अर्थ बिना सब व्यर्थ --[व्यंग्य ]
हिंदी के गुरूजी के उवाच - जैसे वर्तमान युग में नैतिकता का अर्थ ही बदल गया है दिन भर नैतिकता की बात करने वाला सबसे अनैतिक कार्य करता है क्योकि उसे नैतिकता शब्द की समझ ही नहीं है गिरगिट अपना रंग बदलता है और आदमी शब्द के अर्थ बदल देता है बाये हाथ से गले मिलता है और दांये हाथ से जेब काट लेता हैl रिश्ते में कौन कब आदमखोर होकर रिश्ते का ही अर्थ बदल दे lजनसेवा का अर्थ मेवा खाना हो जाता है lकुत्ता वफादार का पर्याय है पर उससे सिर्फ दुम हिलाने का गुण ग्रहण करते है l ऐसे कई शब्दों के अर्थ ,अनर्थ और अर्थहीन हो गये है जिनसे शब्द कोष ही बदल गये l कहने को तो बहुत कुछ है जब बात चलेगी तो दूर तलक जायेगी l आदमी को क्या सजीव शब्दों को ही निर्जीव बना दिया, अर्थ को समर्थ से असमर्थ बना दिया l
बीच में बात काटकर अर्थशास्र के प्रोफेसर कहने लगे कि -किसी को किसी शब्द के अर्थ से कोई मतलब नहीं है l हर जगह सिर्फ और सिर्फ धन वाला अर्थ ही समझ में आता है बाकि शब्द तो गौण हो चले है शब्दों का क्या ?शब्द में अर्थ नहीं हो ऐसे शब्द को खाली शहद लगाकर चाटे क्या ?वर्तमान युग अर्थ का ही कायल है ,अर्थ से ही घायल है l बाप बड़ा न भैया सबसे बड़ा रुपया l l अर्थ बिना जीवन अर्थहीन लगता है और अर्थ देखकर हिनहिनाता है और बिना अर्थ वालो को हीनता से साक्षात्कार करवाते रहता है lकुछ तो अर्थ शास्त्र को धन का शास्त्र बनाकर शब्द के अर्थ का अनर्थ करने पर तुले है l
मैंने कहा कि सबको अपने अर्थ निकालने का अधिकार है शब्दों के अर्थ तो अर्थ विहीन हो गये है मात्र अर्थ का सही अर्थ ही सब समझने लगे और ऐसा मानते है l की धन याने की अर्थ ही सब कुछ है और धन की स्तुति करते रहते है l
त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव,
त्वमेव विद्या, द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वं ममः देवदेवा ||
त्वमेव विद्या, द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वं ममः देवदेवा ||
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