दायित्व,कर्त्तव्य और अधिकार के प्रति रहो हमेशा सजग.... [इसको व्यक्त करने का माध्यम मेरे लिए ---शूलिका(किसी बात को कम शब्दों मे कहना और उससे मन मे चुभन का अहसास हो) एवं व्यंग्य]
मंगलवार, 22 अक्टूबर 2013
रविवार, 20 अक्टूबर 2013
गन्जिका
_____________गन्जिका_____
धर्म स्थल से भी ज्यादा भीड़ पाते
जात पात का भेद नही वहाँ पाते
हर लब पर रहता बाटल या प्याला
जीवन में छाया रहता बादल काला
जो -जो जाते निकलता है दिवाला
परिवार का छिनते वे है निवाला
पडे रहते पीकर जीजा संग साला
जाते मजदूर और अफसर आला
हर शहर ,चौराहे पर सजी गन्जिका
पीने के बाद बदल जाता है सलीका
----------संजय जोशी "सजग "------
धर्म स्थल से भी ज्यादा भीड़ पाते
जात पात का भेद नही वहाँ पाते
हर लब पर रहता बाटल या प्याला
जीवन में छाया रहता बादल काला
जो -जो जाते निकलता है दिवाला
परिवार का छिनते वे है निवाला
पडे रहते पीकर जीजा संग साला
जाते मजदूर और अफसर आला
हर शहर ,चौराहे पर सजी गन्जिका
पीने के बाद बदल जाता है सलीका
----------संजय जोशी "सजग "------
शुक्रवार, 18 अक्टूबर 2013
हाय मंत्री जी ... का .चिन्तन ...
वाह मंत्री जी आपने भी कमाल किया मंदिर ओर शौचालय का भेद बताया Iलगता है मंत्री जी ने अपने पांच सितारा शौचालय में इस विचार को अंजाम
दिया होगा I
शुद्ध हिन्दी भाषा में शौचालय को " आत्म चिन्तन केद्र कहा जाता है ऐसे विचारो उत्पत्ति उसी केंद्र का परिणाम हो सकता है I हमारे देश में राजनेताओ की विचारो की उत्पति का प्रमुख केंद्र है लगता है अपने आप को ज्यदा तनाव मुक्त वही पाते होगे I देश की हर समस्या का चिन्तन उसी आत्म चिन्तन केद्र में करते है और विवादित बयानोंकी बौछार करते है Iलगता है हमारे देश और संस्कृति के पतन के कारण ये पांच सितारा 'आत्म चिन्तन केंद्र " ही है मंदिर और शौचालय के बारे जो चिन्तन हुआ वह उनके लिये पवित्र स्थान होसकता है जिससे
उनकी राजनीति चलती है और नित नये चिन्तन को जन्म देते है यह चिन्तन केद्र आजकल बहुतायत में पाए जाते है पर सबका स्वरूप भिन्न -भिन्न होता है जेसे वी . आई .पी ..लोगो .का पांच सितारा 'आत्म चिन्तन केंद्र .जन सामान्य का साधारण .गरीबो का सार्वजनिक ., ग्राम वासियों ....जंगल में खुला स्थान ...आदि I अत: चितन का दायरा भी अलग अलग होता है एक .मंत्री .नेता ...कवि .लेखक व्यापारी सबका अपना चिन्तन का विषय अपने कार्यानुसार होताहै I बेचारा गरीब आदमी ...तो अपनी रोजी -रोटी और बढती महंगाई का चिन्तन कर दुखी होता है और चारा ही क्या है .
जिनके के पास 'आत्म चिन्तन केंद्र " है ही नही ...वे खुले में और जंगल का उपयोग करते है वह चिन्तन की प्रक्रिया से वंचित रहते है ....प्रकृति दर्शन उनकी चिन्तन को विचलित कर देता है और वो चिन्तन मुक्त जीवन जीते है बचारे इस प्राणी को ...ठेठ .गंवार कह दिया जाता है .ये आत्म चिन्तन केद्र
अगर हमारे देश वासियों के पास १०० प्रतिशत शौचालय होतो सब चिन्तन शील हो जायेंगे और सरकार क हर कदम का चिन्तन करेगे ओर पांच साल बाद सरकार को सडक पर ला देगे अत: सरकार भी नही चाहती ऐसा होपर सिर् इसकेप्रति चिंता दर्शाती है और अपने कर्तव्य की इति श्री कर लेती है बुद्धि जीवियो को हमेशा यह खलता है की हमारे देश में सामजिक .संस्कृति ,नेतिक मूल्यों में गिरावट का क्या कारण
है ..इन सब का मुख्य कारण पांच सितारा ;आत्म चिन्तन केद्र है .जिसका ...बखान हाल ही ..में मंत्री जी इन्हें मंदिर ..से ज्यदा पवित्र बताकर कर दिया .आजकल घरो ...में भी .धर्म स्थान की निर्माण पर कम खर्च होता आत्म चिन्तन केद्र पर बहुत ज्यदा खर्च कियाजाता है ......जो ऐसी मानसिकता को दर्शाता है ...जो भी .हो धनुष से छोड़ा गया तीर ओर मुख से निकले शब्द ....से ...शरीर ओर दिल ...छलनी होता है .मंत्री जी तो ..अपनी बात कह गये कितनो की धार्मिक ..भावना पर कुठाराघात कर गये ......अब क्या आप बयान पर बहस और चितन .. करते रहो .........लगता है ...चुना.में सरकार ..देश ..में आधुनिक शोचालय की निर्माण को मुख्य प्राथमिकत दे.नवचिनतं की ओर अग्रसर हो ......वाह इस मुद्दे पर नयी बहस छिड़ी है ...गलत बयानों से मचाते बबाल देश की प्रगति होती है हलाल ,सदियों से हम यही सुनते आये है ....मंदिर होते है पावन औरपवित्र ..ऐसा करके विकृत करते है संस्कृति .का चित्र सोचो हमारे देश के कर्ण धार ऐसे वक्तव देकर क्या दिखाना चाहते है .जन सामान्य की समझ से परे .....हमारी प्राचीन मंदिर संस्कृति का खुला मजाक है ........
नीलामी शब्द बचपन से
हमारे जेहन में ठूसा हुआ है किसी की पेंटिग
,महापुरुष की दुर्लभ वस्तु और सब्जी मण्डी में सब्जी की रोडवेज की खटारा बस की नीलामी और सरकार द्वरा राजसात की सम्पति नीलम होती है दिलो दिमाग में यही छाप पड़ी है की यह शब्द निम्न कोटि का हैहमारे
मोहल्ले में एक पहलवान रहते थे उनके कई पठ्ठे थे वह हमेशा कहा करते थे सब कुछ करना पर इज्जत नीलाम मत करन बस यही समझ में करन बस यही समझ में आता था की आपने आप को बेचना या नीलाम करना याने आपना सब वजूद खो देना होता है I
मुझे जब बड़ा आश्चर्य होता है की धार्मिक आयोजन में भी नीलामी का अपना महत्वपूर्ण स्थान है जो जितनी अधिक बोली लगाता उसे भगवान की सेवा मिलती और श्रद्धा का हनन होता है भगवानका दरबार भी इससे अछुता नही है तो हमारे देश में क्रिकेट खेल इससे अछुता केसे रह सकता है और नीलामी का दोर चल पड़ा
क्रिकेट खिलाडियों करोड़ों में नीलाम होने का प्रयोजन होता रहता है इसमे देशी और विदेशी दोनों ही है जो जितने में अधिक बिक रहा है वह उतना महान है रुपयों की लिए बिकने वाले ये खिलाडी क्या देश कि लिये अपने को और अपने खेल को .समर्पित कर पायगे इसमे हर किसी को संदेह नजर आता है I कभी - कभी सोचना मुश्किल ही नही ना मुमकिन लगता है की धन के लिए खलेने वाले ये खिलाडी अपने देश के लिए न्याय कर पायगे अपार धन की भूख ने क्रिकेट को किस मुकाम पर खड़ा कर दिया की २० -२० ही भाता है टेस्ट और एक दिवसीय .मेच में तू चल में आया की तर्ज पर लगातार विकेट गिरना ओर मेच को हार की कगार पर ले जाते है ओर देश की भोली -भाली जनता गम के साये में हो जाती है Iदेश के खिलाडी धन की पिपासा में ....नीलामी को सलामी करते रहेगे ओर क्रिकेट की हालत बद -से बदतर होती जायगी I देश की इज्जत नीलाम को करने मेंकोंई कसर नही छोड़ेगे I देश के मेचो में मिलती असफलता को बुद्धि जीवी हमेशा यह कह कर आसनी से पचा लेते है .की खेलो में हार जित तो चलती रहती है कोई एक तो हारेगा पर यह हार का सिलसिला यु ही चलता रहेगा जब तक खिलाडी नीलाम होते रहेगे I
मुझे जब बड़ा आश्चर्य होता है की धार्मिक आयोजन में भी नीलामी का अपना महत्वपूर्ण स्थान है जो जितनी अधिक बोली लगाता उसे भगवान की सेवा मिलती और श्रद्धा का हनन होता है भगवानका दरबार भी इससे अछुता नही है तो हमारे देश में क्रिकेट खेल इससे अछुता केसे रह सकता है और नीलामी का दोर चल पड़ा
क्रिकेट खिलाडियों करोड़ों में नीलाम होने का प्रयोजन होता रहता है इसमे देशी और विदेशी दोनों ही है जो जितने में अधिक बिक रहा है वह उतना महान है रुपयों की लिए बिकने वाले ये खिलाडी क्या देश कि लिये अपने को और अपने खेल को .समर्पित कर पायगे इसमे हर किसी को संदेह नजर आता है I कभी - कभी सोचना मुश्किल ही नही ना मुमकिन लगता है की धन के लिए खलेने वाले ये खिलाडी अपने देश के लिए न्याय कर पायगे अपार धन की भूख ने क्रिकेट को किस मुकाम पर खड़ा कर दिया की २० -२० ही भाता है टेस्ट और एक दिवसीय .मेच में तू चल में आया की तर्ज पर लगातार विकेट गिरना ओर मेच को हार की कगार पर ले जाते है ओर देश की भोली -भाली जनता गम के साये में हो जाती है Iदेश के खिलाडी धन की पिपासा में ....नीलामी को सलामी करते रहेगे ओर क्रिकेट की हालत बद -से बदतर होती जायगी I देश की इज्जत नीलाम को करने मेंकोंई कसर नही छोड़ेगे I देश के मेचो में मिलती असफलता को बुद्धि जीवी हमेशा यह कह कर आसनी से पचा लेते है .की खेलो में हार जित तो चलती रहती है कोई एक तो हारेगा पर यह हार का सिलसिला यु ही चलता रहेगा जब तक खिलाडी नीलाम होते रहेगे I
शुक्रवार, 11 अक्टूबर 2013
पोलीथिन मोह छुटे नाही
पोलीथिन मोह छुटे नाही
************************
पोलीथिन विज्ञानं का वरदान है और उसका बेग हर मनुष्य के लिए वरदान वहीं मूक पशुओ के लिए अभिशाप बन गया है ,जहाँ इसने उपयोग करो और फेक दो की संस्कृति को जन्म दिया है और जेसे देश से भ्रष्टाचार न मिट रहा है उसी भांति यह भी नही मिटती दिन दूनी और रात चौगुनी बढ़ जाती है क्योकि हर कोई इसके मोहपाश में जकड़ा हुआ है .
जब -जब पोलीथिन पर प्रतिबन्ध की खबर आती है तो कई चेहरों पर मायूसी छा जाती है जेसे लोक पाल और सूचना का अधिकार लागू करने की खबर.से राजनीति में हडकम्प मच जाताहै कभी -कभी तो लगता है भ्रष्टाचार के बिना देश और पोलीथिन के बिना संस्कृति का चलना ना मुमकिन है .जेसे नेता कुर्सी के बिना ,और हम पोलीथिन बेग के बिना I
पोलीथिन ने अपने प्रभाव से दादा जी कपड़े के झोले को दुर्लभ और संग्राहलय की वस्तु बना दिया है कभी गलती से दिख जाय तो नई पीड़ी पूछ बेठे यह किस काम आता है तो आश्चर्य नही होगा क्या करे बेचारे . पोलीथिन संस्कृति में जो जी रहे है ,पहले जमाने में सामान खरीदने के लिए साथ में बेग ले जाना ग्राहक की मजबूरी थी ,परन्तु आजकल दुकान से लेकर माल वाले तक की मजबूरी हो गई की सामान अच्छी सी रंगीन.पोलीथिन में रख कर सलीके से दे और .कोई कोई तो ..डबल भी मांग लेते है बेचारों को देनी पड़तीहै इस प्रतियोगी युग का तकाजा है ..ग्राहक .भगवान का रूप होते है अत: कोई नाराज न हो
वापस जो बुलाना है
हर सामान और हर हाथ की शोभा बन कर इठलाती है ओर गलती से कपड़े का बेग दिख जाए तो उसे चिढाती है और अपने आधुनिकता को प्रदर्शित करती है Iपोलीथिन
आलस्य ,बेफिक्री और गंदगी की जन्म दात्री ...मानी जा सकती है
छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी वस्तु इसकी गुलाम लगती है .दूध,सब्जी से लेकर सभी वस्तु का हरण कर लेती है ,मैंने एक सब्जी वाले काका को बोला कि आप पोलीथिन देना बंद क्यों नही करते ,वे बोले मेरी रोजी रोटी पर लात मारने की सलाह
क्यों दे रहे हो लोग बाग़ इसके बिना सब्जी ही नही लेते कई मेंम साहब तो हर आयटम
की अलग -अलग मांगती है .मेने पूछा क्यों ,? काका बोले ..नोकरी में है .ऐसी-की ऐसी फ्रिज में रख दो छांटने की फुरसत नही मिलती , पोलीथिन बाद में कई काम आती है ....मल्टी परपस है , मेने कहा काका एक काम ..करो .सब्जी .बना कर ही बेचना चालू क्यों नही कर देते और अच्छा रहेगा ,हर किसी का ऐसा ही हाल है हर दुकानदर की यही व्यथा है यह बला से कम नही है .पोलीथिन बेग दुकानदार के व्यवहार का मापदण्ड है I
धन्यवाद विज्ञानं पोलीथिन का वरदान दिया ,दुःख तब होता है जब निरीह पशु की . इससे मौत होती है ,आजकल राष्ट्रीय ध्वज भी इससे अछुता नही वह भी पोलीथिन का बनने लगा .राष्ट्रीय पर्व पर दिन को सलाम करो और शाम को नाली और सडक पर पड़े देख देश भक्तो का मस्तक झुक जाना चाहिए परन्तु..उपयोग करो और फेक दो की संकृति में इतने घुल गये कि..कुछ समझ में नही आता Iदेश के चुनावो में भी सभी दलों द्वरा ..पोलीथिन से निर्मित झंडो का उपयोग बेखोप किया जाता है , अति सर्वत्र वर्जयेत .I पोलीथिन ने संस्कृति को पोली ओर जनता को पंगु बना दिया है केसे चलेगा जीवन,इसके बिना पूर्ण विराम सा महसूस होता है I
पक्ष और विपक्ष उलझे है अपने स्वार्थ में , उन्हें देश की ही चिंता नही वे पोलीथिन बेग के दुष्प्रभाव .की क्या चिंता करेगें. ..कल्पना से परे है .धृतराष्ट्र. जो है .I. है भगवान सबको दे सदबुद्धि , मिलकर करे प्रार्थना
पोलीथिन मुक्त हो सबको आये यह ज्ञान ,मागे भगवान से यही वरदान
************************
पोलीथिन विज्ञानं का वरदान है और उसका बेग हर मनुष्य के लिए वरदान वहीं मूक पशुओ के लिए अभिशाप बन गया है ,जहाँ इसने उपयोग करो और फेक दो की संस्कृति को जन्म दिया है और जेसे देश से भ्रष्टाचार न मिट रहा है उसी भांति यह भी नही मिटती दिन दूनी और रात चौगुनी बढ़ जाती है क्योकि हर कोई इसके मोहपाश में जकड़ा हुआ है .
जब -जब पोलीथिन पर प्रतिबन्ध की खबर आती है तो कई चेहरों पर मायूसी छा जाती है जेसे लोक पाल और सूचना का अधिकार लागू करने की खबर.से राजनीति में हडकम्प मच जाताहै कभी -कभी तो लगता है भ्रष्टाचार के बिना देश और पोलीथिन के बिना संस्कृति का चलना ना मुमकिन है .जेसे नेता कुर्सी के बिना ,और हम पोलीथिन बेग के बिना I
पोलीथिन ने अपने प्रभाव से दादा जी कपड़े के झोले को दुर्लभ और संग्राहलय की वस्तु बना दिया है कभी गलती से दिख जाय तो नई पीड़ी पूछ बेठे यह किस काम आता है तो आश्चर्य नही होगा क्या करे बेचारे . पोलीथिन संस्कृति में जो जी रहे है ,पहले जमाने में सामान खरीदने के लिए साथ में बेग ले जाना ग्राहक की मजबूरी थी ,परन्तु आजकल दुकान से लेकर माल वाले तक की मजबूरी हो गई की सामान अच्छी सी रंगीन.पोलीथिन में रख कर सलीके से दे और .कोई कोई तो ..डबल भी मांग लेते है बेचारों को देनी पड़तीहै इस प्रतियोगी युग का तकाजा है ..ग्राहक .भगवान का रूप होते है अत: कोई नाराज न हो
वापस जो बुलाना है
हर सामान और हर हाथ की शोभा बन कर इठलाती है ओर गलती से कपड़े का बेग दिख जाए तो उसे चिढाती है और अपने आधुनिकता को प्रदर्शित करती है Iपोलीथिन
आलस्य ,बेफिक्री और गंदगी की जन्म दात्री ...मानी जा सकती है
छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी वस्तु इसकी गुलाम लगती है .दूध,सब्जी से लेकर सभी वस्तु का हरण कर लेती है ,मैंने एक सब्जी वाले काका को बोला कि आप पोलीथिन देना बंद क्यों नही करते ,वे बोले मेरी रोजी रोटी पर लात मारने की सलाह
क्यों दे रहे हो लोग बाग़ इसके बिना सब्जी ही नही लेते कई मेंम साहब तो हर आयटम
की अलग -अलग मांगती है .मेने पूछा क्यों ,? काका बोले ..नोकरी में है .ऐसी-की ऐसी फ्रिज में रख दो छांटने की फुरसत नही मिलती , पोलीथिन बाद में कई काम आती है ....मल्टी परपस है , मेने कहा काका एक काम ..करो .सब्जी .बना कर ही बेचना चालू क्यों नही कर देते और अच्छा रहेगा ,हर किसी का ऐसा ही हाल है हर दुकानदर की यही व्यथा है यह बला से कम नही है .पोलीथिन बेग दुकानदार के व्यवहार का मापदण्ड है I
धन्यवाद विज्ञानं पोलीथिन का वरदान दिया ,दुःख तब होता है जब निरीह पशु की . इससे मौत होती है ,आजकल राष्ट्रीय ध्वज भी इससे अछुता नही वह भी पोलीथिन का बनने लगा .राष्ट्रीय पर्व पर दिन को सलाम करो और शाम को नाली और सडक पर पड़े देख देश भक्तो का मस्तक झुक जाना चाहिए परन्तु..उपयोग करो और फेक दो की संकृति में इतने घुल गये कि..कुछ समझ में नही आता Iदेश के चुनावो में भी सभी दलों द्वरा ..पोलीथिन से निर्मित झंडो का उपयोग बेखोप किया जाता है , अति सर्वत्र वर्जयेत .I पोलीथिन ने संस्कृति को पोली ओर जनता को पंगु बना दिया है केसे चलेगा जीवन,इसके बिना पूर्ण विराम सा महसूस होता है I
पक्ष और विपक्ष उलझे है अपने स्वार्थ में , उन्हें देश की ही चिंता नही वे पोलीथिन बेग के दुष्प्रभाव .की क्या चिंता करेगें. ..कल्पना से परे है .धृतराष्ट्र. जो है .I. है भगवान सबको दे सदबुद्धि , मिलकर करे प्रार्थना
पोलीथिन मुक्त हो सबको आये यह ज्ञान ,मागे भगवान से यही वरदान
मंगलवार, 8 अक्टूबर 2013
मिश्रित ...रचनाये
शूलिका ---१३२
==पोल ==
विकिलीक्स खोल रहा पोल
राजनीति हो रही डांवाडोल
देश का बिगड़ रहा माहौल
बेलगाम हो रहे बोल
इससे घटता देश का मान
लोकतंत्र का होता है अपमान
जनता के गुट रहे अरमान
करो ऐसे काम बढ़े देश का सम्मान
नेताओ तोल-मोल के बोलो
आग में घी मत डालो
देश के विकास का द्वार खोलो
गंदी राजनीति कुचल डालो
=== संजय जोशी "सजग "
हर फेस बुक मित्रो की व्यथा ------जब तक आपस में न मिले .......!!!!!
जब तक हर मित्र पर शक करू
तब तक मिलु न मित्रो से रु बरु
फेसबुक जरुर मिटाती शहरो की दुरी
पर अनजान मित्रता लगती रहती अधूरी
जब मिल जाते आपस में मित्र अनजान
मिल जाती फेसबुक मित्रता को नई जान
====== संजय जोशी "सजग "
शूलिका --१३३
कितना हो गया
नेतिक पतन
केसा होगया
हमारा वतन
=== संजय जोशी "सजग "===
गुमराह करते
टी.वी. सीरियल
नेतिकता का
नही रखते ख्याल
टी.आर .पी की रेस
में सब करते हलाल
-------------------------
उदास
के न
बनो दास
हमेशा
रहो खुश
और बिंदास
संजय जोशी "सजग "
मजबूत रिश्तो की डोर
थामे उसे दोनों छोर
स्वार्थ का न हो काम
अहम का न हो नाम
समझो सबकी भावना
तभी रहेगी सदभावना
=====संजय जोशी "सजग "=====
हर दल करता
करता भ्रष्टाचार
मिटाने का
शिष्टाचार
मिलते ही मोका
भरपूर करता
भ्रष्टाचार ......
संजय जोशी "सजग "
रखो समय का बंधन
होगा समय प्रबन्धन .
जीवन को देता आकार
आती क्षमता शक्ति अपार
==== संजय जोशी 'सजग "
प्रशंसा
=====
प्रथम रूप ---
प्रशंसा होती प्यारी
शक्ति देती न्यारी
सकारत्मक हो सच्ची
लगती है खूब अच्छी .
------------------------------ --
द्वितीय रूप ...
प्रशंसा खूब खलती
जब चाटुकारिता चलती
नकारात्मकता हो जारी
समज के लिए बहुँत भारी
-----------------------------
संजय जोशी "सजग "
मेहनत कर
आय- कर
फिर आय
कर भर
मजा लेते
कोई और
संजय जोशी "सजग "
न रुक सकता सट्टा
न रुक सकता लगता बट्टा
न रुक सकता भ्रष्टाचार
न रुक सकता अनाचार
हम कितने हो गए लाचार
कब रुकेगा अत्याचार
संजय जोशी "सजग '
CBSE ...12 th ..me fir chhai .......
बेटियों ने बाजी मारी
हर क्षेत्र में हे भारी
बेटियां होती प्यारी
खुशियाँ लाती ढेर सारी
चाहे नर हो या नारी
अन्धविश्वास हे भारी
कन्या भ्रूण हत्या हे जारी
कब मिटेगी यह महामारी
संजय जोशी " सजग "
आज विश्व तम्बाकू निषेध दिवस ...है ......
सिगरेट का हर कश
और गुटखा खाना
के आदि
ये करते अपने
स्वाथ्य की नित
बर्बादी
परिवार और समाज
और स्वयम के लिए
है भी घातक
छोड़ो यह चाहत
संजय जोशी "सजग "
शूलिका ---१२६
जब खुलते राज
छिनते उनके राज
वे न आते बाज
न शर्म और लाज
== संजय जोशी "
शूलिका --१२७
कोई नही
दुध का धुला
किसी ने नही
किया देश का भला
पद मिलते ही
सब को है छला
देश की प्रगति
का सूरज यूही ढला
---- संजय जोशी "सजग '
शूलिका १२८
राजनीति
की रणनिति
स्वार्थ की परिणिति
नेताओ की यही गति
क्यों मारी जाती मति
== संजय जोशी "सजग "
शूलिका --१२९
जब होता अभिमान
बड़ा देता वहअज्ञान
रिश्ते हो जाते बेजान
नही मिलता सम्मान
=== संजय जोशी "सजग "
गठबंधन
याने .जुगाड़
कभी भी हो
सकता दोफाड़
है सत्ता की होड़
देश की राजनीति में
आयगा नया मोड़
अब न और भाती
गठबंधन की निति
जनता हो गई बोर
दीखता नही कोई छोर
=== संजय जोशी "सजग "
शूलिका --१३०
============
अहंकार
है विकार
लेता आकर
सब बेकार
=== संजय जोशी "सजग "
शूलिका -१३१
जाग कर
रुक जाना
ही जागरूकता
का है नमूना
इस लिए देश को
लगता है चुना
वे जिनको
हमने ही चुना
=== संजय जोशी "सजग "
पद पाने की लगी है होड़
स्वयं को श्रेष्ठ दिखाने की होड़
सब लगे करने में जोड़ -तोड़
हर तरफ मच रही है होड़
== संजय जोशी "सजग "
शूलिका --१३३
प्रकृति का देखो यह खेल
आपदा प्रबंधन भी हुआ फेल
राहत कर्ता में न आपसी मेल
फंसे लोग भीषण कष्ट रहे झेल
==== संजय जोशी "सजग "
वापस न आता गुजरा वक्त
हंसी ख़ुशी से बिताओ वक्त
समय नही किसी का मोहताज
मित्रो पहचानो कीमती है वक्त
== संजय जोशी "सजग "==
घडियाली आंसू से दिखाते भाव
सब कुछ सच कह देते हाव भाव
झूठी भावना से मन होता आहत
संवेदनाओ के लिए भी नकली भाव
=== संजय जोशी "सजग "===
दिखाते है गहन शोक
पुरे करते अपना शौक
नही पाते अपने को रोक
लोगो का ये केसा शौक
=== संजय जोशी "सजग " ===
shulika --134
रुपये की साख का घटना
कीमतों का बेलगाम बड़ना
हमेशा मंदी का छाये रहना
विदेशो से कर्ज मागते रहना
एसी अर्थव्यवस्था का क्या कहना
यह सब बेचारी जनता को ही सहना
===संजय जोशी "सजग" ===
मालवी बोली ..एक ..रचना ..एक प्रयास ...
स्कूली शिक्षा ने मजबूत वणाओ
अणि वाते पेला अच्छा स्कुल वणाओ
अच्छा भन्या लिख्या माडसाब लाओ
वणा ने दूसरा काम में मत लगाओ
मध्यान भोजन से भ्रष्टाचार मिटाओ
सरकारी योजना रो सही लाभ दिलाओ
शिक्षा ती राजनीति घणी दूर भगाओ
स्कूल चले हम को सफल बनाओ
==== संजय जोशी "सजग "
शूलिका -१३५
देश में भाई चारा
नही बचा है बेचारा
आम आदमी है हारा
नही कोई है सहारा
संजय जोशी "सजग "
एक दाग बहुत है हस्ती मिटाने की लिए
एक दीप बहुत है अंधकार मिटाने की लिए
एक मुस्कान बहुत है अपना बनाने के लिए
एक कदम काफी है आगे बढ़ जाने के लिए
==== संजय जोशी "सजग "
सत्य का पराजित न होना
असत्य से पेरशान न होना
आज नही , कल खुलेगा राज
समय उसका नियत जब होना
==== संजय जोशी "सजग "
शूलिका १३८
++++++++++
कानून तो
कई रखे है सजा
पर मिलती
नही उचित सजा
वो ही ले रहे
देश के धन का मजा
और बिगाड़
रहे देश की फिजा
+++++++++++++
=== संजय जोशी "सजग "===
छाए काले काले बदरा
घन घन बरसे बदरा
छाई चहूँ ओर हरियाली
छटा निराली तेरी बदरा
++ संजय जोशी "सजग "+++++
शूलिका -१४०
=वोटर की आत्मा =
की आवाज
वोट लिया था जब
किया था सेवा का वादा
अब सेवा करते कम
अहसान दिखाते ज्यादा
हमारी आत्मा अब रही तड़प
झूठ बोलकर वोट लिया हड़प
=== संजय जोशी "सजग "
शिक्षा और भोजन
एक साथ का प्रयोजन
सार्थक यह हुआ नही
दोनों में गुणवत्ता नही
असफल हुआ संयोजन
शिक्षा मिलीं न भोजन
संजय जोशी "सजग "
शूलिका --१४०
प्यार
में धोके
दोनों की
बर्बादी
== संजय जोशी 'सजग "
शूलिका ----
^^^^^^^^^^^^^^^^
रजनीति में बड रही केसी खोट
हर दल एक दुसरे को देते चोट
निम्नतर हो रही सबकी सोच
चलते शब्द मेढक ओर काक्रोच
^^^^^^^^^^^^^^^^^^
---- संजय जोशी "सजग " -----
शूलिका-
आग वहीं लगती है
जहाँ चिंगारी होती है
आरोप वहीं पनपते है
जहाँ दाल में काला है
-- संजय जोशी 'सजग "
शूलिका -
देश में स्थापित हैं कई आयोग
उनमे हमेशा हो जाता नया योंग
नित -नये करते वे केवल प्रयोग
आम जन को न मिलता कोई सहयोग
------- संजय जोशी "सजग "--------
धर्म
और अधर्म
की जंग
में
सिसक रहा
कर्म
संजय जोशी 'सजग "
राम से
मर्यादा
सीखो
बिना उसके
कोई अपना
नाम
राम न रखो
संजय जोशी 'सजग "
शूलिका ------
-----------------
बंद मुट्ठी
लाख की
खुल जाये तो
खाक की
हवा खाये
हवालात की
नेता हो या संत
ऐसे ही होता अंत
------------------
------- संजय जोशी "सजग "---------
शूलिका
मौन
और
वाचालता
के अपने अपने
सुख व दुःख
----संजय जोशी 'सजग '
शूलिका
साहस
का होता
जब उपहास
और परिहास
टूटता
विश्वास
--- संजय जोशी 'सजग "---
शूलिका ---
लोकतंत्र
बनाम
जुगाड़ तंत्र
भीड़ तंत्र
भ्रष्ट तंत्र
---- संजय जोशी "सजग "
---------
एक मध्यम वर्गीय अपनी ने व्यथा को इस तरह बयाँ किया -------
अमीर अपने में मस्त है
गरीब अपने में व्यस्त है
जो बीच का है वही पस्त है
और सहने का अभ्यस्त है
---------संजय जोशी "सजग '------
-----श्राद्ध का यह भाव------
जीवत मात पिता से दंगम दंगा
मरे मात पिता को पहुचावे गंगा
इनके साथ रखो श्रद्धा का सु-भाव
तभी सफल होगा श्राद्ध का यह भाव
----- संजय जोशी "सजग "-------
आज फिर दिल्ली और मुंबई में रेप की घटनाएँ घट गई है .....
फांसी से
न डरे
वह इंसान
नही
जानवर है ....
कितनी
मानसिकता
विकृत हो गई ...
-------------
कलम
का
कमाल
हलाहल
या
मालामाल
--- संजय जोशी "सजग '
फ़ुटबाल
हांकी
के खिलाड़ीयो
को सम्मान
और पैसा
दोनों से है अछूते
कब तक अपने बूते
देश के लिए
खेलेगे
-----------------
राजनीति
में
पात्र
ओर कुपात्र
दोनों चलते है
और जन जन
को छलते है
-----------------
==पोल ==
विकिलीक्स खोल रहा पोल
राजनीति हो रही डांवाडोल
देश का बिगड़ रहा माहौल
बेलगाम हो रहे बोल
इससे घटता देश का मान
लोकतंत्र का होता है अपमान
जनता के गुट रहे अरमान
करो ऐसे काम बढ़े देश का सम्मान
नेताओ तोल-मोल के बोलो
आग में घी मत डालो
देश के विकास का द्वार खोलो
गंदी राजनीति कुचल डालो
=== संजय जोशी "सजग "
हर फेस बुक मित्रो की व्यथा ------जब तक आपस में न मिले .......!!!!!
जब तक हर मित्र पर शक करू
तब तक मिलु न मित्रो से रु बरु
फेसबुक जरुर मिटाती शहरो की दुरी
पर अनजान मित्रता लगती रहती अधूरी
जब मिल जाते आपस में मित्र अनजान
मिल जाती फेसबुक मित्रता को नई जान
====== संजय जोशी "सजग "
शूलिका --१३३
कितना हो गया
नेतिक पतन
केसा होगया
हमारा वतन
=== संजय जोशी "सजग "===
गुमराह करते
टी.वी. सीरियल
नेतिकता का
नही रखते ख्याल
टी.आर .पी की रेस
में सब करते हलाल
-------------------------
उदास
के न
बनो दास
हमेशा
रहो खुश
और बिंदास
संजय जोशी "सजग "
मजबूत रिश्तो की डोर
थामे उसे दोनों छोर
स्वार्थ का न हो काम
अहम का न हो नाम
समझो सबकी भावना
तभी रहेगी सदभावना
=====संजय जोशी "सजग "=====
हर दल करता
करता भ्रष्टाचार
मिटाने का
शिष्टाचार
मिलते ही मोका
भरपूर करता
भ्रष्टाचार ......
संजय जोशी "सजग "
रखो समय का बंधन
होगा समय प्रबन्धन .
जीवन को देता आकार
आती क्षमता शक्ति अपार
==== संजय जोशी 'सजग "
प्रशंसा
=====
प्रथम रूप ---
प्रशंसा होती प्यारी
शक्ति देती न्यारी
सकारत्मक हो सच्ची
लगती है खूब अच्छी .
------------------------------
द्वितीय रूप ...
प्रशंसा खूब खलती
जब चाटुकारिता चलती
नकारात्मकता हो जारी
समज के लिए बहुँत भारी
-----------------------------
संजय जोशी "सजग "
मेहनत कर
आय- कर
फिर आय
कर भर
मजा लेते
कोई और
संजय जोशी "सजग "
न रुक सकता सट्टा
न रुक सकता लगता बट्टा
न रुक सकता भ्रष्टाचार
न रुक सकता अनाचार
हम कितने हो गए लाचार
कब रुकेगा अत्याचार
संजय जोशी "सजग '
CBSE ...12 th ..me fir chhai .......
बेटियों ने बाजी मारी
हर क्षेत्र में हे भारी
बेटियां होती प्यारी
खुशियाँ लाती ढेर सारी
चाहे नर हो या नारी
अन्धविश्वास हे भारी
कन्या भ्रूण हत्या हे जारी
कब मिटेगी यह महामारी
संजय जोशी " सजग "
आज विश्व तम्बाकू निषेध दिवस ...है ......
सिगरेट का हर कश
और गुटखा खाना
के आदि
ये करते अपने
स्वाथ्य की नित
बर्बादी
परिवार और समाज
और स्वयम के लिए
है भी घातक
छोड़ो यह चाहत
संजय जोशी "सजग "
शूलिका ---१२६
जब खुलते राज
छिनते उनके राज
वे न आते बाज
न शर्म और लाज
== संजय जोशी "
शूलिका --१२७
कोई नही
दुध का धुला
किसी ने नही
किया देश का भला
पद मिलते ही
सब को है छला
देश की प्रगति
का सूरज यूही ढला
---- संजय जोशी "सजग '
शूलिका १२८
राजनीति
की रणनिति
स्वार्थ की परिणिति
नेताओ की यही गति
क्यों मारी जाती मति
== संजय जोशी "सजग "
शूलिका --१२९
जब होता अभिमान
बड़ा देता वहअज्ञान
रिश्ते हो जाते बेजान
नही मिलता सम्मान
=== संजय जोशी "सजग "
गठबंधन
याने .जुगाड़
कभी भी हो
सकता दोफाड़
है सत्ता की होड़
देश की राजनीति में
आयगा नया मोड़
अब न और भाती
गठबंधन की निति
जनता हो गई बोर
दीखता नही कोई छोर
=== संजय जोशी "सजग "
शूलिका --१३०
============
अहंकार
है विकार
लेता आकर
सब बेकार
=== संजय जोशी "सजग "
शूलिका -१३१
जाग कर
रुक जाना
ही जागरूकता
का है नमूना
इस लिए देश को
लगता है चुना
वे जिनको
हमने ही चुना
=== संजय जोशी "सजग "
पद पाने की लगी है होड़
स्वयं को श्रेष्ठ दिखाने की होड़
सब लगे करने में जोड़ -तोड़
हर तरफ मच रही है होड़
== संजय जोशी "सजग "
शूलिका --१३३
प्रकृति का देखो यह खेल
आपदा प्रबंधन भी हुआ फेल
राहत कर्ता में न आपसी मेल
फंसे लोग भीषण कष्ट रहे झेल
==== संजय जोशी "सजग "
वापस न आता गुजरा वक्त
हंसी ख़ुशी से बिताओ वक्त
समय नही किसी का मोहताज
मित्रो पहचानो कीमती है वक्त
== संजय जोशी "सजग "==
घडियाली आंसू से दिखाते भाव
सब कुछ सच कह देते हाव भाव
झूठी भावना से मन होता आहत
संवेदनाओ के लिए भी नकली भाव
=== संजय जोशी "सजग "===
दिखाते है गहन शोक
पुरे करते अपना शौक
नही पाते अपने को रोक
लोगो का ये केसा शौक
=== संजय जोशी "सजग " ===
shulika --134
रुपये की साख का घटना
कीमतों का बेलगाम बड़ना
हमेशा मंदी का छाये रहना
विदेशो से कर्ज मागते रहना
एसी अर्थव्यवस्था का क्या कहना
यह सब बेचारी जनता को ही सहना
===संजय जोशी "सजग" ===
मालवी बोली ..एक ..रचना ..एक प्रयास ...
स्कूली शिक्षा ने मजबूत वणाओ
अणि वाते पेला अच्छा स्कुल वणाओ
अच्छा भन्या लिख्या माडसाब लाओ
वणा ने दूसरा काम में मत लगाओ
मध्यान भोजन से भ्रष्टाचार मिटाओ
सरकारी योजना रो सही लाभ दिलाओ
शिक्षा ती राजनीति घणी दूर भगाओ
स्कूल चले हम को सफल बनाओ
==== संजय जोशी "सजग "
शूलिका -१३५
देश में भाई चारा
नही बचा है बेचारा
आम आदमी है हारा
नही कोई है सहारा
संजय जोशी "सजग "
एक दाग बहुत है हस्ती मिटाने की लिए
एक दीप बहुत है अंधकार मिटाने की लिए
एक मुस्कान बहुत है अपना बनाने के लिए
एक कदम काफी है आगे बढ़ जाने के लिए
==== संजय जोशी "सजग "
सत्य का पराजित न होना
असत्य से पेरशान न होना
आज नही , कल खुलेगा राज
समय उसका नियत जब होना
==== संजय जोशी "सजग "
शूलिका १३८
++++++++++
कानून तो
कई रखे है सजा
पर मिलती
नही उचित सजा
वो ही ले रहे
देश के धन का मजा
और बिगाड़
रहे देश की फिजा
+++++++++++++
=== संजय जोशी "सजग "===
छाए काले काले बदरा
घन घन बरसे बदरा
छाई चहूँ ओर हरियाली
छटा निराली तेरी बदरा
++ संजय जोशी "सजग "+++++
शूलिका -१४०
=वोटर की आत्मा =
की आवाज
वोट लिया था जब
किया था सेवा का वादा
अब सेवा करते कम
अहसान दिखाते ज्यादा
हमारी आत्मा अब रही तड़प
झूठ बोलकर वोट लिया हड़प
=== संजय जोशी "सजग "
शिक्षा और भोजन
एक साथ का प्रयोजन
सार्थक यह हुआ नही
दोनों में गुणवत्ता नही
असफल हुआ संयोजन
शिक्षा मिलीं न भोजन
संजय जोशी "सजग "
शूलिका --१४०
प्यार
में धोके
दोनों की
बर्बादी
== संजय जोशी 'सजग "
शूलिका ----
^^^^^^^^^^^^^^^^
रजनीति में बड रही केसी खोट
हर दल एक दुसरे को देते चोट
निम्नतर हो रही सबकी सोच
चलते शब्द मेढक ओर काक्रोच
^^^^^^^^^^^^^^^^^^
---- संजय जोशी "सजग " -----
शूलिका-
आग वहीं लगती है
जहाँ चिंगारी होती है
आरोप वहीं पनपते है
जहाँ दाल में काला है
-- संजय जोशी 'सजग "
शूलिका -
देश में स्थापित हैं कई आयोग
उनमे हमेशा हो जाता नया योंग
नित -नये करते वे केवल प्रयोग
आम जन को न मिलता कोई सहयोग
------- संजय जोशी "सजग "--------
धर्म
और अधर्म
की जंग
में
सिसक रहा
कर्म
संजय जोशी 'सजग "
राम से
मर्यादा
सीखो
बिना उसके
कोई अपना
नाम
राम न रखो
संजय जोशी 'सजग "
शूलिका ------
-----------------
बंद मुट्ठी
लाख की
खुल जाये तो
खाक की
हवा खाये
हवालात की
नेता हो या संत
ऐसे ही होता अंत
------------------
------- संजय जोशी "सजग "---------
शूलिका
मौन
और
वाचालता
के अपने अपने
सुख व दुःख
----संजय जोशी 'सजग '
शूलिका
साहस
का होता
जब उपहास
और परिहास
टूटता
विश्वास
--- संजय जोशी 'सजग "---
शूलिका ---
लोकतंत्र
बनाम
जुगाड़ तंत्र
भीड़ तंत्र
भ्रष्ट तंत्र
---- संजय जोशी "सजग "
---------
एक मध्यम वर्गीय अपनी ने व्यथा को इस तरह बयाँ किया -------
अमीर अपने में मस्त है
गरीब अपने में व्यस्त है
जो बीच का है वही पस्त है
और सहने का अभ्यस्त है
---------संजय जोशी "सजग '------
-----श्राद्ध का यह भाव------
जीवत मात पिता से दंगम दंगा
मरे मात पिता को पहुचावे गंगा
इनके साथ रखो श्रद्धा का सु-भाव
तभी सफल होगा श्राद्ध का यह भाव
----- संजय जोशी "सजग "-------
आज फिर दिल्ली और मुंबई में रेप की घटनाएँ घट गई है .....
फांसी से
न डरे
वह इंसान
नही
जानवर है ....
कितनी
मानसिकता
विकृत हो गई ...
-------------
कलम
का
कमाल
हलाहल
या
मालामाल
--- संजय जोशी "सजग '
फ़ुटबाल
हांकी
के खिलाड़ीयो
को सम्मान
और पैसा
दोनों से है अछूते
कब तक अपने बूते
देश के लिए
खेलेगे
-----------------
राजनीति
में
पात्र
ओर कुपात्र
दोनों चलते है
और जन जन
को छलते है
-----------------
मंगलवार, 1 अक्टूबर 2013
आज तो मुस्कराइए ......
आज विश्व मुस्कान दिवस के अवसर पर मुस्कुराना हमारी मजबूरी है औपचारिकता
का तकाजा है आज जो हंसने का अभिनय नही करेगा उसे आधुनिक नही माना जायगा .आज
सभी इलेक्ट्रानिक संचार माध्यम मुस्कान को बिखेरेंगे ,विश्व मुस्कान दिवस
में अपनी भागीदारी दर्ज करने में व्यस्त रहेंगे
सच में हम ईश्वर प्रदत्त मुस्कान भूल गये है ऐसे में दिवस याद दिलाते रहेंगे कि मुस्कान भी जीवन के लिये जरूरी है क्योंकि आजकल नेचरल मुस्कान की जगह सांकेतिक मुस्कान का दौर चल रहा है .इंटरनेट ओर मोबाईल .....से आभास ..होता रहता है ...दिल से हँसना अब बचा कहाँ है
कोई जबरन बनावटी मुस्कुराहट बिखेरता है तो कुटिलता की श्रेणी में माना जाता है मुस्कुराहट जीवन से ऐसे गायब है जैसे गधे के सिर से सींग योंग ध्यान के महायोगी भी शरीर के अंदर से मुस्कुराहट खींचने में सफल नही हो पाये है क्योकि तनाव सब पर भारी है उन्मुक्त हंसी तो अब सिर्फ . ...टूथ पेस्ट के विज्ञापन में ही नजर आती है
हँसना और मुस्कुराना सामाजिक परिवेश पर भी निर्भर करता है ,वर्तमान प्राकृतिक राजनीतिक .सामजिक ..व्यथा इसकी अनुमति नहीं देती ..और रही सही कसर हमारे न्यूज़ चैनल्स किसी भी मुद्दे के चिंता करने की ठेकेदारी ...इनकी ही तो है ये मुस्कान को उभरने ही नहीं देते
बच्चे शिक्षा के बोझ तले उन्मुक्त और सहज हंसी से वंचित है मजे तो हमने खूब किये हमारे जमाने में.ये बेचारे मुस्कराना ही नही जानते तो ..खिलखिलाहट ....की क्या बात करें हंसने मुस्कराने की क्षमता भगवान ने केवल मनुष्य को ही दी अन्य प्राणियों को नही मनुष्य फिर भी न हँसता है न हसंने देता हैं, इसका मतलब शायद .हम ..पशुता की और अग्रसर है मुस्कराना भी एक कला है और जो दूसरों को मुस्कराने को मजबूर कर दे वह महा कला है .मुस्कान भी कोटि -कोटि की होती है जो इसे सही पहचाने वह महामानव होता है
मुस्कान स्वास्थ्य को अच्छा और रक्त संचार नियंत्रित रखती है यह डाँक्टर का काम करती है अत:डाँक्टर मुस्कान कह सकते है मुस्कान एक अस्त्र का काम भी करती है जो कई को घायल और कायल बना देती है एक मुस्कान बदले आपकी जिन्दगी ...मुस्कुराते रहिये
मेरे मित्र हंसमुख भाई ..मिले मैंने उनसे कहा . एक बार मुस्कुरा दो वह बोल उठे क्यों मैंने कहा ..भाई ..आज विश्व मुस्कान दिवस है . वे सड़ा सा मुँह बना के बोले कैसे हंसू देश और समाज का सत्यानाश हो गया है दर्द इतने बढ गये की मुस्कान आती नही बाय चांस भी नही आती क्योकि बचपन में दोस्त कहते थे हंसा की फंसा उसे आज तक मान रहा हूँ मैंने छेड़ते हुए कहा कि आपका नाम हंसमुख किसने रखदिया वह बोले ..नाम में क्या धरा है हंसमुख की व्यथा सही थी कदम -कदम पर जीवन की राह कठिन ,बढती महंगाई, बढ़ते अत्याचार, बलात्कार ,भ्रष्टाचार ,झूठ ,फरेब ऊपर से घोर मंदी गिरते रुपये के चलते मुस्कराहट न आना लाजमी है
अपराधी चुस्त ,सरकार सुस्त ..हम कैसे रहे तंदरुस्त ..ने आम आदमी ..की ख़ुशी और मुस्कान को ग्रहण लगा दिया है .मुस्कान मांगने पर भी नही मिलती ....फिर भी आज तो मुस्कराइए ......
संजय जोशी 'सजग '
सच में हम ईश्वर प्रदत्त मुस्कान भूल गये है ऐसे में दिवस याद दिलाते रहेंगे कि मुस्कान भी जीवन के लिये जरूरी है क्योंकि आजकल नेचरल मुस्कान की जगह सांकेतिक मुस्कान का दौर चल रहा है .इंटरनेट ओर मोबाईल .....से आभास ..होता रहता है ...दिल से हँसना अब बचा कहाँ है
कोई जबरन बनावटी मुस्कुराहट बिखेरता है तो कुटिलता की श्रेणी में माना जाता है मुस्कुराहट जीवन से ऐसे गायब है जैसे गधे के सिर से सींग योंग ध्यान के महायोगी भी शरीर के अंदर से मुस्कुराहट खींचने में सफल नही हो पाये है क्योकि तनाव सब पर भारी है उन्मुक्त हंसी तो अब सिर्फ . ...टूथ पेस्ट के विज्ञापन में ही नजर आती है
हँसना और मुस्कुराना सामाजिक परिवेश पर भी निर्भर करता है ,वर्तमान प्राकृतिक राजनीतिक .सामजिक ..व्यथा इसकी अनुमति नहीं देती ..और रही सही कसर हमारे न्यूज़ चैनल्स किसी भी मुद्दे के चिंता करने की ठेकेदारी ...इनकी ही तो है ये मुस्कान को उभरने ही नहीं देते
बच्चे शिक्षा के बोझ तले उन्मुक्त और सहज हंसी से वंचित है मजे तो हमने खूब किये हमारे जमाने में.ये बेचारे मुस्कराना ही नही जानते तो ..खिलखिलाहट ....की क्या बात करें हंसने मुस्कराने की क्षमता भगवान ने केवल मनुष्य को ही दी अन्य प्राणियों को नही मनुष्य फिर भी न हँसता है न हसंने देता हैं, इसका मतलब शायद .हम ..पशुता की और अग्रसर है मुस्कराना भी एक कला है और जो दूसरों को मुस्कराने को मजबूर कर दे वह महा कला है .मुस्कान भी कोटि -कोटि की होती है जो इसे सही पहचाने वह महामानव होता है
मुस्कान स्वास्थ्य को अच्छा और रक्त संचार नियंत्रित रखती है यह डाँक्टर का काम करती है अत:डाँक्टर मुस्कान कह सकते है मुस्कान एक अस्त्र का काम भी करती है जो कई को घायल और कायल बना देती है एक मुस्कान बदले आपकी जिन्दगी ...मुस्कुराते रहिये
मेरे मित्र हंसमुख भाई ..मिले मैंने उनसे कहा . एक बार मुस्कुरा दो वह बोल उठे क्यों मैंने कहा ..भाई ..आज विश्व मुस्कान दिवस है . वे सड़ा सा मुँह बना के बोले कैसे हंसू देश और समाज का सत्यानाश हो गया है दर्द इतने बढ गये की मुस्कान आती नही बाय चांस भी नही आती क्योकि बचपन में दोस्त कहते थे हंसा की फंसा उसे आज तक मान रहा हूँ मैंने छेड़ते हुए कहा कि आपका नाम हंसमुख किसने रखदिया वह बोले ..नाम में क्या धरा है हंसमुख की व्यथा सही थी कदम -कदम पर जीवन की राह कठिन ,बढती महंगाई, बढ़ते अत्याचार, बलात्कार ,भ्रष्टाचार ,झूठ ,फरेब ऊपर से घोर मंदी गिरते रुपये के चलते मुस्कराहट न आना लाजमी है
अपराधी चुस्त ,सरकार सुस्त ..हम कैसे रहे तंदरुस्त ..ने आम आदमी ..की ख़ुशी और मुस्कान को ग्रहण लगा दिया है .मुस्कान मांगने पर भी नही मिलती ....फिर भी आज तो मुस्कराइए ......
संजय जोशी 'सजग '
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