रविवार, 26 अक्तूबर 2014

जहां दिखा फायदा वहां छोड़ा कायदा [व्यंग्य ]

जहां दिखा फायदा वहां  छोड़ा  कायदा [व्यंग्य ]
      


      सिंद्धांत ओर नैतिकता पर स्वार्थ किस तरह हावी हो गया है इसे हिंदी साहित्य के महान लेखक प्रेमचंद जी इस तरह  लिख गए है  कि  - विचार और व्यवहार में सामंजस्य का न होना ही धूर्तता है ,मक्कारी  हैं l जहां दिखा फायदा वहां छोड़ा कायदा यह हर काल  में नासूर बनकर अपना प्रभाव दिखाता  आ रहा है वर्तमान काल  भी इससे अछूता नहीं  है और रंग बदलने के लिए सिर्फ गिरगिट का उदाहरण देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री करना फैशन सा हो गया है रंग बदलने  की अति से  तो गिरगिट भी शर्मिंदा होने लगे है उन्हें  भी गुस्सा आने लगा है पर नेताओं  को  इसका  कुछ  भी मलाल नहीं  है l  एक प्रेस कांफ्रेंस में गिरगिट समिति  के प्रवक्ता ने  जानकारी देते हुए बताया कि  सिर्फ  रंग बदलने  के गुण  के कारण  हमारी तुलना  पल-पल रंग बदलने  वाले नेताओं  से होने लगी है जो की  गिरगिट   जाति  का  घोर अपमान है और  इसे बहुत सह  लिया है अब और बर्दाश्त  नही करेंगे l यह हमारी प्रजाति की मान हानि है l किसी प्राणी  की भांति जब नेता अपना गुण धर्म बदल सकते है  तो हम क्यों नहीं   ? आगे बताया कि शीघ्र और अतिशीघ्र  एक महा सम्मेलन का आयोजन कर  जो अपने स्वार्थ के खातिर रंग बदल कर हमारी प्रजाति को  रोज -रोज   प्रताड़ित  और  बदनाम कर रहे है   अत: इसके लिए रंग बदलने के संबंध में एक प्रस्ताव पारित कर कड़ाई से पालन करने की शपथ दिलाई जाएगी  और एक उप समिति का गठन  कर सभी पर कड़ी नजर रखी जाएगी कि  गिरगिट प्रजाति रंग न बदल  कर एकता का परिचय देकर नेताऑ को अपनी गलती का अहसास कराये l
   
   यह खबर सुनते ही राजनीति  में हड़कम्प मच गया कि  गिरगिट प्रजाति अगर ऐसा करेगी  तो नेताओं  का अपमान होगा और लोग कहेंगे नेता की तरह रंग बदलता है l पर नेताओं  में एक से एक बुद्धिजीवी   भरे पड़े है  उनमें  एक जो  कि इस कला के सूक्ष्म जानकार थे और जिन्हें  गैंग के  मुखिया की तरह बॉस कहा  जाता था कहने लगे कि यह उनका कॉपी राइट थोड़े ही है ,हम ऐसा  नहीं  करेंगे  तो क्या करेंगे अरे समझो राजनीति  का  यह सिद्धांत है कि जिधर हवा  का रुख हो उसी तरफ चलना तो  ही जल्दी मंजिल तक पहुंचने में आसानी होगी , यही तो  समझदारी है ओर समय का तकाजा भी है l वे कहने लगे जिनको शर्म करना है वो करें  ,हम तो जिस उदेश्य के लिए राजनीति  में आये है उसे  पूरा करेंगे ,हमे लोग क्या कहेंगे का  तनिक  भी अफ़सोस नहीं  होता है ,हम तो  वो है जो जानते है कि "जिसने की  शरम उसके फूटे करम " के ब्रह्म वाक्य का पालन   मजबूती से करना  इस क्षेत्र में जरूरी है और  जहां मिले फायदा वहां छोड़ो क़ायदा तब ही तो टिक पायेंगे  इस प्रतिस्पर्धा के दौर में, अपना उल्लू  सीधा करने में l अपने मुँह मिंया  मिट्ठू बनने में महारथ होना जरूरी है तभी उनके मोबाइल की  घंटी बजी  वे अपना रुतबा दिखाने  के लिए  जोश में आकर कहने लगे ये महाशय अपने आप को राजा हरिश्चंद्र का वंशज  मानते है राजनीति  में सुपर फ्लॉप साबित हुए है ये  राजनीति में बहुत पुराना  पर  बहुत लाचार है दुम हिलाना ,चमचा गिरी से कोसों  दूर है सोचो भला ये  आदमी कैसे आगे बढ़ेगा ? आखिर उनका फोन रिसीव  न करके यह जताने  की  भरपूर कोशिश  की ऐसे लोगों  की  हमें  कोई परवाह नहीं  है l काम होगा तो दस बार लगाएगा l ऐसे तो कई पट्ठे  पाल रखे है l
             मै  यह सब बड़े ही बेबस होकर सुनता रहा मुझे लग रहा था कि पूरा  वातावरण
ही इसकी गिरफ्त  में  है  दिन दूनी रात चौगुनी की गति से बेईमान फल फूल रहे हैं  जहां दिखा फायदा वहां  छोड़ा  कायदा के अनुयायियों   की बड़ी जमात है और वे फूले नहीं  समाते  और ईमानदार बेचारा खडूस की उपाधि पाकर मन मसोस कर अपनी व्यथा के कड़वे घूंट पीने  को मजबूर है l सिद्धांतहीनता की लहर जब चलती है तो सिद्धांत को मानने  वाले भी लहर से प्रभावित तो होते ही है l एक दूसरे की शक्ल से घृणा करने वाले जब एक थाली में खाने लगे एक दूसरे को गले लगाने लगे तो  दिल  और दिमाग एक साथ सक्रिय  होकर कह  उठता है कि  जहां दिखा फायदा वहां छोड़ा कायदाl

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