शुक्रवार, 22 अगस्त 2014

मूड़ है की मानता नहीं [व्यंग्य ]

मूड़  है की मानता  नहीं [व्यंग्य ]

                           
               
                  जिस प्रकार चायना के  मॉल का कोई भरोसा नहीं  रहता है फिर भी इसका
उपयोग करना हमारी जिन्दादिली  है ,उसी तरह आजकल मूड़  का कोई भरोसा  नही   कब खराब हो जाये   यह  एक गंभीर  समस्या  बन गई है किसका  मूड़ कब  खराब हो जाये  कुछ  भी कहा  ही नहीं  जा सकता l वैज्ञानिकों  का  भी  खोज -खोज करते -करते मूड खराब हो जाता है कि  इसे टेंशन की एक अवस्था कहा जाये  या इसे मानसिक विकार की श्रेणी में रखा जाये  इस पर चर्चा करते -करते मूड खराब हो जाने के कारण अन्तिम निष्कर्ष बार बार  टल  जाता है l जिसको  देखो उसका मूड खराब है यह एक तकिया कलाम सा बन गया है ,किसी   हँसते  हुए से यह पूछ लिया और क्या हाल है  ?उत्तर मिलेगा मूड़ ख़राब है न जाने वायुमंडल में क्या  ऐसा प्रभाव हुआ की मूड़  ख़राब रहना मनुष्य का स्वाभाविक गुण हो गया है l
              मूड़ खराब होने की गुत्थी मेरे दिमाग में बार -बार  उलझती जा रही थी इसे सुलझाना  तो बहुत दूर  यह समझ से परे थी l मैं  सोच ही रहा था कि  क्या किया जाय तब अचानक मेरे दिमाग में कौन बनेगा करोड़पति में लाइफ़ लाइन के एक  ऑप्शन फोन अ फ्रेंड का विचार आया कि  क्यों न किसी मित्र को फोन लगाकर  जानकारी ली जाए  अब किसे फोन लगाया जायें ? फिर एक प्रश्न खड़ा हुआ ,मैंने  मन बनाकर मनोचिकित्सक   डॉ  साहब को फोन लगाया और पूछा की सर जी क्या हाल है
डॉ ,साहब  बोले -क्या बताऊँ  मूड़   बहुत खराब है
मैने पूछा क्या हो गया ?
डॉ साहब का उत्तर था-बस यूँ  ही क्या कहूँ  दिमाग काम नहीं  कर रहा है l
मैंने  सर पीटते हुए कहा  गई भेंस पानी में l
 और  पूछा की ऐसा क्यों  होता है कि  किसी  का कहीं  भी  कभी भी  मूड़ खराब  हो जाता है ? डॉ साहब के बोलने का लहजा अब रुखा होता जा रहा था और मैं  बैचेन था  मैंने  कहा डॉ  सा.कृपया मेरी  सहायता करिये--वे बोले समय हो तो इधर ही आ जाओ l मैंने   कहा आता हूँ ,मैंने तो कमर कस ली थी इस मूड नामक  बीमारी को समझने की  l मैं  उनके घर जा धमका  l मुझे देख कर  गंभीर होकर डॉ साहब ने थोड़ी तेज आवाज में पूछा कि बोलो क्या काम है ?

   मैंने  जिज्ञासा भरे लहजे में कहा कि  सर जी  आजकल मूड खराब होना  बचपन से पचपन और उसके आगे भी ,संत्री से मंत्री ,छात्र से लेकर अध्यापक ,मरीज से लेकर डॉ तक सब इसी बीमारी से ग्रस्त है कहीं यह महामारी न बन जाए ,सरकारें भी इस बीमारी से अनभिज्ञ है  इसके लिए तत्काल सर्वे की जरूरत न पढ़  जाए l  डॉ साहब अपना मूड़  संभालते हुए बोले कि आये दिन इस अज्ञात बीमारी के मरीज निरंतर बढ़  रहे है वे  कहने लगे कि  क्या इलाज करूँ  ?मैंने  कहा यह तो आपका क्षेत्र है l  वे मूड़ खराब  होने  का ज्ञान बांटने   को तैयार हो गए और मैं  मौन धारण करके सुनता रहा क्योंकि  बीच में बोलने से डॉ साहब के मूड़  ख़राब होने का खतरा मंडराता हुआ नजर आ रहा था l


                     डॉ साहब अब अच्छे मूड़  में दिख रहे थे कहने लगे -आजकल सुबह की शुरुआत ही बेड हो जाती है  उठते ही बेड टी  की आदत जो हो गई है फिर हाथ में आता है बलात्कार,खून  अपराध ,भ्रष्टाचार  ,बढ़ती महंगाई  से भरा अख़बार  मूड खराब करने को काफी है मूड़  खराब करने की दूसरी बड़ी समस्या या वजह जाम का आम होना ,और यह लेट पहुँचने से  बॉस  की आँख  की किरकिरी  बनकर हमेशा तिरस्कार का भागी बनकर मूड़  खराब होने  की यातना को  भोगता है साथ ही हर जगह चमचों  के  हमलों का प्रकोप, काम का दबाव ,कम मेन पॉवर में ज्यादा  काम भी मूड खराब के सूचकांक में वृद्धि करता है l शाम को फिर वही जाम फिर बुरा अंजाम और  अब घर वालों   की अपेक्षा पर  खरा  उतरने  की जद्दोजहद क्या करें  कोई कितना ही  बुलंद हो फिर भी मूड़ खराब  हो ही जाता है,l मूड़ खराब  का साइड इफेक्ट  से मानसिकता कमजोर हो जाती है और  गुस्से की उत्पत्ति   हो जाती है जैसे आये दिन  सदन में भी ऐसे दृश्य   देखे जाते है  मुद्दे से हटकर बोलने लगते है इन सबकी जड़ तो मूड़  ही  है मैने बीच में  टोकते हुए  कहा कि  डॉ आपने इसकी महिमा का गुण  गान किया है अब कोई उपाय  तो बताइये तो -डॉ साहब ने टालते हुए कहा की मित्र अगली बार l मैंने  मन ही मन कहा कि  खुद ही इससे पीड़ित है  क्या बताये   इलाज ?मूड अच्छा करने के लिए लोगबाग क्या-क्या जतन करते  है पीने वाले को पीने  का बहाना चाहिये है कुछ तो नेट पर चेट और मोबाइल से ही चिपके रहते है मूड़ को ठीक करने के लिए l
                दिल क्या करे मूड  है कि मानता  नहीं   और हम डूबेंगे सनम आप को भी ले डूबेंगे खराब मूड़  में --- मेरा मूड़  खराब है तेरा खराब न कर दूं तो मेरा नाम नहीं  l

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