टांय -टांय फिस्स [ व्यंग्य ]
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चुनाव का रण तैयार हो चुका है रण में उतरने के लिए जद्दोजहद ,वादों
,आश्वासनों ,आरोप, प्रत्यारोप की झड़ी लगी हुई है ,ऊंट किस करवट पर बैठेगा
किसी को पता नहीं ,पर कोई भी जीते कोई भी हारे उससे आमजन को क्या ?
.उन्हें सब पता है अभी तक का कटु अनुभव जो है की उनके अरमानों का टांय
-टांय फिस्स होना तय है , तलवार तरबूजे पर गिरे या तरबूज तलवार पर गिरे
अंततः कटना तरबूजे को ही है वही दशा आम जन की है I
देश की राजनीति का दारोमदार पलटू नेताओ के भरोसे है दागी ओर बागी
आजकल की राजनीति पर हावी है ओर पुरानी प्रसिद्ध उक्ति के अनुसार "भरोसे
की भेस पाढा ही देती है " एक पलटूचन्द को मैंने कहा भाई चुनाव आरहे है
बहुत चहक रहे हो ..बाद में टांय -टांय फिस्स हो जावोगे ..यह सुनने के बाद
मुझे इतना लम्बा चौडा प्रवचन नहीं कुवचन का काढ़ा पिला डाला उससे उबरने
के लिए पेन किलर भी काम नही आई ..आप भी झेलिये ..उसकी हाई लाइट्स....I
देखो भाई हमेशा हम लोगो पर ही दोष मढ़ दिया जाता है की
क्षेत्र के विकास में रूचि नहीं लेते हम भी क्या करे ,अपनी पूरी जिन्दगी
पार्टी के लिए न्योछावर
कर देते है और किसी भी चुनाव के लिए सीट की
दावेदारी जताते है तो हमारे ख्वाब टांय -टांय फिस्स कर दिए जाते है
अभिनेता ,और बड़े नेताओ के बेटे -बेटियो को आगे कर दिया जाता है हर पार्टी
में ऐसा ही हो रहा है कार्यकर्ता केवल काम और घिसने के लिए ही बचा है मलाई
तो दूसरे ही खा ही जाते है सब टांय -टांय फिस्स हो जाता है तो बेचारे आम
आदमी की क्या बिसात, पलटूचन्द बड़े द्रवित होकर बोले .यह राजनीति ही बुरी
चीज है झूठ और फरेब का कुनबा है इसमें किसी का किसी को आगे बड़ना फूटी
आँख नही सुहाता है ऐसे में जनता के अरमानो का टांय -टांय फिस्स होना
कौन टाल सकता है वे नान स्टॉप बोलते ही जारहे थे कार्यकर्ता की कद्र केवल
चुनाव के समय करते है येही समय होता है जीतना चाहो उतना झुकालो .जीतने के
बाद फिर ग्रिप में आना मुश्किल हो जाता है ,जीतने वाले का हम क्या उखाड
लेगे ,वेसे ही ईद के चाँद की तरह हो जाते है राजनीति में कोई किसीका नही
सगा ,हर कोई देता दगा . ये राजनीति सत्यनाशी से कम नही है इस बार अच्छी
सख्ती है ..आचार संहिता ने सबकी नीद उडा रखी है अब आयेगा मजा ..I
पलटूचन्द की राजनीति के बारे ठोस सोच के प्रति में मन ही सोच रहा था .की
कितना उपेक्षित ये है बेचारा ऐसे पलटूचन्द कई होगें और सब दलों के
दल-दल
में फंसे हुए होंगे ,उसका भूत पुन: जागृत हो गया और कहने लगा हमारा
देश अंतहीन और अकाल्पनिक , समस्याओ से भरपूर है कब क्या घट जाए ,कब किसे
क्या सपना आ जाये ,कौनबेतुका बयान दे दे .और सब नेता और न्यूज़ चैनल उसी
में लग जाए I अब देखो भाई प्याज ने चुनाव के समय ही सिर उठाया और अपने
गुणानूरूप सरकारों और नेताओ को आंसू बहाने को मजबूर कर दिया ..क्योकि
इसकी शक्ति इतनी है की यह सरकार भी गिरवा दे और चुनाव में सत्तारूढ़ को सडक
पर ला दे यह ..प्याज भी बम से कम नही है ..अरमानो
को यूँ ही उडा दे और चकनाचूर कर दे .ये सब समस्याओ पर भारी है इस पर जंग
जारी है रुपये का गिरना .महंगाई का बढना .मंदी का माहौल ,भ्रष्टाचार
,जातिवाद ,धर्मवाद ..ये सब कारक है ..नेताओ के ख्वाब टांय-टांय फीस .होने
के .विचार दमदार थे .मुझे भी झकझोर रहे थे I
पलटूचन्द निरन्तर बात ठोके जा रहे थे की देश की राजनीति में
फाड़ना , झाड़ना [झाड़ू] ,फेकना के सहारे कब तक टिक पायगे टांय -टांय फिस्स
हो जायेंगे चायना के माल की तरह देश की राजनीति का कोई भरोसा नही है
...देश के विकास के लिए कसमें खाना आसान और निभाना बहुत दुरुह है
..दूसरों की गलती का फायदा कब तक उठायेंगे तो सब एक ही थेली के चट्टे -बट्टे है I
यह
पलटूचंद जी की व्यथा जन -जन की व्यथा है देश की राजनीति की यही गाथा है हर
-दल की यही प्रथा है यही टांय -टांय फिस्स की करुण कथा है I
संजय जोशी "सजग "
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