गुरुवार, 29 अगस्त 2013

व्यंग्य ---------- *चुगली की गुगली*






                                             *चुगली की गुगली*
युग कोई सा  भी हो .हर युग  में चुगली की अपनी अहम भूमिका रही है Iप्राचीन काल में राज दरबार  भी इससे अछूते नही थे ,राजा हो या  रंक , अफसर हो या चपरासी,नेता हो या कार्यकर्ता ,बालीवुड हो या हालीवुड  टीचर  हो या बच्चे ,घर और परिवार ,हर स्तर पर चुगली की अपनी तूती बोलती है I 
 
             चुगली क्रिकेट की गुगली  बाल  की तरह होती ,जेसे बेट्स मेंन को गुगली  बाल  समझ में नही आती और चकमा देकर  क्लीन बोल्ड कर देती है गुगली  बाल का खौफ हर बेट्स मेन को होता है वेसे ही चुगली किधर से होजाती ..और जिसकी होती है उसे क्लीन  बोल्ड  कर देती  है I,हर कोई चुगली के खौफ से त्रस्त रहता है I मनुष्य के  समय  को ऐसी गतिविधियां यूँही नष्ट करती रहती है और  तनाव को बढ़ाने में उत्प्रेरक का  काम करती  है I

 चुगली सुनना एक कला है और करना उससे  भी बड़ी कला I  चुगली  करने वाले की नस्ल कुछ हट के होती है ,ये स्वार्थ साधने में सिद्धहस्त होते है ,मौका मिलने पर ये किसी को नही छोड़ते ,वह इस कला में इतने माहिर हो जाते है की बड़ी चतुराई से इसे अंजाम दे देते .है .मनुष्य प्रजाति में  चाहे नर  हो या नारी " कान के कच्चे " की विशेष नस्ल होती है ,वे चुगली करने वाले पर  आँख मूँद कर भरोसा  करते है और बिना सोचे समझे कुछ भी कर  बैठते है अंजाम कुछ भी हो ,सही है  या गलत यह फैसला नही लेते ,चुगली की गुगली नही समझ  पाते Iचुगली करने वाला अपने आप को राजा हरीश चन्द्र जेसा
 मानता है  उसके जेसा सही ..कोई नही है ..,,और चुगली सुनने वाला अपने आप को धर्मराज युधिष्टर समझता है I
            
चुगली आजकल  अवसाद का रूप धारण कर रही है और पूर्वाग्रह से ग्रसित व्यक्ति द्वरा  चुगली की गुगली का मालिक तो भगवान है इस बीमारी ने कई को मौत के मुह में धकेलदिया है और यह काम बदस्तूर जारी है कर्म प्रधान को चुगली  प्रधान ने हर जगह मात दे रखी है ,कोई क्षेत्र इससे अछूता नही है, सतयुग मे एक ही नारद इस भूमिका का निर्वाह करते थे   आजकल  तो पूरी फौज खड़ी है जो चुगली की गुगली कब कर दे पता ही नही चलता ,कर्मशील प्राणी हमेशा भयभीत रहता है  यह चुनौती बन गई है ,जो स्वीकार कर , भोग  लेता है वह मन को मारकर जिन्दा है कहते है चुगली अबला का हथियार था और अभी भी है चुगली के नाम पर हर कोई अबला सा बन जाता है Iचुगली के चंगुल से
आज तक कोई नही बच पाया  भगवान भी इससे नही बच सके ,मनुष्य तो बेचारा है आज मंथरा नही है पर उसके आदर्श पर चलने वाले कई है जो संसार में भरे पड़े है I

    हर दल, हर आफिस हर घर ,हर रिश्ते की चुगली की गुगली को  झेलना शायद आदत
या मजबूरी बन चुकी है  घर इसके विद्यालय है ,ऑफिस .इसके महाविद्यालय है और राजनेतिक दल इसके  विश्व विद्यालय है I


नोट - यह मेरी मोलिक  एवम अप्रकाशित रचना है ...कृपया स्थान  देकर प्रोत्साहित
करे ..आभार और धन्यवाद



संजय जोशी "सजग
७८, गुलमोहर  कालोनी रतलाम

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