आस्था के लुटेरे फ्रॉड बाबा [व्यंग्य]
समाज शास्त्र के प्रोफेसर शर्मा जी आज जब मिले, तो उनके चेहरे पर दुःख के भाव झलक रहे थे ,मेरा पूछना हुआ कि क्या हो गया दादा ?इससे उनका गुबार फूट पड़ा और अपनी व्यथा को यूँ बताने लगे समाज में इसी तरह गिरवाट चलती रही तो क्या होगा ? हम कहां जा रहे है ? सामान्यतया बाबा ,बड़े-बूढ़ों के लिए आदर सूचक सम्बोधन है धीरे धीरे संतो को ही बाबा कहा जाने लगा , क्योकि संतो की भीड़ में असन्तों को पहचानना मुश्किल होने लगा और बाबाओं का नया स्वरूप आया जिसमे असली बाबा और नकली बाबा दोनों बढ़ते गए l बाबा शब्द आजकल समाज को चुभने लगा है l धिरे धीरे ही सही फ्राड बाबा कानून के शिकंजे में आ तो रहे है l मीडिया सजा को भी सजाकर दिखाता है l
एक विशेष किस्म के बाबाओं ने भक्तो की आस्था पर अतिक्रमण कर नीचता की हद कर दी lभक्त गुलाम होने लगे ,आस्था के कुचक्र में फस कर निशब्द होने लगे और अपना जीवन समर्पित कर दलदल को बढ़ाते गए l आस्था के गहन अंधकार में परिवार सहित विलीन हो गये l फ्रॉड बाबा फ्रॉड पर फ्रॉड करते रहे है l सरकारों को बनाने बिगाड़ने का खेल खेलने लगे ,नेता /अधिकारी इनके हाथ की कठपुतली बन गये l फ्रॉड बाबाओं के हौसले बड़ते गए ये लोकतंत्र को खोखला को करने का काम करते रहे l डेरे और आश्रम व्यभिचार के अड्डे बन गए l शासन -प्रशासन इनके सुरक्षा चक्र हो गए lइनकी सुरक्षा का जिम्मा सरकार लेने लगी और व्यक्ति विशेष का दर्जा मिलने लगा ,लोग इनमे चरण चाटुकार हो गये l झूठी चकाचौंध में हर अनैतिक काम करने लगे पर यह लोकोक्ति कि पाप का घड़ा भरता है ,बकरे की माँ कब तक खैर मनायेगी ,कभी ऊंट पहाड़ के नीचे आता ही है आखिर सोच से सामना करा ही देती है पर अंध भक्त तो फिर भी फ्रॉड बाबाओ की भक्ति नहीं छोड़ते l आस्था के लुटेरे है फ्रॉड बाबा l अखाड़ा परिषद ने फर्जी बाबाओं की लिस्ट जारी की , जिसमे सिर्फ १४ बाबा फर्जी घोषित किये गये ,बात हजम नहीं हुई
लिस्ट और लम्बी हो सकती है ,फर्जी / ढोंगी बाबाओ से पटा पड़ा है हमारा देश l बाबा एक परजीवी प्राणी है जो आस्था पर फलता फूलता है और आस्था की छत्र छाया मेँ सभी समाज विरोधी कार्य करता है बाबा एक मुखौटा है जब वह उतरता है तो मुँह खोटा लगता है l
उनकी व्यथा निरंतर जारी थी - फ्रॉड बाबा घिरे होते हैं हुस्न सुंदरियों से ,और ईश्वर में आस्था के प्रवचन देते और भक्त झूमते है l ऐसे बाबाओं का इतिहास जब खुलता है तब लगता है कि दुष्ट अपनी दुष्टता, लुच्चा अपनी लुच्चता और टुच्चा अपनी टुच्चता नहीं छोड़ता है l बहुरुपिए के वेश में धर्म का नाशकर अधर्म को बढ़ाते है l मीठी-मीठी बातों में उलझाकर वो और उनके दलाल ऐसा स्वांग रचते है कि फ्रॉड बाबा ईश्वर से भी बढ़कर लगने लगे हैं l शिकारी की तरह जाल बिछाकर तन मन और धन से उसे अपने ताने बाने में फंसाकर उसकी आस्था और श्रद्धा का दोहन साम , दाम दंड और भेद से करता है l
आगे कहने लगे कि बाबाओं का देश है, हर धर्म में बाबाओं का बोलबाला है सच्चे बाबा बिरले ही है जिनका काम तप और जन कल्याण होगा ? सबके अपने अपने डेरे, जमात आश्रम हैl फ्रॉड बाबाओं ने असली बाबाओं का मान कम किया है अब तो आमजन बाबाओं को शंका की नजर से देखने लगा है l ऐसा कोई यंत्र नहीं सच्चे और फ्रॉड बाबा में भेद कर सके l समाज के लिए अच्छे सन्तों का होना बहुत जरूरी है जो सही दिशा दे सके पर एक मछली सारे तालाब को गंदा करती है यहां तो कई मछलिया तालाब को गंदा कर सड़ा रही है , सड़न समाज को विकृत कर रही है l फ्रॉड बाबाओं से बचो और बचाओ l सही और गलत में अंतर समझना होगा ? सच्चे संत समाज के हितैषी होते है पर सच्चे संत की खोज एक कठिन काम है l बुध्दि और विवेक का मिलाप ही इसका समाधान है l
संजय जोशी 'सजग "
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