गुरुवार, 29 अगस्त 2013

व्यंग्य



                                                       
चैन  से बेचैन

हर दिन सोने की चैन खीचने की घटनाएं  घट  रही है घटना की शिकार प्राय: महिलाए ही होती है स्वर्णप्रिय जो होती है चैन खीचने की घटना के समाचार पड़कर हर कोई बेचैन हो जाता है I सोने के भाव आसमान छु रहे है फिर भी सोने के प्रति मोह बरकरार  है I न्यूटन के नियमानुसार "प्रत्येक क्रिया की प्रतिक्रिया होती है" सोने के भावो में बडोतरी के और अधिक लगाव होता जारहा है और  न  ही मंदी का असर नजर नही आता हैI

जिसकी चैन खिचती है उसके धन की बर्बादी के साथ ही सुख और शांति को भी ग्रहण लग जाता है हमारी कालोनी मे भी  एक महिला भी चैन से बेचैन हो गई और उसके बाद उसको  बेचैन करने में कई लोगो ने अहम भूमिका निभाई यह हमारी शासकीय और समाजिक परम्परा का मुख्य आधार है Iहर कोई अपना  दायित्व पूरा करना अपना फर्ज समझता है ओर बेचैन को और बेचैन करने का पूर्ण प्रयास करता हैI

चैन से बेचैन होने की प्रथम मानसिक यन्त्रणा भोगने के बाद ,दुसरे चरण  में थाने में रिपोर्ट लिखाने के बाद शुरू होती है थानेदार यदि समझदार है तो घटना स्थल का मुआयना कर पूरा ब्यौरा लेता है.और नही तो .प्रश्नों की झड़ी लगा देता है और वो भी  उल्टे -सीधे प्रश्न पूछ  मानसिक  वेदना को और बड़ा देता है सब जानते है कुछ होना नही है सिर्फ ओपचारिकता मात्र है आजतक चैन सुपुर्दगी  के समचार पड़ने को नही मिलते ,ऐसे समाचारों के लिए आखें तरसती रहती है I रपट के बाद  हमेशा की तरह  रटा -रटाया बयान,अज्ञात अपराधी पर प्रकरण दर्ज  कर  जाँच जारी है  अँधेरे में तीर चलाने जेसा लगता है .पर क्या करे जाँच अनंत कल तक  चलती रहेगी ,परिणाम शून्य यह हम सब जानते है  इसलिए चिंता नही करते है I

मानसिक यन्त्रणा का तीसरा चरण हमारे अड़ोसी -पड़ोसी एवं मोहल्ले /कालोनी वाले होते है जो मन ही मन तो खुश  होते है पर समाजिक  जिम्मेदारी का ढोंग करते हुए पूरी घटना की तहकीकात बड़ी  मुस्तेदी से करते की कोई  पहलू  छुटे ना ,चेन से बेचैन को ओर बेचैन करने में कोई कसर  बाकि नही रखतेIचेन से बेचैन हुआ भगवान से प्रार्थना करता होगा की ,जो जाना था वह चला गया पर इन प्रश्न दर प्रश्न पूछने वालो से मुक्ति दे १५ -२० से अधिक बार घटना को  बयान कर चूका हु  अब और शक्ति नही ,भगवान भी कहते होगे  अभी तो रिश्तेदार बाकि है और भुगतने को तेयार हो जा I न्यूज चेनल की तरह दोहराते रहो I हर को कोई आपसे से ही  सुनना चाहता है चैन से बेचैन की जुबानी ,कोन किसकी परवाह करता है सवेंदना हीन  होते जारहे समाज में किसी दुःख से किसको फर्क पड़ता है बेचैन को और बेचैन करने मेंI



संजय जोशी "सजग"

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