चाटुकारिता बनाम शिष्टाचारिता
चाटुकारिता
हमारे देश की एक बहुत बड़ी लाइलाज समस्या है और वह सभी समस्याओं पर भारी व
कई समस्याओं की जड़ है ,हमारी विडंबना है कि किसी भी प्रकार से किसी भी
स्कूल या विश्व विद्यालय में इसका कोई डिप्लोमा या डिग्री कोर्स नहीं है
फिर भी इसके लिए स्किल्ड लोगों की एक बहुत बड़ी फौज खड़ी है उन्हें हर
परिस्थिति में इसका समुचित उपयोग करने की कला में महारथ हासिल है येन केन
प्रकारेण अपना काम बना लेंना या अपना उल्लू सीधा करना इनका प्रमुख गुण होता
है इन्हे सिर्फ अपने काम का टारगेट ध्यान रहता है इन्हे मान अपमान जैसे
शब्दों का ज्ञान तो भलीभांति रहता है फिर भी सब नजर अंदाज करने की
ईश्वरीय शक्ति से परिपूर्ण होते हैं lबुद्धि जीवियों और प्रतिभाशालियों
में यह अवगुण नहीं पाया जाता है इसलिए उनकी अलग पहचान होती है -और वे इस
मार्ग पर जाते ही नहीं है कविवर रहीम कहते है कि
पावस देखि रहीम मन, कोइल साधे मौन
अब दादुर वक्ता भए, हमको पूछत कोय
वर्षा ऋतु आते ही मेंढको की आवाज चारों तरफ गूंजने लगती है तब कोयल यह सोचकर खामोश हो जाती है कि उसकी आवाज कौन सुनेगा। चाटुकारों की बढ़ती पूछ परख से इसी तरह बुद्धिजीवी और प्रतिभाशाली भी मौन हो जाते है और चाटुकार प्रखर हो जाते है l हर क्षेत्र में इन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है l ये ऐडा बन कर पेड़ा खाने का काम करते है और मानते है कि -
चाटुकारिता में कई तरह की किस्में पाई जाती है ,पहले झूठी तारीफों से काम चलते है , विरोधी के दुःख या संकट की खबर देकर ,और यह काम न आवे तो चरण चाटन के ब्रम्हास्त्र का उपयोग किया जाता है चाटुकार तो मजबूरी में कुछ पाने की आशा में यह क्रियाकर्म करता है ऐसे लोग कुछ पाने की लालसा के कारण धनिकों, उच्च पदस्थ एवं बाहुबली लोगों की और ताकते रहते हैं और उनकी चाटुकारिता करने के लिये तैयार रहते हैं। उनकी चाटुकारिता में कोई कमी नहीं करते। उन्हें यह आशा रहती है कि यह लोग उन पर रहम कर उनका उद्धार करेंगे लेकिन यह केवल भ्रम है। वह अपना काम निकालकर भूल जाते और चाटुकारिता की सेवा बदलें कुछ दे भी देते है तो वह भी न के बराबर। सच तो यह ऐसे चाटुकारों का जीवन का इसी तरह गुलामी करते हुए व्यर्थ चला जाता हैं। जो पॉवर में है वह अहंकार में है चाटुकार उनकी और ताकता हुआ ही जीवन गुजारता है और संकट होने पर साथ छोड़ने में भी कोई परहेज नही करता यह विचित्र प्रकार का मनुष्य होता है दूसरा करे तो चाटुकारिता और स्वयं करे तो शिष्टाचारिता मानने वालों की कमी नही है l चटुकारिता को पसंद और उसका आनंद लेने वाले जब पद विहीन होजाते है और न मिलने पर अवसाद के शिकार हो जाते है कई बड़े अधिकारी नेता ऐसे पीड़ित मिल जायेंगे l
संजय जोशी 'सजग "[ व्यंग्यकार ]
पावस देखि रहीम मन, कोइल साधे मौन
अब दादुर वक्ता भए, हमको पूछत कोय
वर्षा ऋतु आते ही मेंढको की आवाज चारों तरफ गूंजने लगती है तब कोयल यह सोचकर खामोश हो जाती है कि उसकी आवाज कौन सुनेगा। चाटुकारों की बढ़ती पूछ परख से इसी तरह बुद्धिजीवी और प्रतिभाशाली भी मौन हो जाते है और चाटुकार प्रखर हो जाते है l हर क्षेत्र में इन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है l ये ऐडा बन कर पेड़ा खाने का काम करते है और मानते है कि -
कानून मिले न कायदा l जी हजुरी में ही फायदा l l
चाटुकारिता में कई तरह की किस्में पाई जाती है ,पहले झूठी तारीफों से काम चलते है , विरोधी के दुःख या संकट की खबर देकर ,और यह काम न आवे तो चरण चाटन के ब्रम्हास्त्र का उपयोग किया जाता है चाटुकार तो मजबूरी में कुछ पाने की आशा में यह क्रियाकर्म करता है ऐसे लोग कुछ पाने की लालसा के कारण धनिकों, उच्च पदस्थ एवं बाहुबली लोगों की और ताकते रहते हैं और उनकी चाटुकारिता करने के लिये तैयार रहते हैं। उनकी चाटुकारिता में कोई कमी नहीं करते। उन्हें यह आशा रहती है कि यह लोग उन पर रहम कर उनका उद्धार करेंगे लेकिन यह केवल भ्रम है। वह अपना काम निकालकर भूल जाते और चाटुकारिता की सेवा बदलें कुछ दे भी देते है तो वह भी न के बराबर। सच तो यह ऐसे चाटुकारों का जीवन का इसी तरह गुलामी करते हुए व्यर्थ चला जाता हैं। जो पॉवर में है वह अहंकार में है चाटुकार उनकी और ताकता हुआ ही जीवन गुजारता है और संकट होने पर साथ छोड़ने में भी कोई परहेज नही करता यह विचित्र प्रकार का मनुष्य होता है दूसरा करे तो चाटुकारिता और स्वयं करे तो शिष्टाचारिता मानने वालों की कमी नही है l चटुकारिता को पसंद और उसका आनंद लेने वाले जब पद विहीन होजाते है और न मिलने पर अवसाद के शिकार हो जाते है कई बड़े अधिकारी नेता ऐसे पीड़ित मिल जायेंगे l
चाटुकार हमेशा शाश्वत सिंद्धांत का पालन करता है और वह केवल उगते सूरज अर्थात
हमेशा जो पॉवर और सत्ता में है उसी पर केंद्रित रहता है और जैसे तैसे उसका दामन
थाम लेते है l चाटुकारिता करने वाला और कराने वाला दोनों को ही
आनंद की अनुभूति होती है जब तक धरा पर ऐसे लोग रहेंगे तब तक "
-चाटुकारिता " अमर बेल की भांति
फैलती रहेगी और बुद्धिजीवी और प्रतिभाशाली को आत्म ग्लानि को महसूस करते रहेंगे , बेचारे कर भी क्या सकते है l संजय जोशी 'सजग "[ व्यंग्यकार ]
अद्भुत परिभाषा
जवाब देंहटाएंमजा आ गया।🤣
जवाब देंहटाएंअति सुंदर कटाक्ष।
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर
जवाब देंहटाएंSuper explanation
जवाब देंहटाएंHumne Aapke lekh Ka message banake bahut logo ki jala k Rakh Di
जवाब देंहटाएंBahut bahut sadwad Priya Mitra adbhut paribhasha likhi h aapane
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