रविवार, 9 फ़रवरी 2014

" दिन" बनाम ".डे"

              व्यंग्य

                    " दिन"  बनाम  ".डे
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बात -बात में अचानक पत्नी सेपूछ लिया अब क्या आएगा .कड़े तेवर के अंदाज में बोली जो प्यार दिल से  करते है उनके लिए वेलेन्टाईन डे आने वाला है इस दिन को युवा अपने प्यार का इजहार करते है मैंने कहा जी हम तो केवल  दिन  ही समझते है क्यों की दिन गिन -गिन कर काटना ही जिन्दगी हो गई है I
            
       दिन और डे....पर हमारी बहस चल  ही रही थी की इसी बिच  समाज सेवी वर्मा जी आ टपके और और अपना सामजिक ज्ञान का पिटारा खोल दिया और बहस को को एक नया मोड़ दे दिया और कहने लगे आजकल हर  तारीख एक स्पेशल डेहोती है दिन और तिथि का  भान किसे रहता है वह तो केवल पंडित,पुजारी व ज्योतिषी की मोनो पाली हो गई है इसी लिए उन्होंने इसे बचाए रखा है वरना आजकल डे का चलन जोरों पर है I

               वर्माजी व्यथित होकर कहने लगे की पश्चमी सभ्यता की उपसना और रंगमें इतने रंगीन हो गये की  हमारी संस्कृति व  परम्परा रंगहीन नजर आने लगी है बसंत पंचमी का प्रेमोत्सव छोड़ कर वेलेन्टाईन डे मनाने को  इस कदर लालायित है शब्दों में   बखान करना ना  मुमकिन है और इनको हवा देने में तथाकथित  सोशल मीडिया की मुख्य भूमिका निभा कर एंटी सोशल बन गये है

              वर्मा उवाच निरंतर जारी था की किसी ने  सही कहा  है पश्चिम में ढला तो अस्त हो गया उसी तर्ज पर हमारी युवा पीढ़ी पश्चिम में  ढलने की अधकचरी मानसिकता लिए आतुर है हमारी आदत  रही है जिस  डाल बेठो वही काटो ,एसा ही हश्र हो रहा है कहते है की दूर के ढोल सुहावने लगते है  और हर चीज इम्पोर्टेड ही अच्छी लगती है I
  
   अब देखो भाई वेलेन्टाईन डे की शुरुआत सात दिन पहले शुरू होजाती है और बाद में सात दिन तक चलती है हम तो हमारा  विरोध केवल एक ही दिन प्रकट कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते है पेपर और न्यूज़ चैनल की खबर बन जाती है ओर जनता में यह संदेश चला जाता है की इसे नापसंद करने वाले बहुत है ,हम करे तो क्या करे लुका छिपी के इस  वेलेन्टाईन डे  को पूर्णतया केसे रोके समझ ही नही आता ,प्रेम की  अपार शक्ति भारी पढ़ जाती है रोके नही रुकता है प्रेम के वशीभूत होकर तो डाई,विग और नकली बत्तीसी वाले भी अपने आप को रोक नही पाते  फिर युवा तो युवा  ही ठहरे  जैसे तैसे यह डे मना ही लेते है दिल है की मानता ही नही ,प्रेम तो असीम  होता है उसकी कोई पराकाष्ठ नही होती I कबीर दास  ने जी लिखा है  -
                      "प्रेम न बाड़ी उपजी ,प्रेम न हाट बिकाय ,
                         राजा, परजा जेंहि रुचे सीस देई ले जाय I
प्रेम का उदय तो मनुष्य के दिल और दिमाग में होता  है और उसका सोदागर कोई भी  हो भले ही वह राजा हो ,प्रजा हो  शाह हो या तानाशाह या फकीर हो Iऔर चोरी छिपे अपना प्रेम इजाहर करने में कोई पीछे रहना नही चाहता. कभी -कभी बासी कड़ी मेभी उबाल आजाता है तो युवा पीडी का क्या दोष ......?प्रेम एक अजूबा है उसमे कोई नियम नही होता है I

        वर्तमान  की दुनिया में जहाँ चारो और घृणा और हिंसा की बयार चल रही है
ऐसे में ये डे कम से कम प्यार के बारे में  कुछ तो माहौल बना देता है और युवा जवाँ दिल जब मर्यादा व सीमा तोडकर प्यार के उत्सव को शक के दायरे में लाकर अभिशप्त कर देते है तो हम जैसे सामजिक लोगो का प्रयास रहता है कि ऐसे डे मनाने से तो  अपने दिन ही अच्छे  जो हमारी संस्कृति की जड़े और मजबूत करते है कितना भद्दा  लगता है जब प्यार इजहार करना भी हम पश्चिम से सीखेगे, सोचने को मजबूर हो जाते है की  हम क्या से क्या हो गये दिन को भूलकर डे मनाने व्यस्त और मस्त हो गये,हमने शांत चित्त से उनका दिन बनाम डे पर प्रभावी विचार के लिए आभार व्यक्त किया और उन्हें वचन दिया की हम दिन ही मनाएंगे  तब कही जाकर  उनके प्रवचन पर विराम  लगा  I

नोट:-



संजय जोशी " सजग "

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