शनिवार, 3 जून 2017

है ! वोटरों ,अवगुण चित न धरो [व्यंग्य ]


है ! वोटरों ,अवगुण चित न धरो [व्यंग्य ]

बेताल ने विक्रम से प्रश्न किया कि हैं  राजन ,गुण और अवगुण में कौन श्रेष्ठ है? राजन बोले  हर युग में गुणों  का स्थान सर्वोपरि है।  यह सुनकर बेताल रावण की हंसी की तरह जोर से  हंसा  कहने लगा कि कलयुग में तो  अवगुण  ही गुण  पर हावी है गए जमाने  गुण के  आज में आपको  कलयुग में  गुण -अवगुण के हाल बताऊंगा ,है राजन आप चुपचाप सुनते जाइये --राजतंत्र से लोकतंत्र स्थापित हुआ जबसे  राजनीति अपने चरम पर है  बुद्धिजीवीयों  ने  अपनी आंखें बंद कर रखी है और मनुष्यों में  एक विशेष  तरह की  नस्ल नेताओं  की होती है l इनमें  अवगुणो की खान होती है कलयुगी राजनीति इसके बिना अधूरी है l  गुणों से लेस नेता  भी  अपवाद स्वरूप पाए जाते है इनकी संख्या नगण्य है और दिनों दिन  इनकी संख्या घटती जा रही है lजो लोकतंत्र के लिए  घातक है l  नेताओं के खौफ से हर कोई कुपित  है l इन सबका जिम्मेवार कौन है? और सबसे बड़ी बात यह कि सबसे बड़ा दोषी कौन है? जनता  जो इनको झेलती है वो ,या वोटर ?

                          राजा  विक्रम  चुपचाप  बेताल की  सत्य कथा सुनते जा रहे थे और मन ही मन  कुपित हो रहे थे ये सब क्या हो रिया है ? कब तक चलता रहेगा ?फिर भी बिना ताल के बात सुनना राजन को भारी  लग लग रहा था l भारत वर्ष   में दिल्ली शासन का  एक मुखिया है l जो आदर्श राजनीति  करने के लिए अवतरित हुए थे उनके साथी भी ऐसे ही मिले  ,कहते है ना  अवगुणों  वालो की दोस्ती जल्दी होती है l  चुनाव लड़े , जनता ने भरपूर जनसमर्थन दिया पर समय के साथ उनका समूह विवादो के घेरो  में आ गया  , आपस में लड़ने लगे उन  पर  कई तरह  के आरोप  लगा रखे  है आरोपों के जनक  ही आरोपों के घेरे में आ गये ? उनका पूर्व मंत्री रोज -रोज नए खुलासे  करता है l जिससे वे बड़े खिन्न है  और  अभी तक कोई   प्रति उत्तर नहीं दिया है  प्रजा भी उनके  मुखारविंद से सच  जानने को उत्सुक है ? पर उनके  मुख पर ताले  पड़े   है   l जनता ने ही चाव से उन्हें चुना था अब वे चूना लगा रहे है, जनता ऐसा मानने लगी है जब गलत  नहीं तो डरना क्यों ? सबसे  ज्यादा  आरोप  लगाने ,सब को  गुणहीन, भ्रष्टाचारी समझने  वाला ,सबसे अधिक ट्वीट और प्रेस कांफ्रेंस करने वाला जब अचानक मौन  हो जाता है तो दाल में काला नजर आयेगा   ?जनता भी अवगुणो से परिचित होने लगी है और ठगी सी महसूस करने लगी है l  और वे मन  ही मन अपने पोल खुलने से ,अपने सिद्धांतों की  बलि चढ़ने से अपनी साख को बचाने के गुन्तारे   में होंगे  पर क्या करे ?
बेताल  लगातार राजन को बताये जा रहा था कि वे राजनीति बदलने आये थे  खुद बदलकर उसमे समा  गये ,जनता के  अरमानो पर पानी फेर दिया l धरना दे  दे कर खुद भी धर,ना सिख  गये ,राजनीति  काजल की कोठरी है जो  जाता है काला हो ही जाता है l रेन कोट भी शर्माने लगे है, मुखौटे हटने लगे है ,ऊँची गर्दन करने वाले नीची करने को मजबूर है ,अपनों ने  ही लूटा l  है राजन आप तो न्याय और सत्य के संरक्षक हो , आप ही बताये -ऐसा करना कहाँ  तक उचित है ? वोटरों का विश्वास तोडना ,  चुनावी वादे तोडना ,झूठे सपने दिखाना।एक अच्छे शासक में अवगुण नहीं गुण होना चाहिए l अगले चुनाव में  वोटर के सामने  कहेंगे -है ,वोटरों !अवगुण चित न धरो l वोट हमको ही करो l  राजन कहने लगे  कि जनता तो जनता है सबको सबक सिखाना जानती है l अवगुणों पर ही चित धरती है l 

संजय जोशी " सजग "

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