रविवार, 3 अगस्त 2014

टमाटर की टर्र -टर्र

      टमाटर की टर्र -टर्र
        
                    अभी तो  टमाटर की टर्र -टर्र  चल रही है हर किसी की जुबान पर होकर
भी न होना बड़ी त्रासदी  है चुनाव में नेताओ की टर्र -टर्र आम बात है बारिश में मेंढक  की टर्र-टर्र होना स्वाभाविक है पर अचानक टमाटर के  टर्र -टर्र  होने  की खबर  मात्र से आम आदमी को टमाटर  सेवफल जैसा नजर आने लगता है क्योकि  सेवफल का आहार  तो  वह केवल बीमारी के समय ही डॉ सा के  कहने पर बेमन से  लेता है अब उससे टमाटर भी दूर हो जायेगा इस दुःख से तनाव के कारण वह ब्लड प्रेशर का मरीज हो गया l सबके दिन फिरते है सजीव हो या निर्जीव यह कुदरत  का खेल है जैसे कभी  नाव में गाड़ी तो कभी गाडी में नाव l वैसे ही आजकल टमाटर हर और छाया हुआ है बाजार में इसकी इमेज को चार चाँद लगे हुए है कुछ तो डॉलर और पोंड से ज्यादा कीमत से होने के कारण फुले नही समा रहे है ज्यादा भाव के कारण प्राकृतिक चिकित्सा वाले वाले भी सहम  गए है   कि  अगर टमाटर का प्रयोग बता दिया तो मरीज ही भाग जायेगा l
            निरंतर टमाटर  के  भाव बढ़ने पर  किसान से भाव पक्ष जानने के लिए,अपने  आपको आधुनिक किसान कहने वाले तेजु काका को कहा कि  टमाटर  के भाव ने तो आपके चेहरे  की और चमक और बड़ा दी --मेरा इतना कहना था की कहने लगे जब हमें  टमाटर के उचित भाव क्या लागत  भी नही मिलती  थी  तब हम उन्हें फेंक देते  थे  जब कौन आया था ?कहां थे न्यूज़ चैनल वाले,पक्ष ,विपक्ष के नेता आज तक फसल का उचित मूल्य मिला ही नही किसानों  को कभी। ऐसे ही कभी -कभी  गलती से किसानों  को कुछ फायदा मिल जाता है तो देश में हा -हा कर मच जाता है विधायक ,सांसद और  मंत्रियो के भत्ते तो आये दिन बढ़ते रहते है बेचारे किसान तो प्रकृति पर निर्भर रहते है , और प्रकृति के रुष्ट होने का मुआवजा मिलता ही नही है और बॉयचांस मिल भी जाता है तो ऊंट के मुह में जीरे की  भांति होता है l बेचारा  आम किसान  तो कर्ज में  जन्म लेता है और कर्ज में ही मरता है l
                टमाटर की टर्र -टर्र में  पक्ष और विपक्ष का गुण -धर्म  अलग- अलग  होता  है सबके पास अपना -अपना धर्म निभाकर घड़ियाली आंसू बहाकर सब को बहला -फुसलाकर अपना उल्लू सीधा कर लेने में महारथ हासिल रहती है l न्यूज़  चैनल  ने लोगो पर टमाटर की टर्र -टर्र का  ऐसा प्रभाव डाल दिया कि  टमाटर ही सब कुछ है बेचारी गृहणियों  को  टमाटर युक्त व्यंजन मांग कर  परेशान करने  वालों  कि  कमी नही है आजकल होटलों मे भी ये सलाद से नदारद है मांगने पर ही दिया जाता है   हमारी  प्रकृति ही कुछ ऐसी है जो  चीज महंगी व जिसकी कमी है वही  अच्छी  लगती है l और सरकार भक्तों  का तर्क है कि  टमाटर कुछ दिन न खाओगे तो क्या सेहत पर कुछ अंतर  पड़  जायेगा पर लोगो का दिल है कि टमाटर के बिना मानता ही  नहीं  है l और टमाटर की टर्र -टर्र जोरों  पर है कब तक चलेगी किसे पता ?

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