शनिवार, 15 फ़रवरी 2014

हाय मिर्ची आह मिर्ची [व्यंग्य ]

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                    हाय मिर्ची आह मिर्ची [व्यंग्य ]



     हमरा देश घटना प्रधान देश है हर समय कुछ -कुछ घटता ही रहता है I आजकल टी.वी देखो और  टेंशन लो ,  मे भी इसका शिकार हुआ और  चैनल के माध्यम से जैसे ही  समाचार देखा कि देश की  सबसे ऊँची सभा  में मिर्ची  स्प्रे का उपयोग  किया गया , दिल और दिमाग  सन्न रह गया और उसी समय मेरी गुडिया स्कूल से घर आई ....उसने  अचानक पूछ लिया क्या हो गया मैंने पूरा विवरण बताया तो कहने लगी अभी कुछ ही दिन पहले मेडम ने हमे समझाया था कि आँखों में धूल झोंकने का मतलब  किसी को धोखा देना पर आजकल ,लुटेरे ,गुंडे और बदमाश लोग . इसका उपयोग   करने लगे  वे मिर्ची की सहायता से अपने लक्ष्य को प्राप्त करते है यह उनका हथियार बनगया है गुडिया कहने लगी  पर पापा ये तो बहुत अच्छे लोग होते है जो अपने लिए काम करते है वे ऐसे कैसे कर सकते है मेने उसको समझाते हुए कहा यह  सब स्वार्थ के कारण होता है सब अपनी -अपनी ..सोचते है देश और आम जन से उनको क्या लेना देना वोट लेने के बाद तो उनका मकसद ,स्वार्थ हमारा जन्म  सिद्ध अधिकार है हो जाता है I

    बच्चे की जिज्ञासा को शांत करना ..कभी -कभी बहुत कठिन हो जाता है बाल हठ
के सामने कोई टिक पाता है? वह लगातार उस घटना के बारे में कई अजीब गरीब प्रश्नों को  दागे जा रही थी कौनसी   मिर्ची थी मैंने टालते हुए कहा की घर में  जो यूस करते है वो ..नही टीवी वाले अंकल तो बोल्र रहे है काली मिर्ची का स्प्रे  था .यह क्या होता है इससे क्या होता है आँख की रौशनी चली जाती है क्या ?आखिर में  मुझे बोलना ही पड़ा  मुझे नही मालूम  ज्यादा इसके बारे में ,आपके कोर्से में नही था क्या ?..हाँ नही था .वह डरी  और सहमी सी .बोल रही थी .हाय मिर्ची ,ओह मिर्ची ,.शेम .शेम  हे ना पापा मेने कहा ...शेम -शेम  तो है पर अपन क्या कर सकते दुखी होने के अलावा Iपापा ये सब  जानकर किया ना .फिर तो गाना भी गाया  होगा तुझे मिर्ची लगी तो में क्या करूI,I

           जैसे तैसे उसको खेलने भेजा और विचार मग्न हो गया कि विश्व प्रसिद्ध
लोकतंत्र  पर  आज कालिख पुत गई   ,विदेशो में हमारे देश की छवि एक आदर्श ससंद व सांसद  की थी  जो  संविधान के प्रति पूर्ण निष्ठां के साथ अपना कर्तव्य निभाते  है  I विचारो में मतभेद तो हो सकते  है पर  मनभेद  की पराकाष्ठा ऐसे घृणित काम को अंजाम देगी इसकी  कभी कल्पना भी नही की होगी किसीने I ऐसी घटनाऐ चुने हुए प्रतिनिधियो
के चरित्र का आयना बन जाती है जिस प्रकार एक मछली तालाब को गंदा कर देती है उसी  तरह  ये संस्था और सदस्य शक के दायरे में आजाते है  देश में राजनीतिक हडकम्प करते रहे है और जनता मूक दर्शक बन के देखती रहती है समय की डगर के साथ भूलती जाती है I

                   जब रक्षक ही भक्षक बन जाये तो इससे और अधिक दयनीय स्थिति  और क्या हो सकती है ,आप  हम  हाय,ओह ,उफ़. करते रहत है और करते रहेगे ,उनके कानो पर  जूं भी नही रेगती  है I


 

संजय जोशी 'सजग '

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