गुरुवार, 29 अगस्त 2013

व्यंग्य

                 मॉल का कमाल
आजकल
मॉल संस्कृति का अभिन्न अंग हो गया है , मॉल संस्कृति ने बदल दी है जीवन की आकृति और हर कोई मॉल के माल का आदि हो गया है
         
मॉल के माल की गुणगान करने वालो की कमी नही है और थकते भी नही है - मै अपने मित्र के घर किसी कार्य से मिलने गया , बातचीत के दोरान विदेशी किराना(मॉल) की चर्चा हो रही थी , जो अभी सबसे गरम मुद्दा चल रहा है , इसी बीच मित्र की पत्नी आ धमकी और विपक्ष की नेता की तरह चर्चा मै कूद पड़ी और मॉल पुराण का बखान शुरू कर दिया .......I
           अपने पति को कोसते जा रही थी, बिचारा पति निरीह प्राणी की तरह सब सहता जा रहा था , ये ऑफिस से आकार फेसबुक मय हो जाते ,घर -परिवार की चिंता करना सिर्फ मेरा ही काम बचा है ,अच्छा हुआ की .... मॉल खुल गए ,मॉल जाओ भरपूर सामान ले आओ...वाह !!! कितनी सुविधा होती है मॉल मै , बच्चो के लिए खेल ,सबके लिये मल्टीप्लेक्स सिनेमा , और देर हो जाये तो कहा-पी भी लो , सब तरह का सामान एक जगह और स्कीम का फायदा सो अलग I कैश की भी चिंता नही , क्रेडिट कार्ड की सुविधा भी होती है.......मॉल गजब का आविष्कार है ....शुक्र भगवान का..,खरीदो , खाओ , पिक्चर देख कर घर आ जाओ , कितना सुकून मिलता है I मुझे शौपिंग का बहुत शोक है , आजकल मॉल पर्यटन स्थल से काम नही है , वो अकेली बोली जा रही थी , मै और मेरा मित्र उसकी बातो को झेल रहे थे I मै तो उसकी मॉल के माल के प्रति उसकी दीवानगी को प्रणाम कर रहा था , वाही मेरा मित्र अन्दर ही अन्दर विचलित नजर आ रहा था I मैंने कहा आप भी कुछ बोलिए तो,उसने जबान खोली ,और कहा,मॉल जाने के बाद , घर गोदाम की तरह हो जाता है ,ये तोह कुछ समझती ही नही , एसे शौपिंग करती है जैसे दुबारा आने का मोका ही नही मिलेगा ......I मेरे मुताबिक , मॉल जिव के जंजाल हो गए है ,घायल की गति घायल ही जाने I मॉल का माल खरीदने मै महिलाये , सौदेबाजी करने का इश्वर प्राप्त वरदान समाप्त होता जा रहा है I स्वार्थ के वशीभूत स्कीम का पूरा लाभ उठाने के चक्कर मै पूरा बजट तहस नहस कर देती है......भारतीय अर्थव्यवस्था  की तरह...I उपयोगिता और सार्थकता मै लम्बी दुरी हो जाती है I
           दोनों के ही विचारो ने अपने तठस्थ विचारो ने मेरे मान - मस्तिक्ष को झंकृत कर दिया और मॉल संस्कृति के बारे मै ज्ञान का दीपक जला दिया है I जाओ मॉल जाओ , खूब जाओ , बाकी सब भूल जाओ ---मॉल हमारी क्रय शक्ति का आईना है I जो हमरी आर्थिक व्यवस्था को उजागर करती है जरुरत एक की होती है दूसरा स्कीम मै अपने आप आ जाता है .....जय हो मॉल के माल की....I


संजय जोशी "सजग"

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