फूट और टूट [व्यंग्य ]
जब मतभेद ही मनभेद का कारण बन जाते है तो राजनैतिक पार्टियों
में टूट और फूट स्वाभाविक प्रक्रिया है जनसेवा कम स्वहित की भावना अधिक प्रबल हो रही हो तो तो फूट फिर टूट की सम्भावना कई गुना अधिक हो जाती है l स्वार्थ रबर की भांति होता है जब दोनों छोर खींचे जायेंगे तब एक सीमा बाद टूटना निश्चित हैं ,आप में यह आम हो रहा है हर रोज कोई फूट सामने आती है और वह टूटकर अलग हो जाता है l
जब मतभेद ही मनभेद का कारण बन जाते है तो राजनैतिक पार्टियों
में टूट और फूट स्वाभाविक प्रक्रिया है जनसेवा कम स्वहित की भावना अधिक प्रबल हो रही हो तो तो फूट फिर टूट की सम्भावना कई गुना अधिक हो जाती है l स्वार्थ रबर की भांति होता है जब दोनों छोर खींचे जायेंगे तब एक सीमा बाद टूटना निश्चित हैं ,आप में यह आम हो रहा है हर रोज कोई फूट सामने आती है और वह टूटकर अलग हो जाता है l
सामान की टूट फूट की मरम्मत सम्भव है दलों और दिलों का टूटना कुछ अलग ही रंग दिखाता हैं l दलों के आपस में जुड़ने को गठबंधन की संज्ञा दी जाती है ये स्वार्थ को ध्यान में रख कर एक दूसरे प्रति आकर्षित होते हैं और स्वार्थ की पूर्ति न होने पर विकर्षण की अवस्था में आ जाते है l गठबंधन हो या पूर्ण बहुमत दोनों ही अवस्थाओं में जनहित के काम न होने से जनता का विश्वास टूटा है l
आप को पसंद किया गया कि कुछ नया होगा और राजनीति में एक निर्णायक मोड़ आयेगा पर आप अपने आप में त्रस्त ,व्यस्त और मस्त है lचाहे टूटे जनता के अरमान l आप में हर कोई आपा खो रहा है l आप पार्टी तो कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा भानुमति ने कुनबा जोड़ा l दिल और दिमाग के अलग -अलग लोग मिलकर एक मत नहीं हो पाते और शिखर पर जाते ही मतभेद से मनभेद तक तो टूट
और फूट होती है तो कोई अचम्भा नहीं लगता है l एक अनार सौ बीमार की तरह कुर्सी एक चाहने वाले अनेक तो यह तो होना ही है l कहने को तो आम पर रोज कुछ -कुछ करते जाम है l
जब से दिल्ली की सरकार क्या बनी आम ने भी अपनी प्रकृति बदल दी है आज के समय में बिना गुठली के अरिपक्व आम धड़ल्ले से बिक रहे है जैसे आप से राजनीति का स्वाद बदला है उसी तरह आम ने अपना स्वाद बदलना शुरू कर दिया हैं l जैसा आप में अंधड़ आता है वैसे ही अंधड़ में कई आम टूट कर टपक गए और कच्चे ही बिकने को मजबूर हो गए l जबरन पका कर आम बेचने से, जो मजा आम खाने में आना चाहिए वह नहीं आ रहा है l वैसे ही हाल आम की सरकार के है राजनितिक कच्चापन झलकता है जो आप के साथ सब भुगतने को मजबूर है l प्रकृति ने जो आम का हाल किया है वह कहीं आम राजनीतिक दल के लिए संकेत तो नहीं है l तेज हवा में आम जल्दी टपक जाते हैं l
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