फू और थू की संस्कृति [व्यंग्य ]
फू और थू ने हमारी संस्कृति को सर्वाधिक प्रभावित किया है जो अपने प्रति ही समर्पित नहीं उससे क्या उम्मीद की जा सकती है ? स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होने की वैधानिक चेतावनी के बावजूद फू और थू अपने पूरे शबाब पर रहता है l चेतावनी को चुनौती देने की प्रवृति और हौसला हमारे देश की कड़वी सच्चाई है और इसे करने वाले आत्म विश्वास से लबरेज रहते है l इस बहुरंगी संस्कृति वाले देश में कई असमानताओं के बावजूद एक समानता पाई जाती है वह थूकने की प्रवृति है अपने मुख की गंदगी को बाहर का रास्ता दिखाना अच्छी बात है पर इसके लिए भी अपने कॉमन सेन्स का इस्तेमाल जरूरी है लेकिन लोग सोचते है क्या करना गदंगी फैलेगी तो फैलने दो और चेतावनी के उलट कार्य करने को शान समझने वालों की कमी नहीं है l
एक महाशय जिनका नाम रायचंद है नाम के अनुरूप वे काम भी करते है राय देने का सुनहरा मौका कभी नहीं चूकते है अचनक उनका पदार्पण हमारी कॉलोनी में हुआ जहां हम कुछ मित्र खड़े हुए बात कर रहे थे कि अचानक एक मित्र
ने वहीं थूक दिया यह रायचंद जी को नागवार गुजरा कहने लगे आपकी कॉलोनी में कोई सिस्टम नही है न कोई सूचनार्थ पट्टिका लगी है जैसे अभी इन भाई सा. ने यही थूक दिया -यह सुनकर मित्र विकास और उनमे लम्बी बहस हो गई ---
विकास -किसी भी सूचना को पढ़कर उल्टा काम करने की प्रवृति के कारण जहां लिखा होता है की मूत्र त्याग करना मना है वहीं करेंगे ,जहां लिखा होता है कि थूकना मना है वहीं थूकेंगे तो ऐसे में इनका महत्व गौण हो गया है l
रायचंद जी - कुछ तो फर्क पड़ता ही है लगाना चाहिए [वे अपनी बात पर अडिग थे ]
विकास -देश में सब प्रयोग फेल हो गये अब लिखा जाने लगा की कृपया यहां थूकिए पर नही फिर भी मर्जी होगी वहीं थूकेंगे लोग l सर जी माहौल इतना बिगड़ गया कि थूकने और चाटने में माहिर लोग को इससे कोई फर्क नही पढ़ने वाला है आप क्यों अपना खून जलाते फिरते है लोगो ने कसम खा रखी है हम नही सुधरेंगे l
राय चंद जी - इसका मतलब कोई कहीं भी थूक सकता है यह तो गलत है
इससे कीटाणु और गंदगी बढ़ेगी और उससे बीमारी की भरमार होगी l
विकास -क्या बात करते हो ---थूकने और चाटने महामारी ने तो देश की सेहत ही खराब कर दी है अब खराब होने को बचा ही क्या है l थूक कर चाटने की पुरानी लोकोक्ति भी है
विकास -क्या बात करते हो ---थूकने और चाटने महामारी ने तो देश की सेहत ही खराब कर दी है अब खराब होने को बचा ही क्या है l थूक कर चाटने की पुरानी लोकोक्ति भी है
रायचंद जी - गलत को गलत बोलना कोई अपराध है क्या इसके लिए कड़े नियम और कानून होना चाहिए कि जो सूचना लिखी है उसका पालन अवश्य ही किया जाना चाहिए l
मैंने दोनों से कहा कि छोड़ो सब ऐसा ही चलता रहेगा l कोई अपने माँ के दूध पर गर्व करता है तो कोई अपने थूक पर l और अपने ही हिसाब से थूकता है
मैंने दोनों से कहा कि छोड़ो सब ऐसा ही चलता रहेगा l कोई अपने माँ के दूध पर गर्व करता है तो कोई अपने थूक पर l और अपने ही हिसाब से थूकता है
विकास [-मजाक में] --रायचंद जी की और मुख़ातिब होकर बोला -एक बार थूकने की कीमत क्या जानो ,जो जानते है वही जानते है lयहीं इस देश की विडंबना है कि जो जितना बड़ा समझा जाता है उतना ही बड़ा उसका थूकना और चाटना भी और यह ब्रेकिंग न्यूज़ बन जाती है और राजनीति में हड़कम्प मच जाता है l
रायचंद जी - थूकना मनुष्य की प्रवृति है पर सही जगह पर थूकना ही उसे ओरों से अलग बनाती है अत; जहाँ जो सूचना हो उसका पालन कर अच्छे नागरिक का परिचय दें ,
मैने कहा कि चलो बहस का खात्मा करो lजनता है वो ही करेगी जो करती आ रही है जहां थूकना मना है वहीं थूकेगी l आज समाचार पत्रों नेताओ के बयाँनो से ज्ञात हुआ की तम्बाकू खाने और पिने शारीर को कोई नुकसान नही होता है फू और थू की संस्कृति को और बल मिला और यह सिलसिला रहेगा l
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