सोमवार, 22 अक्तूबर 2018

अर्थ बिना सब व्यर्थ --[व्यंग्य ]

अर्थ बिना सब व्यर्थ --[व्यंग्य ]

                शब्द  के भी कोष में मिलता नही अर्थ है , आदम  को समझने में आदमी असमर्थ है lतब लगता है  कि अर्थ बिना सब व्यर्थ है ? हम अर्थहीन जीवन जीने के आदि हो चुके  है  क्या ? नाते रिश्ते  अर्थहीन होकर स्वार्थयुक्त होगये है ? शब्द के मायने बदल गए है ? शब्द अर्थहीन होकर भी अर्थ  के आसपास टिके  हुए है  कुछ तो अर्थ को ही सबकुछ  मान बैठे  हैं ,उन्हें अर्थ बिना उन्हें कुछ समझ नहीं आता है l इस अर्थ शब्द पर हिंदी के  गुरूजी और  अर्थ शास्त्र के प्रोफेसर के बीच चर्चा  चल रही थी दोनों ही अपने अपने अर्थ पर अड़े और  डटे हुऐ थे ,दोनों  ही  अर्थ को सर्वोपरि मानने के लिए एक मत तो थे ,पर दोनों ही अपने अर्थ पर जोर दे रहे थे l 
                    हिंदी के गुरूजी  के उवाच - जैसे  वर्तमान युग में नैतिकता का अर्थ ही बदल गया है दिन भर नैतिकता की बात करने वाला सबसे  अनैतिक कार्य करता है   क्योकि उसे नैतिकता  शब्द की समझ ही नहीं है  गिरगिट अपना रंग बदलता है और आदमी शब्द  के अर्थ बदल देता है बाये हाथ से गले मिलता है और दांये  हाथ से जेब काट लेता हैl  रिश्ते में कौन  कब आदमखोर होकर रिश्ते का ही अर्थ बदल   दे lजनसेवा  का अर्थ  मेवा खाना हो जाता है lकुत्ता  वफादार का पर्याय है पर उससे सिर्फ दुम हिलाने का गुण  ग्रहण करते है  l ऐसे  कई शब्दों के अर्थ ,अनर्थ और अर्थहीन  हो गये है जिनसे  शब्द कोष ही बदल गये l कहने को तो बहुत कुछ है जब बात चलेगी तो दूर तलक जायेगी l आदमी को क्या सजीव शब्दों को ही निर्जीव बना दिया, अर्थ को समर्थ से असमर्थ बना दिया l 
बीच में बात काटकर अर्थशास्र के प्रोफेसर कहने लगे कि -किसी  को  किसी  शब्द के अर्थ  से कोई  मतलब नहीं है   l हर जगह सिर्फ और सिर्फ  धन वाला अर्थ ही समझ में आता है  बाकि शब्द  तो गौण हो चले है शब्दों का क्या ?शब्द में अर्थ नहीं हो ऐसे शब्द को खाली शहद लगाकर  चाटे क्या  ?वर्तमान युग अर्थ का ही कायल है ,अर्थ से  ही  घायल है l  बाप बड़ा  न भैया सबसे बड़ा रुपया l l अर्थ बिना जीवन अर्थहीन लगता है और अर्थ देखकर हिनहिनाता  है और  बिना अर्थ वालो को हीनता से साक्षात्कार  करवाते रहता है lकुछ तो  अर्थ शास्त्र को धन का शास्त्र  बनाकर शब्द के  अर्थ का अनर्थ करने पर तुले है l 
मैंने   कहा कि  सबको अपने अर्थ निकालने  का अधिकार है  शब्दों के अर्थ तो अर्थ विहीन हो गये है मात्र  अर्थ  का सही  अर्थ ही सब समझने लगे और ऐसा मानते है l  की धन याने की अर्थ  ही सब कुछ है और   धन की स्तुति करते रहते है l 
त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव,
त्वमेव विद्या, द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वं ममः देवदेवा ||

संजय जोशी 'सजग "

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