गुरुवार, 14 अगस्त 2014

सियासत का बढ़ता डिग्री सेल्सियस

सियासत का बढ़ता डिग्री सेल्सियस
          
      डिग्री -डिग्री के शोर  में सियासत के  तापमान को कई डिग्री सेल्सियस बढ़ा दिया l सियासत में डिग्री का सामान्यतया कोई ज्यादा महत्व नहीं  रहता  है और न  ही कोई जरूरत महसूस की गई  यह व्यथा  डिग्री धारी  अधिकारी की है कि  पंच से लेकर देश के सबसे बड़े पद के लिए आवश्यक शिक्षा और उम्र का  कोई मापदंड नहीं  है और न रहेगा  क्योंकि  बगैर डिग्री,  नेतृत्व देने वाले नेताओं  की एक परम्परा है कोई  इसे कैसे तोड़  सकता है ? सरकार चलाने वाले पर्दे के पीछे  अपना  काम करने वाले  डिग्री धारी अधिकारी कड़वा घूँट पी कर अपनी डिग्री को कोसते है कि  हमसे  अच्छे तो ये है पर इनके  बीच काम करना  हमारी  मजबूरी है हो सकता है कि  हमारे पूर्व जन्म  के  पाप  का नतीजा हो  पर सहना तो पड़ता है  भारी मन से और  हमें लगता  भी है कि  कुछ नहीं  होने वाला है l  पुराने लोग हमेशा यह उक्ति कहा करते थे कि  ,पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब ,खेलोगे  कूदोगे बनोगे खराब ,वर्तमान के संदर्भ में -पढ़ोगे लिखोगे बनोगे खराब ,खेलोगे  कूदोगे बनोगे नवाब l ,क्रिकेट में तो यह सच साबित हो रहा है बिना डिग्री के ही कहां  से कहां   पहुँच गये और हीरो  बन गए l सियासत में भी यही हाल है डिग्री की कोई वेल्यू नहीं  है फिर भी सियासत का डिग्री सेल्सियस  डिग्री के कारण चरम पर  है सियासत  में रोज -रोज के तापमान का डिग्री  सेल्सियस उतार चढ़ाव  के नित नए आंकड़े छूता है l
             एक युवा नेता ने कहा कि  थ्योरी और प्रेक्टिकल में भारी  अंतर को समझकर  कबीर दास जी सब डिग्री वालों  को  पहले ही निपटा गए और कह गए पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ पंडित हुआ न कोय इसका  सीधा मतलब है कि कितना भी  पढ़ लो सर्वज्ञ नही हो सकते है l और कहने लगे डिग्री तो आपके ज्ञान को सीमित  कर एक ही विषय का विशेषज्ञ  बनाती है हमारे देश के  कर्णधार इस बात को बखूबी  समझते है जब तो डिग्री के पचड़े  में न पड़कर अपने आप को हर विषय का जानकार  याने की   सर्वज्ञ समझ कर किसी भी विभाग का  जिम्मा ख़ुशी -ख़ुशी लेकर देश की जनता की सेवा करना  अपना कर्तव्य   समझते है मैंने  कहा सही फ़रमाया जनता को एक प्रयोगशाला  समझ कर प्रयोगधर्मी हो गए ,अच्छा हुआ तो हमने  किया और बुरा हुआ तो देश की जनता जागरूक नहीं  है l देश में सियासत की डिग्री सेल्सियस को और उच्चतम करने में हमारा दृश्य मिडिया भी कोई मौका नही छोड़ता  है पर जब डिग्री पर ही डिग्री   सेल्सियस बढ़ने लग जाय तो ऐसे में  ए.सी में भी दिमाग काम करना बंद कर देते है l जिनके पास डिग्री नहीं  है वे भी दुखी और जिनके के पास है वे भी दुखी l किस्मत अपनी -अपनी घोड़ो को घांस भी नसीब में नही और गधे गुलाब  जामुन ही नहीं  च्वयनप्राश खा रहे है l कुछ बनियान में इतनी ताकत है कि पहनने से लक बदल जाता है पर यहां तो सरकार बदलने पर भी लक नहीं  बदलता है हमारी विडंबना है l डिग्री कुछ मेहनत व ज्ञान से तो  कुछ जुगाड़ से प्राप्त करते है जब से व्यापम घोटाला बहुत चर्चित हो गया है उसके बाद से बेचारे डिग्री वाले को बुरी नजर से देखते है कि  कहीं  जुगाड़ की तो नहीं  है l डिग्रियों की दुर्दशा यह है कि  डिग्री सही रोजगार देने में बुरी तरह विफल हैl नेता और अभिनेता  दोनों का ही डिग्री से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं  ,जो चल गया सो चल गया l
                    कब्र में पांव लटकाये एक नेताजी कहने लगे कि  राजनीति में जितना सोशल इंजीनियरिंग का जानकार होगा उतना ही सफल होगा इसकी कोई डिग्री नहीं है फिर अपने आपको डॉ समझने  वाले भी  कम नही है ,सियासत तो तजुर्बा मांगती है और डिग्री  केवल शिक्षा  देती है तजुर्बा नहीं   l तजुर्बे वाला चलता नही दौड़ता है l मैंने कहा कि  कब तक दौड़ेगा और डिग्री धारी कब तक   रेंगता रहेगा l उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और चर्चा का अंत हुआ l

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