गोल के लिए किक जरूरी है.... [व्यंग्य ]
फ़ुटबाल का गोल हो या अपने जीवन का कोई गोल हो किक का अपना महत्व है जिसने भी किक का महत्व नहीं जाना वह जीवन में गोल हो गया है और किक मारने वाला ही खिलाडी बाकी सब अनाड़ी समझे जाते है मानसिकता यह है कि गोल के लिए कुछ भी करेंगे और तुच्छ भी बन जायेंगे क्योकि हमारा तो केवल यहीं मकसद है गोल और गोल l किक मारने में शोहरत हांसिल करने के लिए सामजिक बंधन और मर्यादा को तोड़ना,स्वहित की भावना का विकास करना बहुत जरूरी है इनको नीति अनीति से ,मान अपमान से कोई फर्क नही पड़ता अपना गोल पूरा करने के लिए हर हथकण्डा अपनाने को हमेशा तत्पर और चौकस रहते है सामने वाले की मजबूरी ,कमजोरी व सीधेपन को भुनाने में कोई कसर नही छोड़ते l
एक नेताजी जो किसी जमाने में फुटबॉल खिलाड़ी थे मैंने उनसे पूछा की फुटबॉल खेलते -खेलते नेता कैसे बन गए तो नेता जी हसंते हुए बोले किक मारने की कला का उपयोग राजनीति में जितने अच्छे से किया जा सकता है उतना फुटबॉल में नहीं l खेल में तो भाई चारा रखना पड़ता है पर राजनीति में सब सिर्फ दिखावे का चाहिए जैसे हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और होते है जनता से वादे करो और खूब स्वप्न दिखाओ और बाद में सब को किक मार दो l फ़ुटबाल में तो खेल भावना होती है पर राजनीति में केवल स्वार्थ की भावना कूट -कूट कर भरी होती है और यही एक मात्र कारण होता हैं कि यहां किक मारकर गोल करने की भावना से कभी संतुष्टि नही मिलती और किक पर किक मारने और गोल पर गोल करने के बाद भी जी नहीं भरता l उनका कहना था कि हर जगह किक मारने का काम बखूबी होता है इतने दल-दल में भी चतुराई से किक मारकर गोल को अंजाम दे ही देते है l इसी कारण हम राजनीति के इस जहां में पड़े है l इसलिए तो हम फुटबॉल में पीछे है पर कोई गम भी नही है सिर्फ नाम के लिए टीम भेज देते है
की हमें किक मारकर गोल करना आता है सावधान ! हम कहीं भी किक मारकर गोल बना सकते है हमारी आदत में शुमार है l हमारे यहां तो हर सरकारी व निजी संस्थान में किक मारने का रिवाज हैl
नेताजी अपनी बात
झिलाये जा रहे थे कि फ़ुटबाल में तो पता होता है कि किसके विरुद्ध गोल
मारने का कितना समय है l पर राजनीति तो अनिश्चितता का खेल है कौन
अपने गोल के लिए किसे किक मार दे l जैसे श्री कृष्ण ने अर्जुन को यह
ज्ञान दिया था कि युद्ध के क्षेत्र में कोई अपना नहीं उसी
तरह राजनीति में भी कोई अपना सगा नहीं कोई कभी भी दे जाता है दगा l
नेताजी की बातों में दम दिख रहा था और उनके किक मारने के अनुभव का निचोड़
का रस मुझे स्वादिष्ट लग रहा था मैंने भी उन्हें चने के झाड़ पर चढ़ाते
हुए कहा कि वाह क्या ज्ञान दिया आपने हम तो आपके मुरीद हो गए l
किक मारने की प्रवृत्ति राजनीति में
जन्मजात होती है माँ की गोदी में भी हम किक मारते रहते थे l यदि अपवाद
स्वरूप किक मारने की प्रवृत्ति नहीं होती तो खिलाङी को तो कोच या
प्रशिक्षक सीखा देते है पर राजनीति में ठोकर खाकर और अति महत्वकांक्षा यह
सब करने को मजबूर करती है और यह किसी भी स्तर पर और किसी भी स्तर वाले को
अपनी गिरफ्त में ले लेती है l
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