पोलीथिन विज्ञानं का वरदान है और उसका बेग हर मनुष्य के लिए वरदान वहीं मूक पशुओ के लिए अभिशाप बन गया है ,जहाँ इसने उपयोग करो और फेक दो की संस्कृति को जन्म दिया है और जेसे देश से भ्रष्टाचार न मिट रहा है उसी भांति यह भी नही मिटती दिन दूनी और रात चौगुनी बढ़ जाती है क्योकि हर कोई इसके मोहपाश में जकड़ा हुआ है .
जब -जब पोलीथिन पर प्रतिबन्ध की खबर आती है तो कई चेहरों पर मायूसी छा जाती है जेसे लोक पाल और सूचना का अधिकार लागू करने की खबर.से राजनीति में हडकम्प मच जाताहै कभी -कभी तो लगता है भ्रष्टाचार के बिना देश और पोलीथिन के बिना संस्कृति का चलना ना मुमकिन है .जेसे नेता कुर्सी के बिना ,और हम पोलीथिन बेग के बिना I
पोलीथिन ने अपने प्रभाव से दादा जी कपड़े के झोले को दुर्लभ और संग्राहलय की वस्तु बना दिया है कभी गलती से दिख जाय तो नई पीड़ी पूछ बेठे यह किस काम आता है तो आश्चर्य नही होगा क्या करे बेचारे . पोलीथिन संस्कृति में जो जी रहे है ,पहले जमाने में सामान खरीदने के लिए साथ में बेग ले जाना ग्राहक की मजबूरी थी ,परन्तु आजकल दुकान से लेकर माल वाले तक की मजबूरी हो गई की सामान अच्छी सी रंगीन.पोलीथिन में रख कर सलीके से दे और .कोई कोई तो ..डबल भी मांग लेते है बेचारों को देनी पड़तीहै इस प्रतियोगी युग का तकाजा है ..ग्राहक .भगवान का रूप होते है अत: कोई नाराज न हो
वापस जो बुलाना है
हर सामान और हर हाथ की शोभा बन कर इठलाती है ओर गलती से कपड़े का बेग दिख जाए तो उसे चिढाती है और अपने आधुनिकता को प्रदर्शित करती है Iपोलीथिन
आलस्य ,बेफिक्री और गंदगी की जन्म दात्री ...मानी जा सकती है
छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी वस्तु इसकी गुलाम लगती है .दूध,सब्जी से लेकर सभी वस्तु का हरण कर लेती है ,मैंने एक सब्जी वाले काका को बोला कि आप पोलीथिन देना बंद क्यों नही करते ,वे बोले मेरी रोजी रोटी पर लात मारने की सलाह
क्यों दे रहे हो लोग बाग़ इसके बिना सब्जी ही नही लेते कई मेंम साहब तो हर आयटम
की अलग -अलग मांगती है .मेने पूछा क्यों ,? काका बोले ..नोकरी में है .ऐसी-की ऐसी फ्रिज में रख दो छांटने की फुरसत नही मिलती , पोलीथिन बाद में कई काम आती है ....मल्टी परपस है , मेने कहा काका एक काम ..करो .सब्जी .बना कर ही बेचना चालू क्यों नही कर देते और अच्छा रहेगा ,हर किसी का ऐसा ही हाल है हर दुकानदर की यही व्यथा है यह बला से कम नही है .पोलीथिन बेग दुकानदार के व्यवहार का मापदण्ड है I
धन्यवाद विज्ञानं पोलीथिन का वरदान दिया ,दुःख तब होता है जब निरीह पशु की . इससे मौत होती है ,आजकल राष्ट्रीय ध्वज भी इससे अछुता नही वह भी पोलीथिन का बनने लगा .राष्ट्रीय पर्व पर दिन को सलाम करो और शाम को नाली और सडक पर पड़े देख देश भक्तो का मस्तक झुक जाना चाहिए परन्तु..उपयोग करो और फेक दो की संकृति में इतने घुल गये कि..कुछ समझ में नही आता I अति सर्वत्र वर्जयेत .I पोलीथिन ने संस्कृति को पोली ओर जनता को पंगु बना दिया है केसे चलेगा जीवन,इसके बिना पूर्ण विराम सा महसूस होता है I
पक्ष और विपक्ष उलझे है अपने स्वार्थ में , उन्हें देश की ही चिंता नही वे पोलीथिन बेग के दुष्प्रभाव .की क्या चिंता करेगें. ..कल्पना से परे है .धृतराष्ट्र. जो है .I. है भगवान सबको दे सदबुद्धि , मिलकर करे प्रार्थना
पोलीथिन मुक्त हो सबको आये यह ज्ञान ,मागे भगवान से यही वरदान
प्रोत्साहित करे ....आभार i अप्रकाशन की स्थिति में सूचित करे
संजय जोशी "सजग
७८, गुलमोहर कालोनी रतलाम
मोब .no ..09827079737
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