अप्रेल फूल और नेताजी [व्यंग्य ]
एक अप्रेल को अंतर्राष्ट्रीय मूर्ख दिवस याने कि अप्रेल फूल मनाया जाता है वेलेंटाइन डे के बाद अप्रेल फूल का आना यह सोचने को मजबूर करता है कि शायद यह प्यार की परकाष्ठा ही है जो इस दिवस कि उत्पत्ति हुई, ढाई अक्षर के इस शब्द में गजब की शक्ति है यह मूर्ख बनने और बनाने में उत्प्रेरक का कार्य करता हैl मूर्खता हमारा जन्मसिद्द अधिकार है जब तक धरा पर मनुष्य प्रजाति विद्यमान रहेगी तब तक मूर्ख भी l पढ़ा लिखा मूर्ख एक अनपढ़ मूर्ख से ज्यादा खतरनाक होता है l
थ्री इडियट फ़िल्म जबसे हिट क्या हुई सभी मूर्ख ,अपने आप को सम्मानित महसूस करने लगे है और इस पर कालिदास ने भी स्वर्ग में जश्न मनाया होगा अप्रेल फूल हास्य और व्यंग्य का महापर्व है जब सभी मूर्ख और महामूर्ख सक्रिय हो जाते है और जिनको अपनी अवस्था का भान नहीं है उन्हें अवगत कराने का ठेका इनके पास ही है और मूर्खो का यह पर्व चुनावी वर्ष में आ जाये तो फिर क्या कहना जनता और नेता दोनों एक दूसरे को मूर्ख ही समझते है जनता वोट देकर पूरे पांच साल के लिए मूर्ख बन जाती है और नेता पूरे पांच साल तक मूर्ख बनाने का लायसेंस लेकर झूठे वादे ,आश्वासन और सुनहरे सपने दिखा जाता है l
एक अप्रेल को अंतर्राष्ट्रीय मूर्ख दिवस याने कि अप्रेल फूल मनाया जाता है वेलेंटाइन डे के बाद अप्रेल फूल का आना यह सोचने को मजबूर करता है कि शायद यह प्यार की परकाष्ठा ही है जो इस दिवस कि उत्पत्ति हुई, ढाई अक्षर के इस शब्द में गजब की शक्ति है यह मूर्ख बनने और बनाने में उत्प्रेरक का कार्य करता हैl मूर्खता हमारा जन्मसिद्द अधिकार है जब तक धरा पर मनुष्य प्रजाति विद्यमान रहेगी तब तक मूर्ख भी l पढ़ा लिखा मूर्ख एक अनपढ़ मूर्ख से ज्यादा खतरनाक होता है l
थ्री इडियट फ़िल्म जबसे हिट क्या हुई सभी मूर्ख ,अपने आप को सम्मानित महसूस करने लगे है और इस पर कालिदास ने भी स्वर्ग में जश्न मनाया होगा अप्रेल फूल हास्य और व्यंग्य का महापर्व है जब सभी मूर्ख और महामूर्ख सक्रिय हो जाते है और जिनको अपनी अवस्था का भान नहीं है उन्हें अवगत कराने का ठेका इनके पास ही है और मूर्खो का यह पर्व चुनावी वर्ष में आ जाये तो फिर क्या कहना जनता और नेता दोनों एक दूसरे को मूर्ख ही समझते है जनता वोट देकर पूरे पांच साल के लिए मूर्ख बन जाती है और नेता पूरे पांच साल तक मूर्ख बनाने का लायसेंस लेकर झूठे वादे ,आश्वासन और सुनहरे सपने दिखा जाता है l
एक नेताजी चुनावी रंग में पूरी तरह डूबे हुए थे। मैंने उन्हें मजाक में
"अप्रेल फूल क्या कह दिया ,चुनाव के समय में उन्होंने उसे गंभीरता से लेते हुए कड़े तेवर में कहा कि नेता नहीं जनता मूर्ख है वो हमें चुनती है हमारी क्या गलती है मैंने उन्हें चिढ़iने के अंदाज में कहा कि ये सही फरमाया आपने जनता कभी सांपनाथ और कभी नागनाथ को चुनती है ,आपका कोई दोष नहीं हैl चमचों से घिरे नेताजी में से एक स्मार्ट सा चमचा परिस्थिति को भांपते हुए --अप्रेल फूल फ़िल्म का गाना गाने लगा नेताजी को खुश करने क लिए। ……
अप्रेल फूल बनाया तो उनको गुस्सा आया
इसमें मेरा क्या कसूर जमाने का कसूर
जिसने दस्तूर बनाया
चमचे ने नेताजी को कहा ठीक हैं दादा ..चलता है . नेताजी ने उसकी पीठ थपथपाने लगे और जहरीली मुस्कान फेंक कर …कहा कि ये मूर्ख बनाने का उसूल हमनें तो नही बनाया .हम तो केवल फालो करते है। मैंने कहा कि किसी ने सही कहा है कि मूर्खो पर शासन करना आसान होता है ,जनसेवा तो बहाना है सिर्फ मेवा खाने मे ही सिद्ध हस्त होते है तो …जैसे तैसे पिंड छुड़वाया नेताजी ने ।
जाने -अनजाने में मूर्खता करना हमारा प्रकृति प्रदत्त एक लक्षण है अप्रेल फूल तो फ़िल्म का टाइटल मात्र है और जब मूर्खता खुलेआम करने का दिन मुक़रर्र किया है तो आईये क्यों न मिलकर मूर्खता के महान दिन हम मूर्खता जरुर करें अपने आप को इससे वंचित न रखें और अपनी बहुमुखी प्रतिभा का परिचय दें l
क्योंकि मूर्ख ही महान है जिनके कण -कण में मूर्खता रची-बसी है इसके कई उदाहरण भरे-पड़े है अत: महानता के लक्षण को बनाये रखें आओ मिलकर अप्रेल फूल बनाए l
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