रविवार, 26 अक्तूबर 2014

ऑन लाइन मजा या सजा [व्यंग्य ]

  ऑन लाइन मजा या सजा [व्यंग्य ]
        
      लाइन ,लकीर और कतार  यूं तो इनका  अर्थ एक ही है  लेकिन जीवन में अलग  -अलग तरह से अपना प्रभाव दिखाती है मनुष्य नाम के प्राणी का  इनसे गहरा सम्बन्ध हैl लाइन तोड़ने और  लाइन मारने का  वरदान तो लगभग सभी को गॉड गिफ्ट होता है भले ही प्रतिशत भिन्न -भिन्न  हो सकता है lनामी -गिरामी ,विख्यात ,प्रख्यात और कुख्यात तो लाइन मारने में  महारथी पर लाइन में लगने को अपनी  तौहीन  समझते है और इससे बचने के लिए  जुगाड़ तंत्र का सहारा लेते हैं  l हाथ की लाइन के सहारे सपने देखने की मानसिकता रखने वाले भरे पड़े है लकीर के फकीर  जो ठहरे l सीता जी के लिए लक्ष्मण द्वारा खींची लाइन तो लांघने का हश्र राम -रावण का युद्ध हुआ l लकीर को पीटना राजनीति का प्रमुख अंग है l आजकल  ऑन लाइन रहना आधुनिकता की निशानी है जो जाल का जंजाल बनता जा रहा है l
           मुझ से लाइन में रहना रे  , यह वाक्य  अक्सर  बचपन  से आज तक  कानों  में गूँजता  है जब भी किसी की किसी से लड़ाई होती है तो  हमेशा  दोनों पक्षों की और से चेतावनी स्वरूप इन शब्दों का प्रयोग दोनों  ही ओर से किया जाता है आज भी बड़े बूढ़े प्रेम के अभिभूत होकर  लाइन में रहने की नसीहत देते रहते है l समय बदला और  जमाना ही ऑन लाइन रहने का  हो गया l ,छोटे से लेकर बड़े तक  सब के सब  ऑन  लाइन रहने लगे है ऑन लाइन  रहने का नशा इस कदर छा  गया है कि  लगने लगा है  इसके  बिना जीवन अधूरा  है नेट के बिना जिंदगी भी नेट लगने लगी है l लाइन  [ब्राड बेंड ] और बे-लाइन दोनों पर ही ऑन लाइन रहने लगे है l
                          ऑन लाइन में मजा और सजा दोनों ही है सुबह सबसे पहले उठकर ईश्वर का ध्यान किया जाना  परम्परा थी कुछ आज भी करते है जो नहीं  करते है वे ऑन लाइन होकर नई परम्परा का निर्वाह करते है l आज हर चीज  ऑन  लाइन उपलब्ध है l पुरानी चीजे भी ऑन लाइन बिकने लगी है नया हो या पुराना ,खाने का हो या पीने का ,ओढ़ने का हो या पहनने  का ओर  तो ओर भगवान से लेकर चन्द्र दर्शन भी ऑन  लाइन होने लगे है l ऑन लाइन शॉपिंग ने तो महिलाओ के प्रिय गुण बार्गेनिंग की बाट ही लगा दी  पर इसका कहर सब्जी वालों  पर बरपने  लगा है l ऑन लाइन इश्क  रिस्क  ही तो है जब रिस्क लेकर   इश्क परवान चढ़ता है बिन मंगनी ब्याह  रचा लेता है तब  हकीकत में  ऑन लाइन रिश्ते की  लाइन गड़बड़ा जाती है l
       ऑन लाइन से परेशान एक समाज सेवी कहने लगे कि भाई लाइन मारने और
फ्लर्ट दोनों ही ऑन लाइन  होने लगा है l यह  तो गनीमत है कि गुरु दक्षिणा  एकलव्य की तरह अंगूठा देने की परम्परा होती तो क्या होता आज ? अंगूठा तो ऑन लाइन पर रहने की जान है l वे चिंतित और विचलित होकर कहने लगे मुझे डर लगता है की कहीं अंतिम संस्कार की प्रक्रिया  भी ऑन लाइन न हो जाए क्योकि समय किसके पास है दुनिया के किसी भी कोने से सम्पन्न किया जा सकेगा lऔर १३ दिन का  काम १३ मिनिट में हो जाया  करेगा l
      वे आगे कहने लगे कि  इस ऑन  लाइन रहने की बीमारी ने कई कम्पनियों  और आफिसों में  आउट पुट को कम किया है इससे कई संस्थानों में इन पर पूर्णतया प्रतिबंध लगाने को मजबूर होना पड़ा l ऑन  लाइन की मनोवृति मनोविकार में बदल गई है फेसबुक ,ट्विटर और वाट्स एप पर लगातार ऑन  लाइन रहने वाले को जब नेटवर्क  नहीं  मिलता है तो यह  बैचेनी ,परेशानी  हताशा का सबब बन जाता  है l जीवन  में उतार चढाव बहुत ज़रूरी हैं l चिकित्सा विज्ञानं में  ईसीजी  के अनुसार एक सीधी  लाइन  मौत की निशानी होती है तो  क्यों न हम लाइन तोड़ने और लाइन मारने वाली  जैसी ज़िग -ज़ैग भरी जिंदगी जिए और जीने दें  l
                                 
    होड़ लगी है ऑन लाइन की कोई ले रहा मजा तो कोई पा  रहा है सजा l सरकारी  साइट्स की  लाइन का हमेशा व्यस्त रहना सर्वर नाट  फाउंड का  ऑप्शन भी ऑन लाइन रहता है घंटो की मशक्क़त  के बाद भी जीरो बटे सन्नाटा ही नजर आता है lएक प्रसिद्ध लोकोक्ति है नादान की दोस्ती ने  जीव का जंजाल यह पूरी तरह ऑन लाइन
रहने वाले नादानों के लिए सटीक बैठती है l

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