इंतजार का मजा [व्यंग्य ]
एक पुरानी कहावत है कि जो मजा इंतजार में हैं वह मिलने में कहां ?यह शाश्वत सत्य है हम इंतजार में मजा लेने की मानसिकता से परिपूर्ण है क्योंकि हम जानते है इंतजार ही हमारी भावना को सबंल देने को पर्याप्त लगता है और इस नब्ज को हमारे कथित समाज सेवी नेता अच्छी तरह समझते है और सपने दिखा -दिखाकर जन -जन को इंतजार का मजा लेने को छोड़ देते है l हमारे शहर में बांकेलाल नाम के दो पाये वाले एक प्राणी है उनका कहना है कि इंतजार की घड़िया समाप्त ही नहीं होती है नेतागण नये ख्वाब दिखा कर अपना समय काट लेते है और हम पांच साल का इंतजार करते रहते है ये सोचकर कि अबकी बार इंतजार का मजा चखा देंगे सफल भी होते है पर फिर हमे इंतजार ही सहना पड़ता है आजादी से आज तक हम इंतजार करते -करते कब्र में पाँव लटकाये बैठे है अब मौत का इंतजार है l बांके लाल जी की इंतजार वाली बात मुझे दमदार लग रही थी सही है जो मजा इंतजार में वह मिलने में कहां?बांकेलाल जी आगे कहने लगे कि अच्छे दिन का इंतजार है काला धन वापस आएगा सबके खाते में जितना जीवन में नहीं कमाया रूपया आएगा ,बुलेट ट्रेन चलेगी ,स्मार्ट सिटी बनेगी एक सासंद एक गांव गोद लेगा ,धारा ३७० की पहेली बुझेगी ,लोकपाल आयेगा ,हिंदी का मान बढ़ेगा ,सफाई अभियान से देश की सफाई होगी , गंगा भी निर्मल होगी और न जाने क्या क्या होगा सबका बेसब्री से इंतजार है l जीते जी देख लूँ नहीं तो स्वर्ग या नरक में जहां भी जाऊंगा वहां भी इन्जार करते हुए मेरी आत्मा यूँ ही नहीं भटकती रहे इन सबके इंतजार में l है ईश्वर जल्दी मेरे इंतजार को खत्म कर दो ताकि में आराम से मर सकूँ और मुक्ति पा सकूँ l
मैंने कहा बांकेलाल जी आपने कितनी लम्बी सोच रखी है वर्तमान में जियो जो हो रहा है वह अच्छा है और जो भी होगा अच्छा होगा ,वे इस बात पर तिलमिला उठे और और बोले आप जैसों की सोच ने ही देश को इस गर्त में धकेला अरे भाई इंतजार की भी सीमा होती है सब अपना भला करते है आप और हम तो वहीं के वहीं ,आपकी संपत्ति बढ़ने की ग्रोथ कितनी कम है और उनकी जो हमे इंतजार करने का पाठ पढ़ाते है उनकी सम्पत्ति दिन दूनी और रात चौगुनी बढ़ती है l
मैंने कहा कि इस ला -इलाज बीमारी का कोई इलाज नहीं है झूठ और फरेब फल फूल रहा है ईमान आंसू बहा रहा है और बे-ईमान इठला रहा है और हम सब झेल कर दुखी होकर बस बात ही कर सकते है ,कई बीमारियों को आमंत्रण देकर उसी में उलझकर रह जाते है और जीवन चक्र इंतजार की घड़िया गिनते गिनते समाप्त हो जाता है l
अंत में बांकेलाल जी कहने लगे सब एक ही थैली के चट्टे -बट्टे है कोई सांप नाथ तो कोई नागनाथ l दूर के ढोल सुहावने लगते है लच्छेदार बात में हम सब कुछ खो देते है और स्वप्न लोक में विचरण करने लगते है और फिर वही
इंतजार।बचपन से उम्र के अंतिम पड़ाव तक हर कदम ,हर पल बस कुछ न कुछ इंतजार ही तो है तो लीजिये इंतजार का मजा l
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