गुरुवार, 29 अगस्त 2013

व्यंग्य



                                     मानसून का आना ...........
  
    

            आजकल मानसून भी बिना बुलाये कहाँ  आता  है , कई मिन्नतो , प्रार्थना ,देवी ,देवताओ को मनाने के बाद आता है मानसून का आना समृधि का सूचक  और जीवनं में  आशा और उत्त्साह का संचार करता है ,किसानो के मायूस चेहरे पर चमक आजाती है धरती  हरियाली की चादर से  ढक जाती है सूखे  नदी नालो में भी ...जलप्रवाह होने लगता है नये प्रेमी  युगल मानसून की वर्षा में भीगने  का भरपूर आनंद लेते हुए .....पहली  बारिश तू और में ....   भीगकर आपनी हसरत पूरी करते है मानसून का आना तपन से मुक्ति देता है वही बिजली के बिल में कमी करता है ...बारिश प्रेमी कवि अपनी लेखनी सक्रिय कर देते है बारिश , सावन और श्रंगार पर लिख कर मादकता  बड़ाने में उत्प्रेरक का काम.... करते है

मानसून का आगमन .से ..वीरान पड़े ..पिकनिक  स्थलों पर रोनक आजाती है .....नदी .तालाबो ..में  भरा जल जोश भर देता है .....जेसा  ..इतना पानी ..कभी देखा ही नही ....और   कभी शायद देखने को न मिले ......और ..होश  खो देते है .........और  अनहोनी हो जाती है ....

     मानसून आते ही तथाकथित समाज सेवी ,वृक्ष प्रेमी ,वृक्षारोपण का अभियान हर वर्ष की तरह पूरे जोर शोर के साथ शुरू करते है ......पिछले वर्ष के कितने पोधे विकसित हुए ....उन्हें क्या करना ...हमारे देश की विडम्बना है ..बस वृक्षा रोपण करो ,समाचार पत्रों में फोटो .स्थानीय चेनलो में वीडियो क्लिप आना चहिये .....प्रसिद्धि पाने का यह भी एक नुस्खा है .
मानसून के बाद  धर्म गंगा  प्रवाह  होने लगता तीज और त्योहारों के देश में ....इसी मोसम में  ज्यादा आते है ...सावन तो शिव भक्तो के लिए  शिव बूटी  का वरदान  लेकर आता है .....सब भंग की पिन्नक से सरोबर रहते ....है ..बारिश का यह  मोसम में घर में रहकर .....बारिश का आनन्द लो ..गरमा-गरम  पकोड़े का खाओ .....इस मोसम में तेल बिक्री ....बड़ना..स्वभाविक ..है .....


मानसून का आना भ्रष्टो की नीद उड़ा देता है ...निर्माण कार्यो की परीक्षा जो अपने आप हो जाती है ....बांध ,स्टाप डेम का बहना ,सरकारी नव निर्मित  भवनों  का रिसना ,सडक उखड़ना ...सड़के ऐसी हो जाती है ...सडक में गड्डे या गड्डे में सडक है ..पता ही नही चलता ....घटिया निर्माण
की पोल खुल जाती है ..आरोप -प्रत्यारोप का दोर शुरू होजाता है ..........मानसून ..पूर्व ..की तेयारी का ढिढोरा ऐसा पिटते है की .....सब कुछ तेयारी ....है ....सब टायं-टायं ..फ़ीस हो जाता है ......वही ..ढ़ाक की तीन पात .........

   मानसून का कहर जहाँ निचली  बस्ती में तबाही मचाता है .......भ्रष्टचार का नया अध्याय ..शुरू हो जाता है ..बाड़ पीडितो के नाम पर मिलने वाली ...राहत किसे मिलती है .......भगवान ही जाने .....बाढ़ पीडितो के मासूम  चेहरों ,दया की भीख भ्रष्टाचार ..के सामने बोनी लगती है ...
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मानसून का आना कहीं.ख़ुशी कहीं गम लाता है .......

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