०५ जून पर्यावरण दिवस के उपलक्ष्य में ----------
हम है दुश्मन पर्यावरण के …… ? [ व्यंग्य ] आज विश्व में पर्यावरण दिवस मनाया जायेगा हमारे देश में भी मनाने का दिखावा किया जायेगा l विदेशों में इसे गंभीर हो कर असलियत में और हमारे देश में मात्र औपचारिकता की जाएगी , मनाना है इसलिए मनाते है और जानते है होना जाना क्या ? जो इसे ज्यादा दूषित कर रहे है और करते रहेंगे वो ही सबसे ज्यादा इसका राग जोर शोर से अलापते है तथा इस दिन झूठी शपथ ,लेक्चर ,पोस्टर आदि लगाकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते है l जब तक हम पर्यावरण को अपना धर्म नही माने तब तक नई -नई विपदा और आपदा को आमंत्रण देते रहेंगे l प्रकृति से हम सब कुछ लेना ही जानते है देना सीखा ही नहीं क्या करै अपनी संस्कृति जो भूल गए l बुरे काम का परिमाण बुरा ही होता है l
एक पर्यावरण प्रेमी ने अपनी व्यथा को कुछ इस तरह व्यक्त किया कि --हम ही तो है दुश्मन पर्यावरण के l विकास के नाम पर जितने पेड़ कटवाए उसका कुछ भी अंश नहीं लगाया ,केवल वृक्षारोपण के नाम पर अपना नाम चमकाया ,फोटो ,वीडियो क्लिप ,और समाचर छपने तक ही सीमित रखा जिस पौधे को रोपा उसका क्या हश्र हुआ किसे चिंता फिर उसी स्थान पर किया जाएगा यह क्रम चलता रहेगा और कागज पर वृक्षारोपण होता रहेगा बड़े बड़े आकर्षक नाम से ये अभियान पुकारे जायेंगे इतिहास के पन्नों पर l पर ये सब प्रकृति से खिलवाड़ ही तो है ,हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और होते है l
पर्यावरण के लिए सर्वाधिक घातक पोलिथिन बेग ,डिस्पोजल से हमे विशेष प्रेम हो गया है जीवन इन्ही पर आधारित हो गया दुष्परिणाम के बारे सोचने की फुर्सत किसे है ,दुकानदार से पोलिथिन मांगने पर शर्म नही गर्व की अनुभूति होती है l
पानी चाहत में इस धरा को छलनी कर इतना दोहन कर लिया है कि ईश्वर ही जाने l ,केमिकल व गंदे पानी ने जहां पवित्र नदियों को अपवित्र कर दिया है पानी तो अब आचमन के लायक भी नहीं बचा है सरकार शुद्धिकरण के बड़े -बड़े सपने दिखाती है और हम देखते है जनता को बेचारी मुंगेरी लाल बना दिया कि सपने देखो और मस्त रहो वाह हम कितने प्रगतिशील होते जा रहे है सपनों में l
, बेचैन है चैन से सांस लेना भी दूभर है हर कोई बीमारी से ग्रस्त है सरकारें व जनता बीमार है विश्व गुरु कहलाने वाला यह देश अपने सांस्कृतिक मूल्यों को छोड़कर विकसित राष्ट्रों द्वारा अपनी पर्यावरण की सुरक्षा हेतु बंद किये उत्पादनों को बनाकर विदेशी मुद्रा के लालच में जनहित के साथ खिलवाड़ कर रही और निर्यातक बन कर इठला रहे है पर्यावरण का हाल बेहाल है फिर भी हम २१ वीं सदी में जी रहे है यह क्या कम है l
पर्यावरण की चिंता करना फैशन और आधुनिकता की निशानी है अत; चिंता करते है ,ग्लोबल वार्मिग का रोना रोते है l देश में कानून तो है पर भ्रष्टाचार रूपी रावण ने इन्हे बौना कर दिया है पर्यावरण संरक्षण हमारा कर्तव्य और धर्म होना चाहिए परन्तु कुछ ने औद्योगिक क्रांति की दुकानदारी के नाम पर इस पावन उदेश्य की बलि चढ़ा दी है l ऊपर से पर्यावरण के प्रति प्रेम दिखाना और हानि पहुँचाना इस लोकोक्ति को चरितार्थ करते है कि "जड़ काटते जाओ और पानी देते जाओ l
पर्यावरण प्रेमी के अनुसार इसकी कथा और व्यथा अनंता है समय कम हैl
कहने लगे की हमें यह कसम खाना पड़ेगी हम सुधरेंगे तभी जग का पर्यावरण सुधरेगा l इस हेतु चिंतन मनन नहीं , कुछ करने की जरूरत है और इस क्षेत्र में कुछ कर गुजरने का मन करेगा उस दिन हम दुश्मन से दोस्त बन जायेंगे पर्यावरण के .l मैंने कहा आप खामख्वाह परेशान हो रहे है शासन प्रशासन और जनता इस और गंभीर नही है तो आप जैसे लोग क्या कर लेंगे ?आपके प्रयासों की उनके कान पर जूं तक नही रेंगती है फिर वह तनाव की मुद्रा में कहने लगे हम हमारा काम मरते दम तक करते रहेंगे और पर्यावरण के दुश्मन की बजाय मित्र बनकर जागृति लायेंगे l मैंने उनकी पर्यावरण के प्रति अगाध श्रद्धा के प्रति नत मस्तक होकर प्रण लिया की इस और प्रयास किया जाना जरूरी है और करेंगे l
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