चायना का चटका [व्यंग्य ]
हमारे मल्टीकलर कल्चर में चायना ने मारी एंट्री और सबके दिल में बजने लगी चायनीज खाने की घंटिया l बच्चों से लेकर बड़े सभी दीवाने चायनीज फ़ूड के l इसकी बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए मैंने इसकी तह तक जाने का मन बनाया आखिर इसमें ऐसा क्या है ?यह तो मानना पड़ेगा की चायना बेसिक सिंद्धांत पर काम करता है उसने पहले चायनीज फ़ूड के माध्यम से पेट पर कब्जा कर लिया ,कहते है कि प्यार का रिश्ता तो पेट से होकर ही जाता है l चायना प्रेम का आलम यह है कि खिलौनों से लेकर हर प्रकार के सामान से बाजार पटा पड़ा है सस्ता तो है पर टिकाऊ नहीं है सब चलता है क्योंकि हम यूज एन थ्रो की संस्कृति के इतने मुरीद हो गए है तथा इसका प्रभाव मानवीय रिश्तों को भी तार -तार कर रहा है रिश्ते भी चायना के सामान की तरह कब तक चले कोई ग्यारंटी नहीं l सस्ता रोये बार बार महंगा रोये एक बार को इस तरह परिवर्तित कर दिया कि सस्ता लाओ उपयोग करो और फेंक दो और खुश रहो l
मैंने चायनीज फ़ूड की प्रेमी एक आधुनिका से पूछा कि चायनीज फ़ूड खाने
वालों की संख्या निरंतर बढ़ रही है और और पूरे भारत में इसको चटकारे लेकर
लोगबाग सूत रहे हैं और भारतीय व्यंजन को चिढ़ा रहे है l आपका क्या कहना है
इस बारे में तो वे कहने लगी देखिये चायनीज फूड की कुछ विशेषता है जैसे
ऑइली
, स्पाइसी कम होते है जिससे हेल्थ कॉन्शियस लोग खाने लगे है ,बनाने में
आसान ,खाने में हाथ गंदे नही होते ,बच्चे भी आसानी से खा लेते है और भारतीय
खाने
के मुकाबले में कम समय ,कम लागत और कम मेहनत लगती है तो क्यों न खाए
चायनीज
फ़ूड l मैंने कहा मेडम जी आप जैसे लोगों के चोचलों के कारण ही यह सब हो
रहा है l तो वे कहने लगी मैं समझी नहीं l मैंने कहा मुझे जो समझ में आया
वह यह है कि सिर्फ आलस्य की अधिकता और समय की मार ने हमें इसका आदी बना
दिया है l
हेल्थ कॉन्शियस शब्द ने मेरे दिमाग को इतना झकझोर दिया कि चायनीज खाने के गुण और अवगुण का पता लगाने निकल पड़ा स्वास्थ्य की दृष्टि से मैंने एक आहार विशेषज्ञ से सम्पर्क किया ये ढेरों मिलते है l अपनी समस्या बताकर उनका पक्ष जाना उनके अनुसार अगर सही तरीके से इसे बनाया जाय तो ठीक है अन्यथा आवश्यक अवयवों के असमान मिश्रण से ये चायनीज फ़ूड कई बीमारियों को जन्म देते है कुछ होटल वाले स्वाद बढ़ाने के चक्कर में जरूरत से अधिक तत्व मिक्स कर देते है खाने वाले को संपट नही पड़ती ,ऊँची दुकान और फीके पकवान होते है परिणाम दिमाग में डैमेज ,हार्ड डीसिस ,मोटापे और शारीरिक असंतुलन का खतरा भी रहता है l पर ये दिल है कि मानता ही नहीं है l कहते है न कि आधा अधूरा ज्ञान ही विनाश का कारण बनता है परिणाम आने में समय तो लगता है देर सबेर कभी तो नींद खुलेगी l मैंने कहा कि नकल में भी अकल लगानी पड़ती है l
हेल्थ कॉन्शियस शब्द ने मेरे दिमाग को इतना झकझोर दिया कि चायनीज खाने के गुण और अवगुण का पता लगाने निकल पड़ा स्वास्थ्य की दृष्टि से मैंने एक आहार विशेषज्ञ से सम्पर्क किया ये ढेरों मिलते है l अपनी समस्या बताकर उनका पक्ष जाना उनके अनुसार अगर सही तरीके से इसे बनाया जाय तो ठीक है अन्यथा आवश्यक अवयवों के असमान मिश्रण से ये चायनीज फ़ूड कई बीमारियों को जन्म देते है कुछ होटल वाले स्वाद बढ़ाने के चक्कर में जरूरत से अधिक तत्व मिक्स कर देते है खाने वाले को संपट नही पड़ती ,ऊँची दुकान और फीके पकवान होते है परिणाम दिमाग में डैमेज ,हार्ड डीसिस ,मोटापे और शारीरिक असंतुलन का खतरा भी रहता है l पर ये दिल है कि मानता ही नहीं है l कहते है न कि आधा अधूरा ज्ञान ही विनाश का कारण बनता है परिणाम आने में समय तो लगता है देर सबेर कभी तो नींद खुलेगी l मैंने कहा कि नकल में भी अकल लगानी पड़ती है l
हमारे भारतीय व्यंजनों की क्या कोई कमी है ?फिर भी चायना का चटका जोरों
पर है l यह हमारी विडंबना है कि इडली डोसा ,खम्मन ढोकला ,छोला पूरी
,बडा पाव ,दाल बाटी कुछ विशेष क्षेत्र तक
ही इनकी सीमायें है l देशी खाना देख कर नाक भौं सिकोड़ने वालों को
चायनीज फ़ूड देख कर मुहं में पानी आने लगता है l नूडल्स,हाका
नूडल्स,चाउमिन ,मंचूरियन और मोमोज़ का नशा चायना से चलकर पूरे देश के
लोगों के दिलों और दिमाग पर चढ़कर बोलने लगा है जैसे घर की खांड किरकिरी
लगे और बाहर का गुड़ मीठा l
हम विदेशी संस्कृति पर इस कदर फ़िदा है कि खान पान ,रहन सहन को अपनाने की प्रति इतनी शीघ्रता दिखाते है कि बाकि सब गौण कर देते है lविदेशी शासन से मुक्त होने के बाद भी हम आज भी मानसिक गुलामी से मुक्त नही हुए है l आँखों पर पड़ा पर्दा हटाना बहुत जरूरी है पूरी दाल ही काली हो गई है l
हम विदेशी संस्कृति पर इस कदर फ़िदा है कि खान पान ,रहन सहन को अपनाने की प्रति इतनी शीघ्रता दिखाते है कि बाकि सब गौण कर देते है lविदेशी शासन से मुक्त होने के बाद भी हम आज भी मानसिक गुलामी से मुक्त नही हुए है l आँखों पर पड़ा पर्दा हटाना बहुत जरूरी है पूरी दाल ही काली हो गई है l
चायना का चटका यह सब सोचने को मजबूर करता है कि हमारे बाजार में चायना
सामान की , दावतों में चायनीज फ़ूड के साथ ही सीमा पर भी घुसपैठ
करने
की कला में चायना सिद्ध हस्त है l मुझे विचलित देखकर मेरी पत्नी ने
गीता का ज्ञान झाड़ते हुए कहा कि " क्यों व्यर्थ चिंता करते हो "हम किसी
से कम नहीं ,हमारे व्यंजनों
और हमारी संस्कृति को मिटा दें , ऐसा किसी में दम नहीं l
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