दूसरी भाषा के प्रभाव ने क्षेत्रीय भाषा और बोलियों को गौण सा कर दिया है ,ये भाषा और बोलियाँ हमारी संस्कृति का मुख्य आधार है ,धीरे-धीरे लुप्त होने की कगार पर है Iशासन और प्रशासन इनके सवर्धन के लिए सिर्फ ओपचरिकताही निभाते है , मालवा अंचल में बोले जाने वाली सु-मधुर बोली .'मालवी "का भी यही हश्र हो रहा है मालवा अंचल में गुडी पडवा को मालवी दिवस के रूप में मनाने का पुनीत कार्य -पिछले २ वर्षो से चल रहा है ,जिससे मालवी को अपनी पहचान बनाने में सफलता मिल रही है जिसमे प्रिंट मिडिया की महत्व पूर्ण भूमिका है
मालवी दिवस को गुडी पड़वाके दिन मनाने की शुरुआत , जन सामान्य के दिलो दिमाग पर यह प्रश्न उठाना स्वाभविक है इस दिन को क्यों चुना गया ? , विक्रम संवत के नये साल का शुभारम्भ इसी दिन गुडी पड़वा से होता है ,विक्रम संवत की स्थपना मालवा से ही हुई अत: यह दिवस 'मालवी दिवस " के लिए उपयुक्त है इसके लिए प्रेरणा स्त्रोत डॉ शेलेन्द्र कुमार शर्मा उज्जैन है इस अभियान में झलक सास्कृतिक न्यास उज्जैन और हल्ला -गुल्ला सहित्य मंच रतलाम का महत्वपूर्ण योगदान है i
मालवा के भू-भाग का म.प्र. ही नही पूरे विश्व में गौरवशाली स्थान है ,धार्मिक उदारता सामजिक समभाव ,आर्थिक निश्चितता, कलात्मक समृद्धि संपन्न, विक्रमादित्य भर्तहरी भोज जैसे महानायकों की यह भूमि जहाँ कालिदास, वराहमिहिर जैसे देदीप्यमान नक्षत्रो ने साधना की एवं भगवान की शिक्षा स्थली मालवा ही तो है विश्व का केंद्र स्थान महाकाल मालवा की पहचान है
मालवी का लोक साहित्य सम्रद्ध है परन्तु उचित सरक्षण प्रचार एवं प्रसार के आभाव मे मालवी साहित्य और संस्कृति का लोप होता जा रहा है अतः गुडी पडवा को मालवी दिवस के रूप मे मनाकर इस लोक संस्कृति को नव स्पन्दन प्रदान करेगा
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इसी आशा के साथ
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संजय जोशी "सजग"
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