विकास दिखता क्यों नहीं -- [व्यंग्य ]
विकास दिखता क्यों नहीं ? महसूस होता नहीं ?तो आखिर विकास क्या है ? मैंने अर्थ शास्त्री से पूछा तो उन्होंने बताया कि देशों, क्षेत्रों या व्यक्तिओं की आर्थिक समृद्धि के वृद्धि को आर्थिक विकास कहते हैं। रोनाल्ड रीगन के अनुसार -विकास की कोई सीमा नही होती, क्योंकि मनुष्य की मेधा, कल्पनाशीलता और कौतूहूल की भी कोई सीमा नही है।वे आगे कहने लगे कि विकास तो एक सतत प्रक्रिया है पर राजनीति के अन्धो को विकास दीखता ही नहीं है या यूँ कहे की पक्ष -विपक्ष को एक दूसरे का विकास सुहाता ही नहीं है l जहाँ भूख से मरने वाले हो , भूखे सोने वाले हो सिर पर छत न हो ,हाथो को काम न हो , ,शिक्षित बेरोजगारों की बड़ी फौज हो ,और किसान को अपनी उपज का सही मूल्य न मिले ,ऐसे विकास को क्या कहेंगे ?
वे आगे कहने लगे कि -योजनायें कागज तो पर बन पर क्रियान्वयन में भ्रष्टाचार रूपी दीमक योजनाओं को चट कर जाती है और विकास धरा पर यूँही धरा रह जाता है और वहीं यक्ष कि प्रश्न कुछ विकास हुआ ही नहीं?विकास की गंगा बहा देंगे पर विकास की गंगा सूखने लग जाती है और सिर्फ सूखा ही सूखा नजर आता है l रोड़ो का विकास तो दीखता है पर बाकी क्षेत्र रोड़े ही रोड़े अटकाए जाते है lअफसर और अधिकारी स्पीड ब्रेकर का रोल निभाते हैंl
कल्लू बाबा से पूछा की विकास दिखाई देता है तो मुँह बिचकाकर और कंधे उचकाकर कहा कि
पेट खाली हो तो कोई विकास क्या ,कुछ भी नहीं दीखता हैं सिर्फ रोटी दिखती है l भूख और विकास का गहरा संबंध है जिसकी भूख शांत नहीं होती है उसे विकास देख क्या मिलेगा ? सबकी अपनी -अपनी भूख है वह उसे ही शांत करने में लगा है किन्तु एक कटु सत्य है कि भूख कभी मिटती नहीं है और भूख के अंधे को हर और भूख और भूख ही नजर आती है l विकास भी एक भूख ही है जो कभी संतुष्ट नहीं होती है और सही भी है संतुष्टि ही मृत्यु है l
हमारे मोहल्ले में राजू भइया है जो बेरोजगारी से परेशान है जब उनसे पूछा की विकास हो रहा है दीखता है की नहीं तो कहने जब हमरा विकास होगा जब देखेंगे और समझेँगे की विकास किस बला का नाम है l अभी तो सब देख कर भी अनदेखा करते है आप ऐसे प्रश्न पूछकर दिमाग की घंटी बजा देते हो l मार्निग वाक पर सीनियर सिटीजन से पूछा विकास दीखता है कि नहीं तो वे कहने लगे आम जनता से ज्यादा विकास तो नेताओं का का हो रहा है ,रोड़पती पार्षद ही करोड़पती बनकर इठला रहे है और बड़े नेताओं का क्या कहना आप सब उनका विकास तो जानते ही हो l और विकास वहीं का वहीं रेंग रहा है और रेंगता रहेगा l व्यक्तिगत विकास और सर्वागीण विकास अलग अलग बात है l
नगर के समाज सेवी बांकेलाल जी जो पर्यावरण प्रति , बहुत जागरूक है उनसे जब जब पूछा तो कहने लगे विकास तो हो रहा है पर पर्यावरण तो ताक में रखकर किया गया विकास ,विकास नहीं विनाश है प्रकृति से खिलवाड़ की सजा जब वह देती है तो विकास डरावना लगता है सोचने को मजबूर करता है कि आने वाली पीढ़ीको हम रसातल ले जारहे तो विकास को क्या कहेंगे l
मैंने कहा की विकास तो हो रहा है दिन दूनी और रात चौगनी रफ्तार से हो रहा है दिखना या न दिखना दृष्टी दोष हो सकता है नजरे बदलने से नजारे बदल जाते है और विकास ही विकास दिखने लगता है पर कोई अपनी नजर तो बदले पर कोई बदलने को तैयार ही नहीं है इसलिए विकास दीखता नहीं है और दिखेगा भी नहीं lमैंने अपने मित्र से प्रश्न दागा कि विकास क्या होता है तू क्या जाने -----l तो वह कहने लगा जानना भी नहीं -मुझे क्या करना विकास से मेरा विकास तो तेजी से हो रहा है l विकास होता तो निरन्तर है पर दीखता नही सब की समस्या है l बाप द्वारा किया विकास ओलादो को गले नही उतरता है तथा सरकार द्वारा किया गया जनता को l और चाहिए का सिंद्धांत कभी पूरा नही होता है l असंतृप्त प्राणियों की भीड़ बढती जा रही है इस धरा पर -----विकास को अनदेखा करने वालो की l
संजय जोशी "सजग " [ व्यंग्यकार ]
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें