क्या मजबूरी है ?क्या  यह एक मानसिक रोग है ? संवेदन -हीनता  है या मजाक ?दिखावा  है या पोस्ट चेपने की  लत ?  दर्शन  
 करते समय ईश्वर की और  ध्यान कम ओर फोटो सेल्फी  लेने मे ज़्यादा l कुछ लोगो का  सृजन सिर्फ फोटो चेपना  ही एक मेव ध्येय  है उनको लगता  यह है यह इसी लिए है l फोटो चेपने वाले शाणपत  में कभी - कंभी  .हंसी के पात्र भी बन जाते है l पर करे तो क्या करे पोमाने   के लिए कुछ तो चाहिए l चितन और मंथन इसी में लगा रहता है कई बेरोजगारों की फ़ौज सोश्यल  मिडिया पर  अपनी आत्मुग्धता पर मुग्ध हैl बॉस  और नेता  को इसकी लत ज्यादा ही होती  है इसलिुए  उनके  गुणों का बखान कर  काम निकलवाने  के लिए इसे  ब्रह्मास्त्र की तरह प्रयोग किया  जाता है l कुछ बॉस इतने  पोमा जाते है कि ध्रतराष्ट्र  की तरह  अंधे हो जाते है , सम्पट भूल जाते है  बॉस को चने के झाड़ पर  चढ़ाने वाले अधीनस्थ  लम्बी छुट्टी आसानी से  ले लेते है वे  चमचे स्वरूपा  होते है l  भिया कहने लगे यह कथा अनंता हैl और जोर से बोलने लगे जब  तक सूरज चाँद रहेगा  और  मनुष्य  का जीवन  रहेगा  आत्ममुग्धता तेरा कमाल  चलता रहेगा l परन्तु यक्ष प्रश्न है कि पोमाना एक प्रवृति है या मानसिक बीमारी ?आओ  इसका पता लगायें l 

संजय जोशी " सजग "

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