चिंता एक राष्ट्रीय समस्या [व्यंग्य ]
चिंता करना एक राष्ट्रीय समस्या बन गई है इस समस्या ने हर किसी को जकड़ रखा है मनुष्य नाम का प्राणी किसी न किसी चिंता को लेकर तनाव में ही रहता है सब मिलकर चिंता कम करने के बजाय उसे और बढ़ाने में ही लगे हुए है चिंताओ के स्तर अगल-अलग है सामजिक ,धार्मिक और राजनैतिक समस्या प्रमुख है l असलियत में किसी को चिंता हो या न हो पर चिंतित होने का ढोंग जरूर करता है कुछ को तो पराये दुःख की ही चिंता है और दिन रात उसी में लगे हुए है lसिर्फ और सिर्फ चिंता करना ही उनका जीवन हो गया हो l चिंता करने वाला जानता है कि चिंता से कुछ होना जाना नहीं फिर भी करता है ये जीवन का अभिन्न अंग बन गया है l
बेचारे दिल्ली वाले आपको जिताकर चिंता में है अब क्या होगा ?केजरीवाल इस चिंता में है कि पार्टी को टूटने से कैसे बचाऊँ ? रोज एक नया विरोधी
मीडिया के माध्यम से चिंता बढ़ाने का काम कर रहा है कुछ तो बीजेपी को जिताकर अंदर ही अंदर घुटकर चिंता में है l अभी तक उबर नहीं पाये l कोई कांग्रेस की पतली हालत से अत्यंत दुखी है तथा भविष्य कि चिंता में चिंतित है l कोई प्रधान मंत्री की विदेश यात्रा में विदेश मंत्री के न जाने से चिंतित है तो कोई मार्ग दर्शक से दर्शक बनने से चिंतित ,कांग्रेस के युवराज कहां है ? जानकारी के अभाव में विरोधी भी चिंता ग्रस्त है l बाबा और अन्ना चिंता कर कर के चिंता की बीमारी के इलाज पर है जनता परिवार
एक मंच एक पार्टी और एक नेता की तलाश में चिंतित है l
सबसे ज्यादा चिंता करने वाले हमारे न्यूज़ चैनल है जो सबकी चिंता बढ़ाने में सहायक है l चिंता एक स्वाभाविक गुण हैं पर क्या हर समस्या का हल केवल चिंता ही है ?
किसानों की आत्महत्या ,सीमा पर जवानों की हत्या, मजदूरों और कर्मचारियों का शोषण ,नारी की अस्मिता ,भूख ,बेरोजगारी ऐसे मुद्दो पर चिंता करने वाले बिरले ही होते है l मेक इन इंडिया की चिंता केवल चिंता है छोटे और लघु और मध्यम उद्योगों की समस्या पर चिंता किसको है जिन्हें चिंता करना चाहिये
देश में कदम कदम पर बेलगाम बढ़ते भ्रष्टाचार पर केवल चिंता ही तो हो रही है l हर सरकार और नेताओं द्वारा चिंता एक रस्म अदायगी है चिंता करना उन्हीं का काम है और करते रहेंगे जो चल रहा है चलने दो l चिंता करना और घड़ियाली आंसू बहाना ही तो वे अपना कर्तव्य समझते है l जिस चिंता को करने से कुर्सी मिलती है वह चिंता खतम होती नहीं कि कुर्सी बचाने की चिंता शुरू हो जाती है और जनता की चिंता यूँ ही चलती रहती है l
देश में कदम कदम पर बेलगाम बढ़ते भ्रष्टाचार पर केवल चिंता ही तो हो रही है l हर सरकार और नेताओं द्वारा चिंता एक रस्म अदायगी है चिंता करना उन्हीं का काम है और करते रहेंगे जो चल रहा है चलने दो l चिंता करना और घड़ियाली आंसू बहाना ही तो वे अपना कर्तव्य समझते है l जिस चिंता को करने से कुर्सी मिलती है वह चिंता खतम होती नहीं कि कुर्सी बचाने की चिंता शुरू हो जाती है और जनता की चिंता यूँ ही चलती रहती है l
भौतिक सुविधाओं ने चिंता करने को बढ़ाया है जैसे मोबाइल की चार्जिंग की चिंता, मिस कॉल की चिंता ,कवरेज न मिलने की समस्या ,मोबाइल चालू हो तो भी नहीं हो तो भी चिंता दिन दूनी और रात चौगुनी बढ़ रही है l चिंता ने नींद को छीनकर चिंता को और बढ़ाया है चिंता से तनाव और तनाव से सेहत खराबी ,फिर सेहत की चिंता ,दवाई के खर्च की चिंता l चिंता तब तक साथ निभाने लगी है जब चिता न सज जाये l यह एक राष्ट्रीय समस्या बनकर उभर रही है l
चिंता कर कर सुखी हुआ न कोय
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